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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, June 22, 2017

संदीप रावत, की रचनाएं

(1) कुछ पंक्ति.. "पाणि अर किसाणि" पर - ----
         
           " पाणि - किसाणि "

कथगा बि ह्वा धन्न
पर खाण ही पड़द अन्न ,
क्वी मशीन नि देंदि कब्बि
पाणि अर अन्न |
           बुसग्ये जालु सैर्या पाणि
            तब ज्यूंदो रै$ला  कन ,
           अर किसाणि नि रालि त
           कख बटि खै$ला अन्न  |
17/06/2017 @संदीप रावत , श्रीनगर गढ़वाल |
         
          (2) " खबर "
अखबार$ एक पन्ना मा
खबर छपीं छायि कि -
टनों अनाज सड़कम सड़ी ग्यायि |
अर!
हैंका पन्ना मा लेख्यूं छायि कि -
एक मौ$ ब्याळि रात
बल भूखन मरी ग्यायि |
     25/03/2017@ संदीप रावत ,श्रीनगर गढ़वाल |

(3)गढ़वाळि गजल /गंज्यळि गीत "लोग "@संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल |
                              "लोग "
मुख ऐथर चिफळि गिच्ची करदन लोग
अर पीठ पैथर झूठी-सच्ची धरदन लोग |
हुणत्यळि डाळी का मौळंदा पात देखीक
झणि किलै जलड़ौंम छांछ  संग्ती डलदन लोग |
दूधौ-दूध पाण्यू-पाणि द्यिख्यें$द  सब्यूं
मुख सामणि मुखसौड़ा फिर्बी मरदन लोग |
सब्बि$ जगौं बण्यां रौंदन भौत पर्वाण
हैंका  तैंकम  झट्ट पक्वड़ी तलदन लोग |
जणदा नी बल मंत्र द्येखा बिच्छी को
सर्प द्वलणी हत्थ  फिर्बी कुचदन लोग |
मिल्द जब हे स्याळ ददा वळो पट्टा "संदीप "
अफ्वी औतारी अफ्वी पुजारी बणदन लोग |

       -------@संदीप रावत ,श्रीनगर गढ़वाल |

सफेद छाती वाले मुर्ग

White-Breasted Waterhen (Amauronuis phoenicurus) Safed Chhati wali Jal Murg
-
 
 गढ़वाल की चिड़ियायें - भाग -26

( Birds of  Garhwal; Birding and Birds of Garhwal, Uttarakhand, Himalaya ----- 26) 
-
आलेख : भीष्म कुकरेती , M.Sc.  

32 सेंटीमीटर लम्बे जलमुर्ग मुख्यतया मैदानी हिस्सों व नैनीताल जैसे पहाड़ी जगहों में तालाब व तलायों के बिलकुल पास पाए जाते हैं। अग्र भाग सफेद व पश्च भाग सिलेटी रंग का होता है।  उड़ सकते हैं और नर -मादा साथ में रहते हैं। 
-
सर्वाधिकार @सुरक्षित , लेखक व भौगोलिक अन्वेषक  



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विकाश

Modern Garhwali Short Story by Jasvir 
-
Presented on internet by Bhishma Kukreti 
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ये साल गर्मीयूं कि छुट्टीम गौं जयूंछायी,  मेरी मां ल बथै कि हमरा सैणाक पुगुंड फर सडक कटेणी च बल।   मि हैरान ह्वे ग्यों, यो पुगुंडु त हमरु सबसे बडु पुगडु छौ, येकै नाज से त हम पलेन्दा छा। 

ब्यखुनि दौं  मि धुमुणकु चलि ग्यों सारी जने,  द्य्याखा त सैर्या पुंगुडु कटै ग्या, द्वी JCB अर पाचं मजदूर लग्यां छा खैंण्डण फर। मि निराश ह्वे कि पुंगडक एक किनरा फर बैठि ग्यों,   तबरि म्यारू ध्यान पुगंडक ढीसक पोड फर गा, म्यारा आखोंन्द आंसु  ब्वगण लगगी, आखों अगने धुन्धकार ह्वे ग्या, मीथै अपणु बचपन दिखेण बैठ ग्या।

चैत का मैनेौं कि सट्टी (धान) बुतैम येयी पोडाक मुडि बैठिक कल्योरोटी खान्द छाया, मेरी मा मीखुणी बोदि छै, लखडु अर ग्वपला टीपीकि ल्यायु आग जगोंला अर च्या (चाय) बणौला। 

म्यारू दादा (बडु भै) मीसे काफी बडु छाै यांलै वो हैल लगांदु छौ, अर मी खुणि ब्वदा छा तु डाला फोड, सबसे बेकार काम छौ मीथै भारी गुस्सा औन्दु छो पर म्यारा पिताजी कि डैरकु  मि चुप रैजान्दु छौ ।   मी थै सिनक्वलि भूख लग जान्दी छै, मि बार-बार मेरी मां थैं सनकाणु रैन्द छौ, मेरि मां हैंसिकि बोदि छै,  मूडि गदन  छोयाम जा अर पाणि लियो फिर रोटि खौंला। 

मि खुश ह्वेकि हथ फरकु कूटू एक तरफ चुटैकि पाणी कु कैन हाथ म पकडि कि दौडुदु छौ छोंया कि तरफ, तवरि पिछनै भटी म्यारा पितजिकी खतरनाक अवाज सुणेन्दी छै, कन भूख ह्वे रे त्वे खुण,    अभित अद्दा पुगुंडु भि नि बुते, के कु कबलाट हुयूं त्वेफर ?  फिर मि रुवण्यां सि मुख बणा खै अपणी मां जनै देखुदु छौ अर तब मेरी मां बोदि छै, नन्नु लौडु च भूख लग गे होली वेथैं, आल्यावदि खै ल्यूंला बगत ह्वेतग्या। फिर हम सब्या येई पोडक मुडि बैठिक कल्योरोटी खाणकि तैयरी करदा छाया।  पिताजि तैल -मैल पुंगडक हल्यों थैं धै लगांन्दा छाया, आवा भारे रोटी खै जावा।

असूजक मैना मेरी मां ब्वलदि छै बुबा आज इसगोलकि   छुट्टी कारो आज सैणाक  पुगंडक सट्टी मन्डणी, सर्या सार मुके ग्या हमरु ही हमरु रै ग्या, लोखुल गोर छोडयलीं सारि । मि मेरी मां दगड एक शर्त धरुदु छों कि मिल तभ आण  जो तिल  कखडिकु रैलु अर भात बणाण अर एक कखडी कच्ची खाणा कु लिजाण नथर मिल नि आणु I  मेरी मां  तैय्यार ह्वे जान्द छै। सुबेर मेरी मां भात और रैला थे भान्डाउन्द धैरि क अपणी पुरणी धोती का कत्तर चीरि कि एक फन्ची बणा कि मेरि भुल्ली का मुण्डम धरदि छै और हथ फर पाणी कु कैन लेकि  भुल्ली अगने भटै अर मां अर मी पिछनै भटे मोलकु ब्वर्या मुन्डम धैरीक रस्तालग जान्दा छाया। 

पुंगडम पौंछिकि जब मि सट्यूंकु कुन्डकु देखुदु छौ, जो कि मी से भी उच्चु रैन्दु छौ त म्यारू सबि साहस खत्म ह्ने जान्दु छौ । सट्टी   मंडै, पराल फ्वलै, फिर बोरि भ्वारा अर धार सरै, थकि -थुकि खै फिर ये ही पोड मुडि बैठिक रैलु भात खयेन्दु छौ, मेरी मा आन्दी-जान्दी बेटी-ब्वारीयूं थै धै लगै- लगै कि बुलान्दि छै, आजावा हे कखडी खा जावा, .. अर तब  मिल-जुलिखै  हारा मठ्ठा दगडि हैरि कखडी कि फडकी खयेन्दि छै।

फागुणक  मैना स्कूल १० बजी लगदी छै, हमरा गौंक  लौडौंकि एक टीम छै, सुवेर-सुवेर पैलि हम एक धात मोल घोल्यान्दा छाया सैणाक पुंगडों, दगुडु बणेकि जान्दा अर आन्दा छा, रस्ता म एक गौं प्वडुदु छों, वख भटै अमरूद च्बरणा, खूब गालि खयेन्दी छै पर मजा भी खूब आन्दु छो।

 मि इन्नि बचपन का सपना देखुणु रौं तबरि गाड का पलिछाल मडगट भटि म्यारू सि दद्दा आंद दिख्या, ... मि हैरान ह्वे ग्यों दद्दा थैं म्वर्यांत कै साल ह्वेगीं पर इबरी यख ..कनखै ?      दद्दा नजदीक ऐैग्या, दद्दा कु मुख गुस्साल लाल हुययूं छौ, अर अन्दिचोट दद्दा JCB वला मजदूर फर पिलची ग्या।     कनु रै हराम का बच्चा . . .किलै उजाड रे तुमुल यो पैरु ? ....तुम थैं पता मिल अर मेरी सैणिल मूडि गाड भटै सर्यां छी ये पैरा खुणि ये ढुन्गा, सर्या भीड्ड उजाडयाल? . . मजदूर ब्वनु, हे ब्वाडा सडक बनणीच यख, ... उनभित बन्जर ही छो स्यू प्वडीयूं, किलै छौ गुस्सा हूणा ?  यां का पैसा मिलणी तुम थैं। 

अरे बुबा कतग पैसा जि देला तुम ? कतग खैरि खंयीच मेरी यीं पुगंडी बार, अपडि शैणिकु बुलाक, गुलाबन्द अर कन्दुडुकि मुर्खी बिकै कि मिल या पुगुंडि मोल ल्या, तीन दिन का बासा फर पैदल भूखू- निर्भुखु  पौडि गौंमि येकि रजेस्ट्री कराणा खुणि, मेरी खैरिक क्या कीमत दे सकदौ तुम ? ....पर निर्भे छव्वारा केखुण खैन्डणा छो तुम यीं सडक थै ? 

अरै ब्वाडा विकास आणुच बुना ..गढवालम यीं सडकाक रस्ता, मजदूर बोनु । 

पर बुबा कतग बडु च वो विकास जै खुण इतग बड़ी सडक चैन्द ? 

 अरे ब्वाडा बहुत बडुच यत कुछ भि नीच वे खुण त सैर्या गढ्वाल खैन्डेणू च ।, 

सचें ब्वनु छै तू? 

हां ब्वाड़ा। 

तबरी दद्दा  कि नजर मीं फर पोडिग्या, ... कनु रै निर्भग्याओ किलै छोडियीं तुमल पुगंडि बन्जी ? ...... मि डैर ग्यों, क्या बोलु, फिरभी हिम्मत कैरिक मिल ब्वाल ... कैल कन खेति - पाति ब्वे - बाप अब दाना ह्वेगीं। 

दद्दा कु गुस्सा अब सातों असमान फर चैडिगे, .... कनु तुम थैं जैर अयूंच करदा ? 

डरदा- डरदा मिल ब्वाल ....दद्दा हम द्विया भाई शहर रन्दौ नौकरी फर।, 

पर ब्वारि त ह्वेली तुम्हरी धारम ?, दद्दाल  पूछ 

मि-   न - न वो भि हम दगड ही रन्दन ।

 पर किलै ? दद्दा हैरान ह्वेकि

मि-  नौनौ थैं पडाना खुणि ..

दद्दा  गुस्साम -  पर यख किलै नि पढाया ? .... तुमल भित यखि पाढा। 

मि- दद्दा यखकि पडै मा और वख कि पडै मा भौत फर्क च । 

दद्दा हैरानी से -  क्या फर्क च रै ? 

