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Tuesday, March 9, 2010

महंगाई

राजशी ठाट
भोगने वाले
क्या जाने
पीर …….
उस मजदूर की
जो दिन भर
खटकर
जुटाता है
दिहाडी
खिलाता था पहले
बच्चों को
दो बकत की रोटी
अब एक बकत की |

तनख्वा

बनिए की नौकरी
कमरतोड़ मेंहनत
तनख्वा चन्द रुप्प्ली
लड्खडाती सेहत |

copyright@विजय कुमार 'मधुर'

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