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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, March 31, 2014

पर्यटन का विपणन प्रबंधन में चार 'P ' का महत्व

Four 'P' of Tourism Marketing Management 

                        (Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--46)
                                                                               उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणनप्रबंधन -भाग 46   
                                                                               लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  विक्रीप्रबंधन विशेषज्ञ )   

विपणन प्रबंधन में ग्राहकों की आवश्यकता , आकांशा को समझकर ग्राहक को संतुष्ट किया जाता है। पर्यटन विपणन प्रबंधन में विपणन सिधान्तो द्वारा पर्यटकों को संतुष्ट किया जाता है। विपणन सेवा से ही पर्यटक व्यवसाय को लाभ पंहुचता है।
पर्यटन विपणन में निम्न  'P ' महत्वपूर्ण होते हैं -
                   टूरिज्म प्रोडक्ट या पर्यटन वस्तु 
टूरिज्म प्रोडक्ट में वे सभी सेवायें या दर्शनीय स्थल आते है जो पर्यटक को लिभाते हैं।  जैसे बद्रीनाथ मंदिर पर्यटन में -मंदिर , पूजा अर्चना प्रबंध , होटल या धर्मशाला व भोजन व्यवस्था , दुकाने व दुकानो में मिलने वाली वस्तुएं , पंडे , धर्माधिकारी , ट्रांस्पोर्टेशन सेवा, आदि टूरिज्म प्रोडक्ट के मुख्य अंग हैं।

                      टूरिज्म प्राइस 

 टूरिज्म प्रोडक्ट्स की कीमतें पर्यटन विपणन का एक हिज्जा होता है।  वास्तव में कीमत एक मानसिक व तुलनात्मक अनदेखा  पदार्थ है।

                  टूरिज्म प्लेसमेंट या पर्यटन का वितरण 
जो भी टूरिज्म /टूरिस्ट स्थान को वितरित करता है वह टूरिस्ट प्लेसमेंट या पर्यटन वितरण का अंग होता है।  टूरिस्ट ऐजेंट  वितरण का हिस्सा होते हैं

                टूरिज्म प्रमोसन /पब्लिसिटी 

टूरिज्म में  ग्राहक को पर्यटक स्थल तक लेन में जो भी व्यापारिक उत्साह वर्धक कार्य किये जाते हैं वे प्रमोसन के भाग होते है जैसे विज्ञापन व जनसंपर्कीय  कार्यकलाप आदि।
  टूरिज्म विकास में निम्न 'P ' भी आवश्यक हैं। यद्यपि ये 'P' उपरोक्त चार 'P ' के ही भाग हैं। पीपल (टूरिज्म से जुड़े लोग अथवा ग्राहक ); प्लेस या पर्यटक स्थल ; प्लांनिंग , प्रोग्रामिंग , फीजिकल एविडेंसेज आदि
       




Copyright @ Bhishma Kukreti  31  /4/2014 

Contact ID bckukreti@gmail.com

Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी 

                                   
 References

1 -
भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों मेंकोटद्वार गढ़वाल 




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पहाडुं समस्या समाधान त नरेंद्र मोदीम बि नी च !

