हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
मि -हैं ! क्या तू यीं उमर मा मांगळ लगाण सिखणि छे ?
घरवळि -जै जस दीना यूरोपियन कमिसन येssssss
मि -यां क्या बात कि तीन आज तक कबि बि मांगळ नि लगाइ अर आज तू मांगळ लगाणी छे ?
घरवळि -जै जस दीना यूरोपियन यूनियन येsssss
मि -ह्याँ कैक ब्यावक बान मांगळु प्रैक्टिस करणी छे ?
घरवळि -जै जस दीना यूरोपियन इम्पोर्ट पॉलिसी येssss
मि -ह्यां यी कैं भौणक मांगळ च ?
घरवळि -जै जस दीना इंडियन अल्फांसो मैंगो येssss
मि -मेरी माँ उत्तर तो दो !
घरवळि -जै जस दीना रत्नागिरी को हापूस येssss
मि -व्हाट इज दिस हैपनिंग ?
घरवळि -पता च यूरोपियन यूनियनन भारतीय आमुं आयत पर रोक लगै आल।
मि -क्या ?
घरवळि -हाँ ये साल भारत यूरोप तैं आम निर्यात नि कौर सकुद।
मि -किलै ?
घरवळि - भारत का आमुं दगड़ कुछ कीड़ा बि चल जांदन जु यूरोप मा अधिक नुकसानदायक हून्दन।
मि -त इखमा खुस हूणै बात क्या च। इखमा त रूणै बात च कि अब भारतीय आमुं निर्यात यूरोप मा नि होलु।
घरवळि -नै नै मि त भौत खुस छौं। मि त पुळयाणु छौं कि अब भारत से आम एक्सपोर्ट नि ह्वाल।
मि -ह्याँ पण पता च यूरोप हमकुण भौत बड़ो बजार च।
घरवळि -मी त प्रसन्न छौं।
मि -पता च यूरोप तैं मैंगो एक्सपोर्ट से भारत तैं फॉरेन करेंसी मिल्दी छे अर मैंगो ऐक्स्पोर्टरु मा जोश रौंद छौ।
घरवळि -पर मैंगो एक्सपोर्ट से हम आम आदम्युं जोश तो जमींदोज ह्वे जांद छौ
मि -पर आमुं निर्यात से मैंगो ग्रोवेर्स याने किसान उमंग मा रौंद छा।
घरवळि -किन्तु हम सरीखा लोगुं उमंग पैदा ही नि हूंद छौ।
मि -ह्यां पण।
घरवळि - भौत सालुं से तुमन रत्नागिरी का हापुस याने अल्फांसो बि खायी ?
मि -खायी ? पता नी कुज्यणि कथगा साल हमन त अल्फांसो द्याख बि नी च।
घरवळि -हमन गुजरात को केसरी आम बि चाख ?
मि -चखण त राइ दूर भौत साल बिटेन गुजरात केसरी आम की सुगंध बि नि सूंघ।
घरवळि -अर उत्तर प्रदेश का दशहरा , लंगड़ा आम ?
मि -मि त बिसर ग्यों कि भारत मा दशहरा -लंगड़ा आम बि पैदा हूंद।
घरवळि -किलै ?
मि -अरे अल्फांसो , केसरी या दशहरा आम इथगा मैंगा हूंदन की यूं सवादी किन्तु मंहगा आम खौंला तो फिर हम खाणक खाण लैक बि नि रौंला।
घरवळि -मतबल हम बेसवादी आमुं से आमुं सीजन काडदा कि ना ?
मि -हाँ।
घरवळि -अर अब जब अल्फांसो जन आम निर्यात ही नि होला तो अफिक सवादी आमुं कीमत कम ह्वे जाल अर ज्यादा नासै एकाद दाणी त चाखि ल्योला कि ना ?
मि -हाँ , यदि यूरोप भारतीय आम निर्यात नि ह्वाल तो यूँ आमुं कीमत कम हूण लाजमी च तो शायद इस साल हम भी अल्फांसो जैसे आम चूस सकेंगे।
घरवळि -बस अल्फांसो , दशहरा जन आम सस्ता ह्वे जाल अर यूँ खाणो आस मा खुस हूणु छौ , पुळयाणु छौं , प्रसन्न हूणु छौं।
मि -हा हा हा हा हा …… हा हा हा हा …।
घरवळि -हैं तुम यी पागल जन किलै हंसणा छंवां ?
मि -इ त इनि च जन बर्फीली रात मा कै गरीब की झोपड़ी जळणु हो अर वैक परिवार खुस ह्वावु कि आज एक रात त आग तापणो त मील गे।
Copyright@ Bhishma Kukreti 29/4/2014
.
*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी द्वारा जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वालेद्वारा पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले द्वारा भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी द्वारा पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखकद्वारा सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनेताओं द्वारा अभद्र गाली पर हास्य -व्यंग्य श्रृंखला जारी ]
मि -हैं ! क्या तू यीं उमर मा मांगळ लगाण सिखणि छे ?
