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Thursday, August 30, 2012

संसद क्या च ?


गढ़वाली हास्य व्यंग्य साहित्य  
 
                                 संसद क्या च ?

                           चबोड्या - भीष्म कुकरेती 

[गढ़वाली हास्य व्यंग्य साहित्य , उत्तराखंडी हास्य व्यंग्य, मध्य हिमालयी हास्य व्यंग्य साहित्य , उत्तरी भारतीय भाषाई हास्य व्यंग्य साहित्य , भारतीय क्षेत्रीय भाषाइ हास्य व्यंग्य साहित्य , दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय भाषाइ हास्य व्यंग्य साहित्य ,एशियाई क्षेत्रीय भाषाइ हास्य व्यंग्य साहित्य लेखमाला ]

 परसि म्यार नाती क मास्टर न    वै तै संसद पर निबन्ध लिखणौ  होम वर्क दे छौ. वैन निबन्ध ल्याख अर मीमा मीमांसा वास्ता लै ग्याई 
- ग्रैंड पा ! मीन  संसद पर यू ऐसे ल्याख जरा बताओ कि ठीक च कि ना !  .
-भौत बढिया . बोल क्या क्या लिख्युं च ?
- उन त  भारत मा नेतौं तै कट्ठा हुणौ भौत सी जगा छन पण कुछ खास दिनो मा  नेता संसद  भवन मा बि कट्ठा  हून्दन. 
-  भै संसद का नियम छन कि साल भर मा इथगा दिन संसद चलणि चयांद
- ठीक च मी जोड़ी द्योल. संसद सत्र से  पैल अखबार अर टी.वी. चैनलूं मा बहस होंदी कि   विरोधी दल रण नीति का तहत कन सरकारी पाळी तै छ्काणो बान, पटकनि द्याला अर कै तरां से सरकारी दल अपण बचाव खुणि  रण नीति बणाल़ा. मै लगद कि संसद एक युद्ध भूमि च. 
- नै नै ! संसद रण भूमि नी च. या त पवित्र कार्यपालिका क पवित्र  भूमि च 
-पण मीन टी.वी चैनलूं से यी सीख कि संसद भवन  रण भूमि च जख मा द्वी ख़ास पाळि हून्दन  जु लड़णो तयार रौंदन.
-बेटा ! गलत . निबन्ध क बान टी.वी चैनलूं पर विश्वास नि करे जांद. चल अगने बिल ..
- संसद मा स्कुलो तरां एक मोनिटर हुंद. जै तै सभापति बुले जांद .
- हाँ यू ठीक च .

- स्कुल मा हम अपण मोनिटर की बात सुणदां अर वैकु  बुल्युं माणदां  पण संसद मा भौत कम बगत पर सांसद अपण सभापति क बात पर ध्यान दीन्दन 

- नै नै इन नि लिखण.  यू  असंवैधानिक  बात च. आधिकारिक तौर पर सांसद सभापति क बुल्युं माणदन .
-पण मीन त टी.वी मा अणबुल्या सांसद देखिन . 

- ओहो ! टी.वी देखिक निबन्ध नि लिखे जांद. निबन्ध लिखणो कुण संविधान संबंधी किताब पढ़ण जरूरी च. अगने बोल 
- विरोधी दल अर सरकारी द्लूं मा हरेक बात पर झगड़ा हूंद. भौत बहस हूंद. पण जब बि सांसदुं तनखा बढ़ाणो बात हूंद  त सौब एकमत ह्व़े जान्दन. 
- पण यू वाक्य इथगा महत्व पूर्ण नी च 
-पण टी.वी वळा यीं बात पर दस दिन तलक ब्रेकिंग न्यूज दीणा रौंदन. 
-बेटा टी.वी वळा अपण चैनलों टी.आर. पी. क प्रति प्रतिबद्ध हुन्दन ना कि  संसद का प्रति . अगने बोल 
- हरेक सांसद द कु कर्तव्य च कि वु सभापति क माध्यम से प्रश्न पूछो . पण शून्य काल जख मा देस का मुतालिक महत्व पूर्ण सवाल जबाब होन्दन वै टैम पर  संसद खाली रौंद. मंत्री जी अर सवाल करण वाळ इ संसद मा दिख्यान्दन. 

-प्रश्न काल या शून्य काल त ठीक च पण संसद खाली रौंद नि लिखे सक्यांद  
- पण मीन लोकसभा अर राज्य सभा चानेल मा यि इ  द्याख 
- बेटा दिखण अर लिखण मा भेद हूंद, अंतर हूंद. अगने बोल 
- सासद प्रश्न पुछणो उद्योगपतियुं  से पैसा बि लीन्दन.
- ये इन लेखिल त्वे तै जेल ह्व़े जाली .

- पण मीन त एक टी.वी प्रोग्रैम  मा इनी द्याख कि सासद प्रश्न पुछणो  पैसा लीणा छन .
-अरे वु चनेलूं अपण चैनेल क टी.आर.पी. बढाणो बान स्टिंग ओपरेसन करदन .
-पण ददा जी जु मीन द्याख ?
- अरे पण सिद्ध त नि ह्वाई ना ?

- सतरा सालुं मा यू बि सिद्ध नि ह्वाई कि श्रधेय लालू प्रसाद यादवन चारा खायी त क्या ..
- नै जब तलक सिद्ध नि होंद तुम अपण  निबन्ध मा इन नि लेखि सकदा कि लालू जीन घूस खायी 
- त यि लोग टैम पर सिद्ध किलै नि करदन कि कें घूस खाई अर कें घूस नि खाई ?

-बेटा अपण निबन्ध पर ध्यान दे . इन बथों पर ध्यान देलि  तू ना तीन मा रैली ना तेरा मा . अगने बोल 
-अविश्वास या विश्वास मत का बान तिकड़म लड़ये जांद , कथगा इ टुटब्याग करे जान्दन. सांसदों कि खरीद फरोक्त  आम बात च . एक ऍम पी. क कीमत करोड़ो मा हूंद. 

- ये ! तू अखबार कुणि  समाचार लिखणि छे कि अपण स्कुल कुणि निबन्ध लिखणि छे? विश्वास  मत पर वोट देणो बान सासद घूस खान्दन कतै  बि स्कुलूं निबन्ध मा नि लिखे सक्यांद . असंवैधानिक बात स्कुलूं निबंधुं  नि लिखे सक्यांद .

-पण मीन त टी.वी मा यो इ द्याख .

- टीवी खबरूं अर स्कुलो पढ़ाई  मा फरक हूंद बेटा! चल अगने बोल 
- सांसद बिल की कौपी फाड़ सकदन जब कि आम जनता कुण यू काम गुनाह च 
- अरे बाबा यू क्या खनु खरपट   लिखणु  छे तू ?
- पण ददा जी टी.वी मा यू इ दिख्याई कि एक सासद लोकपाल बिल कि कौपी राज्य सभा मा फडणु च .

- ये म्यार बरमंड  नि तचा तू . क्वी क्वी धुर्या सांसद इन काम कौरी बि द्यालों त इन नि लिखे सक्यांद कि हर समौ इ काम हूंद. अब टी.वी न्यूज का आधार पर अगने क्या क्या लिख्युं च त्यार.

- संसद मा बहस कम घपरोळ जादा इ हूंद.  क्वी कैकि नि सुणदो . बिचारा सभापति किराणा रौंदन पण फिर बि क्वी चुप नि होंद. फिर जब बि कै तै संसद कि कार्यवाही बन्द कराण ह्वाओ त वो पार्लियामेंट क वेल मा ऐ जान्दन अर घ्याळ करदन अर संसद कुछ देर या सरा दिनों कुण स्थगित ह्व़े जांद .
-निबन्ध मा तीन यू सौब ल्याख

- ठीक च आज से मी ये केबल टी.वी क कनेक्सन इ बन्द करै दींदु . हेलो केबल टीवी वळु  ! अब्याक  अबि म्यार टी. वी कनेकसन काटी  दे। म्यार नाति इनि टी.वी समाचारुं क आधार पर निबन्ध ल्याखाल  त वैन फेल ह्व़े जाण .