भीष्म कुकरेती        

(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )  
 हिमाला पहाड़ मा समस्या तो सदियों से रै होलि किन्तु कमोवेश रूप से हिमाला भारतौ रक्षा कवच ही राइ।  पैल हिमाला भारतौ  बान समस्या साधन छौ ।  आधुनिक तकनीक अर नया नया सुख सुविधाऊं आण से हिमाला की जनता की मांग विकास ह्वे गे। हिमालयी लोग अब वही सुविधा का आकांक्षी ह्वे गेन ज्वा सुविधा मुम्बई का प्रावास्युं तैं सुलभ च।  किन्तु हिमाला तो हिमाला च अर समोदरो छाल तो समोदरो छाल च।  दुयंक अपणि भौं भौं बाण च याने अपणी विशेष प्रकृति च। याने जो विकास कृत्य समुद्री तट का वास्ता फलदायक छन वो हिमाला मा उपयोगी नि ह्वे सकदन।  
किन्तु हमारा हिमाला योजनाकार तो समुद्र तटीय विकास का स्कुल का ग्रेजुएट छन ऊँन हिमाला तैं क्या दे सकण ?
प्रधान मंत्री की दौड़ मा अचकाल मुलायम सिंग च , बैणि मायावती च , ममता भूलि च , जयललिता फुफु बि च। 
जरा यूं दीदी भुल्युं कु भूतकाल पर नजर मारो तो निष्कर्ष च  कै मा देश तो छ्वाड़ो अपण क्षेत्र याने अपण प्रदेस  कु विकास करणो ना त दूरदृष्टि च , ना क्षमता , लियाकत च अर ना ही क्वी यूं तैं भौतिक विकास की क्वी इच्छा शक्ति च।  विकास तैं यूँन कबि प्राथमिकता देहि नी च।  जयललिता तैं विकास की मोटर ब्रिटिश राज बिटेन दहेज़ मा मिलीं छे तो जयललिता का विकासहीन मानसिक दृष्टि कैक नजर मा नि आयी। 
ममता तो साम्यवादी तालाब  की मच्छी च तो वा विकास का बारा मा चिंतित बि नी च। 
मायावती या मुलायम उत्तर प्रदेस का  जातीय समीकरण बिठाण से भैर ही नि ऐ सकिन तो जु प्रदेस विकास तैं ही दिशा -निर्देशन दीण मा नाकामयाब ह्वावन वो हिमाला विकास नीति क्या जाणल ?
नितीश कुमार मा प्रशासनिक क्षमता बड़ी च किन्तु रेलमंत्री अर विहार मुख्यमंत्री का कार्य से साफ़ लगद कि नितीश मा औद्योगीकरण की क्वी अभिनव दूरदृष्टि नी च अर यही नवीन पटनायक , पृथ्वीराज चौहान हाल छन। प्रकाश सिंह बादल तो मायावती जन ही च। 
उत्तराखंड का भूतपूर्व मुख्यमंत्र्युं जनम पतड़ी से साफ़ लगद कि नारायण दत्त तिवाड़ी छोड़िक बकै सब कुर्सी का शौक़ीन छा।  कै तै बि हिमाला विकास की खोज -खबर बि नी च। नारायण दत्त तिवारी मैदानी इलाकों की खाशियत जाणदा छा तो ऊँन मैदानी इलाकों मा विकास की नींव अवश्य धार।  बाकी मुख्यमंत्री तो सिर्फ़ मोळ माटो मादेव छा।  यी सब याने कोशियारी , निशंक , खंडूरी , बहुगुणा चांदन कि पहाड़ घणा जंगळ मा तब्दील ह्वे जावन।  एक मा बि हिमाला विकास की क्वी सोच ही नी च तो यूंक  बारा मा बात करण बेकार च अपण समौ बर्बाद  करणो बरोबर च। 
अब आंदा हम राहुल गांधी पर जो भावी प्रधान मंत्री को दावेदार च या जु बि कॉंग्रेस समर्थित प्रधान मंत्री बणल वैन राहुल गांधी को मुख्त्यार ही बणन।  किन्तु जु राहुल गांधी ऐन चुनाव का बक्त चुनावी रैली करण छोड़ी पचास -साठ लोगुं बीच सिखणु ह्वावो कि मुरादाबाद मा बर्तन -शिल्पकारिता क्या हूंद या कोटा पत्थर काटणो मतबल क्या हूंद तो इन नेता जु समय की मांग ही नि समझ सकुद वै से भारत -विकास की आस  ही गलत च। जु सेनापति बीच युद्ध मैदान मा धनुष -बाण बणाणो कौंळ (कला ) सिखणु ह्वावो वै से हिमाला तो छोडो भारत विकास की उम्मीद करण बईमानी च। 
नरेंद्र मोदीन अफु तैं भारत कु प्रधान मंत्री समझी याल।  मानसिक रूप से शरद पंवार अर नरेंद्र मोदी मैदानी व्यवहारिक विकास जाणदा  छन। 
किन्तु नरेंद्र मोदी बि हिमाला विकास का समाधान नि लै सकदन। अर यांक सबूत विकास पुरुष (?) नरेंद्र मोदीन किसान चौपाल मा दे कि नरेंद्र मोदी तैं हिमाला पीड़ा कु पता बि नी च यद्यपि नरेंद्र मोदीन  जवानी मा सबसे अधिक काम हिमाचल प्रदेस मा ही कार। 
वैदिन वीडिओ कॉनफिरेंसिंग किसान चौपाल मा एक हिमाचल कु किसानन नरेंद्र मोदी से प्रश्न कार कि हिमाचल मा जंगली जानवर अर बढ़ीं मजदूरी से लोग सेव की या अन्य फलों की खेती बंद करणा छन तो आपम यूँ समस्याओं समाधानी  योजना क्या क्या छन।  बिचारा नरेंद्र मोदीन गोल माल जबाब दे अर प्रूफ दे ,प्रमाण दे , सबूत दे कि नरेंद्र मोदी तैं हिमाला समस्या का बारा मा चिंता ही नी च। 
फिर जगा जगा नरेंद्र मोदी 'जंगल बढ़ाने के लिए खेतों की मींडों में पेड़ लगावो ' जन नारा बि लगाँद।  नरेंद्र मोदी तैं कु बतालो कि मींडो मा पेड़ याने खेती कु बिनास ! 
देहरादून की रैली मा नरेंद्र मोदीन पर्यटन की बात छेड़ी किन्तु हिमाला सरोकार की क्वी बात नि कार , जम्मू की, हिमाचल या नेफा की रैलियों मा बि नरेंद्र मोदीन हिमालय सरोकार की क्वी बात नि कार अर सोनिया गांधी , राहुल गांधींन बि हिमालय संबंधी अपनी विशेष सोच नि बथाई । 
यूँ बत्तों से साफ़ पता चलद कि भारतीय शीर्षस्थ नेतृत्व हिमालय तैं  गम्भीरता se नी लीणु च। 
चीनन चीनी हिमालय मा हिमालय मा आमूल -चूल परिवर्तन कौर याल। हिमालयी पहाडों विकास केवल पहाड़ियों वास्ता आवश्यक नी च किन्तु भारतीय हिमालय कु हिमालय का हिसाब से विकास चीन तैं रक्षा अर आर्थिक दृष्टि से टक्कर दीणो बान अधिक आवश्यक च।    अत्यंत चिंता, भौत ब्याकुलता की बात च कि भारतीय शीर्षस्थ नेतृत्व हिमाला सरोकार का विषय मा सियुं च।
 

Copyright@ Bhishma Kukreti  31 /3/2014 

History of Pilgrim Places in Garhwal-Haridwar around Sultanate attack Period (1200-1500)

 History of Garhwal including Haridwar (1223- 1804 AD) –part -59    
                                            
 History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -304 

                       ByBhishma Kukreti (A History Research Student

Pilgrim Places in Garhwal-Haridwar around Sultanate attack Period (1200-1500)

               Ganga had been a poise River for Indians of all sects from the beginning of Human society in Uttarakhand. Therefore, from Mahabharata or Vedic period, the places of Ganga bank were pilgrim places for Indians.
               The inscriptions of Dev Prayag and Gopeshwar suggest that pilgrims used to reach those difficult places. Gangotri and Yamnotri had been witnessing landslides from the old age.  Therefore, we don’t have inscriptions found in these places. However, definitely, pilgrims definitely used to visit those places too.
   Shaivya, Vaishnava, Shakt sects encouraged pilgrim places of Uttarakhand. Kedar or Kailas and Mansarovar Kailas had bee Shaivya pilgrim places from the ages. Ramnath Math of Kedarnath is one of five auspicious Maths of Shaivya. Badrinath was one of main Maths of Vaishnavas. Shakt had Maths or Peeths in Garhwal and Haridwar as Haridwar (Gangadwar), Rishikesh, Shripur (Shrinagar), Kailas (Kedarnath), Bhrigukhal, Bhrigupanth and Badrinath.
  Indians used to come to Garhwal for paying tributes to their dead forefathers (Purkhon ka Pinddan).
The following piligrim places were famous from 1200-1500 in Garhwal
Gangadwar –Haridwar
Kankhal
Kanwashram
Rishikesh
Dev Prayag
Rikhyad (Rishiadda ) Udaipur , Salan
Gopeshwar
Kalimath
Jyotirmath
Badrikashram
Kedar
Badahat
Temple of Jaunsar

            Siddh Garhwal-Haridwar around Sultanate attack Period (1200-1500)

                Siddham and Oum Namo Siddham phrases were famous religious phrases before first century. Aorund tenth century, Bamamargi and Vajrayani Buddhists were called Siddh.
  Around thirteenth century, Muslim attackers destroyed Buddhist and Sanatani /Vedic/Hindu/Garab worshipping places and religious Conferences Places. Buddhist worshipping places at Bijnor, Moradabad, and Haridwar were destroyed too. The monks and administrating monks of Buddhist worshipping places migrated to Bhabhar and Himalayan and Siwalik Hills of Garhwal. Siddh influenced people of Garhwal.
                    Siddh using promoting Languages  

            Siddh took shelters in villages rather than in capital of chieftains. Those Siddh started creating Mantra in local language that is Garhwali of their time. The Siddh preaching were revolutionary and against Sanatani or customary preaching. However, Siddh were promoting blind faith too. Due to Muslim disturbances there was political, social, cultural, economical instability and turmoil all over. Therefore, new experimentations, new research and developmental works in agriculture, infrastructures, medical science, forestry, water resources, were stand still. People had only one hope and that was GOD. Siddh fulfilled the need of people. Siddha created Mantra in local language. However, those mantras language took newer shapes always with the changing time. However, beliefs on Mantra still exist in Garhwal in present time.


Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com31/3//2014
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -305 

                                      References

1-Dr. Shiv Prasad Dabral, 1971, Uttarakhand ka Itihas Bhag-4, Veer Gatha Press, Dogadda, Pauri Garhwal, India 
2-Harikrishna Raturi, Garhwal ka Itihas
3-Dr. Patiram, Garhwal Ancient and Modern
4-Rahul Sankrityayan, Garhwal
5- Oakley and Gairola, Himalayan Folklore
6- Bhakt Darshan, Garhwal ki Divangit Vibhutiyan
7-Foster, Early Travels in India William Finch
8-Upadhyaya, Shri Shankaracharya
9-Shering, Western Tibet and British
10-H.G. Walton, Gazetteer of British Garhwal
11-B.P.Kamboj, Early Wall Paintings of Garhwal
12-H.g Walton, Gazetteer of Dehradun
13- Vimal Chandra, Prachin Bharat ka Itihas
14-Meera Seth, Wall Paintings of Western Himalayas 
15-Furar, Monumental Antiquities
16-Haudiwala, Studies in Indo-Muslim History
17- Rahul Khari 2007, Jats and Gujjar Origin, History and Culture
18- Upendra Singh, 2006, Delhi: Ancient History, Barghahan Books
19- B.S. Dahiya, 1980, Jats the Ancient Rulers (A Clan Study) , Sterling Publications
20- Maithani, Bharat –Gotrapravardeepika
21 Prem Hari Har Lal, 1993, The Doon Valley Down the Ages
22-Dashrath Sharma, Early Chauhan Dynasties
23- Shailndra Nath Sen, Ancient History and Civilization
24-H.M Elliot, 1867, The History of India as told by its Own Historians
25- Jaswant Lal Mehta, 1979, Advance Study in Medieval India
26- Nau Nihal Singh, 2003, The Royal Gurjars: their contribution to India, Anmol Publications 
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
History of Garhwal from 1223-1804 to be continued in next chapter          
Notes on  South Asian Medieval History of Garhwal;  South Asian Medieval History of Pauri Garhwal;  Medieval History of Chamoli Garhwal;  South Asian Medieval History of Rudraprayag Garhwal;  South Asian Medieval History of Tehri Garhwal;  Medieval History of Uttarkashi Garhwal;  South Asian Medieval History of Dehradun, Garhwal;  Medieval History of Haridwar ;  South Asian Medieval History of Manglaur, Haridwar;  South Asian Medieval History of Rurkee Haridwar ;  South Asian Medieval History of Bahadarpur Haridwar ; South Asian History of Haridwar district to be continued…   
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History of Pilgrim Places in Garhwal-Haridwar around Sultanate attack Period (1200-1500); History of Pilgrim Places in Garhwal around Sultanate attack Period (1200-1500); History of Pilgrim Places in Pauri Garhwal around Sultanate attack Period (1200-1500); History of Pilgrim Places in Chamoli Garhwal around Sultanate attack Period (1200-1500); History of Pilgrim Places in Rudraprayag Garhwal around Sultanate attack Period (1200-1500); History of Pilgrim Places in Tehri Garhwal around Sultanate attack Period (1200-1500); History of Pilgrim Places in Uttarkashi Garhwal around Sultanate attack Period (1200-1500); History of Pilgrim Places in Dehradun Garhwal around Sultanate attack Period (1200-1500);History of Pilgrim Places Haridwar around Sultanate attack Period (1200-1500)

