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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, October 31, 2013

चलो सरदार पटेल पर कब्जा करे जावो !

   चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती 
     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )
ब्याळि  सरा दिन एक घड़ि बि चैन लीणो टैम नि मील।  सरा दिन भर सरदार बल्लभ भाई पटेल पर कब्जा करण वाळु  चकरघिनी मा फंस्युं रौं। 
सुबेर सुबेर गां बिटेन बण्वा काकाक फोन आयि।   बण्वा काका तैं वूंकि घरवळि अर  नौनान भावी  ग्राम प्रधान घोसित क्या कार कि काका तैं  देस अर दुनिया चिंता सताण मिसे गे अब वु ओबामा की नीति अर ग्लोबलाइज़ेशन से तौळ बात नि करदन।  झाड़ा पिसाब करद बि बरड़ाणा रौंदन बल येस  ! आई कैन ! येस  ! आई कैन !। जब   क्वी अपण भाई तैं पिटणु ह्वावु त बण्वा काका किरैक बुलण  जांद "येस ! यू कैन ! येस यू कैन"।  जब गां वाळ देर से अयीं मोटर पर पथर्यौ करदन त बण्वा काका जोर जोर से बुल्दु बल "येस ! वी कैन ! येस ! वी कैन ! "
बण्वा काकान फोन पर पूछ -  भीषम ! तख ये सरदार पटेलक मूर्ति क्या भाव चलणा  ह्वाल ?
मीन पूछ - काका ! सरदार पटेलक मूर्ति क्या करणाइ ?
  भावी प्रधान बण्वा काका को जबाब छौ - अरे वू सरदार पटेलै  विरासत पर कब्जा करण छौ। मि चाणु छौं सरदार पटेल की गद्दी  मितै मिल  जावो। 
मीन ब्वाल  - सरदार पटेल तैं  मर्यां तिरसठ साल ह्वे गेन अर तुम  अब गद्दी बात करणा छंवां ?
 बण्वा काका ब्वाल - हैं ? सरदार पटेल मोरि गे ? पण कैन बि नि बताइ।  तेरी काकीन बताइ बल सरा क्षेत्र मा भावी पंच -प्रधान लोग सरदार पटेल कि मूर्ति लगैक पटेलौ गद्दी हथ्याणा छन त मीन स्वाच मी जि किलै पैथर रौं ! अच्छा सूण !
मीन ब्वाल -ब्वालो !
काका - त इन कौर तख बिटेन सरदार पटेल की एक   बड़ी फोटो ही भेज दे।  मी फोटो दिखैक गाँव वाळु तैं भरमाई देलु कि सरदार पटेल कु असली वारिस मी छौं।  फोटो भिजण बिसरि ना हाँ।  मी तैं पता च बल " यू कैन "! 
मि -ठीक च। 
इना बण्वा काकान फोन बंद कार उना ममकोट बिटेन सग्वारि मामीक फोन ऐ गे।  सग्वारि मामी बि अपण  ख्वाळ  वाळुक   भावी ग्राम  प्रधान च.
मामीन पूछ - ये भीषम ! ये सरदार पटेल की पार्टी मा शामिल ह्वेक म्यार पुरण दाग धुये जाल कि ना ? यु दाग मिटाण जरूरी ह्वे गै  जु मै पर त्यार मामा तैं बीस साल पैल पिटण पर लगी छा। 
मीन जबाब दे - मामी सरदार पटेल तैं मोर्यां तिरसठ साल ह्वे गेन।  सरदार पटेल कॉंग्रेसी छा। 
मामी - हैं ! त फिर सरा क्षेत्र मा   सरदार पटेल की पार्टी मा शामिल हूणै बात किलै हूणि होलि ? अच्छा तु  इन कौरs  सरदार पटेल की एक बड़ी लम्बी फोटो ही भेज दे मि फोटो दिखैक अपण पुरण दाग मिटै द्योलु। 
इना मामी फोन कट उना बस्ती जीजाक फोन आयि।  बस्ती जीजा मेरि भूलिs रिस्ता मा द्यूर लगद अर बस्ती जीजाक मुंडीत वाळुन बस्ती जीजा तैं भावी सरपंच घोसित कर्युं च। 
बस्ती जीजा -  सरा क्षेत्र मा हल्ला हुयुं च बल   सरदार पटेल की  मूर्ति लगाण से  चुनाव जीते जै सक्यांद।  भीषम ! ये सरदार पटेल की  मूर्ति अपण चौक मा लगाऊं या बीच चौबट मा लगौं ?
मि - पण मूर्ति लोहा कि होलि या पेरिस ऑफ प्लास्टर की ?
बस्ती जीजा - जै हिसाब से गां मा चंदा मीलल वै हिसाब से मूर्ति बणलि। 
मि -त पैल चंदा जमा कारो फिर मूर्ति की बात करे जालि। 
बस्ती जीजा - अच्छा सूण ! मूर्ति मा सरदार पटेल की  पगड़ीs  रंग बसंती रंग ठीक रालु कि लाल रंग ठीक रालु।  अर सरदार पटेल की दाढ़ी सुफेद छे कि काळि ? अच्छा सूंण !  सरदार  पटेल पंजाबी सलवार पैरदो छौ कि पैंट पैरदो छौ ?
मि -जीजा जी ! सरदार पटेल गुजराती छौ ना कि पंजाबी सरदार। 
बस्ती जीजा - हैं ! सरदार पटेल गुजरात  कु  छौ ? मि त समज कि सरदार पटेल क्वी पंजाबी सरदार होलु।  फिर ये पटेल तै सरदार किलै बुलणा छन लोग ?
मि - गांधी जीन बल्ल्भ भाई पटेल तै सरदार की उपाधि दे छे।  
बस्ती जीजा - त फिर इन कौर सरदार पटेल की  बड़ी फोटो भेजी दे।  मी बि आज से अफिक  सरदार बस्ती राम बौण जांदो अर सरदार पटेल की विरासत पर कब्जा करणो तिकड़म भिडांदु।   
इनी म्यार क्षेत्र से बीस पचीस भावी पंच -परधानु  फोन ऐन।  सबि सरदार पटेल की विरासत पर कब्जा करण चाणा छन पण कै तैं सरदार बल्ल्भ भाई पटेल का बारा मा कुछ बि पता नि  छौ कि सरदार पटेल कु छौ अर पटेलन क्या कौर छौ।  