(यू सिरफ़ एक व्यंग्य च , चबोड़ च ) 

Copyright@ Bhishma Kukreti 31/8/2012 
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Revenue is fundamental problem for regional periodicals as ‘Hilans’


(Contribution of ‘Hilans’ for Kumauni-Garhwali Literature promotion-5)


Let Us Remember Arjun Singh Gusain for his contribution in Kumauni-Garhwali Literature promotion

                      Bhishma Kukreti
       Revenue generation is the fundamental problem for regional periodicals specially periodicals of Uttarakhand. . Since readers are scattered and readers are in less numbers the advertisers don’t want to invest in periodicals of scattered readership.
  Arjun Singh Gusain used to cover Mumbai in search of advertisers and he was able to generate advertisement for Hilans smoothly till he became ill.
Contribution of ‘Hilans’ for Kumauni-Garhwali Literature promotion-5
                          Hilans January, 1980
Ghundya dyur- The Garhwali story by Rama Prasad is about an young boy marrying his widow Bhabhi (wife of elder brother) quite elder than him. The story deals with emotion of younger boy.
Ek Dhanga se sakhsatkar- A satirical Garhwali poem by Netra Singh Aswal attacks on inflation, deprived situation, poverty.
                                Hilans February, 1980
Samajvadi Bhitarkhand – A satirical Garhwali poem by Vinod Uniyal attacks on the double standard of Indian socialism and its supporters.
Chhilku- A Kumauni poem by ‘Jigyasu’ talks about changing culture in villages.
                            Hilans March, 1980
Ajadi- A Garhwali poem by Vinod Uniyal ridicules the political leaders interested in getting elected and not caring for people.
Ghar Bati kaka ki chitthi- Garhwali poet Puran Pant Pathik depicts the worsening situation of villages of Kumaun- Garhwali due to mass migration.

Copyright@ Bhishma Kukreti 30/8/2012

Let Us Remember Arjun Singh Gusain for his contribution in Kumauni-Garhwali Literature promotion! 

Bat Vichar: A Garhwali story with Emotional Message by Pathik


(Critical Review of Modern Garhwali Fiction)

Let Us Celebrate Hundredth Year of Modern Garhwali Fiction!

                                                Bhishma Kukreti
[Notes on emotional message in stories; emotional message in Garhwali stories; emotional message in stories; emotional message in Uttarakhandi stories; emotional message in Mid Himalayan stories; emotional message in Himalayan stories; emotional message in North Indian stories; emotional message in Indian stories; emotional message in South Asian stories; emotional message in Asian stories]
  Puran Pant Pathik is a prominent signature in Garhwali poetic world. His character ‘ Bwada’  is famous character of his satirical poetry.  Pathik published a story ‘Vat Vichar’ in chitthi (21st issue) . The story is that village youth get a letter about separate Uttarakhand state. They take the letter to ‘ bwada ‘(father’s elder brother) . Bwada’ appreciate the efforts of Uttarakhand movement activists and suggest village youth to join movement.
    Pathic has been successful in making story entertaining and in presentable . Pathik infuses emotion into message.

Reference-
1-Abodh Bandhu Bahuguna, Gad Myateki Ganga (Part- Review of Garhwali mini short Story)
2-Dr Anil Dabral, 2007 Garhwali Gady Parampara (Part- Review of Garhwali mini short Story)
3-Bhagwati Prasad Nautiyal, articles on Durga Prasad Ghildiyal l in Chitthi Patri (Part- Review of Garhwali mini short Story)
4-Dr. Nand Kishor Dhoundiyal, Garhwal Ki Divangat Vibhutiyan (Part- Review of Garhwali mini short Story)
5-Notes of Prem Lal Bhatt on the Stories of Durga Prasad Ghildiyal (Part- Review of Garhwali short Story and mini short Story writers)
6- Gaytri Bwe, 1985 Gadh Bharati Sanstha, Delhi, (Garhwali short Story Collection)
7- Bhishma Kukreti, 2012 Garhwali Katha Sansar, Sankalp, Delhi (Historical review of Garhwali mini short Story Writers)
8- Bhishma Kukreti, 2012 Kathaon ki Katha, Worldwide mini short Story writers review Series in Shailvani weekly, Kotdwara, Garhwal
9- Stories of ‘Katha Kumud’, Garhwali Prakashan, janankpuri, Delhi (for mini short stories in Garhwali)
10-Mini short stories by Chinmay Sayar in Shailvani, Hilans Kotdwara
11-Mini short stories by Puran Pant Pathik
12- Mini short Stories by Bhishma Kukreti in internet medium
13- Minis and Short stories by Dr. Narendra Gauniyal on Internet medium

Copyright@ Bhishma Kukreti, 30/8/2012
Notes on emotional message in stories; emotional message in Garhwali stories; emotional message in stories; emotional message in Uttarakhandi stories; emotional message in Mid Himalayan stories; emotional message in Himalayan stories; emotional message in North Indian stories; emotional message in Indian stories; emotional message in South Asian stories; emotional message in Asian stories to be continued…
Let Us Celebrate Hundredth Year of Modern Garhwali Fiction!

गढ़वाळी छिटगा

*******ख़ित्त हैंसि*******

चरि तरफ 
भ्रष्ट लोगोँ तै 
फलदा-फुलदा 
देखि कै  
त्याग,सदाचार 
मर्यादा की बात 
सूणि कै
ऐ जांद 
ख़ित्त हैंसि.


*******शंका******

क्वी भरोसो 
नि छा 
नौनि कब 
ऐ जांद 
सौरास बिटि
भाजि कै 
खैकि मार
य फिर 
चुला पर ही 
कुरमुरी ह्वै जांद.

***********कख च कुर्सी....?*********

उंकी जिकुड़ी 
जु करणी छै 
 सक सक सक
बाच सांस बंद 
आंखि भटगा बंद 
इकहरो सोर
कैका बुन पर कि 
भौत खैरि च औणी 
थ्वड़ीसि देर
धैरी द्या 
कुर्सी मा       
सूणि कै
उंकी जिकुड़ी
धड़कण लगी गे
धक् धक् धक् 
चट्ट खोली आंखि 
इना फुना देखि 
अर पुछदिन 
कख च कुर्सी ..?

       डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित...narendragauniyal@gmail.com

Wednesday, August 29, 2012

पटवारी तै अपराधी किलै नि दिख्यांद ?

गढ़वाली हास्य व्यंग्य साहित्य
                              पटवारी तै अपराधी किलै नि दिख्यांद ?
                                   चबोड्या - भीष्म कुकरेती

-अरे पटवारी जी ! स्यू समणि पर अपराधी च अर तुम तै नि दिखयाणु ?
- कख च अपराधी ? मै तै त सरा संसार अपराध विहीन दिखयाणु च.

-कन काण्ड लगिन तैं रंडोळ अळगस पर . पटवारी जी ! अळगस छोडिल त तुम तै अपराधी दिख्याल ना ? जरा रोज कसरत , योग्याभ्यास वगैरा कारो. बेवजह अन्दाळ करणै प्रवृति छोडिल त स्यू चकडैत अपराधी अफिक दिख्याल.
- अरे पण क्या कौरु ! ले मीन तैं अळगस तै स्योड़ जोग करि आल . अबि बि मै अपराधी नि दिखयाणु च. तु बुनी छे बल अपराधी समणि च अर भंगुल जामि कि में तै स्यू अपराधी अदिखळ हूयुं च ?

- पटवारी जी ! भंगुल त तै अठारा सौ सदी कु कबाड़ जन टेलिस्कोप से आजौ अपराधी दिख्ल्या त कने अपराधी दिख्याल . टुटकि ह्वेन तै प्रागऐतिहासिक टेलिस्कोप कि . जै टेलिस्कोपक अंजर पिंजर ढीला हुयाँ ह्वावन वां से त पहाड़ बि नि दिख्याल. जरा नया जुग को टेलिस्कोप लाओ त फिर कनकैक स्यू अपराधी नि दिख्यांद धौं !
- ले मि अब नयो टेलिस्कोप से बि दिखणु छौं पण मै अबि बि अपराधी नि दिखेणु च.

- बिजोग पोड़ीन तै पुराणा पेनल कोड पर. अरे पटवारी जी ! तुमर चस्मा पर जरा पुराणा पेनल कोड को सिंवळ जम्युं च . जरा तै मर्युं खप्युं सन अठारा सौ अठावन को ब्रिटिश पेनल कोड को सिंवळ हटैल्या त किलै ना स्यू बिलंच , ऐबी अपराधी दिख्यालू.
--ले भै ल़े ! मीन बेकाम कु पुराणा पेनल कोड क सिंवळ साफ़ कौरी आल पण कुनगस कि मै तै अबि बि स्यू अपराधी अदिखळ च .
- तड़म लगि जाओ स्यू लाल फीताशाही . हे पटवारी जी ! जरा आँखों मा लाल फीताशाही क जळम्वट त द्याखो. जरा तौं लाल फीताशाही क जळम्वट साफ़ त कारो फिर द्याखो कि अन्ध्यर मा बि तुम तै स्यू जल्लाद अपराधी दिख्यालु.
- ये ल्याओ मीन लाल फीताशाही क जळम्वट साफ़ करी आलि. पण ये म्यार भुभरड़ , अबि बि मै अपराधी नि दिखयाणु च.
- आग लगि जैन तैं ग्रुप बाजि पर. अरे पटवारी जी ! स्यू पाळिबंदी /स्य गुटबाजी क कीच जु तुमारो चस्मा पर लग्युं च ना वां से तुम काणो हुयाँ छंवां . जब तुमारि चस्मा पर ग्रुपबाजिक कीच साफ़ कारो त सै .

- ल्याओ मीन ग्रुपबाजिक कीच बि ध्वे आल अब . पन सत्यानास ! अबि बि अपराधी हर्च्युं च .

- बुरळ पोड़ी जैन, कीड पोड़ी जैन ये जातीय समीकरण अर भाई भातीजाबाद पर. पटवारी जी ग्रुपबाजिक कीच त तुमन साफ़ कौरी आल पण स्यू जातीय समीकरण अर भाई भतीजाबाद कु कोंटेक्ट लेंस त तुमारो आन्खुं पर लग्यां छन कि ना ? पटवारी जी! जातीय समीकरण अर भाई भातीजाबाद को कोंटेक्ट लेंस से हत्यारा, जघन्य हत्यारा अर आतंकवादी जन अपराधी बि नि दिख्यांद .

- ले भै ले ! अब मीन जातीय समीकरण अर भाई भातीजाबाद को कोंटेक्ट लेंस बि भैर चुलै आल. ये मेरी ब्व़े ! अबि बि मै अपराधी नि दिखयाणु च.

- सड्याण ऐन तै राजनैतिक दबाब पर. पटवारी जी ! जरा अपण मुंड मा राजनीतक दखलंदाजी, राजनैतिक पैंतराबाजी, राजनैतिक स्वार्थ अर राजनैतिक बेईमानी क गर्रू पर त ध्यान द्याओ. तै राजनीतक प्रपंच को भार से तुमारा आँख इ ना सबि ज्ञान चक्षु बुज्यां छन जरा ये राजनैतिक छल छद्म को बहार तै बिसाओ , न्याय व्यवस्था मा तै राजनैतिक दखलंदाजी को गरु तै उतारो त सै.

- ओह, मीन सब राजनैतिक दखलंदाजी क भार उतारी आल. अब भौत इ हल्को महसूस करणु छौं . गुरा लगिन भै! फिर बि मै अपराधी नि दिखयाणु च.

- मड़घट जोग ह्वेन सि अधिकार्युं परपंच, औतु ह्व़े जाओ स्या चमचागिरी क नीति, बसे जैन सि प्रोमोसन कि लाळसा .टुटि जैन स्यू ट्रांसफर को लगुल . पटवारी जी जरा अपण आंतरिक ब्यूह रचनाओं तै फेंको त सै . फिर द्याखो कि कन अपराधी नि दिखेंद धौं .

- ल़े मीन अब अपण आंतरिक व्यवस्था कि गलत ढर्रा तै बि भैर चुलै आल . पन गौ बुरी चीज च जु मै अपराधी दिखेणु ह्वाओ.

- निफल्टि लगी जैन तै घुसखोरी क . ये पटवारी जी अर वो जु तुमन घुस्खोरिक पगुड़ पैर्युं च ना वै पगुड़ से कबि बि अपराधी नि दिखेंद.

- ले मीन घूसखोरी क पगुड़ बि उतारी आल. पन हे भगवान अबि बि मै अपराधी नि दिखेणु च .
- ए मेरी ब्व़े . पटवारी जी ! जरा कंदूड़ लगावदी . कुछ सुण्याणु च ?
- हाँ ! हाँ जनता की आवाज सुण्याणि च .

- अच्छा चलो जनता क त सुण्याणि च . क्या बुनी च जनता ?
- जनता जोर जोर से बुनी च बल जु तुम नि सुदरल्या त हमन सिस्टम इ बदल दीण .
- अब अपराधी दिख्याणु च ?

- हाँ ! हाँ ! अपराधी त म्यार इ समणि च. अपराधी त साफ़ साफ़ दिख्याणु च .चल साले देखता हूं कि आज से तू कैसे अपराध करता है .
- जै हो जनता क दबाब की !

Copyright@ Bhishma Kukreti 30/8/2012
गढ़वाली हास्य व्यंग्य साहित्य जारी 

टरकाणौ बनि बनि ब्यूंत -हाउ टु से नो

गढ़वाली हास्य व्यंग्य साहित्य
                       टरकाणौ बनि बनि ब्यूंत -हाउ टु से नो
                                    चबोड्या - भीष्म कुकरेती
  
हाँ बुलण सरल च पण ना बुलण सौबसे कठण च . तबी त अच्काल 'ना कनकैक बुलण' पर बजार मा दसेक किताब छन.
पण जु तुम म्यार बुल्युं मनिल्या त तुम ना बुलणो जणगरो ह्व़े जैल्या . जाण तुम तै ना बुलण गिजण पोडल बस.
ह्वेक बि ना बुलणो सबसे पैलि शर्त च बेशरम हूण . मुखमुल्यजा लोग ना बोली नि सकदन. बेशरमी सिखणो बान तुम तै कखि जाणै जरुरात नी च बस कौंग्रस्यूं हाल देखी ल्याओ कि कन यि बेशर्मी से बुल्दन बल कोग्रेस सन सैंतालिस से इ भ्रष्टाचार मिटाणो बान प्रतिबद्ध च .

अर जु तुम भातीय जनता पार्टी तै अपण पार्टी माणदवां त यूंक कु -करतबों से बि तुम बेशरमी भली भांति सीख सकदवां जन कि यि कर्नाटक मा यदुरप्पा कु खुलेआम भ्रष्टाचार तै भ्रष्टाचार नि माणदन पण महाराष्ट्र कु अशोक चौहाण तै बड़ो भ्रष्टाचार माणदन. बुल णो मतबल च बल बेशरमी तुम राजनैतिक पार्ट्यु कु-करतबों से सीखि ल्याओ .

ना बुलण मा एक बात बुले जांद बल इच्छा त मेरी भौत च पण क्या कौरू इन ह्व़े नि इ सकुद. या एक कला च अर यि तै हम बौगाणै कौंळ बोली सकदां. बौगाण सिखण त आप तै भारत, भूटान, नेपाल, पकिस्तान, बंगला देस आदि देसूं सरकारी रवयों से बौगाण सिखण पोडल. यूँ देसूं मा शिक्षा एक मूल बहुत जरुरात बि च अर समस्या बि च. पण यि सौब देस शिक्षा तै उथगा महत्व नी दीन्दन जथगा शिक्षा तै जरुरत च . बस यि देस अपणि जनता तै कै बि तरां से टरकाणा छन , तुम क्या करो यूँ देसूं से टरकाण सीखो . बस यि द्याखो कि यि देस कन अपणि जनता तै संदेस दीन्दन बल "हे शिक्षा ! मीम कुछ हून्दी जि त मी त्वे नी दींदु ?" दुन्या मा यां से जादा टरकाण आपन कखि नि देखि होलू जन यि देस अपणा युवांओ तै टरकान्दन .

ह्वेक बि लुकाण अर ना बुलण एक ब्यूंत च, एक कौंळ च , एक कला च, एक हुस्यारी च. यांखुणि तुम तै मास्टरों व्यवहार पर ध्यान दीण पोडल . यूं मास्टरों मा जो बि च यि स्कूल या कॉलेज मा नी दीन्दन अर बकळि जिकुड़ी कौरिक ना बोलि दीन्दन। अर वही बढिया ज्ञान का भंडार यि उत्साह से , जोश से कोचिंग क्लासुं मा दीन्दन. यि मास्टर स्कुलम ज्ञान दीण मा ना नकोर करदन पण कोचिंग क्लास मा भरपूर ज्ञान दीन्दन.

