Home

Tuesday, February 16, 2010

"बरात अर पौंणा"

सजि धजिक पैटि एक बरात,
रंगमता पौणौ कठ्ठा करदु करदु,
घौर मु पड़िगी बल रात,
दाना पौंणा भौत पिथेन,
कन्दुड़ि धरिन बल हाथ.

बाराती मा जाण कु होंणु,
पीपा कू जुगाड़,
बड़ा पौंणा पेणा खुलम खुल्ला,
छोट्टा पौंणा खोजणा आड़.

ब्योलि का गौं का न्योड़ु जान्दु जान्दु,
जौंकि थै पिनि छटेगिन ज्यादा,
पौंणा कुल मिलैक रैगिन बाराती मा,
कुल मिलैक बल आधा.

खड़ा नि ह्वै सकणा अपणा गौणौ फर,
ढोल्या, दमैयाँ, बाजा वाळु अर पलंगेर,
ब्योलि का गौं मा होंणी बरात की इन्तजार,
रात भौत ह्वैगि, वन भी ह्वैगि बल देर.

यनि हालत मा कनुकै कैन'
बजौण थौ बल उत्तराखंडी ढोल,
गैस थमैक वर नारायण जी का हाथ मा,
पंडित जी भी ह्वैगिन कखि गोळ.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
और हरदेव सिंह जयाड़ा
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
21.2.2010 को रचित
दूरभाष: ९८६८७९५१८७

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments