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Wednesday, March 3, 2010

हठी यादें

मुट्ठी से रेत की तरह फिसल गई जिंदगी,
अबतो बस हथेलियों पर यादों के रेणु नजर आते हैं.

कीमत लगा के तू, तुम, आप पुकारते हैं लोग,
जो गर्दन घुमा बुलाले वो इशारे कहाँ नज़र आते हैं,
आड़े आया ना कोई मुश्किल में,
सब मशवरे (सलाह) दे हठ जातें हैं,
तुम्हारे मुस्कराने का कोई मतलब तो रहा होगा,
प्रीति के संकेत यूँ ही व्यर्थ तो नज़र नहीं आतें हैं.

तुम्हारी याद भी तुमसी हठी,
तुम जाके नहीं आये और तेरी याद के साये आके नहीं जातें है.

मोहन सिंह भैंसोरा,
सेक्टर-९/८८६, आर. के. पुरम,
नई दिल्ली

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