उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Wednesday, July 31, 2013

काश ! सबि लोग सौणौ (सावन ) मैना मनांदा !

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथकवादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          
चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती 

  काश ! सबि मैना सौणा मैना हूंदा अर सबि मनिख  सौणा मैना तैं पवितर मैना माणदा तो कथगा भलु हूंद। हम सबि जानवर खुदा से प्रार्थना करदां बल हे इश्वर यूँ मिनखों तैं सद्यन्यौ कुण  निमश्या बणै दे I
              अचकाल हमर जातिक कुखुड़ जंगळु मा फर्र फर्र उड़ना छन सर्र सर्र इना उना घुमणा छन , निथर इन हौर मैनों मा नि हूंद। हौरि मैना हम पंछी शिकर्या जनवरों से उथगा नि डरणा रौंदा जथगा अयेड़िबाजों से डरदां।

           चकोर, बटेर , तीतर अचकाल सौणा मैनाम खूब चक चक करदा दिख्यांदन। बेख़ौफ़ उड़णा रौंदन  अर दगड़म ईं  गजल बि गाणा  रौंदन -
 हे अकास ! हम त्यार भगबान से नि डरदां
पण हे जमीन त्यार मनिखों से जरूर डरदां            
  
        सि द्याखदि सि सौलु अचकाल सौणम कनो अपण सौलकुंड अळगै घमंड से निर्बिघन, निश्चिन्त, निर्बाध, निसफिकर  घुमणु च तै तैं बि पता च सौणौ मैना मा हिंदु लोख सौल त जाणि द्यावो मुर्ग्युं -बतखों अंडा बि नि खांदन। निथर हौरि मैना बिचारो हम कुखड़ु तरां मनिखों से भयभीत,डर्युं रौंद कि कुज्याण कब स्यु मनिख आलो अर सौलदुंऴयुं पुटुक आड़ लगै द्यालो। अजकाल सौणम   हिंदु मनिखों निर्माशी होण से सौल स्वतन्त्रता गीत गांदो, आजादी -गजल गांदो, निडरता क नज्म पढ़दो। निथर हौरि मैनों मा सौल अचांणचक मनिखों द्वारा मर्यां पुर्खों बान हंत्या गीत गाणु रौंद बिचारो। अर हर समय ये शेर तैं पढ़णु रौंद -

  खौफजदा , जिन्दगी है वक्त से
 
सौलदुंऴयुं में अपने को छुपाये जाए हैं  
         
 अहा सौणौ मैनाक घ्वीड़ - काखड़ू   कुलांच, कुलांट ,चौकड़ी, उछाल
, छलांग दिखण लैक हूंद। घ्वीड़ - काखड़ बि जाणदा छन बल हिंदु ये मैना शाकाहारी ह्वे जांदो तो यी जानवर निर्द्वंद छ्लांग मारणा रौंदन निथर मनुष्यों मनखियत पर घ्वीड़ -काखड़ शेर गाणा रौंदन बल -

मनिखम सब कुछ च
बस  मनिख्यात ही नी च

  जब बि हम कुखुड़ कै होटलो बोर्डम दिखदा छ - "द्याखो हम तै कखि बि  पण खावो हम तै इखि या सी मी ऐनी व्हेर, ईट मी हियर" तो हम कुखडु या बखरों या माछों जिकुड़ि म हर्र ह्वे जांद पण सौणा मैना मा कुछ लोग आदमियत पर ऐ जांदन अर हम बी कुछ घड़ी ही सही बिश्वास मा ऐ जांदवां कि सैत च आदिम अंतोगत्वा अहिंसावादी ह्वे जालो। मांशाहार मनिखो कुण प्राकृतिक रूप से ताज्य च I हौर मैना मा जब मनिख हमर बोटि, रान, कळेजी, लुतकी मजा से खांद तो हम मोरद दै ये गीत गांदा -