  Copyright@ Bhishma Kukreti  1 /11/2013 



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य;सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]

Anxiety Sentiment in Garhwali Folk Drama

गढवाली लोक नाटकों में  चिंता  भाव

Review of Characteristics of Garhwali Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays part -29

                                        Bhishma Kukreti

           According to Bharat’s Natyashastra, anxiety in drama is demonstrated on the stage by deep breathing or sighing, lamentation, deep thinking, keeping the face down, disturbed thinking and weakness of body.
           I remember a Ramleela scene in Mitragram, Malla Dhangu, Pauri Garhwal (Uttarakhand) aound October 1963-64.  When Father of Rama listened dialogue of Kaikeyi that Dashrath has to send Rama for Jungle for fourteen years and Bharat should be made King of Ayodhya. Dashrath character performer fell on the ground; he breathed deeply and showed anxiety very well.  
   
    There are various religious ritual folklore those are sung in Jagar or Pando dance and song where many events are there where anxiety is described and performers (pashwa who acts as the character of deity etc)  display anxiety.
 The following folklore is about Abhimanyu Jagar where anxiety of Yudhister is described.

               गढ़वाली लोक नाट्य गीतों में चिंता भाव

अभिमन्यु बाजा नाट्य नृत्य-गीत

तुम रौंदा होला राजा जयंती दिगपाल  
तुम होला राजा छत्रसाल भौर
कपटी कौरवों  राजा कुचालू रचेली
जौन रचे राजा सात द्वारों की लड़ाई
जयंती राज भंज राजा सणि पत्री देंदा
जती रंदा पांडो तुम जीती राज मान
तुम आवा पंडो अब सात द्वारों की लड़ाई
जयंती मा ह्व़े ग्याई झोंळी झंकार
सीली  ओबरी राजा झिली ह्वेगे खाट
राजा अर्जुन जायुं  दक्खन का देस
साथ  वैका किरसण सारथी

