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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, February 27, 2014

History of Chieftains of Bhilangana Valley and Barahat, Garhwal

History of Garhwal including Haridwar (1223- 1804 AD) –part -29
                                            
 History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -274

                       ByBhishma Kukreti (A History Student)

                           Chieftains of Bhilanggadh

                In thirteenth century, barring Barahat and Bhilangana Valley there was Chauhan chieftains rule over Garhwal including Haridwar. There is no record available for chieftains ruling Bhilanggadh of Bhilangana Valley. Bhilanggadh was the capital of Barahat and Bhilangana Valley.

                                         Sonpal of Bhilanggadh
                 One of the Chieftains of Bhilanggadh was Sonpal who married his daughter with the founder of Panwar dynasty Kanakpal Panwar. Sonpal handed over his kingdom to Kanakpal Panwar.
  As per folklore collected by Atkinson, Sonpal was one of the strongest and influential chieftains of Garhwal. That shows that Kanakpal Panwar got influence in inheritance from Sonpal and his other father in law chieftain Bhanupal.
     There disputes among historians for existence of Kanakpal or timing for his arrival in Garhwal.
              There is no mention of Kanakpal in Manodayakavya created in the time of Garhwal King Man Shah. The name of Kanakpal is also not there on hand written notes of Bhavani Shah Record. The list from Almora and Maularam about Panwar family tree mentions Bhauna or Bhagwanpal as the initial Panwar King.
 Wiket and Williams   refers Kanakpal as starter of Panwar dynasty in Garhwal.
 In case, Kanakpal was contemporary of Sonpal and Bhanupratap that showed that Kanakpal married with their daughters for increasing his power and territory. If Mangal Singh was son of Bhanu Pratap , Mangal Singh established his separate kingdom in Kandargarh and South of Garhwal including Haridwar and Nagina (Bijnor).


Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com28/2//2014
                                      References

1-Dr. Shiv Prasad Dabral, 1971, Uttarakhand ka Itihas Bhag-4, Veer Gatha Press, Dogadda, Pauri Garhwal, India 
2-Harikrishna Raturi, Garhwal ka Itihas
3-Dr. Patiram, Garhwal Ancient and Modern
4-Rahul Sankrityayan, Garhwal
5- Oakley and Gairola, Himalayan Folklore
6- Bhakt Darshan, Garhwal ki Divangit Vibhutiyan
7-Foster, Early Travels in India William Finch
8-Upadhyaya, Shri Shankaracharya
9-Shering, Western Tibet and British
10-H.G. Walton, Gazetteer of British Garhwal
11-B.P.Kamboj, Early Wall Paintings of Garhwal
12-H.g Walton, Gazetteer of Dehradun
13- Vimal Chandra, Prachin Bharat ka Itihas
14-Meera Seth, Wall Paintings of Western Himalayas 
15-Furar, Monumental Antiquities
16-Haudiwala, Studies in Indo-Muslim History
17- Rahul Khari 2007, Jats and Gujjar Origin, History and Culture
18- Upendra Singh, 2006, Delhi: Ancient History, Barghahan Books
19- B.S. Dahiya, 1980, Jats the Ancient Rulers (A Clan Study) , Sterling Publications
20- Maithani, Bharat –Gotrapravardeepika
21 Prem Hari Har Lal, 1993 , The Doon Valley Down the Ages
22-Dashrath Sharma, Early Chauhan Dynasties

(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
History of Garhwal from 1223-1804 to be continued in next chapter          
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -274  

अचकाल व्यंग्य लिखण सबसे कठण काम ह्वे गे

चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती        

(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )
 मीन जब व्यंग्य पढ़ण शुरू कौर छौ त इंदिरा गांधी मा बि कुछ हद तक ईमानदारी छे , शरम -ल्याज छे , वा कति बथों से झसकदी बि छे।  वै बगत बेइमान कम छा तो इमानदारी की   बड़ी पूछ छे तो हरी  शंकर परसाई , शरद जोशी , लतीफ घोंघी बढ़िया लिखदा छा। 
जब मीन गढ़वळि मा व्यंग्य लिखण शुरू कार तो समाज अर राजनीति मा इमानदारी , निष्ठा , नीति की कीमत छे तो व्यंग्य लिखण भौत सरल छौ।  तब नेता बेशर्मी की हद बि शरम से तोड़दा छा तो वूंकी बेशरमी पर लिखण सरल छौ। 
 अचकाल व्यंग्य लिखण सबसे कठण काम ह्वे गे।  हास्य लिखण मा ऑसंद आंद।
मैरेडिथ का अनुसार व्यंग्यकार नैतिकता कु ठेकेदार च जु समाज मा फैलीं गंदगी कीच -काच , गंदगी साफ़ करद।  याने कि गंदगी कम हूंद तो साफ़ करण सरल हूंद , गंदगी या कीचड़ अलग से दिख्यांदि हो तो व्यंग्य लिखे सक्यांद पण जब   सरा चौक ही कीचड की नींव पर खड़ो हो तो कीचड़ या गंदगी साफ़ कनकै करण ? इन मा व्यंग्य कनकै लिखण ?   
सदर लैंड कु बुलण च कि व्यंग्य सामाजिक बुराइयों का असली रूप दिखांद ।  पर यदि समाजन बुराइयुं  ही तैं अपण जीवन यापन कु आधार बणै याल तो अब व्यंग्य क्यां पर लिखण ? जब सबि लोग बुराइ तैं भलो मानणा छन तो व्यंग्यकार का पास लिखणs  कुण कुछ बच्युं इ नी च। 
चुनगेर लिखाड़ हरी शंकर परसाई  कु मानण छौ कि व्यंग्य जीवन की विसंगतियों , मिथ्याचारों अर पाखंडो की आलोचना करद।  पर जब समाज का आदर्श ही बिसंगति , मिथ्याचार , पाखंड ह्वे जावन तो व्यंग्यकार कब तलक मुंड फोड़ल ? 
चखन्योरा लिख्वार  शरद जोशी व्यंग्य तैं अन्याय , अनाचार , अत्याचार का विरुद्ध हूंद पण जब समाजन अन्याय , अनाचार , अत्याचार तैं ही जीवन शैली बणै दे हो तो इन मा व्यंग्य कै पर लिखण अर कैकुण लिखण ?
चबोड्या कलमदार रवींद्र त्यागी न बोली छौ कि व्यंग्य कु काम कुरीतियुं क भंडाफोड़ करण च पर जब हमर समाजन कुरीतियों तैं ही जिंदगी को मकसद बणै याल तो भंडाफोड़ क्यांक करण अर किलै करण ?
व्यंग्य अमर कोश का कोशकार शंकर पुण तांबेकर बुल्दन बल जख अन्याय , शोषण , अत्याचार , … ब्यूरोक्रेसी हो उख  व्यंग प्रभावशाली हूंद पर जब पूरो समाज ही अन्याय, शोषण , सिफ़ारसबाद , जातिबाद , भाई भतीजाबाद , दलबाद , तैं ठिकाणा दीणु ह्वावो वै समाज मा व्यंग्य की अहमियत ही ख़तम ह्वे जांद तो इनमा व्यंग्य लेखिक क्या फायदा ? पूरा का पूरा समाज अन्याय, शोषण , सिफ़ारसबाद , जातिबाद , भाई भतीजाबाद , दलबाद को समर्थक ह्वे जावो तो व्यंग्य की तो ऐसी तैसी होली कि ना ?
व्यंग्यकार समाज को ही अंग -प्रत्यंग हूंद।  जब समाज ही संवेदना शून्य ह्वे जावो तो अवश्य ही व्यंग्यकार भी संवेदनाहीन ह्वे जांद अर फिर इन मा मै  सरीखा व्यंग्यकार बि पलायनवादी साहित्य लिखण मा ही फैदा चितांद !  


Copyright@ Bhishma Kukreti  28 /2/2014 


*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।  
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वालेद्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखकद्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  

