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Friday, June 5, 2009

पाणी की पूजा

होन्दि छ अपणा पहाड़ मा,
किलैकि पाणी,
कै भी पराणी का खातिर,
अमूल्य छ,
जैका बिना जीवन की कल्पना,
संभव निछ.

उत्तराखण्ड मा,
पुराणा पाणी का धारौं फर,
मगरा बण्यां छन,
अर् देवतों मूर्ति भी,
लोग पाणी का धारौं तैं,
पूज्वन अर् साफ रख्वन.

ब्यौलि जब औन्दि छ,
ब्यौलि बणिक अपणा सैसर,
पैलि पूज्दी छ,
पाणी कू धारू,
किलैकि या पहाड़ की,
परम्परा छ अतीत सी,
आज तक.

वनत पाणी की पूजा,
करदा छन सब्बि लोग,
बिना पाणी का गौं,
कथगा दुःख होन्दा छन,
लोग वख अपणी,
बेटी कू रिश्ता कन्नौ कू,
खुश नि होन्दा.

पाणी हरचु ना,
नितर क्या कल्लु मन्खि,
पाणी तैं पूजा,
यू कालजयी सत्य छ.

सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
2.6.2009

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