गर नही हुब्बे वतन दिल में तो ईमान नही
जो  मुझे निगल रहा वो हैवान है इंसान नही   
  
हौरि मैना आदिम गम मा ह्वावो या ख़ुशी मा ह्वावो  वो शराब पीणों बहाना खुजे लींदो अर शराब को दगड़ मीट-मच्छी पैल खुज्यांद अर तब हमर हडकी -लुतकी से या आवाज आंदी -

यह क्या मुंसिफी है कि  महफिल में तेरी
किसी का भी हो जुर्म , पायें सजा हम

जब बि मनिख हम तै कटणो बान खुखरी -चकू लेक हमर नजीक आंदो त हम तैं या कविता याद आंदी -
तंग होती जा रही है लमहा लमहा जिन्दगी
क्यूँ न आखिर हम करें दुनिया -ए -सानी की तलाश

  हम जानवरों पर 
मनिखोंकी बर्बरता , अत्याचार , हिंसक वृति देखिक यो शेर याद आंद
ये दुनिया जो सितमजारे -जुनूँने -बर्बरीयत है
ये दुनिया देखने में किस कदर मासूम जन्नत है

 मांशाहारी  मैनों मा हम जनावर,  हम पर मनिखों जुलम का बारा मा ये गीत गाणा रौंदा -
अल्लाहरे , फरेबे -मशीयत कि आज तक
मनुष्यों के जुल्म सहते रहे खामूशी से हम

अर जब मनुष्य हम तै प्रकृति विरुद्ध काटदो त हम मोरद दै इन बुलदां -
मौत कु इलाज होलु सैत
पण मनिखों हिंसक वृति बेइलाज च

उन त हम जब बिटेन मनिख आई तब बिटेन परमेश्वर से करणा हि रौंदा बल ये मनुष्य तै मनुष्य त बणाइ पण हिंसक किलै बणाइ ? ये मनिखम  ना त मांशाहारी  दांत छन अर ना ही मांश पचाणो अंदड़ -पिंदड़ फिर बि यु मनिख मांशाहारी किलै ह्वाइ ?

Copyright @
 Bhishma Kukreti  1/8/2013  

 
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...] 

Chhuma Meri re …: Asian folk Song Criticizing Educated person acting against Social Norms

Oriental/Asian Folk Song and Folk Literature from Ravain/Rawaeen, Yamuna-Tons Valley Region, Uttarkashi, Dehradun, Garhwal -51 

  रवांइउत्तरकाशीदेहरादून गढ़वाल क्षेत्र  के  प्रचलित   लोक गीत- 51    

    Translation, Interpretation by: Bhishma Kukreti

                   The Asian folk Song from Ravain, Garhwal (India) ‘Chhuma Meri re …’ is about an educated women having children choose to go with other man. The song does not raise question for leaving children and opting for another man. However, the Asian folk song criticizes the educated person who is expected to protect the social norms is acting against social norms.

               छुमा मेरी ये …. 


(सन्दर्भ:-  विजयपाल रावत , चिट्ठी पत्री पत्रिका,  ओक्टोबर 2003)
इंटरनेट प्रस्तुति  एवं अतिरिक्त व्याखा - भीष्म कुकरेती )

पाणि भौरि कुई रे ओरु देखि जातीरा
मुई देखि तुई रे छुमा मेरी ये ….
दौड़ि काटा घासा रे तेरी पीणी सिगरेटा
आजा मेरा पासा रे छुमा मेरी ये ….
लसुणा  की क्यारी रे देखनारि छोटी मोटी
जिया लगी प्यारी रे छुमा मेरी ये ….
खौंजरी की ताली रे किंदा गैइ  छुमा मेरी
बाल बच्चों वाली रे छुमा मेरी ये ….
तेलु की कड़ाई रे किंदा गैइ छुमा तेरि
इतौरि पौढाई रे छुमा मेरी ये ….