स्रोत्र डापुरुषोतम डोभाल
सन्दर्भ डाशिवा नन्द नौटियाल
 Translation of above religious  folk drama-song –dance (Jagar)  -
Kauravas invite Yudhister at Jainto bar.
Kaurvas keep the condition of winning Chakravyuha
According to war rule, Yudhister had to follow the rule and had to accept the challenge
Beside Arjun, nobody was expert of breaking Chakravyuha strategy
Arjun had gone for another war far away from Jaintobar.
Yudhister became sad, worried, and anxious
 There is following another example of showing anxiety is sentiment n folk drama.
    The Shrinagar Garhwal folk drama team led by Dr. R. Bhatt directed ‘Chakravyuha’ a folk drama of North Garhwal. Yudhister was worried because Kauravas invited Yudhister for battle and Kauravas led by Dronacharya trapped Pandavas for Chakravyuha (a strategy). Only Arjun was able to break the strategy. Arjun had gone for another battle far away from Chakravyuha field. Here in folk drama directed by Dr. Bhatt, the performer of Yudhister showed anxiety very well. 
Copyright @ Bhishma Kukretibckukreti@gmail.com  31/10/2013


              Review of Characteristics of Garhwali Folk Drama, Folk Rituals and Traditional Plays part to be continued… 

                    References
1-Bharat Natyam
2-Steve Tillis, 1999, Rethinking Folk Drama
3-Roger Abrahams, 1972, Folk Dramas in Folklore and Folk life 
4-Tekla Domotor , Folk drama as defined in Folklore and Theatrical Research
5-Kathyrn Hansen, 1991, Grounds for Play: The Nautanki Theater of North India
6-Devi Lal Samar, Lokdharmi Pradarshankari Kalayen 
7-Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas part 1-12
8-Dr Shiva Nand Nautiyal, Garhwal ke Loknritya geet
9-Jeremy Montagu, 2007, Origins and Development of Musical Instruments
10-Gayle Kassing, 2007, History of Dance: An Interactive Arts Approach
11- Bhishma Kukreti, 2013, Garhwali Lok Natkon ke Mukhya Tatva va Charitra, Shailvani, Kotdwara
12- Bhishma Kukreti, 2007, Garhwali lok swangun ma rasa ar Bhav , Chithipatri
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Anxiety Sentiment in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays; Anxiety Sentiment in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Chamoli Garhwal, North India, South Asia; Anxiety Sentiment in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Rudraprayag Garhwal, North India, South Asia; Anxiety Sentiment in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Pauri Garhwal, North India, South Asia; Anxiety Sentiment in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Tehri Garhwal, North India, South Asia; Anxiety Sentiment in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Uttarkashi Garhwal, North India, South Asia; Anxiety Sentiment in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Dehradun Garhwal, North India, South Asia; Anxiety Sentiment in Garhwali Folk Drama, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Haridwar Garhwal, North India, South Asia;

गढवाली लोक नाटकों में  चिंता भावटिहरी गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में   चिंता  भाव;उत्तरकाशी गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में चिंता   भाव;हरिद्वार गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में चिंता    भाव;देहरादूनगढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में  चिंता   भाव;पौड़ी गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में  चिंता   भाव;चमोली गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में चिंता    भावरुद्रप्रयाग गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में  चिंता   भाव;

उत्तराखंड परिपेक्ष में किनग्वड़/किलमोड़ का उपयोग और इतिहास

 History /Origin /introduction, Economic Uses of Indian barberry  (Berberies asiatica and B. aristata )  in Uttarakhand context 
                                           उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास -6 

                                     History of Wild Plant Vegetables  Agriculture and Food in Uttarakhand 6                         
          
                                              उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --46  
                                        History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand 46

                                                                आलेख :  भीष्म कुकरेती


   किनगोड़ा /किलमोड़  व सहोदर     
नेपाली नाम - छुत्रो 
संस्कृत नाम - कतमकेतरी, दिर्वि  आदि 
हिंदी नाम - दारुहल्दी /दारुहल्द  /चित्रा /छित्रा
किनगोड़ा /किलमोड़  व सहोदर   का उपयोग वैदिक युग से भी पहले से होता आ रहा है औरकिनगोड़ा /किलमोड़  व सहोदर  का जन्मस्थल भारत के हिमालय को माना जाता है।  मेरा मानना है कि किनगोड़ा /किलमोड़  का जन्मस्थल   मध्य हिमालय ही होना चाहिए। 
किनगोड़ा /किलमोड़  व सहोदर का वर्णन महाभारत व चरक , सुश्रुवा संहिता में हुआ है।  
कंजक्टेवाइटिस में रस अतयंत लाभदायक माना जाता है। अल्सर , पीलिया , पेट की बीमारियों , बुखार, कैंसर , त्वचा दोष , यकृत की बीमारियों आदि में किनगोड़ा /किलमोड़  व सहोदर  के कई अंग उपयोगी होते हैं। 
कहीं कहीं किनगोड़ा /किलमोड़ की पत्तियों व फल से चटनी बनाई जाती है (P  S . Mehta et all )
किनगोड़ा /किलमोड़ की पत्तियां बकरियों के चारे के रूप में भी उपयोग आती हैं।  
किनगोड़ा /किलमोड़ लकड़ी जलाने के भी काम आता है। 
किनगोड़ा /किलमोड़   प्राकृतिक बाड़ के काम भी आता है 
 अनावश्यक दोहन के कारण किनगोड़ा /किलमोड़  व सहोदर प्रजाति ही   आज खतरे में आ गया है।       