प्रवासी गढ़वाली लिखवारुं मूलभूत समस्या

भीष्म कुकरेती    
      फेस बुक मा पोस्टिंग से एक फायदा च लेखक तैं पता चल जांद कि लेख बंचनेरुं तैं कथगा पसंद आयी।  लिखवारुं तैं फटफटाक समज मा ऐ जांद कि लेखौ विषय मा कथगा दम च।  बंचनेरुं याने पाठकु रूचि बि पता चौल जांद। 
मीन पायी जब मि गढ़वाली गाउँ विषय उठांदु तो पाठकुं प्रतिक्रया बिंडि आंदि।  गढ़वाली भाषौ पाठक गढ़वाली गाँव विषय तैं जादा पसंद करद।  
उत्तराखंड संबंधी साधारण  आम विषयुं मा बि आम बंचनेरुं रूचि कुछ हद तक रौंदि च। 
राष्ट्रीय स्तर विषयुं तैं गढ़वाली पाठक बंचद त च पर रूचि का मामला मा गढ़वाली  उत्तराखंडी विषय से पैथर छन। 
अंतर्राष्ट्रीय विषय गढ़वाली बंचनेर सुंगद बि नि छन। 
बात बि सै च  अंतररास्ट्रीय या रास्ट्रीय विषयुं तै पढ़न त हिंदी या अंग्रेजी साहित्य अधिक सुभीताजनक च। 
गढ़वाली साहित्य का लिख्वार याने लेखक तीन प्रकार का छन -
 १-ठेठ गांऊं मा वास करण वाळ 
२-उत्तराखंड का शहरी लिख्वार 
३-प्रवासी अर प्रवासी बि उत्तराखंड से नजीक का अर दूर का प्रवासी 
जख तलक 1970 -1975 तक कु सवाल छौ त सन १९०० कु गढ़वाल अर 1975 कु गढ़वाल मा अधिक अंतर नि छौ तो जु प्रवासी लिख्वारन बचपन मा गढ़वाल देख रै होलु तो अमूनन वो ही बुड्यांदैं गढ़वाल छौ।  याने कि प्रवासी गढ़वाली का पास गढ़वाल संबंधी विषय पूरा छा। 
अब 1982 का बाद टेलीविजन क्रान्ति अर 1999 का बाद सूचना क्रांति का बाद स्तिथि बिलकुल अलग च।  पलायन से अब गांव अर गाँव वाळु मनस्थिति मा रोज नया बदलाव आणा छन। 
सामजिक अर आर्थिक स्थिति मा अब हर पांच साल मा 180 डिग्री को अंतर ह्वे जांद। 
शिक्षा अर शिक्षा माध्यम अब वै तरां का नि छन जु में सरीखा या पाराशर गौड़, जेठुरी, विजय गौड़ , सेमवाल सरीखा विदेश बस्याँ प्रवासी लेखकुंन देखि छौ। 
यद्यपि पाराशर गौड़, जेठुरी, सेमवाल, विजय गौड़ सरीखा विदेश बस्याँ प्रवासी लिखवारुं मा विस्तृत वैश्वविक भौगोलिक अर सांस्कृतिक पैनोरामा च , अलग अलग भाषओं साहित्य पढ़णो अवसर जादा च किन्तु गढ़वाल की महीन -सामयिकता का ज्ञान नि हूण से गढ़वाल का बारा मा गढ़वाली साहित्य मा सामयिकता लाण मा यी प्रवासी साहित्यकार या दिल्ली -मुम्बई का साहित्यकार लाचार छन। 
तबि तुम दिखिल्या कि बालकृष्ण भट्ट , विजय गौड़ , जेठुरी , भीष्म कुकरेती , सेमवाल , पाराशर गौड़, प्रभात सेमवाल , जगमोहन जयाड़ा आदि लिखवारुं अधिकतर विषय या तो स्मृतियूँ - यादूं पर आधारित विषय छन या अखबार , टीवी , इंटरनेट की सूचनाओं आधारित विषय छन।  भौत सा प्रवासी लिखवारुन अफु तैं गढ़वाल कि प्रकृति तक सीमित करी दे। 
भौत सा प्रवासी लिख्वार बस सांस्कृतिक -सामाजिक स्ट्रक्चर टुटण तक ही सीमित ह्वे गेन अर अपण खुद का साहित्य मा इवॉल्यूशनरी बदलाव लाण मा नाकामयाब छन खासकर पाराशर गौड़, बालकृष्ण भट्ट अर जगमोहन जयाड़ा का साहित्य तो जाम ह्वे गे। इन नी च कि यूं  तैं पता नी च कि यूंक साहित्य मा एक ठहराव आयुं च। किन्तु प्रवास मा रैक यी लिख्वार अपण साहित्य मा इवोल्यूशनरी चेंज लाण मा लाचार छन। 
भीष्म कुकरेती , गीतेश नेगी अर विजय गौड़ यद्यपि कोशिस करणा छन कि अपण खुद का लिख्युं साहित्य मा इवॉल्यूशनरी बदलाव लावन किन्तु चूँकि यी साहित्यकार वास्तविक धरातल से भौत  दूर छन तो यूँन एक नई विधि अपनायी अर वा च साहित्य मा नाम, प्रतीक  गढ़वाली दे द्यावो बकै विषय तैं रास्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय ही रौण द्यावो।  इखम मि गीतेश नेगी कु उदाहरण दींदु जौं तैं अंतराष्ट्रीय साहित्य कु भलो ज्ञान च (खासकर कविता ) किन्तु गढ़वाल मा नि रौणो कारण वो उथगा उत्पादक साहित्य नि दे सकणा छन जथगा कि गीतेश मा सामर्थ्य च।  इनी विजय गौड़ मा कविता कु मर्म समझणो भौत बड़ी सामर्थ्य च किन्तु गढ़वाल से दूर रौण से विजय गौड़ की पूरी सामर्थ्य को उपयोग पूरो नि ह्वे सकणु च। 
प्रवासी लिख्वार जाणदा छन कि महीन-सामयिक सामाजिक -सांस्कृतिक -भौगोलिक स्थति तैं चित्रित करण ही युंक धर्म च,  कर्म च किन्तु वास्तविकता याने गढ़वाल से दूर रौणो कारण प्रवासी गढ़वाली भाषा का साहित्यकार वास्तव मा लाचार छन अर अधिकाँश प्रवासी साहित्यकार अपणी क्षमता से भौत कम उत्पादक साहित्य दीणा छन।  यूंकि लियाकत का समणि वास्तविकता से दूर रौण बड़ो रोड़ा च , पौड़ च। 