Copyright Interpretation, @ Bhishma Kukreti 30/7/2013 

Oriental/Asian Folk Literature from Ravain/Rawaeen, Yamuna-Tons Valley Region, Uttarkashi, Dehradun, Garhwal to be continued …52 
( रवांइ क्षेत्र के जागर, लोक गीत ; हर की दून, रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के जागर, लोक गीत ; जानकी चट्टी, रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के जागर, लोक गीत ; फुल चट्टी , रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र केजागर, लोक गीत ; मोरी रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के जागर, लोक गीत ; पुजेली , रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के  जागर, लोक गीत ; पुरोला , रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के जागर, लोक गीत ; बनाल पट्टी ,रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के जागर, लोक गीत ; रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के जागर, लोक गीत ; राढ़ी डांडा,  रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के   जागर, लोक गीत ; यमुनोत्री , रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र जागर, लोक गीत ; हनुमान चट्टी , रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के जागर, लोक गीत ; खरसाली रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के रंवाल्टी  भाषा जागर, लोक गीत ; गंगनाणी ,  रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के  जागर, लोक गीत ; बडकोट , रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के जागर, लोक गीत ; नौगाँव , रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के   भाषाजागर, लोक गीत ; आराकोट , रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के   जागर, लोक गीत ; जर्मोला धार रवांइ -उत्तरकाशी क्षेत्र के  जागर, लोक गीत ;लाखामंडल,  रवांइ -देहरादून  क्षेत्र के जागर, लोक गीत ;चकरौता  रवांइ -देहरादून  क्षेत्र के रंवाल्टी  भाषा जागर, लोक गीत ;अनहोल रवांइ -देहरादून  क्षेत्र के  भाषा जागर, लोक गीत ; त्यूणी  रवांइ -देहरादून  क्षेत्र के  जागर, लोक गीत श्रृखला जारी)
Xx           xxx
Notes on Asian folk Song Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from Har ki dun , Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from janki Chatti  , Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from hanuman Chatti  , Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from  Ful Chatti , Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from Banal patti  , Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from Radhi danda  , Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from Yamunotri  , Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from Tones valley , Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from Kharsali, Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from Arakot  , Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from Barkot, Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from Anhol, Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from Naugaon, Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from Chakrata, Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from Purola, Garhwal Criticizing Educated person acting against Social Norms; Asian folk Song from Tyuni , Garhwal Criticizing Educated person acting against Social

Riti Basanta: Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry example

Folk Songs from Kumaon-Garhwal, Haridwar, Uttarakhand (India)-307 


(Asian, Himalayan Folk Song/Traditional Folktales/ Conventional Sayings Series)
                 कुमाऊं, गढ़वाल ,हरिद्वार के  लोक गीत  -307 


                                      By: Bhishma Kukreti

  The traditional poem Ritu Basanta illustrates the images of Spring of Garhwal when there is Rhododendron blossom, Kafal /Kaphal (Bay-Berry, Box Myrtle, Myrica nagi) fruits are ripped.  The Traditional poem also sends message for migrated fellows to return their mother land.   
  The Chakor bird, Bees are taken as symbol in this symbolic and imagery traditional poetry for reverse migration from plains to hills of Garhwal.  

ऋतु  बसंता का  धोरा 



(संकलन ; उषा देवी नेगी  और प्रीतम  अपछ्यांण ,  सन्दर्भचिट्ठी पत्री  2003 )
(इंटरनेट प्रस्तुती  व्याख्या - भीष्म कुकरेती ) 

हरभरा का बुरांश लाल काफुळुन् की डाळी
कन खाला दीदी भूली लूण मा राळि राळी
डांडों मा गीत लगौंणा  गोरुं  का ग्वेर छोरा
 जा भैरों तु घौरा   ऋतु  बसंता का  धोरा I
टुप टुप गळीगे डांडा कांठौ  छोड़िगे
मौळी ऐगे मौऴयार फूल रंगीला फूलिगे
टकटकी सि हेरदा रात रातूं चकोरा
 जा भौंरा तु घौरा ऋतु  बसंता का  धोरा  

Copyright (Interpretation) @ Bhishma Kukretibckukreti@gmail.com 31/7/2013
Folk Songs from Kumaon-Garhwal-Haridwar (Uttarakhand) to be continued…308 
                   