मि-  दद्दा यख पैडिकत हम जन ही बणला, पर वख पाडला त भौत बड़ा आदिम बणला। 

दद्दा - बड़ा आदिम ? कतग बड़ा रै? 

मि-   भौत बड़ा दद्दा,  इतग बडा कि फिर वो मूडि ब्वे-बाप, नाता-रिस्ता, बोलि-भाषा, तीज-त्योहार कैथै नि देखि सकदा, बस विकास थै की देखिदीं।

दद्दा -  बिकास ? ......को .... जो यीं सडका रस्ता आणुचं ....वी ?  

मि- हां दद्दा ।     
  
दद्दा क मुख फर निराश छा ग्या, ठिक च बाबू.... बोलिकि,  फर फरकि, एक नजर उजड्रयां पैराक तरफ ढ्याख  फिर पुगंड जनै ढ्याख.... अर  फिर स्यां-स्यां मडगट जनै जाण लग गीं। मि रुण बैठग्यों, जोर से धै लगैं, ....दद्दा .... मी थै भि लीजा अफु दगडि, पर दद्दाल  फरकि खै भि  नि ढ्याखु, अचानक मेरी तन्द्रा टु्टी, मिल द्याख कि मित पुगंडक किनरा फर बैठ्यूं छौं अर मजदूर काम कना छा। दद्दा थैं म्वरयां त तीस साल ह्वे गीं पर शोर अभि भी पुगंडियूं फरै च । दद्दा थै सायद बिकास समझ नि आयी, पर मेरित गेड बन्दी च, कि विकास आलु त यूं सडक्यूं कै रस्ता आण ।


                                 जसवीर

"ढ्वलकी बिचरी"

Garhwali Poem by Sunil Bhatt
-
ढ्वलकी बिचरी कीर्तनौं मा,
भजन गांदी, खैरी विपदा सुणादी।
पढै लिखैई बल अब छूटीगे,
एक सुपन्यु छौ मेरू, ऊ बी टूटीगे।
ब्वै बुबा बल म्यरा, दमौ अर ढोल,
अब बुढ्या ह्वैगेनी।
भै भौज डौंर अर थकुली, गरीब रै गेनी।
छ्वटी भुली हुड़की झिरक फिकरौं मा,
चड़क सूखीगे।
हंसदी ख्यल्दी मवासी छै हमारी,
झणी कैकु दाग लगीगे।
ब्वै बाबा, भै भौज भुली मेरी बेचरी
कै बेल्यौं बटैई, भूखा प्वटक्यौं बंधैई
भजन गाणा छन, द्यव्तौं मनाणा छन।
देखी हमरी या दशा,
औफार डीजे वीजे विलैती बाबू ,
गिच्चु चिड़ाणा छन,
ठठा बणाणा छन, दिल दुखाणा छन।
ढ्वलकी बिचरी खैरी लगौंदी, ढ्वलकी बिचरी।।
स्वरचित/**सुनील भट्ट**
17/06/17

चाच्ची ,बड्यों न बोलि

Garhwali Poem by Rakesh Mohan Thapliyal 
-
हे बेटा कखन औंण,
 हमारा मुखड़ों पर अन्वार,
 लैंदु –पाणी अब कखि रई नी , 
 छुड़ी दाळ-रोट्टी,साग-भात खा
भुज्जी की त छुई ही नी ?
हे बेटा,कुछ बांदरुन धपोरी,
 अर कुछ सुंगरुन खाणा,
 डोखरों, छोरा खारु बोंण,
 जब कुछ नी हासिल –पाई ?
Copyright@ Rakesh Mohan Thapliyal 

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" पाणि - किसाणि "

Garhwali Poem by Sandeep Rawat 
-
कथगा बि ह्वा धन्न
पर खाण ही पड़द अन्न ,
क्वी मशीन नि देंदि कब्बि
पाणि अर अन्न |
बुसग्ये जालु सैर्या पाणि
तब ज्यूंदो रै$ला कन ,
अर किसाणि नि रालि त
कख बटि खै$ला अन्न |
17/06/2017 @संदीप रावत , श्रीनगर गढ़वाल |
(प्रवक्ता- रसायन, रा0इ0कॉ0धद्दी घंडियाल, बडियारगढ़,टिहरी गढ़वाल)

जल मुर्गी

Common Moorhen (Gallinula chloropus) Samanya jal murgi 
-
 
 गढ़वाल की चिड़ियायें - भाग -25 

( Birds of  Garhwal; Birding and Birds of Garhwal, Uttarakhand, Himalaya ----- 25 ) 
-
आलेख : भीष्म कुकरेती , M.Sc.  
32 से 35 सेंटीमीटर लम्बे जल मुर्ग साधारणतः दलदल , पानी वाले सतह के पास वाली जगह , खूब वनस्पति वाली झीलों  नहरों के पास शर्दियों में मैदानी इलाकों में  पाए जाते हैं। 

 प्रजनन समय नर मुर्ग की चोंच लाल व चूंच किनारा पीला हो जाता है और अन्य समय इन अंगों का  मटमैले रंग होता है। 

-
सर्वाधिकार @सुरक्षित , लेखक व भौगोलिक अन्वेषक  



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जबाब कु द्यालु ?