अचकाल व्यंग्य लिखण सबसे कठण काम ह्वे गे

चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती        

(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )
 मीन जब व्यंग्य पढ़ण शुरू कौर छौ त इंदिरा गांधी मा बि कुछ हद तक ईमानदारी छे , शरम -ल्याज छे , वा कति बथों से झसकदी बि छे।  वै बगत बेइमान कम छा तो इमानदारी की   बड़ी पूछ छे तो हरी  शंकर परसाई , शरद जोशी , लतीफ घोंघी बढ़िया लिखदा छा। 
जब मीन गढ़वळि मा व्यंग्य लिखण शुरू कार तो समाज अर राजनीति मा इमानदारी , निष्ठा , नीति की कीमत छे तो व्यंग्य लिखण भौत सरल छौ।  तब नेता बेशर्मी की हद बि शरम से तोड़दा छा तो वूंकी बेशरमी पर लिखण सरल छौ। 
 अचकाल व्यंग्य लिखण सबसे कठण काम ह्वे गे।  हास्य लिखण मा ऑसंद आंद।
मैरेडिथ का अनुसार व्यंग्यकार नैतिकता कु ठेकेदार च जु समाज मा फैलीं गंदगी कीच -काच , गंदगी साफ़ करद।  याने कि गंदगी कम हूंद तो साफ़ करण सरल हूंद , गंदगी या कीचड़ अलग से दिख्यांदि हो तो व्यंग्य लिखे सक्यांद पण जब   सरा चौक ही कीचड की नींव पर खड़ो हो तो कीचड़ या गंदगी साफ़ कनकै करण ? इन मा व्यंग्य कनकै लिखण ?   
सदर लैंड कु बुलण च कि व्यंग्य सामाजिक बुराइयों का असली रूप दिखांद ।  पर यदि समाजन बुराइयुं  ही तैं अपण जीवन यापन कु आधार बणै याल तो अब व्यंग्य क्यां पर लिखण ? जब सबि लोग बुराइ तैं भलो मानणा छन तो व्यंग्यकार का पास लिखणs  कुण कुछ बच्युं इ नी च। 
चुनगेर लिखाड़ हरी शंकर परसाई  कु मानण छौ कि व्यंग्य जीवन की विसंगतियों , मिथ्याचारों अर पाखंडो की आलोचना करद।  पर जब समाज का आदर्श ही बिसंगति , मिथ्याचार , पाखंड ह्वे जावन तो व्यंग्यकार कब तलक मुंड फोड़ल ? 
चखन्योरा लिख्वार  शरद जोशी व्यंग्य तैं अन्याय , अनाचार , अत्याचार का विरुद्ध हूंद पण जब समाजन अन्याय , अनाचार , अत्याचार तैं ही जीवन शैली बणै दे हो तो इन मा व्यंग्य कै पर लिखण अर कैकुण लिखण ?
चबोड्या कलमदार रवींद्र त्यागी न बोली छौ कि व्यंग्य कु काम कुरीतियुं क भंडाफोड़ करण च पर जब हमर समाजन कुरीतियों तैं ही जिंदगी को मकसद बणै याल तो भंडाफोड़ क्यांक करण अर किलै करण ?
व्यंग्य अमर कोश का कोशकार शंकर पुण तांबेकर बुल्दन बल जख अन्याय , शोषण , अत्याचार , … ब्यूरोक्रेसी हो उख  व्यंग प्रभावशाली हूंद पर जब पूरो समाज ही अन्याय, शोषण , सिफ़ारसबाद , जातिबाद , भाई भतीजाबाद , दलबाद , तैं ठिकाणा दीणु ह्वावो वै समाज मा व्यंग्य की अहमियत ही ख़तम ह्वे जांद तो इनमा व्यंग्य लेखिक क्या फायदा ? पूरा का पूरा समाज अन्याय, शोषण , सिफ़ारसबाद , जातिबाद , भाई भतीजाबाद , दलबाद को समर्थक ह्वे जावो तो व्यंग्य की तो ऐसी तैसी होली कि ना ?
व्यंग्यकार समाज को ही अंग -प्रत्यंग हूंद।  जब समाज ही संवेदना शून्य ह्वे जावो तो अवश्य ही व्यंग्यकार भी संवेदनाहीन ह्वे जांद अर फिर इन मा मै  सरीखा व्यंग्यकार बि पलायनवादी साहित्य लिखण मा ही फैदा चितांद !  


Copyright@ Bhishma Kukreti  28 /2/2014 


*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।  
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वालेद्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखकद्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  

Udaharan Laksana or Parallelism Characteristic Mark in Garhwali Folk Dramas

Review of Characteristics of Garhwali Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays part -103

                गढ़वाली   लोक नाटकों में  उदाहरण  लक्षण


                     Bhishma Kukreti (लोक साहित्य शोधार्थी)

 According to Bharat’ Natyashastra, when words by words expressing similar circumstances a submission is ingeniously made to accomplish an object is called Parallelism Characteristic Mark in a drama.
            गढ़वाली  लोक नाटकों में उदाहरण लक्षण

उदाहरण लक्षण परिभाषा - उद्देश्य को ध्यान में रख कर कई शब्दों  जो एक ही बात को इंगित करें तो यह लक्षण उदाहरण कहलाता है।  जैसे  -
रौमती  (भानुमती से )- अच्छा ! त त्यार कजे ! रत्यां घौर आंद सुबेर उठिक बगैर नक्वळ (नास्ता ) कर्याँ चली जांद अर दुफरा बान रुटि बि नि लिजांद ओ त कुछ ना कुछ बिजोग पड्यूं च हां ! मै लगद वैन हैंक ब्यौ करी …… आल …   धौं !

(मित्रग्राम, मल्ला ढांगू पौड़ी गढ़वाल में एक बादी लोक नाटक को लेखक द्वारा देखने के आधार परसमय 1963-64 )

(संदर्भ:  ,: गढ़वाली लोक नाटकों का मुख्य तत्व व विश्लेषण में भीष्म कुकरेती द्वारा संकलित गढ़वाली  लोक नाटकों के वार्तालापों से ,शैलवाणीकोटद्वार  के 2014 के कई अंकों में )


Copyright@ Bhishma Kukreti 27 /2/2014

Characteristics of Garhwali Folk Drama, Community Dramas; Folk Theater/Rituals and Traditional to be continued in next chapter

                 References
1-Bharat Natyashastra
2-Steve Tillis, 1999, Rethinking Folk Drama
3-Roger Abrahams, 1972, Folk Dramas in Folklore and Folk life 
4-Tekla Domotor , Folk drama as defined in Folklore and Theatrical Research
5-Kathyrn Hansen, 1991, Grounds for Play: The Nautanki Theater of North India
6-Devi Lal Samar, Lokdharmi Pradarshankari Kalayen 
7-Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas part 1-12
8-Dr Shiva Nand Nautiyal, Garhwal ke Loknritya geet
9-Jeremy Montagu, 2007, Origins and Development of Musical Instruments
10-Gayle Kassing, 2007, History of Dance: An Interactive Arts Approach
11- Bhishma Kukreti, 2013, Garhwali Lok Natkon ke Mukhya Tatva va Charitra, Shailvani, Kotdwara
12- Bhishma Kukreti, 2007, Garhwali lok Swangun ma rasa ar Bhav , Chithipatri
 Xx
Udaharan Laksana or Parallelism Characteristic Mark in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays;  Udaharan Laksana or Parallelism Characteristic Mark in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Chamoli Garhwal, North India, South Asia; Udaharan Laksana or Parallelism Characteristic Mark in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Rudraprayag Garhwal, North India, South Asia;  Udaharan Laksana or Parallelism Characteristic Mark in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Pauri Garhwal, North India, South Asia;  Udaharan Laksana or Parallelism Characteristic Mark in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Tehri Garhwal, North India, South Asia; Udaharan Laksana or Parallelism Characteristic Mark in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Uttarkashi Garhwal, North India, South Asia; Udaharan Laksana or Parallelism Characteristic Mark   in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Dehradun Garhwal, North India, South Asia; in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Haridwar Garhwal, North India, South Asia;
गढवाली लोक नाटकों में उदाहरण लक्षण ,  टिहरी गढ़वाल के गढवालीलोक नाटकों में उदाहरण लक्षण ;उत्तरकाशी गढ़वाल के गढवाली लोकनाटकों में उदाहरण लक्षणहरिद्वार गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकोंमें उदाहरण लक्षण  ;देहरादून गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में उदाहरणलक्षण ;पौड़ी गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में उदाहरण लक्षण;चमोलीगढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में उदाहरण लक्षणरुद्रप्रयाग गढ़वाल केगढवाली लोक नाटकों में उदाहरण लक्षण  ;

Garhwali Folk Story about Yamkeshwar Mahadev Temple (Udaipur Patti, Pauri Garhwal)

Garhwali Folk Tales, Fables, Traditional Stories, Community Narratives -67

  Compiled and Edited by: Bhishma Kukreti (Management Training Expert)

 (Reference: Hema Uniyal, 2011, Kedarkhand, Taxshila Prakashan, New Delhi, India, page 92)

           The Garhwali folk story behind Yamkeshwar Temple is amazing
           Yamkeshwar is famous Shiva Temple of Gangasalan. Yamkeshwar is situated at the bank of Sateri or Satedi Gad (Satyabhama or Satyarudra Rivulet) and is surrounded by Shamsan or cremation field from three corners. The Yamkeshwar Shiva Temple comes under the area of Badoli village three kilometer away from Amoli village. On last Monday of Shravan, there is large fare in this temple. There is also fare on every Shiva Ratri. There are 97 villages those visit the temple regularly. Once, Yamkeshwar was famous centre for Tantrik Vidya.
             Yamkeshwar has also importance in Shilpkar Liberation Movement in Garhwal where in 1931, a conference was held by Shilpkar to eradicate untouchability from the society.
            The folk story behind Yamkeshwar Mahadev Temple is that Great sage Maharishi Mrikand got son by worshipping lord Shiva. Mrikand named his son as Markandeya. However, Narad, by the study of astrology suggested that Markandeya would die by eleventh year. Mrikand became sad. Markandeya asked the remedies for getting longer life. Sage Mrikand suggested the remedy.
        Markandeya went to Manikut hill Plato and started Tap of Maha Mrityunjaya Jap at the bank of Shatrudra or Sateri River. Markandeya made the image of Shiva by sand and started Jap under a fig (Peepal) tree. At the set day of death for Markandeya, Yamraj (the death God or God of Righteous acts) reached to take the life of Markandeya. Markandeya requested to Yamraj that since his Jap of Maha Mrityunjaya (a religious ritual for winning over death) is incomplete, Yamraj should wait. However, Yamraj threw Kalpash or death weapon on Markandeya. Markandeya caught the sand image of Lord Shiva by both hands. The sand image broke down and Maha Mrityunjaya Rudra emerged from the image. Watching appeared Lord Shiva, Yamraj ran towards Jamradi village (Today’s Yamkeshwar). Yamraj started doing Tap for lord Shiva (form Rudra) at Jamradi (Today’s Yamkeshwar). Lord Rudra told to Yamraj that where there is Maha Mrityunjaya Jap (ritual) Yamraj should not enter there. Maha Mrityunjaya or Lord Shiva told to Yamraj that where he (Yamraj) was performing Tap a self born Ling image is there. Lord Shiva suggested Yamraj to perform Jap or prayer of that self born Ling. Lord Shiva told that this image would be famous by name of Yama. Lord Shiva blessed that whoever performs the Yama Shiv Ling that person would get longer life.  Yamraj performed Jap of lord Shiva or Ishwar for a year there. Since, Yamraj performed Ishwar prayer or Jap there it is called Yamkeshwar 

  
Copyright @ Bhishma Kukreti Shiva Ratri Day 27/ 2/2014 for review and interpretation
Garhwali Folk Tales, Fables, Traditional stories, Community Narratives for Effective Managers, Effective executives, Effective Boss, Effective Supervisors or Stories for Effective management, management Lesson from Garhwali Folk Literature from Garhwal, to be continued …in next chapter

                                 References

1-Bhishma Kukreti, 1984, Garhwal Ki Lok Kathayen, Binsar Prakashan, Lodhi Colony, Delhi 110003, 
2- Bhishma Kukreti 2003, Salan Biten Garhwali Lok Kathayen, Rant Raibar, Dehradun
3- Bhishma Kukreti, Garhwali Lok Kathaon ma Prabandh Vigyan ka Tantu , Chitthi Patri’s Lok Kathayen Visheshank  , Dehradun
Xx
Garhwali Folk Story about Yamkeshwar Mahadev Temple near Badoli (Udaipur Patti, Pauri Garhwal); Garhwali Folk Story about Yamkeshwar Mahadev Temple near Amoli (Udaipur Patti, Pauri Garhwal); Garhwali Folk Story about Yamkeshwar Mahadev Temple near Kandi (Udaipur Patti, Pauri Garhwal); Garhwali Folk Story about Yamkeshwar Mahadev Temple near Kasyali (Udaipur Patti, Pauri Garhwal); Garhwali Folk Story about Yamkeshwar Mahadev Temple, 49 KM from Rishikesh near (Udaipur Patti, Pauri Garhwal);

History of Mangal Singh Chauhan of Manglaur, Haridwar

 History of Garhwal including Haridwar (1223- 1804 AD) –part -28
                                            
 History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -273

                       ByBhishma Kukreti (A History Student)
  
             Panwar Capturing Chandpur Garh
            
 Bhanupal the strong ruler of Chandpur Gadhi had two daughters and he married one daughter to    Kumaon prince and other to Panwar brave man Kanakpal. Kanakpal ruled Chandpur Gadhi. According to folklore, Kanakpal entered in Garhwal around 882 CE (Raturi).    But this does not tally with historical aspects.

                    Damag rulers of Mandakini Valley

             There was one hand written note in Tehri Riyasat records that suggest that there was rule of Damag rulers in Mandakini valley before Panwar started ruling Garhwal However, no other record is available about Damag rulers of Mandakini valley.

                       Mangal Singh of Manglaur, Haridwar

               The hand written notes found in Tehri Riyasat record room states that Mangal Singh son of Bhanu Pratap Singh Chauhan established his capital at Kandar Garh (Kandarsyun, Garhwal) in 1218 AD. Another hand written note from the time of Bahadur Shah King of Garhwal (Bhakta Darshan, Garhwal ki Divangat Vibhutiyan) states that the rule of Mangal Singh was extended to Manglaur, Haridwar.  Journal of U.P. Historical Society (July 1943, page 80) supports that Mangal Singh (Chauhan clan) established a huge fort in Manglaur. There was cavalry regiment of Mangal Singh in Manglaur. The horses were breed   for army purpose in Manglaur.  Mangal Singh used to live in Manglaur in winter season and he used to live in Kandar Gadh in other seasons. It might be said that Manglaur was winter capital of Kandar Gadh ruler. Mangal Singh was very strong a brave ruler. His rule was extended to Nagina (south east of Garhwal Bhabhar). The Huge Gates at Nagina hills are said to be constructed by Mangal Singh of Kandar Garh.
 Mangal Singh was prosperous ruler and is believed by people that he had Paras stone.
         Tehri record states that many generations of Mangal Singh ruled over Kandar Garh and Chandpur Garh.

                            The last Chauhan ruler of Kandar Garh Garhwal

             Folklore describes that the last ruler of Kandar Garh was Nar Veer Singh. Panwar king defeated Nar Veer Singh of Kandar Garh. Nar Veer Singh jumped into Alaknanda River and died.

Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com25/2//2014
                                      References

1-Dr. Shiv Prasad Dabral, 1971, Uttarakhand ka Itihas Bhag-4, Veer Gatha Press, Dogadda, Pauri Garhwal, India 
2-Harikrishna Raturi, Garhwal ka Itihas
3-Dr. Patiram, Garhwal Ancient and Modern
4-Rahul Sankrityayan, Garhwal
5- Oakley and Gairola, Himalayan Folklore
6- Bhakt Darshan, Garhwal ki Divangit Vibhutiyan
7-Foster, Early Travels in India William Finch
8-Upadhyaya, Shri Shankaracharya
9-Shering, Western Tibet and British
10-H.G. Walton, Gazetteer of British Garhwal
11-B.P.Kamboj, Early Wall Paintings of Garhwal
12-H.g Walton, Gazetteer of Dehradun
13- Vimal Chandra, Prachin Bharat ka Itihas
14-Meera Seth, Wall Paintings of Western Himalayas 
15-Furar, Monumental Antiquities
16-Haudiwala, Studies in Indo-Muslim History
17- Rahul Khari 2007, Jats and Gujjar Origin, History and Culture
18- Upendra Singh, 2006, Delhi: Ancient History, Barghahan Books
19- B.S. Dahiya, 1980, Jats the Ancient Rulers (A Clan Study) , Sterling Publications
20- Maithani, Bharat –Gotrapravardeepika
21 Prem Hari Har Lal, 1993 , The Doon Valley Down the Ages
22-Dashrath Sharma, Early Chauhan Dynasties

(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
History of Garhwal from 1223-1804 to be continued in next chapter          
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -273  
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History of Mangal Singh Chauhan of Manglaur, Haridwar; Chauhan ruler of Nagina Garh (Bijnor); , Haridwar History of Mangal Singh Chauhan ( Haridwar ) as winter capital; History of Manglaur Fort (Haridwar); History of Chauhan Rulers in Garhwal; History of Chauhan Rulers in Pauri Garhwal; History of Chauhan Rulers in Pindar valley Garhwal; History of Chauhan Rulers in Rudraprayag Garhwal; History of Chauhan Rulers in Chamoli Garhwal; History of Chauhan Rulers in Tehri Garhwal; History of Chauhan Rulers in Uttarkashi Garhwal; History of Chauhan Rulers in Dehradun Garhwal; History of Chauhan Rulers in Haridwar, Garhwal; History of Mangal Singh Chauhan extending rule to Nagina (Bijnor) and making Fort; History of Mangal Singh Chauhan of Kandarsyun; History of Mangal Singh Chauhan of Kandar Gadh ..