                                  Curtsey and references

Dr. Krishna Nand Joshi, Kumaon ka Lok Sahitya (Folklore texts of Kumaon)
 Dr Trilochan Pandey, Kumaoni Bhasha aur Uska Sahity(Folklore literature of Kumaon )
Dr Shiva Nand Nautiyal, Garhwal ke Lok Nrityageet  (Folk Songs and Folk dances of Garhwal )
Dr Govind Chatak, Garhwali Lokgathayen (Folklore of Garhwali)
Dr. Govind Chatak, Kumaoni Lokgathayen (Folklore of Kumaoni)
Dr Urvi Datt Upadhyaya, Kumaon ki Lokgathaon ka Sahityik Adhyayan (Literary review of Folklore of Kumaon)
Dr. Dip Chand Chaudhri, 1995, Askot ka Palvansh , Gumani Shodhkendra, Uprada, Gangalighat
Dr. Prayag Joshi, Kumaon Garhwal ki Lokgathaon ka Vivechnatmak Adhyayan (Critical Review of Folklore of Kumaon and Garhwal)
Dr Dinesh Chandra Baluni, Uttarakhand ki Lokgathayen (Folklore of Uttarakhand)
Dr Jagdish (Jaggu) Naudiyal, Uttarakhand ki Sanskritik Dharohar, (Partially Folklore of Ravain) 
Ramesh Matiyani ‘Shailesh’ 1959, Kumaun ki Lok Gathayen
Abodh Bandhu Bahuguna, Dhunyal (Folklore and Folk Songs of Garhwal)
Shambhu Prasad Bahuguna, Virat Hriday
Kusum Budhwar, 2010, Where Gods Dwell: Central Himalayan Folktales and Legends 
C.M. Agarwal , Golu Devta, 1992, The God of Justice of Kumaon Himalayas
N.D .Paliwal, 1987, Kumaoni Lok Geet
E.S. Oakley and Tara Datt Gairola 1935, Himalayan Folklore
M.R.Anand, 2009, Understanding the Socio Cultural experiences of Pahadi folks: Jagar Gathas of Kumaon and Garhwal
Dr. Pradeep Saklani, 2008, Ethno archeology of Yamuna Valley
Shiv Narayan Singh Bisht, 1928, Gadhu Sumyal, Banghat , Pauri Garhwal
Anjali Kapila (2004), Traditional health Practices of Kumaoni women
Bhishma Kukreti, Garhwali Lok Natkon ke Mukhy Tatva va Vivechana
Helle Primdahi, 1994, Central Himalayan Folklore: folk Songs in Rituals of the Life Cycle
Hemant Kumar Shukla, D.R. Purohit, 2012, Theories and Practices of Hurkiya Theater in Uttarakhand, Language in India Vol.12:5: 2012 Page 143- 150
Dev Singh Pokhariya, 1996, Kumauni Jagar Kathayen aur Lokgathayen
Madan Chand Bhatt, 2002, Kumaun ki Jagar Kathayen 
Bhishma Kukreti, Garhwal ki Lok Kathayen, Alaknanda Prakashan
Bhishma Kukreti, Notes on History, Folk Literature of Haridwar
Khima Nand Sharma, Veer Balak Haru Heet, Kumauni Sahitya Sadan, Delhi, 1980.
*Dr Shiv Prasad Naithani, 2011, Uttrakhand Lok Sanskriti aur Sahitya, Udgata, page 119-126
Xx                        xxx
उत्तराखंड से  लोक गीत , दुसांत से   गीतचमोली  गढ़वाल से  लोक गीत ;गदकोत चमोली गढ़वाल से  लोक गीत ;रुद्रप्रयाग गढ़वाल से  लोक गीत ; पौड़ी गढ़वाल से  लोक गीत ; टिहरी गढ़वाल से  लोक गीत ;उत्तरकाशी गढ़वाल से  लोकगीत ;केदार उत्यपका गढ़वाल से  लोक गीत ; बद्रीनाथ घाटी गढ़वाल से  लोक गीत ; लैंसडाउन गढ़वाल से  लोक गीत ;कोटद्वार गढ़वाल से  लोक गीत ;नरेंद्र नगर गढ़वाल से  लोक गीत ;प्रताप नगर गढ़वाल से  लोक गीत ; गौचर गढ़वाल से लोक गीत ; पुरोला गढ़वाल से  लोक गीत ; राठ  क्षेत्र गढ़वाल से  लोक गीत ; गैरसैण  गढ़वाल से  लोक गीत ; दूधातोलीगढ़वाल से  लोक गीत  श्रृंखला जारी ..
Xx        xxx
Notes on Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Chamoli Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Badrinath valley Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Rudraprayag Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Alaknanda valley Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Tehri Garhwal ; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Badhan Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Pindarwar Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Bhagirathi valley Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Bhilangana Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Yamuna valley Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Uttarkashi Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Dehradun Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Hinval valley Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Nayar valley Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Malini Valley Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Lansdowne Garhwal; Imagery and Symbolism in Asian (Garhwali) Traditional Poetry from Pauri Garhwal

