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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Sunday, January 29, 2017

Forest Administration by Ramsay

Exploitation of Forest Resources-4

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                            British Administration in Garhwal   -105
       -
History of British Rule/Administration over Kumaun and Garhwal (1815-1947) -122
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            History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -959
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                              By: Bhishma Kukreti (History Student)

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                One of various steps for reforming forest administration by Kumaon commissioner Captain Henry Ramsay was forest protection.
 Atkinson called Ramsay as first conservator of Uttarakhand.
  Ramsay stopped offering old system of offering forest on contract and started new system.  Henry Ramsey stopped farming inside forests. Ramsey offered land to those were farming in hill forests in Bhabhar or Haridwar to Baramdev region. That was first appreciable step in protection for forests.
 By 1867, Ramsey displaced Goth (a temporary camp for animals) from forest of Haldwani to   Sharda River. Ramsey desired for displacing all ‘Goth’ from Garhwal forests.
   Ramsey started branding / indentifying by the officials the trees to be cut by contractors. The government officials used to hammer on trees to be cut.  By displacing Goth from forests was also for decreasing forest fire in summer season. By that there were difficulties for Goth masters but was fine for forest protection. Ramsey started cultivating new tress too. There was increase in forest revenue and there was net saving for Rs 15 lakhs in 1867-68 after all expenses (Atkinson page 853).


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Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com 27/1/2017
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -960
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*** History of British Rule/Administration over British Garhwal (Pauri, Rudraprayag, and Chamoli1815-1947) to be continued in next chapter
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(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
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References  
 1-Shiv Prasad Dabral ‘Charan’, Uttarakhand ka Itihas, Part -7 Garhwal par British -Shasan, part -1, page- 287-312
 2- Atkinson, Himalayan Districts, Vol.-1 page 840-915

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History of British Rule, Administration , Policies, Revenue system,  over Garhwal, Kumaon, Uttarakhand ; History of British Rule , Administration , Policies Revenue system  over Pauri Garhwal, Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand; History of British Rule, Administration, Policies ,Revenue system  over Chamoli Garhwal, Nainital Kumaon, Uttarakhand; History of British Rule, Administration, Policies ,Revenue system  over Rudraprayag Garhwal, Almora Kumaon, Uttarakhand; History of British Rule, Administration, Policies ,Revenue system  over Dehradun , Champawat Kumaon, Uttarakhand ; History of British Rule, Administration, Policies, ,Revenue system  over Bageshwar  Kumaon, Uttarakhand ;
History of British Rule, Administration, Policies, Revenue system over Haridwar, Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand;