गढ़वाली कविता - दिनेश कुकरेती 
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सरैला कु पाणी भुलू सुखणू किलै ह्वालु,
स्यु निर्भगि कुकर इन भुकणू किलै ह्वालु।

पर्सी बट्ये आंखि फड़कणी हिर्र हूणी गात,
बिना तीसाs भि गाळु सुखणू किलै ह्वालु।

पीठी पिछ्वडि़  अपण्यास दिखांदु छौ वु,
अब मीs देखिs इन लुकणू किलै ह्वालु।

बाब-ददौंsन खैरि खै-खै कि मुंडु रुप्याई,
ऊंकि करीं-कमयीं तैं फुकणू किलै ह्वालु।

जौंका बाना भूका-तीसा सदनी बौलु काई,
व्वी बुनान बुढ्या बोझ बुकणू किलै ह्वालु।

उमर छै त मुंड मा रैs सर्या दुन्या कु बोझ,
अब मुंडु मलासीs भि दुखणू किलै ह्वालु।

दिनेश कुकरेती
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उदास घिंडुडु

गढ़वाली कविता - दर्शन सिंह रावत 
-
ए घिंडुडी, इनै सूणिदी।
क्या स्वचणी छै मी बि बतादी।

जणणू छौं मि, जु मि स्वचणू छौं,
तुबी वी स्वचणी छै,
तबी त म्यारु छोड़ नि द्यखणी छै।

हालत देखिक ए गौं का,
त्यारा आंख्यू मा पाणि भ्वर्यूंच।
इनै देखिदी मेरी प्यारी,
म्यारु सरैल बि उदास हुयूंच।।

अहा, कना छज्जा, कनि उरख्यळी।
वूं डंडळ्यूं मा खूब मनखी।
पिसण कु रैंदु छाई, कुटण कु रैंदु छाई,
वूं थाडौं मा खूब बिसगुणा रैंद छाई।
दगड्यो का दगडि हम बि जांदा छाई,
वूं बिसगुणौं मा, वूं उरख्यळौं मा, खूब ख्यल्दा छाई।

अर हाँ, तु बि क्य, फर फर उडांदि छाई,
ड्वलणौं थै नाचिकि कनि बजांदि छाई।
वू डूंडु घिंडुडु, अब त भाजि ग्याई,
पर त्वैफर वु कनु छडेंदु छाई।
मिल बि एक दिन वु कनु भतगै द्याई,
वैदन बटि वैकि टक टुटि ग्याई।

सुणणी छै न,
म्यारु छोड़ द्यखणी छै न।

एक दिन कनु तु,फर फर भितर चलि गै।
भात कु एक टींडु, टप टीपिक ली ऐ।
वैबत मिल स्वाच, बस तु त गाई,
हाँ पर तुबि तब खूब ज्वान छाई।
जनि सर सर भितर गैई, उनि फर फर तू भैर ऐ गेई।

जब तु फत्यलौं का छोप रैंदि छाई,
मि बि चट चट ग्वाळु ल्यांदु छाई।
सैरि सार्यूं मा खेति हूंदि छाई,
हम जुगा त उरख्यळौं मा ई रैंदु छाई।
खाण पीणकी क्वी कमि नि छाई।

झणि कख अब वू मनखी गैं, झणि किलै गौं छोडिकि गैं।
हमरा दगड्या बी लापता ह्वै गैं,
स्वचणू छौं सबि कख चलि गैं।

मेरि प्यारी,सुणणी छै ई-
स्यूं बुज्यूं हम जाइ नि सकदा,
वूं बांजि कूड्यूं देखि नि सकदा।
हम त मनख्यूं का दगड्या छाई,
मनख्यूं का दगडी रैंदा छाई।

चल अब हम बी चलि जौंला,
मेरी घिंडुडी -
कैकि नि रै या दुन्या सदनी,
इथगि राओल यख अंजल पाणी।

छोड अब जनि खाइ प्याइ पिछनै,
चलि जौंला चल हिट अब अगनै।
वूं मनख्यूं कू सार लग्यां रौंला,
बौडि जाला त हम बि ऐ जौंला।
सर्वाधिकार सुरक्षित @दर्शनसिंह रावत "पडखंडाई "
दिनांक 16/09/2015

सारस

Sarus Crane (Grus antigone
-
 
 गढ़वाल की चिड़ियायें - भाग -24

( Birds of  Garhwal; Birding and Birds of Garhwal, Uttarakhand, Himalaya ----- 24 ) 
-
आलेख : भीष्म कुकरेती , M.Sc.  
156 सेंटीमीटर लम्बा सारस भारत में सबसे ऊँचा पक्षी (1 . 8 मीटर ) माना जाता है। सारस के सिलेटी रंग के पंख होते है और सर व गर्दन लाल रंग का होता है।  सारस का मुकुट मटमैला होता है।  नर व मादा दोस्ती होने के बाद सदा साथ रहते हैं। इनकी संख्या कम होती जा रही है। 

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सर्वाधिकार @सुरक्षित , लेखक व भौगोलिक अन्वेषक  



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।करयु छो पैली।

Garhwali Poem by Diwakar Budakoti 
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जख चलनी छै मेरी रिश्ता कि बात दगड्या 
उंकू झणि कै दगडि करार करयू छो पैली ।

मि गै उंकि दैळिम् द्यबता नौ कु हल्दू मंगणा कु
पण उंकु कै ओरु नौ कु गुलबंद पेरयू छो पैली ।

जै दुसमन ते खुज्याणू रो मि छामा छामि कैकि
वो पटवारि जि कु रिश्बत खेकी, फरार करयु छो पैली।

वै फर आणि रै हर्पणा सैद भूतू कि बार बार
जो डांडा कांठो कि अंचरियों कु हर्प्यू छो पैली ।

जैकु तमासु दिखणा खुण ,खड़ि धौण कना रै तमसगैर
वेकु अफुखुण फिट जंक जोड़ करयु छो पैली।

लोग वै खुण बुना रै फूक फूकि क मारि रे घटाक
जो बिचरु भितर भैर दूधा कु जलयू छो पैली।

उज्याङ् ख़ैगै क्वी औरि, अर फंसिगै बिचरु "खुदेड़"
अब वो कैम बोलु कि मि च्वट्टा ख़ैकि कलयू छो पैली।

सर्वाधिकार सुरक्षित -:

