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Wednesday, February 24, 2010

सुनो नहीं, देखो

दूरदर्शन के आने से पहले,
सुनते थे सभी लोग,
रेडियो से खबर और गाने,
लोकप्रियता पाई इतनी,
झुमरीतल्लैया के लोग,
फरमाइश करते थे पत्र लिखकर,
सुनते थे गाने मनमाने.

रेडियो नजीबाबाद से,
जब प्रसारित होने लगे,
लोकप्रिय उत्तराखंडी गाने,
पहाड़ की वादियों में गूंजने लगे,
मनभावन कुमाउनी, गढ़वाली गाने.

पहाड़ छूटा रेडियो भी,
दिल्ली में दूरदर्शन अपनाया,
कहता है "सुनो नहीं, देखो"
कवि "ज़िग्यांसु" को,
चारों पहर यही बताया.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, २१.२.२०१० ११.४५ रात्रि)

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