Copyright Bhishma  Kukreti  31/10/2013 


                                   References   

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Starting of Khantduva or Bhail-Bhailo festival by King Lakshmi Chandra

(History of Kumaon from 1000-1790 AD)

         (History of Chand Dynasty Rule in Kumaon)
History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon, Haridwar) - Part 177

                                              ByBhishma Kukreti

           Mantra Accomplishment (Mantra Sadhana) by Lakshmi Chandra
            Lakshaman Chandra /Lakhmi Chand or Lakshmi Chandra got Kumaoni /Champawat crown in 1597. Most probably Lakhmi Chandra attacked on Garhwal in 1597 just after his taking over the rule. There were seven attacks on Garhwal kingdom by Lakhmi Chandra or Lakshmi Chandra. It means his seventh attack on Garhwal was in 1602 as according to folklore, Man Shah the Garhwal king reached Champawat in 1602 AD. Lakshmi Chandra was humiliated by Man Shah.

      Lakshmi Chandra or Lakshman Chandra started accomplishing Mantra Sadhana from 1602 to 1605.
             It is said that the ‘Pinus’ carrier farmer said that if King would have have been religious he would have not seen so embarrassing position.  The sarcastic remarks by Pinus carrier affected Lakshman Chandra.  He called his court Guru and told him that he was becoming Sanyasi and ready to hand over kingdom to other.   Guru told to the king Lakshmi Chandra to wait for one year. Guru brought black magic from a Guru of  Bengal. The Mantra was given to Lakshmi Chandra.
          In the mean time, Lakshman Chandra built three Shiva temples as Lakshmeshwar temples in Almora and Bageshwar.  King Lakshmi Chandra donated land to temples of Bageshwar, Jageshwar, and other places.
  Now, King Lakshmi Chandra was sure that he would win over Garhwal due to Mantra power. King Lakshmi Chandra made strategy to attack on Garhwal eighth time. He ordered to keep dry grass on hills of Kumaon from bordering region of Garhwal till Almora that as soon as he won Garhwal there should be fire on Grass on all hills. His idea was that as soon as he won the Garhwal kingdom the fire from one hill to other hill would inform his winning Garhwal.
       It is most certain that when on Ashwin Sankranti  , Lakshmi Chandra attacked on Garhwal and looted the bordering villages of Kumaon l the people burnt grass in each hill and this way information reached to Almora where grass were burnt too.  From that day, people celebrate ‘Khantduva’ festival on Ashwin Sankranti day in evening by burning grass piles.
People in night dance with following folk song –
Bhail Bhailo ji , Bhailo Khantduva
Gaida ki jeet , khntad ki har
Gaida pado shyol, khantad pado bhel
               Gaida Bisht was Kumaoni army commander who was migrated from Garhwal. Khantud Singh was a Garhwali Garhi army in charge. Gaida killed Khatad Singh. It was a very small win by Kumaoni king over Garhwal. However, the King magnified it as if he had won whole Garhwal.
        It is still a discussion point that it was a Viajyoutsav (festival of win) for Kumaoni king and people and the name of festival is on the name of Garhwali commander. It might be that initially the name would be Gaida-Khantuduva but in later stage the name Gaida name was forgotten.
Today, Bhail Bhailo is also celebrated in Garhwal on after eleventh day of Deepawali. With changed words –
Bhail Bhailo ji , Bhailo Khantduva
Gai  ki jeet , khntad ki har
Gai pado shyol, khantad pado bhel
The day was Ashwin Sankranti of 1605, when Lakshmi Chandra attacked Garhwal eighth time.