दिवाकर बुडाकोटी
संगलाकोटी , पौड़ी गढ़वाळ



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जय भैरव नाथ ठाकुर जी

Spiritual Garhwali Poem by Krishna Kumar Mamgain
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
 दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
दैंणूं ह्वै भैरौं मेरा मुंड मां राखी हाथ । 
शरणांगत तेरा छऊं तू ही माई-बाप ॥ 
.
मेरू आधार तू मेरू दातार तू । 
मेरू संसार तू मेरू परिवार तू ॥ 
मेरू सत्कार तू मेरू उद्धार तू । 
मेरू सौकार तू मेरू हितकार तू ॥ 
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
 दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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मेरू भरतार तू मींकु अवतार तू । 
मेरू करतार तू मीं लगै पार तू ॥ 
 मेरू आचार तू मेरू ब्योहार तू । 
दिलमां दीदार तू छै सहोदार तू ॥ 
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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ध्यान कू कार तू मान कु सार तू । 
मनकु हंकार तू छै परोपकार तू ॥ 
घर कि पगार तू मेरू दीदार तू । 
मेरू सुखकार तू मेरू दुखहार तू ॥ 
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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छै सलाकार तू छै मददगार तू । 
छै मेरा घार तू घर का बाहर तू ॥ 
सोच की सार तू पौंच से पार तू । 
दिल कु दरबार तू मेरू संसार तू .. 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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दिलमां साकार तू छै निरंकार तू । 
मनकि बयार तू भक्ति बौछार तू ॥ 
कष्ट उद्धार तू मेरि सरकार तू । 
मेरू दरबार तू दर कु दीदार तू ॥ 
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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छै मनोहार तू हे जगत्कार तू । 
मींकु आकार तू मींकु साकार तू ॥ 
 मेरू दिलदार तू मेरू भरतार तू । 
जै नमस्कार तू नम कु आकार तू ॥ 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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सृष्ठि आकार तू शेष फुँकार तू । 
ओम कू सार तू ब्योम से पार तू ॥ 
बेदु उच्चार तू पूजौ आधार तू । 
मेरू ओंकार तू मेरू मोंकार तू ॥ 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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भक्ति कू सार तू मुक्ति दातार तू । 
सुखसंसार तू मन कु विहार तू ॥ 
मेरि मातार तू लड्लो प्यार तू । 
मुक्ति कू द्वार तू मेरू संसार तू ॥ 
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
 .
ब्यालि यादगार तू आज की बहार तू । 
भोलै चमत्कार तू सगोर कि सार तू ॥ 
दिल का आरपार तू मेरू बंधनवार तू । 
मेरू सलाहकार तू छै सिपैसलार तू ॥ 
.
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
 .
शंख की टंकार तू गीतकी झंकार तू । 
भजन की पुकार तू कीर्तन की सार तू ॥ 
धन से छै पार तू छै सदाचार तू । 
मेरू ब्यवहार तू मेरू माफिकार तू .. 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
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संधि की लकार तू भाषा की पुकार तू । 
बेदू की बहार तू पूजा कू आहार तू ॥ 
मेरू दिलदार तू मेरू अलंकार तू । 
मेरू पालनहार तू जगकु जगत्कार तू ॥
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
 .
दया कु अम्बार तू ब्वै बबू कु प्यार तू । 
दुखम खबरदार तू सुखम बफदार तू ॥ 
मेरू शिल्पकार तू मेरू संस्कार तू । 
मेरू चौकीदार तू मेरू ठेकादार तू ॥
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥
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मेरू ब्यवहार तू मेरी पौ बहार तू ।
छै मेरू दिलदार तू मीकु चमत्कार तू ॥ 
 छै निर्बिकार तू मेरी मनसार तू । 
जै मेरा भैरौंजी ईष्ट साकार तू ॥ 
 .
कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ ।
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ । 
 .
भक्ति देनहार तू मुक्ती दातार तू ।
धैर्य की दीवार तू कष्ट निवार तू ॥ 
 पैलु हिस्सादार तू पैलु रिस्तादार तू । 
सारूं कू छै सार तू मेरा भैरौं प्यारु तू ॥ 
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कृपा राखी दे प्रभू जनम जनम कू साथ । 
दींणूं चा कुछ दे इनू छोड़ि न मेरो हाथ ॥ 
दैंणूं ह्वै भैरौं मेरा मुंड मां राखी हाथ । 
शरणांगत तेरा छऊं तू ही माई-बाप ॥ 
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जय भैरव नाथ ठाकुर जी ।
जय दस जून ॥ 
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Of and By : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ जी की }
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"मि भि गढ्वळि छौं"

Garhwali Poem by Payash Pokhra
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मि भि गढ्वळि छौं, 
हाँ हाँ मि भि त गढ्वळि छौं, 
बुरु नि मन्यां मि भि गढ्वळि छौं !
लड़बड़ि दाळ दगड़ चटपट्टि भुज्जि ह्वाला क्वी,
मि त छन्छ्या, थिचौंणी, कफिळि अर झ्वळि छौं !

हाँ भै हाँ मिभि त गढ्वळि छौं !!
सरकरि नौकर चाकर अर पिन्सनेर ह्वाला क्वी,
मि त डिक्चि डिपाटमेन्ट मा चिमचा, पणै-डडुळि छौं !

हाँ भै हाँ मिभि त गढ्वळि छौं !!
छज्जा जिंगलादार, खम्ब तिबरि-डंडळ्यूं का ह्वाला क्वी,
मि त खन्द्वर्या कूड़ि-धुरपळि की रड़ईं फटळि छौं !

हाँ भै हाँ मिभि त गढ्वळि छौं !!
चौसर-चौपड़ बिसाता की बिगरैलि कौड़ि ह्वाला क्वी,
मि त गुच्छेरु की गुच्छी की 'पिल' बणी खड्वळि छौं !