Tuesday, July 30, 2013

Early Medieval Asian Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur

History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon, Haridwar) - Part 112

   Early Medieval   Asian History of Katyuri Imperialism of Kartikeypur in Kumaon, Garhwal and Haridwar (Uttarakhand, India) -23

          (Early Asian Medieval History of Garhwal, Kumaon, Haridwar, Doti Nepal (Uttarakhand, India))
                          (Early Asian Medieval History (740-1100 AD)

                                              ByBhishma Kukreti


                        Powerful defense mechanism of Katyuri Kingdom of Asian Early Medieval Period

                   The Katyuri kings were famous for their large armed forces.  Defense mechanism of Katyuri Kings Kartikeypur (early medieval period) was superior in contemporary competition. These kings defended their territories for two and half centuries. The Khajuraho inscription states that the Chandel King Harsh was pleased by powerful contemporary Khasa King. The Katyuri Kings were able to defense their vulnerable borders due to powerful strategic defensive methods only.

                              Four Army Battalions Katyuri Kingdom of Asian Early Medieval Period
 The army of Katyuri of Kartikeypur (early medieval period) had main four army divisions
Padatik Army - The infantry was called Padatik.
Cavalry   Army- The cavalry armed force was called Ashwarohi Bal and the Army in charge of cavalry was called Ashwabaladhikrit.

War Elephant Army: The war elephant army was named as ‘Hasti bala’. The in charge for war elephant army was positioned as Hastibaladhikrit.

War Camel Cavalry and Artillery (Army) - The name for war camel army was Ustrabal. The war camel army in charge was called ‘Ustrabaladhikrit’.

In Charge of Three cavalries- The in charge of war horse army; war elephant army; war camel army was called ‘Hastyashoshtrabaladhikrit’.
  The elephant and camel armed forces show that Katyuri kings had rule over not only plains of Uttarakhand but in today’s western part of Uttar Pradesh or the Katyuri kings had powerful dense  mechanism against kingdoms of Indian plains
 The King was supreme of all armed force and the Kings used to lead the war. The Laitshur and Subhikshraj inscriptions suggest that Ishtagandev beheaded elephants of enemies.  

                Border Defense Mechanism in Katyuri Kingdom of Kartikeypur
  
            The Katyuri Kings of early medieval period were very much aware about border defense mechanism as Chadra Gupta Maurya (lalitshur inscription).

Prantpal- The Border defense in charge was called Prantpal or Border Security in charge.

Ghattpal- The security in charge of Mountain Passes of border region was called Ghattpal.

Vartampal- The Border Road Security in charge was called Vartampal.

Tarpati-  The security and tax officer for river crossing  and security was called Tarpati. All these security personnel were keeping eyes on unwanted and spies of other kingdoms and rebellions.

                     Police Force in Katyuri Kingdom of Kartikeypur (Early Medieval Period)

              The Katyuri Kings of Kartikeypur or of early Medieval Age were cautious for internal security too. There was separate department for internal security.
Dandik or Khangik – These police officers were to protect the state and public or people’s properties.

Doshparadhik- These officers were for capturing the criminals.