प्रवासी गढ़वाळि सामाजिक कार्यकर्ताऊँ ख़ास पछ्याणक

चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती        

(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

जख जख गढ़वाली प्रवास करदन उख उख गढ़वाली पैदा ह्वावन या नि ह्वावन पण सामाजिक कार्यकर्ता पैदा ह्वे जांदन।  भारत मा यदि 600 लोगों मा एक NGO च त हरेक दुसर प्रवासी गढ़वाली सामाजिक कार्यकर्ता च अर हर दस प्रवासी का पैथर एक सामाजिक संस्था त होली ही। 
सामाजिक कार्यकर्ता माने कैं संस्था कु चेयरमैन , मंत्री या अधिकारी।  बगैर संस्था बणयां सामजिक कार्यकर्ता ज़िंदा नि रौंद . 
अधिसंख्य प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ता कु मानण च कि सामाजिक कार्यकर्ता तैं सामाजिक कार्य करण उथगा जरूरी नी हूंद जथगा कि कैं संस्था कु प्रजिडेंट या जनरल सेक्रेटरि हूण आवश्यक च ! 
जैदिन बिटेन ब्रिटिश लोगुन गढ़वाळियुं तैं भैर नौकरी दे वैदिन से अर आज तक हरेक प्रवासीकु एकि रूण च कि गढ़वाळ की पैली परेशानी पलायन च अर हरेक प्रवासी प्रवास मा संस्था इलै बणान्दु कि गढवाळ से पलायन रुक जाव । 
रात प्रवासी गढ़वाळि मीटिंग मा ह्यळि गाडि गाडि रूंद कि गढ़वाळ से पलायन हूणु च अर दुसर दिन अपण भतीजो , भणजो या भौं कै तैं बि अफुम भटे दींद। 
हरेक  प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ता रुणु रौंद कि गढ़वाळ मा खेती खतम हूणि च मकान उजड़ना छन।  यदि सर्वे करे जाव त गढ़वाल मा जादातर मकान प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ताओं का ही उजड्या होला। 
हरेक प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ता गढ़वाळ मा शराब व्यसन से दुखी रौंद अर ये दुःख मा खुद ही शराब गटकाणु रौंद अर जब गां जांद त पेटी भोरिक शराब गां लिजांद।   
शहर मा प्रवासी न्युतेरौ दिन शराब की पार्टी करद पण रुणु रौंद कि गांऊं मा ब्यौ -काज मा लोग सुबेर इ बिटेन शराब पींदन।  
प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ता गढ़वाल मा शिक्षा कि समस्याउं  से त्रस्त रौंद पण अपण शहर मा गढ़वाल्यूं की शिक्षा समस्याओं से अवगत नि रौंद। 
प्रवासी गढ़वाळ मा उद्यम नि हूण से परेशान रौंद पण गढ़वाळ का कै बी उद्यम मा निवेश नि करद। 
प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ता गढ़वाल मा पर्यटन बढ़ाणो बात करद अर जब समय आंद त अपण नौनु तैं हनी मून का वास्ता शिमला या ऊटी भेजद।
प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ता गढ़वाल मा गढ़वाळि भाषा खतम हूण से बहुत दुख जतान्द अर अपण बच्चों दगड़ गढ़वाली तो छोड़ो हिंदी मा बि नि बचऴयांद , केवल अंग्रेजी मा बचऴयांद।
हरेक   प्रवासी सोसल वर्कर चांद कि प्रवासी संस्थाओं मा एका ह्वावो अर जादा संस्थाओं तैं एक करणो बान हर साल मुम्बई मा महांसघ जन नई संस्था खड़ो करद। 
गढ़वाल मा गढ़वाळियुं विकास का वास्ता प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ताउं का पास सौ तरीका , निदान  छन पण प्रवास मा प्रवासी गढ़वाल्यूँ विकासौ बान  एक बि ब्यूँत नि हूंदन।  . 
प्रवासी गढ़वाळि सामाजिक कार्यकर्ता क ख़ास पछ्याणक   और बि छन।  बकैउं बखान भोळ-परस्यूं होलु।   


Copyright@ Bhishma Kukreti  26 /2/2014 


*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।  
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