हाँ भै हाँ मिभि त गढ्वळि छौं !!
गीत-गीतु का गितार सितार नेगी दा ह्वाला क्वी,
जु हुलांस कैळ नि सूणी मि त वो ढौळ-ढ्वळि छौं !

हाँ भा हाँ मिभि त गढ्वळि छौं !!
खान्दा-पीन्दा, हैंसदा-ख्यळदा बग्छट ह्वाला क्वी,
मि त नांगा गात अर भूखा प्याट की वो रमछ्वळि छौं !

हाँ भै हाँ मिभि त गढ्वळि छौं !! 
बुरु नि मन्यां मि भि गढ्वळि छौं !!
हाँ पीवर(pure) क्वद्या गढ्वळि छौं !!!

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@पयाश पोखड़ा


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भगत रैदास (लोक कथा)

Compiled and Edited by Mahesha Nand 
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रैदास भगत जल्मि छा तेरा अर चौदा सौ कS ओरा-धोरा। छा यीं भारत भुम्मि कs सगंढ संत। वूंकि ब्वे कु नौ कलसा देबि अर बुबा जी कु नौ छौ- संतोक दास। ददि जी लखपति देबि त् दादा जी कालूराम। वूंकु ब्यौ ह्वा लोनादेबि जी दग्ड़ि। नौनु ह्वा विजयदास।
रैदास जी छा छाळा सरेला मनिख। वु डंगडफान(झूठा दिखावा) नि मन्दा छा। सकळा जिकुड़ा बटि ज्वा धांण(काम) ह्वेगि त् वs परमेसुरौ खुंण सिळSए (समर्पित)जांदि छै। जुत्ता सिल्दा छा इन, जन ब्वलेंद वु क्वी भजन गांणा हून। जुत्ता सिल्द-सिल्द वु परमेसुर थैं सैंदिस्ट द्येखि दींदा छा। वु मुंथा थैं अढ़ांदा छा--- पूजा कैकि क्य हूंण ? सरेलम कटग्यार भ्वर्यूं च। पैलि वे थैं खंण्येकि आ। परमेसुर अंण्थ नी, तुम्मरै घटपिंडम्(अन्तरात्मा) च। जु भला मनिख वूंकि भलि बांणि सुंण्दा, वी वूंकS च्याला बंणि जांदा छा।
एक दिन वु बाठा छोड़ जुत्ता सिन्ना छा कि वूं थैं गंगाराम जी जात्रा जांद दिख्ये ग्येनि। गंगाराम जी कुम्भ नहेंणु जांणा छा। वून मुंड नवै कि पंडा जी थैं स्यवा लगा--- "सिमन्या पंडा जी! सिमन्या! अमंणि सिदंत ?"
"ओम नमो नारैंण! ओम नमो नारैंण! सिब-सिब, कै निरभग्यू मुक दिख्या सुबेर लेक।" पंडा जी हर्बि जाप कना अर हर्बि सौंफळि मना छा। वून रैदास जना सप्पा नि द्येखि। रैदास जीन् धै लगैनि-- "पंडा जी थै का घड़ेक, म्यरि जांण तुम गंगा नहेंणु जांणा छंवा। आंण त् मिल बि छौ गंगा माँ कs दरसन कनू पंण कामा ठ्यक्क(ढेर) लग्यांन्। ल्या म्यरि भेंट बि ल्ही जा।"
गंगाराम जी भरि फिंगर्ये(चिढ़ गये) ग्येनि। वून कड़ु गिच्चु कैकि बोलि-- "लोळु तीन कौड़्यू, गंगा माँन त्वे मलीच थैं दिंण्न रै दरसन?"
रैदास जीन् खलड़ौ(चमड़े का) एक पैंसा सि बंणा अर छिंछ्याट कै अटगिनि पंडा जी कS पैथर। जन्नि रैदास जी पंडा जी कs समंणि आंणा तन्नि पंडा जी फुंडै-फुंडै ठसगंणा। रैदास जीन् हत जोड़ी बोलि- "पंडा जी, म्यरि यीं भेंट थैं ल्ही जा। मै थैं ढीटु च, यीं भेंट थैं पखुंणू गंगा माँ लप्प हत पसारि द्यालि।"
गंगाराम जी झिझड़ै(घृणा होना) ग्येनि। वून छिछगारि रैदास-- "फुंड धुळ्यूं खत्यूं माचदनै। त् कतरि बकिबात ब्वन्नु च, ब्वालदि। इन जि गंगा माँ त्वे जनै भेंट अमंणाण(स्वीकार करना) बैठि गि त् ह्वे ग्या रै! खलड़ौ पैंसा पखंण रै मिला ! माँ कुम्प (कुपित) ह्वे जालि। हर-हर गंगे! हर-हर गंगे!"
रैदास जी बिंड्डि ल्वेपुड़ा बंणि ग्येनि त् गंगाराम जीन् बोलि--फूक कांडा लगौ, इन कैर कि तै पैंसा थैं म्यारा लाठा तौळ चिप्टै दि। मिन तै फर हत त् नि लगांण। रैदास जीन् उब्बरी वु पैंसा पंडा जी कs लाठा तौळ चिप्टै द्या। पंडा जी लाठु टेकी अटगंण बैठिनि। गंगछला ऐकि वनू लाठु फुंड चुटा अर नहेंण बैठिनि। न्हये-धुये कि जाप-थाप कन बैठिनि। पंडा जीन् छकंण्या चलंण निबै द्येनि पंण गंगा माँ नि पुळ्या(प्रसन्न)। वून छक्क धै लगै द्येनि कि गंगा माँ दरसन दि। कैकि गंगा माँ! गंगा माँ कु पांणि पंडा जी जना इन आंणु जन ब्वलेंद वूं थैं फुंड धिकांणु हो। पंडा जी ऐंस्ये ग्येनि। कपाळ पखड़ी गुंण्यांण(विचार करना) बैठिनि-- गंगा माँ कुम्प ह्वे ग्या। मि रैदासौ खलड़ौ पैंसा इक्ख तक ल्हौं। मि अपबेतर ह्वे ग्यौं। नहेंण प्वाड़लु।
गंगाराम जीन् एक दां फेर झुल्ला निख्वळिनि अर नहे ग्येनि। गंगा माँ कु जाप कैरि। धै लगैनि-- "गंगा माँ! मे थैं दरसन दि। मि ओद घाली अयूं छौं।" बिंड्डि अबेर तकै वु माँ थैं फुळस्यांणा रैनि पंण गंगा माँ त् अलोप हुयीं छै। पाछ गंगाराम जीन अपड़ु लाठु उठै द्या। रैदासा पैंसा थैं वून लाठु ठकठ्ये कि फुंड चुलै द्या। पैंसा फुंड चुलै कि ब्लदा--"माँ, मिन रैदासौ पैंसा फुंड चुलै यालि। अब त् द्या दरसन।" न बै, गंगा मां त् खिबळांणि छै। निरSस्ये कि पंडा जी ड्यरौ खुंण पैटि ग्येनि। जन्नि वून ड्यारौ बाठु पखड़ी तन्नि आंखौं उंद रात पोड़ि ग्या। बाठ्वी नि दिख्या। जिकुड़ा उंत हिदरा पोड़ि ग्येनि। गिच्चा बटि अचंणचक छुटि ग्या-- "गंगा माँ मि कांणु ह्वे ग्यौं, मे थैं सांणु कैर!" जन्नि पंडा जी गंगा माँ जना फरकिनि, तन्नि अछीकि कु सांणा ह्वे ग्येनि। हत जोड़ी पंडा जी गंगा माँ कि आरति कन बैठिनि। बगछट्ट ह्वेकि वूंन ड्यरा जना मुक कैरि। द निरभगि जोगा! आंखा फेर कांणा ह्वे ग्येनि। पंडा जी पित्ये ग्येनि। वून कळ्यूर ह्वेकि बोलि--"गंगा माँ, यांक्वी औं मि त्यारा दरसन कनू। क्य पा मिल इतुनु बाठु ल्हत्येड़ि ? बिनसिरि बटि नीना पेट छौं। त्यारा नौ कु बर्त धर्यूं च म्यारु। इन कुगSता नि कैर ब्वे!" पंडा जी रूंण बैठि ग्येनि। वून गंगा जना हेरि त आंखा सांणा ह्वे ग्येनि।