Dusadhyasadhanik _ This officer was in charge of officers those were engaged in researches on conspiracies in the kingdom. Spying and stopping spying into kingdom were the job of this department.

Chorodharanik- Chorodharanik used capture thieves and dacoits.

Dandpashik, Mahadandnayak and Dandnayak- Officers Mahadandnayak and Dandnayak were high level police officers for internal security. There were strong rules for punishing criminals those oppress the citizens.

                Security for Tourists in Katyuri Kingdom of Kartikeypur (Early Medieval Period)

          There were necessary internal security management for protecting citizens and tourists.
           The inflow of pilgrim tourists in Uttarakhand was more and the government used to manage their securities.


                          Facilities for Tourists in Katyuri Kingdom of Kartikeypur (Early Medieval Period)


           It is obvious that tourism was one of the major sources of income in Katyuri Kingdom of Kartikeypur period.
  There were shelter houses for tourists and on the road the government arranged for drinking water (Pyau).




Copyright@ Bhishma Kukreti -bckukreti@gmail.com 31/7/2013

(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
                           
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand) to be continued… Part -113
Early Asian Medieval History of Katyuri Dynasty in Kumaon, Garhwal and Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued…24
        (Oriental Early Medieval History (740-1100 AD to be continued…)

                                        References
A1- Agrawal, D.P., J.S Kharkwal, 1998, Central Himalayas: an archeological, linguistic and cultural synthesis 
1-Atkinson, E.T. 1974 (new edition), 1974, Kumaon Hills
1A- Adhikari, Suryamani, 1997, The Khasa Kingdom
1B- Chandola, Khemanand, 1987, Across Himalayas through Ages: a study of relations between central Himalayas and western Tibet
2--Chaurasiya, Radhey Shyam, 2002, History of Ancient India: Earliest time to 1000AD
3--Dabral, Shiv Prasad , 1968, Uttarakhand ka Itihas, Bhag-3 Pages 429-513)
3A- Elliot and Dowson, History of Indian (2nd part)
4--Handa, O.C. 2002, history of Uttaranchal, Indus Publishing Company, New Delhi 27, page 22-44
4A- Joshi, M.C., 1990, Uttaranchal (Kumaon-Garhwal) Himalaya: an essay in historical anthropology 
5-Linrothe, Rob, 1999, Ruthless Compassion: Wrathful Deities in Early Indo Tibetan Esoteric Buddhist Art
6-Mishra, Nityanand, Source Materials of Kumaon History 
7-Mishra Baldev Prasad, Nepal ka Itihas
8- Pandey, B.D, 1937, new edition (1990), Kumaon ka Itihas
9- Pandey, Ram Niwas, 1997, Making of Modern Nepal, page 170
10-Rawat, Ajay S., 19 Garhwal Himalayas: A Study in Historical Perspective 
11-Satyankritan, Rahul, Garhwal
11A-Saklani, Dinesh Prasad, 1998, Ancient Communities of The Himalayas
11B- Tripathi, Ramdatt , Katyur ka Itihas
 12-Notes on Archeological Aspects of Uttarakhand: ascidehraduncircle.in/uttrakhand.html
13-Indian Archeology: A review, (edited by D. Mitra) 1979-80
14- Epigraphia  Indica 1982, Vol. XIII

Xxx                              xx
Notes on Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Chamoli Garhwal; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Rudraprayag Garhwal; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Tehri Garhwal;  Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Uttarkashi Garhwal; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Pauri Garhwal; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Dehradun Garhwal; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Haridwar; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Doti Nepal; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Pithoragarh Kumaon ; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Dwarhat Kumaon ; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Bageshwar  Kumaon ; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Champawat Kumaon ; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Almora  Kumaon ; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Nainital Kumaon ; Asian Early Medieval Historical Features of Defense, Army, Police, Border Defense in Katyuri Imperialism of Kartikeyapur in Udham Singh Nagar Kumaon 

क्या तुम फेसबुकौ नसेड़ी छंवाँ ?