Copyright@ Bhishma Kukreti  30 /3/2014 

History of Upper Caste in Garhwal including Haridwar from 00 to 1500 and Spread of Untouchability and Caste based Slavery Part -4

History of Upper Caste in Garhwal including Haridwar from 00 to 1500 and Spread of Untouchability and Caste based Slavery Part -4
                                 
                   (Garhwal, Haridwar me Kaun Jati Kahan Se Ayi aur Kahan Basi)
       History of Garhwal including Haridwar (1223- 1804 AD) –part -57    
                                            
 History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -302 

                       ByBhishma Kukreti (A History Research Student

                                Pandas of Haridwar
  There is mention in Mahabharata that Dhritrashtra visited Haridwar for offering Tributes to dead (Pind dan) in Kurukshetra war. That means Panda system persisted in Haridwar. That suggests that Savarn and Shudra or caste System existed in Haridwar too.


                                    Savarn and Shudra System

                 The caste system existed in Mahabharata period too. Shudra or Doom system existed in that period.
                However, the migrated Rajput and Brahmins to Garhwal from all over India made the local inhabitants of Garhwal as Doom or Shudra. Rajput and Brahmins migrated from other regions became Bith or Savarn. These migrated Rajput and Brahmins were offered land by kings and the local inhabitants were deprived from land ownership. The Shilpkar (Doom or Shudra) were deprived from various human rights and rituals.
               The upper caste Rajputs and Brahmins (especially migrated to Garhwal from other regions) made the original inhabitants their slaves. This slave system or Doom system existed till 1947.
 The Muslim attackers on Garhwal captured lakhs of Garhwalis and made them slaves. Those captives were taken as animals. Nobody knew their pains as slaves.

Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com28/3//2014
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -302 

                                      References

1-Dr. Shiv Prasad Dabral, 1971, Uttarakhand ka Itihas Bhag-4, Veer Gatha Press, Dogadda, Pauri Garhwal, India 
2-Harikrishna Raturi, Garhwal ka Itihas
3-Dr. Patiram, Garhwal Ancient and Modern
4-Rahul Sankrityayan, Garhwal
5- Oakley and Gairola, Himalayan Folklore
6- Bhakt Darshan, Garhwal ki Divangit Vibhutiyan
7-Foster, Early Travels in India William Finch
8-Upadhyaya, Shri Shankaracharya
9-Shering, Western Tibet and British
10-H.G. Walton, Gazetteer of British Garhwal
11-B.P.Kamboj, Early Wall Paintings of Garhwal
12-H.g Walton, Gazetteer of Dehradun
13- Vimal Chandra, Prachin Bharat ka Itihas
14-Meera Seth, Wall Paintings of Western Himalayas 
15-Furar, Monumental Antiquities
16-Haudiwala, Studies in Indo-Muslim History
17- Rahul Khari 2007, Jats and Gujjar Origin, History and Culture
18- Upendra Singh, 2006, Delhi: Ancient History, Barghahan Books
19- B.S. Dahiya, 1980, Jats the Ancient Rulers (A Clan Study) , Sterling Publications
20- Maithani, Bharat –Gotrapravardeepika
21 Prem Hari Har Lal, 1993, The Doon Valley Down the Ages
22-Dashrath Sharma, Early Chauhan Dynasties
23- Shailndra Nath Sen, Ancient History and Civilization
24-H.M Elliot, 1867, The History of India as told by its Own Historians
25- Jaswant Lal Mehta, 1979, Advance Study in Medieval India
26- Nau Nihal Singh, 2003, The Royal Gurjars: their contribution to India, Anmol Publications 
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
History of Garhwal from 1223-1804 to be continued in next chapter          
Notes on  South Asian Medieval History of Garhwal;  South Asian Medieval History of Pauri Garhwal;  Medieval History of Chamoli Garhwal;  South Asian Medieval History of Rudraprayag Garhwal;  South Asian Medieval History of Tehri Garhwal;  Medieval History of Uttarkashi Garhwal;  South Asian Medieval History of Dehradun, Garhwal;  Medieval History of Haridwar ;  South Asian Medieval History of Manglaur, Haridwar;  South Asian Medieval History of Rurkee Haridwar ;  South Asian Medieval History of Bahadarpur Haridwar ; South Asian History of Haridwar district to be continued