छुमा बौ एक प्रतीकात्मक नाम है

- भीष्म कुकरेती
आज मेरे पुराने मित्र व पाठक उद्योगपति श्री दयानंद द्विवेदी जी ने छुमा बौ गीत की फरमायश की मै कोशिस करूंगा कि छुमा बौ से संबंधित सभी गीत इंटरनेट पर प्रस्तुत करूँ।
प्रसिद्ध इतिहासकार डा. शिव प्रसाद नैथाणी ने 'उत्तराखंड लोक संस्कृति और साहित्य ' लेख में छुमा बौ पर अपनी राय दी
उत्तराखंड के लोक गीतों कि नायिकाओं के नाम बहुत कुछ उनकी सामयिकता तत्कालीन युग का परिचय भी दे देते हैं
कत्य्री गाथा में वह उदा है, जोत्रमाला है, मोती माला है , इजुला, बिजुला और राणी जिया है .
उधर उत्तर मध्य काल में उसके नाम हैं सुरु कुमैण, मोतिया, जसी , मलारी और राजुला, किन्तु राजुला से पहले सुरजी हुए थी
रमकणि, छमकणि, बीरू कसी वूंग, कहती मीठी साली होली दाख दाड़िम जसी ....
और इधर पिछली सदी में पहले दौंथा थी, पुरुष 'मेरी दौंथा कथैं गे ' कहकर ढूंढते थे
इस बीच मधुलि भी तो आ गयी थी
'खेली जाली होली , मदौली मदुली सबि बुल्दन कन मदुली होली'
दौंथा के बाद तो छुमा प्रसिद्ध हुयी किन्तु वा तो छुमा बौ के नाम से प्रसिद्ध हो गयी , छुमा बौ कद में कुछ छोटी है , नारंगी सी दाणीसी, गोल मटोल सी, और रंग नारंगी जैसा है, छुमा बौ को पहाड़ी टोपी और मगजी बहुत प्रभावित करती है . भाभी है तो प्रगल्भ भी है इशारा भी करती है
छोटी छोटी छुमा बौ टु नारंगी सी दाणी
रूप कि आन्छरी छुमा, जन ऐना चमलांद
गुड़ खायो माख्योंन , सरा संसार गिच्चन खांदो
तू खांदी आंख्योंन
पीतल कि छनी, पीतल कि छनी मुलमुल हंसदी छुमा
दै खतेणि जन
रोटी क कतर, रोटी क कतर, नथुली को कस लगे
तेरी गल्वाड़ी पर
झंगोरा कि बाल, झंगोरा कि बाल छुमा परसिद ह्व़े गे
सरा गढ़वाल सरा गढ़वाल
छुमा ने प्रसिद्ध तो होंना ही था जिस नथुली के कस कि बात गितांग कर रहा है उस नथुली को हल्का सा हिलाकर छुमा ने अपने प्यार कि स्वीकृति भी दे दी थी पर बुद्धू बहुत देर बाद समझ पाया
टोपी कि मगजी टोपी कि मगजी
नथुली न सान करे तिन णि समझी
सुनने में आया कि बाद में छुमा बौ लछमा के नाम से प्रसिद्ध हुयी
आजकल तो छुमा बौ हिंदी फिल्मो से निकल कर गढ़वाल में बसने लगी है और छुमा बौ का गुलबन्द गुम हो ग्या है नथुली हर्च गयी है और छुमा बौ मोबाइल में समाने को आतुर है

श्रीमद भगवद गीता मा व्यंग्य झलक

Satire and its Characteristics, Bhagvad  Geeta व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र
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श्रीमद भगवद  गीता मा व्यंग्य झलक 
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    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग -21    ) 

                         भीष्म कुकरेती 
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                   श्रीमद भगवद गीता क्वी धार्मिक पुस्तक नी च अपितु साँख्य योग याने Auto Suggestion की अभ्यास दर्शन च।  इनि अष्टवक्र की महागीता बि स्वयं सम्मोहन  याने  Auto Suggestion दर्शन या अनुभव च।  हिन्दू और मुसलमानों दुयुं तै गलतफहमी च।  हिन्दू -सनातन  धर्म से या कर्मकांडी धर्म से द्वी गीताऊँ कुछ लीण -दीण नी च।  
        साँख्य योग याने Auto Suggestion की अभ्यास दर्शन चजब त गीता मा हौंस -चबोड़ की कम ही गुञ्जैस च।  चूँकि गीता एक मनोविज्ञान की पुटक च तो इखमा मनोविज्ञान का हिसाबन ही वार्तालाप च। 
सबसे पैलो अध्याय मा दुर्योधन बुल्दु बल पांडव सेना महावीर भीम से रक्षित च तो यो अफिक ही एक व्यंग्य च।  युद्ध से पािल क्वी बि सिपाही या रणनीतिकार कै सिपाही या सेनापति तै परमवीर चक्र जन पदवी नि दीन्दो।  किन्तु दुर्योधनन भीम तै जताई कि कुरुक्षेत्र युद्ध भीम द्वारा जिते सक्यांद याने भीम हीरो च।  किन्तु असलियत मा क्या ह्वे ? कुरुक्षेत्र का असली हीरो अर्जुन सिद्ध ह्वे ना कि भीम। 