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          
चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती 

  भौतुं कुण फेसबुक आज एक जीवनौ अभिन्न अंग ह्वे गे I  फेसबुक नशा ह्वे गे I जु  तुम जणण चांदा कि फेसबुकौ नशेड़ी छंवाँ कि तो द्याखो फेसबुक का नशेण्यू ख़ास गुण -चरेतर इन छन -
१- जु  तुमन अपण कम्प्यूटर मा फेसबुक होमपेज च तो समजि ल्यावो तुम फेसबुकौ आदि ह्वे गेवां।
२-यदि तुम टॉप न्यूज अर रीसेंट न्यूज मा  अंतर जाणदवाँ तो शर्तिया तुम फेसबुक का ब्यसनी छंवा 
३-जु तुम विश्वास करदां कि फेस बुक दगड्या -दगड्याँणि  बणाणो नायाब माध्यम च इखमा द्वी राय नि ह्वे सकद बल तुम फेसबुक पर आसक्त छंवाँ। 
४-जु तुम बार बार अपण स्मार्ट फोन पर फेसबुक अपडेट दिखणा रौंदा तो कै तै पुछणै जरुरत नी च बल तुम फेसबुक पर मुग्ध छंवाँ  
५-यदि तुम घड़्याँदा - सुचदा बल  5000 दोस्त बि कम होंदन तो तुम अवश्य ही फेस्बोक का रोगी छंवाँ I 
६-जु तुम अपण पोस्ट पर  अफिक 'लाइक ' करण गीजि गेवाँ तो तुम फेसबुक का गिज्याँ मनिख छंवाँ I 
७-जु तुम अपण ब्लौग तैं फेसबुक मा पोस्ट करदां तो यकीनन तुम फेसबुकौ गुलाम अभ्यस्त  छंवाँ I  
८-यदि तुम तैं प्रोफाइल पेज अर फेस बुक पेज  पता च त सचमुच मा तुम फेसबुक का ब्यसनी ह्वे गेवां I  
९-जब तुमार दगड़्या टैग नि करद अर तुम तै बुरु लगद तो तुम फेसबुकौ नशाखोर ह्वे गेवाँ I  
१०- यदि कैन तुम तैं अधिक पोस्टिंग का कारण अपण फ्रेंडलिस्ट से भैर कौरि आल तो शर्तिया तुम फेसबुक का अभ्यस्त , नशेबाज छंवां  I  
११-यदि तुमर मान्यता च बल फेस बुकौ दोस्त असली दोस्त छन तो तुम फेसबुक का व्यसनबाज छंवां I  
१२-जब तुम इन बुलण गीजि गेवां कि -"ठैर मि अबि फेसबुक मा छौं " त मानी ल्यावो कि तुम फेसबुक का नसेड़ी छा I  
१३-यदि तुम खांद दें बि इन समजदा कि तुम फेसबुक मा छंवाँ तो अवश्य ही तुम फेसबुक का गुलाम ह्वे गेवां I  
१४-यदि फेसबुक का कारण तुम ऑफिस देर से जाँदा तो तुम फेसबुक का असक्त भक्त छंवाँ  I  
१५- यदि तुम अपण खाणकौ फोटो फेस बुक माँ पोस्ट करदां तो फिर तुम फेसबुकौ लतखोर , नशेडी छंवाँ I  
१६- जु तुम दिन माँ आठ दस दै फेसबुक अपडेट बदलणा रौंदा तो डाक्टरम जाणै जरुरत नि च तुम फेसबुक का कुटैब का रोगी छंवाँ  I  
१७-जू तुम फेसबुक मा 'पोक ' करण अर ''प़ोक ' कराण जाणदा  छा तो शत प्रतिशत तुम फेस बुक का बीमार आदतन नशेड़ी छंवाँ I  
१८ -जु जो बि  ल्याख वो तुमारि समज मा ऐ ग्यायी त शर्तिया तुम फेसबुक का नशेबाज, अभ्यस्त  ह्वे गेवां I 


Copyright @ क्यांक ? किलै ? कैकुण ? 

 
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]