घरवळि -जै जस दीना यूरोपियन कमिसन येssssss
मि -यां क्या बात कि तीन आज तक कबि बि मांगळ नि लगाइ अर आज तू मांगळ लगाणी छे ?
घरवळि -जै जस दीना यूरोपियन यूनियन येsssss
मि -ह्याँ कैक ब्यावक बान मांगळु प्रैक्टिस करणी छे ?
घरवळि -जै जस दीना यूरोपियन इम्पोर्ट पॉलिसी येssss
मि -ह्यां यी कैं भौणक मांगळ च ?
घरवळि -जै जस दीना इंडियन अल्फांसो मैंगो येssss
मि -मेरी माँ उत्तर तो दो !
घरवळि -जै जस दीना रत्नागिरी को हापूस येssss
मि -व्हाट इज दिस हैपनिंग ?
घरवळि -पता च यूरोपियन यूनियनन भारतीय आमुं आयत पर रोक लगै आल।
मि -क्या ?
घरवळि -हाँ ये साल भारत यूरोप तैं आम निर्यात नि कौर सकुद।
मि -किलै ?
घरवळि - भारत का आमुं दगड़ कुछ कीड़ा बि चल जांदन जु यूरोप मा अधिक नुकसानदायक हून्दन।
मि -त इखमा खुस हूणै बात क्या च। इखमा त रूणै बात च कि अब भारतीय आमुं निर्यात यूरोप मा नि होलु।
घरवळि -नै नै मि त भौत खुस छौं। मि त पुळयाणु छौं कि अब भारत से आम एक्सपोर्ट नि ह्वाल।
मि -ह्याँ पण पता च यूरोप हमकुण भौत बड़ो बजार च।
घरवळि -मी त प्रसन्न छौं।
मि -पता च यूरोप तैं मैंगो एक्सपोर्ट से भारत तैं फॉरेन करेंसी मिल्दी छे अर मैंगो ऐक्स्पोर्टरु मा जोश रौंद छौ।
घरवळि -पर मैंगो एक्सपोर्ट से हम आम आदम्युं जोश तो जमींदोज ह्वे जांद छौ
मि -पर आमुं निर्यात से मैंगो ग्रोवेर्स याने किसान उमंग मा रौंद छा।
घरवळि -किन्तु हम सरीखा लोगुं उमंग पैदा ही नि हूंद छौ।
मि -ह्यां पण।
घरवळि - भौत सालुं से तुमन रत्नागिरी का हापुस याने अल्फांसो बि खायी ?
मि -खायी ? पता नी कुज्यणि कथगा साल हमन त अल्फांसो द्याख बि नी च।
घरवळि -हमन गुजरात को केसरी आम बि चाख ?
मि -चखण त राइ दूर भौत साल बिटेन गुजरात केसरी आम की सुगंध बि नि सूंघ।
घरवळि -अर उत्तर प्रदेश का दशहरा , लंगड़ा आम ?
मि -मि त बिसर ग्यों कि भारत मा दशहरा -लंगड़ा आम बि पैदा हूंद।
घरवळि -किलै ?
मि -अरे अल्फांसो , केसरी या दशहरा आम इथगा मैंगा हूंदन की यूं सवादी किन्तु मंहगा आम खौंला तो फिर हम खाणक खाण लैक बि नि रौंला।
घरवळि -मतबल हम बेसवादी आमुं से आमुं सीजन काडदा कि ना ?
मि -हाँ।
घरवळि -अर अब जब अल्फांसो जन आम निर्यात ही नि होला तो अफिक सवादी आमुं कीमत कम ह्वे जाल अर ज्यादा नासै एकाद दाणी त चाखि ल्योला कि ना ?
मि -हाँ , यदि यूरोप भारतीय आम निर्यात नि ह्वाल तो यूँ आमुं कीमत कम हूण लाजमी च तो शायद इस साल हम भी अल्फांसो जैसे आम चूस सकेंगे।
घरवळि -बस अल्फांसो , दशहरा जन आम सस्ता ह्वे जाल अर यूँ खाणो आस मा खुस हूणु छौ , पुळयाणु छौं , प्रसन्न हूणु छौं।
मि -हा हा हा हा हा …… हा हा हा हा …।
घरवळि -हैं तुम यी पागल जन किलै हंसणा छंवां ?
मि -इ त इनि च जन बर्फीली रात मा कै गरीब की झोपड़ी जळणु हो अर वैक परिवार खुस ह्वावु कि आज एक रात त आग तापणो त मील गे।
Copyright@ Bhishma Kukreti 29/4/2014
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*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी द्वारा जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वालेद्वारा पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले द्वारा भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी द्वारा पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखकद्वारा सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनेताओं द्वारा अभद्र गाली पर हास्य -व्यंग्य श्रृंखला जारी ]