कृष्ण अधिकतर अर्जुन तै कै ना कै विश्लेषण युक्त नाम से जन कि पार्थ , कुंतीपुत्र , शेरपुरुष , भरतश्रेष्ठ , पाण्डुपुत्र , कौरववंशी , पांडव , आदि नाम से भट्यांदन अर भौत सी जगा मा अर्जुन तै मानसिक रूप से अळग  चढांदन अर फिर अग्वाड़ीs पंकत्युं मा  अर्जुन का अहम पर चोट करिक अर्जुन का मानमर्दन करदन अर यही तो व्यंग्यकार करदो। 
 दुसर अध्यायम एक जगा मा अर्जुन युद्ध नि करणै बात करदो तो कृष्ण अर्जुन पर व्यंग्य करदन बल तेरो शरीर क्षत्रिय को च , तेरो ब्यापार क्षत्रिय को च अर तू पण्डित या बामणु जन छवी लगाणु छै ? या उक्ति व्यंग्य को आछो उदाहरण च।  
स्वामी चिन्मयानन्द जीन बि अपण गीता टीका ( The Bhgvad Geeta अध्याय 4 पृष्ठ 88 -89 ) मा गीता मा व्यंग्य की झलक सिद्ध कार अर ब्वाल कि गीता (चौथा अध्याय श्लोक संख्या 41 आदि ) मा कृष्णन कटु व्यंग्य प्रयोग कारिक अर्जुन तै झपोड़। 
इनि ए. पार्थसारथी अपण भगवद गीता ग्रन्थ (44 वां भाग ) मा सिद्ध करदन बल गीता मा महर्षि व्यासनं ऊँ लोगों (ऋषि , पण्डित ) पर व्यंग्य कर जु सिरफ नाम का वास्ता तपः आदि का प्रयोग करदन या जनूनी ढंग से पूजा पाठ  करदन या धोखा दीणो बान पूजा करदन  

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29 / 1 /2017 Copyright @ Bhishma Kukreti 

Discussion on Satire  Bhagvad  Geeta; definition of Satire; Verbal Aggression Satire   Bhagvad  Geeta;  Words, forms Irony, Types Satire Bhagvad  Geeta ;  Games of Satire  Bhagvad  Geeta; Theories of Satire Bhagvad  Geeta  Bhagvad  Geeta; Classical Satire Bhagvad  Geeta ; Censoring Satire Bhagvad  Geeta ; Aim of Satire Bhagvad  Geeta; Satire and Culture  Bhagvad  Geeta, Rituals व्यंग्य परिभाषा , व्यंग्य के गुण /चरित्र ; व्यंग्य क्यों।; व्यंग्य  प्रकार ;  व्यंग्य में बिडंबना , व्यंग्य में क्रोध , व्यंग्य  में ऊर्जा ,  व्यंग्य के सिद्धांत , व्यंग्य  हास्य, व्यंग्य कला ; व्यंग्य विचार , व्यंग्य विधा या शैली , व्यंग्य क्या कला है ?   

उपनिषदुं मा हौंस -व्यंग्य -2

Satire and its Characteristics, Satire and humor in Upnishad व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र
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                 उपनिषदुं मा हौंस -व्यंग्य -2 
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    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग - 20   ) 

                         भीष्म कुकरेती 
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                     उपनिषदुं  तै आम लोक धार्मिक ग्रन्थ मन्दन पर  उपनिषद विशुद्ध मनोविज्ञान कु विज्ञानं छन। इनम हौंस -व्यंग्य मुश्किल से मिल्दैन।  किन्तु छान्दोगेय उपनिषद (1 :12 ) मा  व्यंग्य उफरिक आयुं च ( S .C . Sen , The Mystic Philosophy of Upnishads, page 45 ) । ये अध्याय मा शौव उद्गीथ सिद्धांत समझाणो बान रचयिता कुत्तों उदाहरण दीन्दो।  एक ऋषि ग्लावs समिण कुछ कुत्ता ( ऋषि ) आंदन अर एक सफेद कुत्ता से भोजन की अपेक्षा करदन।   सफेद कुत्ता ऊँ कुत्तों से सुबेर आणो बुल्दो।  दुसर दिन वो अलौकिक कुत्ता एक हैंकॉक पूँछ  अपण मुख पूटुक लेकि इनि आंदन जन वैदिक ऋषि जुलुस माँ आंदन।  अर ऊँ सब्युन हिंकार ('हि ' स्तोभ ) शुरू कार अर सब बुलण लगिन , हम भोजन , जलपान का इच्छुक छंवां   ... हम तै अन्न द्यावो , अन्न द्यावो  ... "  ये खण्ड मा वैदिक ऋषियों को लालच पर सचमुच माँ एक व्यंग्य च अर ऋषि कुत्तों की योनि वास्तव माँ ऋषियों द्वारा कुत्ता जन व्यवहार पर व्यंग्य ही च। ये सन्दर्भ मा John Oman  ( Natural and Supernatural पृष्ठ 490 ) छान्दोगेय   उपनिषद का उदाहरण दीन्दो अर बथान्द बल भौत सा  ऋषि बगैर अर्थ समझ्यां वैदिक ऋचा जोर जोर से बखणा रौंदन   अर यो बात उपनिषद  मा व्यंग्य शैली से बुले गे । 
S .C Sen बथान्दन बल बृहद अरणायक उपनिषद  (अश्वपति आख्यान अध्याय ) मा पशु बलि की भर्त्सना वास्तव मा व्यंग्य रूप से करे गे  अर उपनिषदनिक व्यंग्य को सर्वोत्तम उदाहरण च।  
A .B . Keithन ( The Relgion and Philosophy of Veda and Upnishads ) बि वेद अर उपनिषदुं मा व्यंग्य का उदाहरण पेश करिन। 