Copyright@ Bhishma Kukreti -bckukreti@gmail.com 31/10/2013

                                      References

Dr. Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas Bhag 10, Kumaon ka Itihas 1000-1790
Badri Datt Pande, 1937, Kumaon ka Itihas, Shri Almora Book Depo Almora
Devidas Kaysth, Itihas Kumaon Pradesh
Katyur ka Itihas, Pundit Ram Datt Tiwari
Oakley and Gairola, Himalayan Folklore
Atkinson, History of District Gazette
Menhadi Husain, Tuglak Dynasty
Malfujat- E Timuri
Tarikh -e-Mubarakshahi vol 4
Kumar Suresh Singh2005, People of India
Justin Marozzi, 2006, Tamerlane: Sword of Islam
Bakshsingh Nijar, 1968, Punjab under Sultans 1000-1526 
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Vishweshara nand , Bharat Bharti lekhmala
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Tareekh Badauni
Eraly Abraham, 2004 The Mogul Throne

(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
                           
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -178  
History of Kumaon (1000-1790) to be continued….
 Middle Himalayan, Indian Medieval Age History of Chand Dynasty rule in Kumaon to be continued…
  (Middle Himalayan, Indian Medieval Age History (740-1790 AD to be continued…)

Wednesday, October 30, 2013

मि तैं पहाड़ विकास का बड़ा बड़ा सुपिन दिखण द्याओ !

चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती 
      
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )
म्यार भतिजु ये आधुनिक युग मा बि  सुबेर ब्यणसरिकम बिजि जांद अर अपण सग्वड़म काम करण मिसे जांद।  
मीन सुबेर आठ बजि फोन कार त वैन मोबाइल नि उठाइ , नौ बजि बि मोबाईलै घंटी ऊनि बजणि राइ , दस बजि बि नो रिप्लाइ , अग्यारा बजि की फोन कि घंटी निरंतर बजदि गे।  चिंता  ह्वे कि कखि  गांव मा कुछ अणभर्वस त   नि ह्वे गे हो ? मीन लैंडलाइन पर फोन कार त ब्वारिन फोन उठै।  ब्वारिन बतै बल," ऊंक  बुल्युं च बल बारा बजे तक वूं  तैं क्वी नि उठैन किलैकि वूंन  आज भौत बड़ो सुपिन दिखण।"  
मि चकरै ग्यों कि अब जवान  लोग सुपिन बि अपण मर्जी से दिखण बिसे गेन ! 
खैर साढ़े बारा बजि मीन फिर से फोन कार त म्यार भतिजौन फोन उठै। 
सिवा सौंळि उपरान्त  मीन पूछ - यि   क्या च भै भौत बड़ो सुपिन ?
भतिजु  -हाँ अब मीन कसम खै याल कि जब सुलारै जरूरत होलि त मीन पूरी  कपड़ा फैक्ट्री मांगण।  
मि -हैं ?
भतिजु  -हां अर  मि तैं भूख ह्वेली द्वी रुटि कि त मीन पुरो ग्युं पुंगड़ो सुपिन दिखण। 
मि -क्या बुनि छे , कुछ बिंगणम (समजम ) नि आणु च ?
भतिजु  -हमर गां तैं स्कुलो आवश्यकता होलि त हम इन्टरनेसनल यनिवर्सिटी कि मांग करला . अर एक फुट चौड़ गुरबट की जरूरत हो त सिक्स लेन मोटर सड़क का सुपिन दिखण।  
मि -त तु आज सरा सुबेर सुपिन दिखणु रै ? 
भतिजु  -हां। 
मि -क्या क्या सुपिन द्याख ?
भतिजु  -मीन द्याख कि सरा पहाड़ी गाउँ मा बगीचा लग गेन , फूलूं बग्वान लगि गेन।  हरेक गाड  -गदनम छुटा छुटा बाँध बणि गेन अर पहाडुं  हरेक गांका पुंगडुं सिंचाई पाइप से हूणि च। सरा पहाड़ सिंचित पहाड़ ह्वे गे।   पहाड़ खुसहाल ह्वे गेन। 
मि -अच्छा ! अर गूणि बांदर -सुंगर ?
भतिजु  -वांकुण इलेक्ट्रॉनिक यंत्र लग गेन जो ख़ास अल्ट्रा साउंड  से गूणि बांदर -सुंगर भगै दीन्दन। उत्तराखंड का  पहाड़ सबसे बड़ा फल अर फूल उत्पादक ह्वे गे। हरेक ब्लॉक मा फ़ूड प्रोसेसिंग फैक्ट्री लगीं छन. 
मि -अरे वाह ! सचमुच मा बड़ो कामौ  सुपिन च !
भतिजु  -हाँ अर हरेक गां माँ अंतररास्ट्रीय स्तर का  स्कूल , कॉलेज छन जख मुम्बई , दिल्ली इ  ना न्यूआर्क , लंदन का नौन्याळ पढ़णो आन्दन। उत्तराखंड का सबि पहाडी  गाँ बिगेस्ट एज्युकेशन हब बणी गेन ।   
मि -मानण पोड़ल बल सुपिनो मा दम ख़म च कि पहाड़ों मा पारम्परिक उद्यम ना बलकणम  अंतररास्ट्रीय स्तर वळ शिक्षा जना  उद्यम लगण  चयेंदन।  
भतिजु  -अर हरेक ब्लॉक मा एक हॉस्पिटेलिटी मैनेजमेंट स्कूल च जख दुनिया भर का विद्यार्थी प्रबंध शास्त्र की शिक्षा लीणम गर्व करदो।   
मि -सचमुच मा त्यार आँख खुलि गेन भै ।
भतिजु  -हरेक गां मा रोप वे से अये -जये जांद अर अर हरेक पट्टी मा हैली पैड बणि गेन। अब हमर गां वॉल मुम्बई नि जान्दन बलकणम मुम्बै -दिल्ली वाळ शिक्षा अर नौकरी बान हमर गां आन्दन !
मि -अच्छा ! 
भतिजु  -हरेक पहाड़ी अरब पति ह्वे गे। 
मि -अरे पण यी सुपिन त पूरा ह्वे इ नि सकदन
भतिजु  -नै नै  राहुल गांधीन बोलि कि तुम खाली सुपिन द्याखो बाकी काम कॉंग्रेस कारलि। 
मि - राहुल गांधी त अचकाल अपण दादी अर बुबा जीक शहादत की  बात करद या पकिस्तान कन हमर बच्चा पकिस्तान का भकलौण मा आणा छन की ही  बात करद तो  फिर यो सुपिन ?  
भतिजु  -परसि राहुल गांधीन बुंदेलखंड वाळु तैं डांट कि "तुम लोग नीचे देखतो हो।  तुमको समज ही नही है।   तुम्हे बड़े सपने देखने चाहिए।  यदि तुम्हे रेल मार्ग चाहिए तो इंडस्ट्रियल जोन की मांग करो। छोटी मांग मत करो ! "
मि -अरे पण यदि राहुल चांदो कि बुंदेलखंड मा इंडस्ट्रियल जोन हूण चयेंद त केंद्रीय सरकार बुंदेलखंड मा सेंट्रेल इंडस्ट्रियल जोन लगै सकद , रेल मार्ग लै सकद।  इखमा जनता तैं सुपिन दिखणै जरुरत क्या च ?
भतिजु  -नै नै चूँकि उत्तर परदेश मा कॉंग्रेसी सरकार नी  च त राहुल गांधी चैका (चाहते हुए ) भी कुछ नि कौर सकुद। इलै राहुल जी बुंदेलखंड की जनता तै बुलणा छन कि जब तलक उत्तर परदेश मा कॉंग्रेसी सरकार नि आंदि तब तलक केवल सुपिन द्याखो।  
मि -ओहो ! बिचारो राहुल गांधी कथगा परेशान होलु कि चूँकि बुंदेलखंड मा कॉंग्रेसी सरकार नी  च त बुंदेलखंड को विकास नी हूणु च। 
भतिजु  -हाँ चूंकि केंद्र अर उत्तराखंड मा कॉंग्रेसी सरकार च त मि राहुल गांधी बुल्युं मानिक बड़ा-बड़ा , ऊंचा -ऊंचा सुपिन दिखणु छौं। 
मि -बंद कौर यी फोकटिया सुपिन दिखण।  ना त भाइन जनम लीण अर ना ही भाई बांठै भति खयाण। ना नौ मण तेल आयेगा और ना ही राधा नाचेगी।   क्वी माइ को लाल राहुल गांधी तैं पुछण वाळ नी च कि राजस्थान अर केंद्रम त कॉंग्रेसी सरकार छे तो फिर उख पिछ्ला पांच सालुंम कथगा नै नै इंडस्ट्रियल जोन खुलेन ?
भतिजु  -काका ! पण एक बात धौ च सुपिन दिखणम बड़ो अति सुखद आनंद आंद।   !  
मि -सन सैंतालीस बिटेन  हम नेताओं बुलण पर सुपिन देखिक ही त दिन काटणा छंवां !  

    Copyright@ Bhishma Kukreti  31 /10/2013 

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