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Tuesday, February 16, 2010

"विलुप्त होन्दि विरासत"

दिन बौड़ि ऐ जान्दान,
आज ऊख्ल्यारी का,
जब कूट्दा छान पीठु,
अरसा बणौण का खातिर,
गिन्जाळिन घम-घम्म,
बज्दि छन चूड़ी उंकी,
हाथु मा बल छम-छम्म.

जान्दरी क्या बोन्न त्वैकु,
तेरु रिन्गंणु आज अपशकुन छ,
रिन्गदी छै आज उल्टी,
वै दिन, जब क्वी,
यीं दुनिया छोड़िक चलि जान्दु,
गोति अंशी वैकु जौ पिसिक,
फिर वांकु पिंड बणादु.

डिंडाळि आज बुढया ह्वैगिन,
कुछ टूटणि छन,
जख कंडाळी जमीं अर,
रिटणि छन बिराळि,
कवि "ज़िग्यांसु" का मन मा,
पैदा होन्दी कसक,
कना दुर्दिन ऐगिन तुमारा,
हे पहाड़ की डिंडाळि.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित ५.२.२०१०, ९.३० रात्रि )
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी.चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल,
उत्तराखंड.

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