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26/ 1 /2017 Copyright @ Bhishma Kukreti 

Discussion on Satire; Upnishad definition of Satire; Upnishad Verbal Aggression Satire;  Upnishad  forms Irony, Types Satire;  Upnishad Games of Satire; Theories of Satire; upnishad Classical Satire; Censoring Satire; Aim of Satire; Satire and Culture , Rituals व्यंग्य परिभाषा , व्यंग्य के गुण /चरित्र ; व्यंग्य क्यों।; व्यंग्य  प्रकार ;  व्यंग्य में बिडंबना , व्यंग्य में क्रोध , व्यंग्य  में ऊर्जा ,  व्यंग्य के सिद्धांत , व्यंग्य  हास्य, व्यंग्य कला ; व्यंग्य विचार , व्यंग्य विधा या शैली , व्यंग्य क्या कला है ?   

उपनिषदुं मा हौंस -व्यंग्य -1

Satire and its Characteristics, Upnishad , व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र

               उपनिषदुं मा हौंस -व्यंग्य  -1
    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग -19      ) 

                         भीष्म कुकरेती 

                     उपनिषद याने मनोविज्ञान की छ्वीं।  याने धर्मै छ्वीं।  याने बड़ो गम्भीर साहित्य।  उन बि भारत माँ धार्मिक आख्यानों मा हौंस -व्यंग्य कमि मिल्दो।  पण आखिर उपनिषद बि मनिखों की इ रचना छन  तो उपनिषदों मा  बि कथ्या जगा हौंस -व्यंग्य मिल्द च। 
छान्दोगेय उपनिषद मा 'जबला पुत्र सत्यकाम ' कथा तो असली व्यंग्य च।  सत्यकाम गुरुकुल जाण चाणों छू तो वैन अपण माँ तै अपण गोत्र पूछ।  ब्वे न बताई बल वा तो युवावस्था म  परिचारिणी थै अर तबी वीं सणि सत्यकाम प्राप्त ह्वे।  अतः जाब्ला तै पता नी छू कि वींको पुत्रो असली गोत्र क्या छौ।  सत्यकाम जब गुरुकुल पौंछ त वैन गुरु तै अपण गोत्र नि बताई अर सीढ़ी सच्ची बात बथै दे तो गुरुन बोली बल इन स्पष्ट भाषण क्वी ब्राह्मण पुत्र नि दे सकुद , गुरुन सत्यकाम तै पढाणो जगा चार सौ कमजोर , मरतणया  गौड़ चराणो  भेजी  दे।  सत्यकामन प्रण ले बल जब तलक १००० गौड़ नि ह्वे जाल वैन बौण ही रौण। जंगळ मा सत्यकाम तै सांड , अग्नि , हंस , मद्गुनन सत्यकाम तै ज्ञान दे।  जब वो गुरु का पास ऐ तो गुरुन वी चार ज्ञान देन , फिर वै तै गुरु की जगा   अग्न्युन ज्ञान दे। 
  या कथा वास्तव सामाजिक परिवेश पर बि व्यंग्य च और जात पांत पर व्यंग्य का साथ साथ यो बि बथान्द कि ज्ञान का वास्ता गुरु से अधिक प्रकृति कामयाव गुरु च।  अपरोक्ष रूप से अब्राह्मण शिष्य तै पढाण मा आनाकानी एक व्यंग्य ही च।  (chhandogey Upnishad 4.4 to 4.9
24 / 1 /2017 Copyright @ Bhishma Kukreti 

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वाल्मीकि अर हौर रामायणो मा हौंस -व्यंग्य

Satire and its Characteristics, Ramayana Stories व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र
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                     वाल्मीकि अर हौर रामायणो मा हौंस -व्यंग्य 

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    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग  18      ) 

                         भीष्म कुकरेती 
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 हाँ उन त वाल्मीकि रामायण एक गम्भीर महाकाव्य च अर सैत  च वैबगत  ऋषि कम ही हास्य -व्यंग्य कृति रचदा रै होला।  पण कथा माँ हौंस -व्यंग्य अफिक बि ऐ जांद। 
वाल्मीकि रामयाण रचना काल का हास्य -व्यंग्य संस्कृति अर आजका व्यंग्य संस्कृति मा भौत अंतर च तो हम वाल्मीकि रामयण का भौत सा हास्य अर व्यंग्य तैं समजी नि सकदा।  फिर भी खुजनेरुंन कुछ न कुछ ख्वाज च। 
मंथरा -कैकेयी सम्बाद मा मंथरा द्वारा कैकेयी की उलाहना वाल्मीकि रामयण मा व्यंग्यौ  सबसे बडो उदाहरण च।  
जे. के . त्रिखान  ( A Study of Ramayana (1981, Bharti Vidya Bhawan )  वाल्मीकि द्वारा मन्थरा कैकेयी सम्बाद, शूर्पणखा लक्ष्मण संवाद , शूर्पणखा -रावण सम्बाद आदि खण्डों माँ हास्य व्यंग्य का खोजपूर्ण विवरण दे  . 
पी ऐस  सुब्रमण्य  शास्त्री न बि A Critical Study of Valmiki Ramayana  माँ हास्य -व्यंग्य बहुत सा उदाहरण देन अर ल्याख बल 'त्वद्विधानां', अपूर्वी , भार्यया शब्दों तै शिल्ष्ट अलंकार प्रयोग से हास्य व्यंग्य पैदा करे गे (पृष्ठ 28 )  
हौर भाषाओं मा वाल्मीकि रामायण पर आधारित रामायण ग्रन्थों मा  त हास्य व्यंग्य भौत मिल्दो।  तुलसीकृत रामचरित मानस , आदि रामायणों मा  हास्य -व्यंग्य मिळद च। 
Paula Richman की Ramayana Stories in Modern South India (2008 ) मा रामायण कथाओं मा हास्य व्यंग्य का क्षणों वर्णन मिल्दो। 
पण्डित राधेश्याम कथावाचक कृत रामलीला हेतु रचीं रामायण मा  तो दसियों जगा हास्य -व्यंग्य मिल्दो। 
गुणानन्द पथिक की गढ़वाली रामलीला मा  बि दसियों जगा हास्य -व्यंग्य मिल्दो। 
रामायण विषयी गढ़वाली विडीओओं  मा बि  दसियों जगा हास्य -व्यंग्य मिल्दो। 
 
23 / 1 /2017  Copyright @ Bhishma Kukreti 

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Sunday, January 8, 2017

देश कु सिपै -किसाण थैं

Modern Garhwali Verses  Songs,     Poems 
 देश कु सिपै -किसाण थैं  
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रचना --   बी   ऐन  शर्मा 'पथिक ' (  इंटर कॉलेज हल्दूखाल पौड़ी ,  गढ़वाल  ) 
Poetry  by - B. N. Sharma 'Pathik'-
Critical and Chronological History of Modern Garhwali (Asian) Poetry –239 
-साहित्य इतिहास , इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती 
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देश कु सिपै त्वै खुणि सलाम 
माटी कु सिपै त्वै खुणि सलाम। 
एक सिंचदी थाती थै तू एक सिंचदी माटी थै 
कर्म की लकीर खींचि द्विया सिंचदी मातृ थैं 
ह्यूं प्वड्यूं हों डांडी या तप्त भूमि रेत की 
आंधी म भी जळणे रैंद मशाल यूँ तुम्हारी कर्म की 
देश कु सिपै त्वै खुणि सलाम 
माटी कु सिपै त्वै खुणि सलाम। 
दूध माँ को नी लजान्दा देश सेवा मा
चाँद तैं खैंची ल्यांदा तप्त भूमि रेत मा 
स्वाभिमान वींकु जन ह्यूं च विशाला 
आशियाना द्याखा वींकु नभ से विशाला 
देश कु सिपै त्वै खुणि सलाम 
माटी कु सिपै त्वै खुणि सलाम। 
राति  कु अन्ध्यरू द्यखद तुमारु उदंकार थै 
सुबेर कु उज्यळ द्याखद तुमारु चमत्कार थै 
मोती स्यु पसीना तुमारु खिल्दु  मातृभूमि मा 
देश कु सिपै त्वै खुणि सलाम 
माटी कु सिपै त्वै खुणि सलाम। 

सौंज्यणा स्य बांद तेरी मन ही मन मा रैन्दी च 
शिव की शक्ति बणी त्वैम प्राणशक्ति फ़ुकदी च 
कलम कु सिपै बणि की कर दूँ तुम्हारो गुण बखान 
दूध माँ को नी लजान्दा देश सेवा मा। 
 देश कु सिपै त्वै खुणि सलाम 
माटी कु सिपै त्वै खुणि सलाम। 


(Ref-उड़ घिंडुड़ी उड़ -पृष्ठ 91 )
Poetry Copyright@ Poet
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बिचारि गौ ड़ि (गढ़वाली कविता )

Modern Garhwali Verses  Songs,     Poems 
बिचारि गौ ड़ि   (गढ़वाली कविता )
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रचना --   दीपक रावत  (  धुमाकोट , पौड़ी गढ़वाल  ) 
Poetry  by - Deepak Rawat (Dipak Rawat) -
Critical and Chronological History of Modern Garhwali (Asian) Poetry – 238
-साहित्य इतिहास , इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती 
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किलै लग्यां स्यवा करणा ?
पींडु -पाणि खूब सरणा 
आज द्वी , सासु -ब्वारि 
क्य समझि  सकद ?
बिचारि गौड़ि। 
देखि सकद 
वींका बछरौ हिस्सौ दूध 
कैपर छ लगणू 
गुसैणि का नाति -नतिणा 
पीणा छन छक्वैक 
वींकि बाछि रीति पांसी चूसणी 
अधप्यट ह्वेक। 
मैहमनों की कट्वरि भ्वरीं 
गुसैण रोज धमकाणि रौड़ि    
क्य समझि  सकद ?
बिचारि गौड़ि। 
कुटुमदारी तैं दूधै गिलास 
वींतैं सूखु घास 
बाछि तैं कौदै लुटमणि 
गुसैंण का नौन्याळो तैं 
रोटि मा नौणि 
कतना स्वार्थि छ मनखि 
लैंदी त गौ माता 
नथर लमण्डण्य गौड़ि 

क्य समझि  सकद ?
बिचारि गौड़ि। 
-
( उड़ घुघती उड़ , पृष्ठ -69 )
Poetry Copyright@ Poet
Copyright @ Bhishma Kukreti  interpretation if any 
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Why Harish Juyal is called Great Poet of Contemporary Satirical Poetry World?

Critical and Chronological History of Modern Garhwali (Asian) Poetry –-152
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                    Literature Historian:  Bhishma Kukreti


   Using animals as symbol for telling story or preaching lesion is an old way oldest form of expression in literature without words or with words.
  As far as animal symbols in Sanskrit classic are concerned, animals have been used in all types of literature as Mahabharata, Ramayana, Upanishads, Hitopadesh,Jataka or Panchtantra. The great poet and Dramatist Kalidas used animals as symbols in his classic literature.
 From modern satirical literature point of view ‘Animal Farm’ a great novel by Indian born British citizen (who worked in Burma and India as British officer too) George Orwell (1903-1950) is the best example of using animal as symbols for creating satire, humor and preaching too. Animal Farm is best example of symbolism and allusion in prose. As per a critic Michael J. Cummings (2003)  , there are following major themes in ‘Animal Farm’-
1-Maintaining an Ironclad on power, ruthless dictator
2-‘Power tends to corrupt and absolute power corrupts absolutely.
3- Lies can be dressed up in clothing of truth.
4- Absolute loyalty to authority invites abuse of power.  
  Chaucer used animals in his many poetic tales.  
             Great symbolic poet, Nobel laurite William B. Yeats used animals in his poetries including his attempting to turn himself into a Landor Style social ironist (Bloom Harold 1972)
 Lewis Carroll is famous for creating animals as his characters for humor creation.
 Kipling’s ‘The Jungle Book’ is the best example of r using animals for humorous literature. American president Theodor Roosevelt was fan of the novel ‘The wind in the Willows’ (1908) by Kenneth Grahame because animals as symbols of human characters and creating humor (Gale Cengage, 2003).
         Great satirical Spanish poet and novel writer   Mitchell Vazquez ( 1547-1616) also used animals for symbolic purpose .
                  C.J. Heinrich Hein (1797-1856) a German poet is famous for creating symbolic poems using animals for symbolic purposes. Another German poet Rainer Maria Rike (1875-1926) used animals as symbol in his famous poems ‘Ding-Gedischte 9Things Poems).
 French literature creators have been always doing evolution for art from borrowed from other area. The French poets used haiku for creating symbolic poems too as Jules Renald , Couchoud, Fernand  Gregh, Gilbert, jean Paulhan, Francis Jammes , Paul Claudel etc . Bertrand Agostini  mentions  Many French Haiku creators used animals as symbol for satire and humor in his brilliant article ‘The Development of French Haiku in first half of 20th century’(1998).
           In all languages and society, using animals as symbol for creating humor and satire is very common.
            A poetry critic and language professor of Mumbai University  Dr Manju Dhoundiyal after studying ‘Khigtat’ and ‘Uktat’ poetry collections by Harish Juyal mentions to this author that Harish Juyal ‘Kutz’  is one of the great satirical poets of contemporary humorous and satirical world poetry.
 The following poem is proof that remarks of Dr Manju Dhoundiyal that Harish is one of the great poets of contemporary satirical and humorous world poetry.

  स्याळ : The Cunning Fox

कवि - हरीश जुयाल 'कुटज'


डंड्वाक पाणी चरणा छन
माछा तीसन मोरणा छन I
बिरळयों कि ह्वेगे खलगड्डी
मुसा चुलखंदु क्वरणा छन I
दिन  घुघत्यों जादा रैनी
ढंगरयों गरुड़ घुरणा छन i
स्यू बाघ ह्वेगिन लुंज
स्याळयूँ ठाट चलणा I
जैनि हैंको जलड़ी उगटऐन
आज वी औंगरणा छन I

(ग्राम टसिला , पट्टी मल्ला बदलपुर )

Harish Juyal uses animals in such a way that the readers smile but feel sharp pain on the changing social and political scenario.
The literal meaning of poem is
Bear are watering (or taking water from the pond)
Thirsty, fish are dying
Cats are without skin
Rats are biting earthen stove
Gone are the days of Ghughti’s melodious warbling?  
The vultures are warbling
Brave Tigers are now, crippled
Cunning Foxes are now, leaders  
Those who are de-rooting jungles  
They are now, prosperous  
 Harish is winner in using common animal symbols and creating an image of horrible changes in the present society. The ‘Syal’ poetry speaks that changes are just opposite of what should have been for the benefiting present and excellent future.
The poem is complete and competitive enough for establishing statement of Dr. Manju Dhoundiyal that at present Harish Juyal is one of the great satirical poets of world literature.
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 Harish Juyal born in 1969, in Taseela village of Badalpur, Pauri Garhwal.

Copyright@ Bhishm Kukreti