तबSरि पंडा जी थैं गंगा माँ कि भौंण सुंण्या-- "रैदासन् ज्व भेंट द्ये छै, वS कक्ख च गंगाराम ?" ख्वज्यांण पोड़ि पंडा जी थैं वु पैंसा। जन्नि वून वु पैंसा गंगा जना चुलांणै छौ, तन्नि गंगा माँन लप्प हत पसारि द्या। गंगा माँन् अपड़ा हतौ एक सूनौ कंगण निखोळि अर पंडा जीमा दींद बोलि-- "ये कंगण थैं रैदास थैं द्ये दे।" पंडा जी थैं गंगा माँ कु एक्कि हत दिखेंणु। अपड़ा सरेलै लगांणै छै पंण माँ सर्र अलोप ह्वे ग्या।
ड्यरा बाठा फर हिट्दि दां पंडा जी गंगजांणा-- वे जुत्ता बंणाण वळाथैं माँन् कंगण बि द्या अर वु खलड़ौ पैंसा बि सैंकि द्या। मि बर्सु बटि गंगा माँ कि स्यवा-भगति कनु छौं म्यरि सप्पा नि सूंणि। सूना कंगण थैं हरकै-फरकै कि दिखंणा अर खकळांणा(ईर्ष्या जनित पश्चाताप) --वु खत्यूं रैदास च ये कंगणा लैक। वेकि फुंड धुळीं सैंण पैरSरलि ये कंगण थै। यु कंगण त् बंमण्या हत फर बिराजलु। नS मि वे पैंडा सप्पा नि जंण्या। अमंणि जै निरभग्यू मुक द्येखि ह्वलु। सुबेर बटि असगुनि-असगुन हूंणा छन।
गंगाराम जी नि ग्येनि वीं पैंडा जना रैदास जी जुत्ता सिन्ना छा। पंडा जीन हैंकु बाठु पखड़ि द्या। धंध! रैदास जी ऐथर बैठी जुत्ता सिल्द दिख्ये ग्येनि। पंडा जी फर्र फरकिनि अर हैंकS पैंडा फर लगि ग्येनि रक्वड़ा-रकोड़। च्वाबै! तना बि रैदास जुत्ता सिल्द दिख्ये ग्येनि। ब्वन्न क्या च--- गंगाराम जी जैंयी पैंडा जांणा, तनैयी वूं रैदास जी दिखेंणा। जब बिंड्डि कै वु रींगि ग्येनि अर थकड़्च(थककर चूर होना) ह्वे ग्येनि त् निगड़द्यू(अन्तत:) झपड़क रैदासै कि काख फर बैठि ग्येनि। सुद्दि बैरां-दुसमना वून गंगा माँ कु दिंयूं कंगण रैदास जना चुलै कि बोलि--"ब्वाला धौं, त्वे फर गंगा माँ खिलपत ह्वे ग्या अर मि जु सकळु भगत छौं, मे थैं मुक नि लगा।"
रैदास जीन् पंडा जी अढ़ैनि ---
"जाति-जाति में जाति है, जे केतन के पात।
रैदास मनुस ना जुड़ सकै, जब तक जाति न जात।।
"पंडा जी, तुम मे थैं नि अमंणादा। मे द्येखी घिंण्ता करद्यां। जु मनिख, मनिख स्ये घिंण्यावु; वु परमेसुरौ खुलबितु(प्रिय) कनकै ह्वे सकद ? गंगा माँ खुंण तुम क्य छंया अर मि क्य छौं। वूं थैं वु मनिख भला लगदन जौंकS घटपिंडा सकळा हुंदन। तुम सदनि द्यू-धुपंणु करद्यां, नहेंदा-धुयेंदा छां। सगळ्या दिन बरड़ाणा रंद्या-- ओम नमो नारैंण, ओम नमो नारैंण। क्य हूंदु यान ? मि न त नहेंदु छौं, न धुयेंदु छौं। न मि द्यू-धुपंणु कर्दु, न जापु-थापु कर्दु पंण परमेसुर थैं दिखंणी लग्यूं रांदु। मि जिकुड़ा मैल थैं कुड़गुटेंण (सूख कर कठोर होना) नि द्यूंदु। म्यरि सकळि पूजा च तजबिज कै जुत्ता बंणाण। जु जुत्ता तुमSरा खुट्टों फर नि बिनाउन। तुम फर क्वी कांडु नि बैठ। परमेसुर यी च्हांद। तुमSरि कै धांण(कार्य) सरै कि क्वी हैंकु मनिख खिलपत ह्वे जांद त् बींगा कि तुम परमेसुरा नेड़ु जांणा छंया। सरेलै जात्रा जु तुमुन कैर्यालि त् तुम परमेसुर थैं सैंदिस्ट द्येखि सकद्यां। बुसिलि(नि:सार) जात्रा निखर्त(बेकार) च। गंगा माँ छाळि च अर छाळा सरेला मनिख्यूं थैं गंणखद(सम्मान देना) बोल्यादि गंगा मान हौर क्य बोलि ?"
"हां रैदास, वून बोलि बल वु त्यारा ड्यार आलि। तु भग्यान छै रैदास।" गंगाराम जी झम्म झिंवर्यां सि छा। वु गर्रा सरेल लेकि उठंणी लग्यां छा कि एक मनिख्यांण रौंका-धौंकि कै रैदास जी कि समंणि आ।" वीन हत जोड़ि बोलि--"भगत जी, मि गंगा माँ कि जात्रा फर जयूं छौ। नहेंदि दां म्यारा हतौ कंगण गंगा जी मा हर्चि ग्या। क्वी उयार बथा।"
रैदास जीन् अपड़ा काठा भांडा मा हत घालि, ज्यांमा वु खलड़ा भिजांदा छा। वुक्ख बटि एक कंगण गाडी वून वीं मिख्यांण थैं दिखांद बोलि--"तुमSरु कंगण इन्नि छौ ?"
"हां भगत जी, यी च म्यारु कंगण। जुबराज रंया। मिन ड्यार जैकि अमंणि भरि गाळि खांण छै।" वीं मनिख्यांणल रैदास जी थैं स्यवा लगा अर खिलपत ह्वेकि ड्यार सट्गि ग्या। गंगाराम जी अकळा-तकळि रै ग्येनि। वे दिन बटि गंगाराम जी रैदास जी कS च्याला बंणि ग्येनि।
गंगा माँ ब्यखुनि दां रैदास जी कS ड्यार ऐनि। रैदास जीन् वूंकि छक्क स्यवा कैरि।



