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Wednesday, March 3, 2010

द्वी छ्वटी कविता

(1)
बुरु नि मन्या
होरी च
लगनू रंग
पण मनमा
कुछ हौरी च |

2)
बुदीन्दा की गाणि
घ्यू की माणि
लप्लपांद जीभ
मुखडी देखि स्वाणि |

copyright@ विजय कुमार 'मधुर' vkumar64mca@gmail.com

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