इना उना का कुछ ख़याल , कुछ विचार

चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती        

(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )  
 आज चबोड़ लिखणो ज्यु नि बुल्याणु च च याने व्यंग्य लिखणो मूड  नी च तो इनै उनै की ही  लगाये जाय। 
एक खबर च बल सबि कॉमेडी शोऊँ टीआरपी डाउन ह्वे गे याने कम ह्वे गे।  अब जब बिटेन चुनाव अधिसूचना आयी अर नेता लोगुन टीवी मा करतब दिखाण शुरू कार तो लाइव कॉमेडी छोड़िक कु स्क्रिप्टेड कॉमेडी द्याखल भै ?
इन  खबर च बल टीवी मा संस्पेंस अर हॉरर शो बि नि चलणा छन।  अब जब हम दर्शकुं तैं टीवी मा सहरानपुर से कॉंग्रेसी  सभा प्रत्यासी इमरान मसूद का डायलॉग "मै मोदी की बोटी बोटी कर दूंगा " दिखणो मीलल संस्पेंस अर हॉरर शो की कखम जरुरत च ?
खबर च बल स्पोर्ट चैनेल मा टी ट्वेंटी टूर्नामेंट की टीआरपी बि कम च।  अब सुबेर स्याम क्रिकेट देखिक बिखलाण नि पोड़लि ? जब पुटुक खै खैक सम्म हुयुं हो , अघळ हुयुं हो त रसमलाई खाणो ज्यु बि नि बुल्यांद। 
टीवी से जाण कि कॉंग्रेस्युं कुण यदुरप्पा पापी च , भ्रस्टाचारी च किन्तु अशोक चौहान पुण्यात्मा च।  इनी भाजपा वाळु कुण यदुरप्पा का भ्रस्टाचार भ्रस्टाचार की गणत मा नि आंद किलैकि केस कोर्ट मा च किन्तु भाजपा की परिभाषा अनुसार अशोक चौहान कु कुकृत्य भ्रस्टाचार माने जालु। 
अचकाल टीवी पत्रकार आपस मा बात करदन ," कै पार्टी से चुनाव लड़णो विचार च ?" याने "अचकाल कै पार्टी क प्रशंसा गीत लिखणु/लिखणी  छे ?" चारण संस्कृति कबि बि ख़तम नि ह्वे सकद।  जै बि व्यासन महाभारत लेखी होलु अवश्य ही वु पांडवुं चारण रै होलु। 
समाचार  छन बल नारायण दत्त तिवाड़ी अर ऊंक नया नया अपनायुं नॉन शेखर तिवारी द्वी नैनीताल मा रोड शो करणा छन।  नयो नयो ब्यौ अर नया नया बण्या बाप -बेटा कु प्रेम ही अलग हूंद। 
उन  कत्युं विचार च बल तिवाड़ी जी रोहित शेखर तैं आठ दस साल पैल पुत्र मानि लींद तो आज हरीश रावत की जगा रोहित शेखर तिवाड़ी चीफ मिनिस्टर हुँदा। 
परसि रीता बहुगुणा कु भाजपा द्वारा बुड्या नेताओं की अनदेखी अर बेज्ज्ती पर बयान सुणिन , बयान देखिन।  सुश्री रीता कु बुलण छौ बल भाजपा वाळ अपण बुजुर्ग नेताओं बेज्ज्ती करणा छन।  क्वी बि रीता बहुगुणा तै याद नि दिलाणु च कि कॉंग्रेस मा हर बार जथगा बेज्ज्ती संजय गांधींन  बिचारा बुजर्ग हेमवती नंदन बहुगुणा की कार वैक तुलना मा अडवाणी या जसवंत सिंह की बेज्ज्ती कुछ बि नी च। 
सुणन मा आयि कि अबि अबि भाजपा मा भर्ती हुयां सतपाल महाराज की पत्नी कॉंग्रेस मा ही राली।  बात बि सै च कैक बि सरकार रावो सत्ता सुख तो महाराज  परिवार तैं मिल्दु इ रालु कि ना ?
सरा उत्तराखंड मा एकी छ्वीं लगणा छन बल  हरिद्वार का भाजपा नेता मनोज कौशिक कॉंग्रेस मा कब भर्ती होला ? डूबती नया मा बि सवार हुए जांद त केवल राजनीती मा ही ह्वे सकद कि ना ?
इन सूण कि उत्तराखंड क्रांति दल (ए ), उक्रांद (बी ), उक्रांद (सी ) से लेकि उक्रांद (जेड ) तक की सभी उक्रांदी पार्टी चुनाव लड़णो तैयार छन।  जैदिन  प्रत्यास्यूं का पास जमानत कु जुगाड़ ह्वे जाल वै दिन प्रत्यासी पर्चा भरणो जाल। ए से जेड तलक हरेक उक्रांद पार्टीक समस्या  चुनाव जितण नी च बल्कि जमानत का पैसा कट्ठा करण च।  

Copyright@ Bhishma Kukreti  29 /3/2014 

*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।  
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वालेद्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखकद्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  ]  

Friday, March 28, 2014

Garhwali Brahmin as Good As Untouchables गढ़वाली ब्राह्मण हरिजनो जैसे क्यों ?

History Aspects of Devprayagi or Badrinath Pandas those perceived other Brahmins as good as Untouchables
History of Upper Caste in Garhwal including Haridwar from 00 to 1500 and Spread of Untouchability and Caste based Slavery Part -3
                                
                   (Garhwal, Haridwar me Kaun Jati Kahan Se Ayi aur Kahan Basi)
       History of Garhwal including Haridwar (1223- 1804 AD) –part -56    
                                            
 History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -301 

                       ByBhishma Kukreti (A History Research Student

 Dr Mohan Babulkar provided the brief history of Devprayagi (Badrinath) Pandas in Devprayagiyon ka Jatiya Itihas.
The histroy of Devprayagi Pandas start from the time when Jagadguru Shankracharya established Badrinath /Kedarnath dham and established Raghunath Ji temple in Dev Prayag around 800 AD. from that time, the Brahmins related to Shankrachary Math (South India) started to come to Garhwal and settled there  including Dev Prayag
There are eight Thoks of Dev Prayagi Pandas in Dev Prayag (Many are migrated to many places)
Thok -1 : Pujari and Karnatak
Thok-2 : Arjunya, , Raibani and Babuliye
Thok-3 : Akhniyan and Maliya
Thok-4: Kothiya (Later on settled in Koti)
Thok-5- Todriya
Thok -6 -Tailang, , Tevadi, Bandoliya and Chaube
Thok-7- Dhayani or Dhyani (now, settled in many places as dev Prayagi Bhatt )
Thok 8- Maharashtra and Palyal
These Thoks are no mre in existence:
Pujari bans and Bavan Hajai
            Mohan Babulkar states that these Pandas are Dravid, Tailang, karnatak, Guad or Maharashtrian
       Mohan Babulkar offered the inscriptions proofs that show most of above Thok of Pandas entered in Garhwal before 1500.
 Devprayagi Brahmins were very rigid in obeying the upper caste system and even they did not use to eat food cooked by their own relatives from Saryul Brahmin as Bahuguna and Uniyal etc. This class is also responsible to create division among Brahmins (Bhat Khana etc). Devprayagi Brahmins still do not wish to marry other than Pandas group.

Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com28/3//2014
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -302 

                                      References

1-Dr. Shiv Prasad Dabral, 1971, Uttarakhand ka Itihas Bhag-4, Veer Gatha Press, Dogadda, Pauri Garhwal, India 
2-Harikrishna Raturi, Garhwal ka Itihas
3-Dr. Patiram, Garhwal Ancient and Modern
4-Rahul Sankrityayan, Garhwal
5- Oakley and Gairola, Himalayan Folklore
6- Bhakt Darshan, Garhwal ki Divangit Vibhutiyan
7-Foster, Early Travels in India William Finch
8-Upadhyaya, Shri Shankaracharya
9-Shering, Western Tibet and British
10-H.G. Walton, Gazetteer of British Garhwal
11-B.P.Kamboj, Early Wall Paintings of Garhwal
12-H.g Walton, Gazetteer of Dehradun
13- Vimal Chandra, Prachin Bharat ka Itihas
14-Meera Seth, Wall Paintings of Western Himalayas 
15-Furar, Monumental Antiquities
16-Haudiwala, Studies in Indo-Muslim History
17- Rahul Khari 2007, Jats and Gujjar Origin, History and Culture
18- Upendra Singh, 2006, Delhi: Ancient History, Barghahan Books
19- B.S. Dahiya, 1980, Jats the Ancient Rulers (A Clan Study) , Sterling Publications
20- Maithani, Bharat –Gotrapravardeepika
21 Prem Hari Har Lal, 1993, The Doon Valley Down the Ages
22-Dashrath Sharma, Early Chauhan Dynasties
23- Shailndra Nath Sen, Ancient History and Civilization
24-H.M Elliot, 1867, The History of India as told by its Own Historians
25- Jaswant Lal Mehta, 1979, Advance Study in Medieval India
26- Nau Nihal Singh, 2003, The Royal Gurjars: their contribution to India, Anmol Publications 
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
History of Garhwal from 1223-1804 to be continued in next chapter          
Notes on  South Asian Medieval History of Garhwal;  South Asian Medieval History of Pauri Garhwal;  Medieval History of Chamoli Garhwal;  South Asian Medieval History of Rudraprayag Garhwal;  South Asian Medieval History of Tehri Garhwal;  Medieval History of Uttarkashi Garhwal;  South Asian Medieval History of Dehradun, Garhwal;  Medieval History of Haridwar ;  South Asian Medieval History of Manglaur, Haridwar;  South Asian Medieval History of Rurkee Haridwar ;  South Asian Medieval History of Bahadarpur Haridwar ; South Asian History of Haridwar district to be continued