Thanking You . 
Presented on online Jaspur Ka Kukreti

Upper Garhwal Forests

British Administration in Garhwal   -113
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History of British Rule/Administration over Kumaun and Garhwal (1815-1947) -130
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            History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -967
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                              By: Bhishma Kukreti (History Student)

               There were forests of Bhabhar and Shivalik hill zone forests or South Garhwal under Forest Division at initial stage.
   In 1864-65, government surveyed the forests of upper Garhwal and Kumaon regions. Government appointed Webber as forest surveyor for upper Garhwal forests. Webber reached to Mansarovar for forest survey.
 Webber published a book ‘Forests of Upper India and their Inhabitants’. Webber drew main Forest Maps on 1 12 inch paper and the measuring unit was 1 inch =1 mile. Webber provided details of forest area in acres, trees and their numbers and tree classes of each block.
  Cedrus/Devdaru  were less in upper Garhwal but pines, silver fur, spurs, cactus Surai, oaks , Ranga, Ransal trees etc were in abundance.  
  Initially less attention was there on those forests. Pines trees were there but being far away from rivers, they were not feasible right from business point of view. The forests around nad Prayag, near Tungnath valley, Madmaheshwar river, Vishnu Ganga valley, Dhauli River valley, Pilakhunta region were profitable for future. Devdaru forests were there up to Malari in Dhauli River valley but were far and transportation was difficult.
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Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com 13/6/2017
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -968
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*** History of British Rule/Administration over British Garhwal (Pauri, Rudraprayag, and Chamoli1815-1947) to be continued in next chapter
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(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
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References  
 1-Shiv Prasad Dabral ‘Charan’, Uttarakhand ka Itihas, Part -7 Garhwal par British -Shasan, part -1, page- 287-312
 2- Atkinson, Himalayan Districts, vol. 1 page 872
916-17

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History of British Rule, Administration , Policies, Revenue system,  over Garhwal, Kumaon, Uttarakhand ; History of British Rule , Administration , Policies Revenue system  over Pauri Garhwal, Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand; History of British Rule, Administration, Policies ,Revenue system  over Chamoli Garhwal, Nainital Kumaon, Uttarakhand; History of British Rule, Administration, Policies ,Revenue system  over Rudraprayag Garhwal, Almora Kumaon, Uttarakhand; History of British Rule, Administration, Policies ,Revenue system  over Dehradun , Champawat Kumaon, Uttarakhand ; History of British Rule, Administration, Policies, ,Revenue system  over Bageshwar  Kumaon, Uttarakhand ;
History of British Rule, Administration, Policies, Revenue system over Haridwar, Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand;