[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी के जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के पृथकवादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले के भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]
चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती
काश ! सबि मैना सौणा मैना हूंदा अर सबि मनिख सौणा मैना तैं पवितर मैना माणदा तो कथगा भलु हूंद। हम सबि जानवर खुदा से प्रार्थना करदां बल हे इश्वर यूँ मिनखों तैं सद्यन्यौ कुण निमश्या बणै दे I
अचकाल हमर जातिक कुखुड़ जंगळु मा फर्र फर्र उड़ना छन सर्र सर्र इना उना घुमणा छन , निथर इन हौर मैनों मा नि हूंद। हौरि मैना हम पंछी शिकर्या जनवरों से उथगा नि डरणा रौंदा जथगा अयेड़िबाजों से डरदां।
चकोर, बटेर , तीतर अचकाल सौणा मैनाम खूब चक चक करदा दिख्यांदन। बेख़ौफ़ उड़णा रौंदन अर दगड़म ईं गजल बि गाणा रौंदन -
हे अकास ! हम त्यार भगबान से नि डरदां
पण हे जमीन त्यार मनिखों से जरूर डरदां
सि द्याखदि सि सौलु अचकाल सौणम कनो अपण सौलकुंड अळगै घमंड से निर्बिघन, निश्चिन्त, निर्बाध, निसफिकर घुमणु च तै तैं बि पता च सौणौ मैना मा हिंदु लोख सौल त जाणि द्यावो मुर्ग्युं -बतखों अंडा बि नि खांदन। निथर हौरि मैना बिचारो हम कुखड़ु तरां मनिखों से भयभीत,डर्युं रौंद कि कुज्याण कब स्यु मनिख आलो अर सौलदुंऴयुं पुटुक आड़ लगै द्यालो। अजकाल सौणम हिंदु मनिखों निर्माशी होण से सौल स्वतन्त्रता गीत गांदो, आजादी -गजल गांदो, निडरता क नज्म पढ़दो। निथर हौरि मैनों मा सौल अचांणचक मनिखों द्वारा मर्यां पुर्खों बान हंत्या गीत गाणु रौंद बिचारो। अर हर समय ये शेर तैं पढ़णु रौंद -
खौफजदा , जिन्दगी है वक्त से
सौलदुंऴयुं में अपने को छुपाये जाए हैं
अहा सौणौ मैनाक घ्वीड़ - काखड़ू कुलांच, कुलांट ,चौकड़ी, उछाल, छलांग दिखण लैक हूंद। घ्वीड़ - काखड़ बि जाणदा छन बल हिंदु ये मैना शाकाहारी ह्वे जांदो तो यी जानवर निर्द्वंद छ्लांग मारणा रौंदन निथर मनुष्यों मनखियत पर घ्वीड़ -काखड़ शेर गाणा रौंदन बल -
मनिखम सब कुछ च
बस मनिख्यात ही नी च
जब बि हम कुखुड़ कै होटलो बोर्डम दिखदा छ - "द्याखो हम तै कखि बि पण खावो हम तै इखि या सी मी ऐनी व्हेर, ईट मी हियर" तो हम कुखडु या बखरों या माछों जिकुड़ि म हर्र ह्वे जांद पण सौणा मैना मा कुछ लोग आदमियत पर ऐ जांदन अर हम बी कुछ घड़ी ही सही बिश्वास मा ऐ जांदवां कि सैत च आदिम अंतोगत्वा अहिंसावादी ह्वे जालो। मांशाहार मनिखो कुण प्राकृतिक रूप से ताज्य च I हौर मैना मा जब मनिख हमर बोटि, रान, कळेजी, लुतकी मजा से खांद तो हम मोरद दै ये गीत गांदा -
गर नही हुब्बे वतन दिल में तो ईमान नही
जो मुझे निगल रहा वो हैवान है इंसान नही
हौरि मैना आदिम गम मा ह्वावो या ख़ुशी मा ह्वावो वो शराब पीणों बहाना खुजे लींदो अर शराब को दगड़ मीट-मच्छी पैल खुज्यांद अर तब हमर हडकी -लुतकी से या आवाज आंदी -
यह क्या मुंसिफी है कि महफिल में तेरी
किसी का भी हो जुर्म , पायें सजा हम
जब बि मनिख हम तै कटणो बान खुखरी -चकू लेक हमर नजीक आंदो त हम तैं या कविता याद आंदी -
तंग होती जा रही है लमहा लमहा जिन्दगी
क्यूँ न आखिर हम करें दुनिया -ए -सानी की तलाश
हम जानवरों पर मनिखोंकी बर्बरता , अत्याचार , हिंसक वृति देखिक यो शेर याद आंद
ये दुनिया जो सितमजारे -जुनूँने -बर्बरीयत है
ये दुनिया देखने में किस कदर मासूम जन्नत है
मांशाहारी मैनों मा हम जनावर, हम पर मनिखों जुलम का बारा मा ये गीत गाणा रौंदा -
अल्लाहरे , फरेबे -मशीयत कि आज तक
मनुष्यों के जुल्म सहते रहे खामूशी से हम
अर जब मनुष्य हम तै प्रकृति विरुद्ध काटदो त हम मोरद दै इन बुलदां -
मौत कु इलाज होलु सैत
पण मनिखों हिंसक वृति बेइलाज च
उन त हम जब बिटेन मनिख आई तब बिटेन परमेश्वर से करणा हि रौंदा बल ये मनुष्य तै मनुष्य त बणाइ पण हिंसक किलै बणाइ ? ये मनिखम ना त मांशाहारी दांत छन अर ना ही मांश पचाणो अंदड़ -पिंदड़ फिर बि यु मनिख मांशाहारी किलै ह्वाइ ?
Copyright @ Bhishma Kukreti 1/8/2013
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी के जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले के भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]
चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती
काश ! सबि मैना सौणा मैना हूंदा अर सबि मनिख सौणा मैना तैं पवितर मैना माणदा तो कथगा भलु हूंद। हम सबि जानवर खुदा से प्रार्थना करदां बल हे इश्वर यूँ मिनखों तैं सद्यन्यौ कुण निमश्या बणै दे I
अचकाल हमर जातिक कुखुड़ जंगळु मा फर्र फर्र उड़ना छन सर्र सर्र इना उना घुमणा छन , निथर इन हौर मैनों मा नि हूंद। हौरि मैना हम पंछी शिकर्या जनवरों से उथगा नि डरणा रौंदा जथगा अयेड़िबाजों से डरदां।
चकोर, बटेर , तीतर अचकाल सौणा मैनाम खूब चक चक करदा दिख्यांदन। बेख़ौफ़ उड़णा रौंदन अर दगड़म ईं गजल बि गाणा रौंदन -
हे अकास ! हम त्यार भगबान से नि डरदां
पण हे जमीन त्यार मनिखों से जरूर डरदां
सि द्याखदि सि सौलु अचकाल सौणम कनो अपण सौलकुंड अळगै घमंड से निर्बिघन, निश्चिन्त, निर्बाध, निसफिकर घुमणु च तै तैं बि पता च सौणौ मैना मा हिंदु लोख सौल त जाणि द्यावो मुर्ग्युं -बतखों अंडा बि नि खांदन। निथर हौरि मैना बिचारो हम कुखड़ु तरां मनिखों से भयभीत,डर्युं रौंद कि कुज्याण कब स्यु मनिख आलो अर सौलदुंऴयुं पुटुक आड़ लगै द्यालो। अजकाल सौणम हिंदु मनिखों निर्माशी होण से सौल स्वतन्त्रता गीत गांदो, आजादी -गजल गांदो, निडरता क नज्म पढ़दो। निथर हौरि मैनों मा सौल अचांणचक मनिखों द्वारा मर्यां पुर्खों बान हंत्या गीत गाणु रौंद बिचारो। अर हर समय ये शेर तैं पढ़णु रौंद -
खौफजदा , जिन्दगी है वक्त से
सौलदुंऴयुं में अपने को छुपाये जाए हैं
अहा सौणौ मैनाक घ्वीड़ - काखड़ू कुलांच, कुलांट ,चौकड़ी, उछाल, छलांग दिखण लैक हूंद। घ्वीड़ - काखड़ बि जाणदा छन बल हिंदु ये मैना शाकाहारी ह्वे जांदो तो यी जानवर निर्द्वंद छ्लांग मारणा रौंदन निथर मनुष्यों मनखियत पर घ्वीड़ -काखड़ शेर गाणा रौंदन बल -
मनिखम सब कुछ च
बस मनिख्यात ही नी च
जब बि हम कुखुड़ कै होटलो बोर्डम दिखदा छ - "द्याखो हम तै कखि बि पण खावो हम तै इखि या सी मी ऐनी व्हेर, ईट मी हियर" तो हम कुखडु या बखरों या माछों जिकुड़ि म हर्र ह्वे जांद पण सौणा मैना मा कुछ लोग आदमियत पर ऐ जांदन अर हम बी कुछ घड़ी ही सही बिश्वास मा ऐ जांदवां कि सैत च आदिम अंतोगत्वा अहिंसावादी ह्वे जालो। मांशाहार मनिखो कुण प्राकृतिक रूप से ताज्य च I हौर मैना मा जब मनिख हमर बोटि, रान, कळेजी, लुतकी मजा से खांद तो हम मोरद दै ये गीत गांदा -
गर नही हुब्बे वतन दिल में तो ईमान नही
जो मुझे निगल रहा वो हैवान है इंसान नही
हौरि मैना आदिम गम मा ह्वावो या ख़ुशी मा ह्वावो वो शराब पीणों बहाना खुजे लींदो अर शराब को दगड़ मीट-मच्छी पैल खुज्यांद अर तब हमर हडकी -लुतकी से या आवाज आंदी -
यह क्या मुंसिफी है कि महफिल में तेरी
किसी का भी हो जुर्म , पायें सजा हम
जब बि मनिख हम तै कटणो बान खुखरी -चकू लेक हमर नजीक आंदो त हम तैं या कविता याद आंदी -
तंग होती जा रही है लमहा लमहा जिन्दगी
क्यूँ न आखिर हम करें दुनिया -ए -सानी की तलाश
हम जानवरों पर मनिखोंकी बर्बरता , अत्याचार , हिंसक वृति देखिक यो शेर याद आंद
ये दुनिया जो सितमजारे -जुनूँने -बर्बरीयत है
ये दुनिया देखने में किस कदर मासूम जन्नत है
मांशाहारी मैनों मा हम जनावर, हम पर मनिखों जुलम का बारा मा ये गीत गाणा रौंदा -
अल्लाहरे , फरेबे -मशीयत कि आज तक
मनुष्यों के जुल्म सहते रहे खामूशी से हम
अर जब मनुष्य हम तै प्रकृति विरुद्ध काटदो त हम मोरद दै इन बुलदां -
मौत कु इलाज होलु सैत
पण मनिखों हिंसक वृति बेइलाज च
उन त हम जब बिटेन मनिख आई तब बिटेन परमेश्वर से करणा हि रौंदा बल ये मनुष्य तै मनुष्य त बणाइ पण हिंसक किलै बणाइ ? ये मनिखम ना त मांशाहारी दांत छन अर ना ही मांश पचाणो अंदड़ -पिंदड़ फिर बि यु मनिख मांशाहारी किलै ह्वाइ ?
Copyright @ Bhishma Kukreti 1/8/2013
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी के जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण वाले के भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]