ना बुलण मा सिद्धांतों बली दिए जांद.प्रतिबद्धता क सौं बि घटे जान्दन या ब्वालो सिद्धांत या प्रतिबद्धता तै ना बुलणो बहाना कु माध्यम बणये जांद. भारत मा सेकुलर अर नॉन सेकुलर कि लडै कुछ नी च अकर्मण्य हूणै दवा च या कै तै ना बुलणो बहाना भर च ।

कबि कबि ना बुलणो बान समणि वाळक ध्यान बंटण ज्रौरी होंद. ना बुलणो कुणि कुछ बि कौरिक समणि वाळक ध्यान इनै उनै लिजाण बि एक मारक ब्यूंत च. अब द्याखो ना पैल उत्तर प्रदेश सरकार अर अब बुलणो अपणि उत्तराखंड सरकार ग्रामीण उत्तराखंड मा उद्योगुं बारा मा हमारो ध्यान कन बाँटदि ! ना बुलणो कुणि कन ध्यान बंटे जांद सिखण त ऊं उत्तराखंड कि सरकारी कौंळु को अध्ययन कारो जौं कौंळु से पहाड़ी जनता क ध्यान असली मुद्दों से नकली मुद्दों तरफ लिजाये जांद.

ना बुलण मा कबि कबि अपण पूठो गू दुसरो पूठ पर पतकाण या चिपकाण जरूरी होंद. यि गुर सिखण ह्वाओ त कै बि राज्य सरकारों बयान पर ध्यान द्याओ जु बुलणा रौंदन कि हम त राज्य तै सोराग जोग करर्णों तयार छंवां पण केंद्र सरकार कुछ इमदाद दीन्दी नी च.

ना बुलणो खुणि समणि वाळ तै भ्रमित करण जरुरी च . ना बुलण मा भरम को जाळ बड़ो काम को च . भरमाण सिखण ह्वाओ त लालू प्रसाद का ऊं करतबों तै याद कारो जु वूनं रेल मंत्री होंदा करी छ्या . भारत इ क्या हावर्ड स्कूल तै बि ऊंन भरमाई कि भारतीय रेल मुनाफ़ा कमाणि च.

प्रतिज्ञा तै बार बार दोराण बि ना बुलणो एक ब्यूंत च. जन भारतीय जनता पार्टी बार बार बुल्दी बल राम मन्दिर बणाण जरूरी च . बार बार प्रतिज्ञा दुराणो अर्थ ना ही हूंद.

ना बुलण मा एक शब्द भौति कामौ क च अर ओ शब्द च जरा मी हौरुं राय ल़े लीन्दो. क्वा सरकार च ज्वा नि बुल्दी कि जन समस्या तै सुळजाणो बान हम राजनैतिक अर सामाजिक स्तर पर एक राय बणाणो छंवां . जब क्वी एक राय बणाणो बात करणो ह्वाओ त समजी ल्याओ कि वु ना बुलणु च.

ना बुलणो भौत सा ब्यूंत छन पण मीम अर तुमम अबि बगत नी च कि मि सौब ब्यूँतूं बारा मा तुम तै बथौं . जब समौ आलो त जरुर मी तुम तै हौर जादा ब्यूंत बथौलु .

Copyright@ Bhishma Kukreti 29/8/2012
गढ़वाली हास्य व्यंग्य साहित्य जारी ..

Gali: A Story speaking about power proves every point


(Critical Review of Modern Garhwali Fiction)
Let Us Celebrate Hundredth Year of Modern Garhwali Fiction!
                                  Bhishma Kukreti
              Gali is marvelous short story by Netra Singh Aswal (Hilans, November, 1979). Netra Singh Aswal wrote a couple of Garhwali stories and all are gems of modern Garhwali fiction world.  
                  The mother of Ghutadu used abusive words for Patrol or forest watchman (in relation-her jithanu). Forest watchman means the employee of village councils. The village council decides that abusing Patrol means abusing village council and the village council ounished father of Ghutadu.
                  One night, patrol, loudly was informing (Dhad) the villagers about closure of path for a particular area. In his each sentence, there were abusive words. Ghutadu asks his father how come Patrol can use abusive words. Father of Ghutadu beats Ghutadu.
              The story tells that rules are for weaker people and not for powerful people or administrator. The story is short but with full of message. Netra Singh Aswal uses common words and proverbs of Garhwal. The flow is very fast.
References-
1-Abodh Bandhu Bahuguna, Gad Myateki Ganga (Part- Review of Garhwali short Story)
2-Dr Anil Dabral, 2007 Garhwali Gady Parampara (Part- Review of Garhwali short Story)
3-Bhagwati Prasad Nautiyal, articles on Durga Prasad Ghildiyal l in Chitthi Patri (Part- Review of Garhwali i short Story)
4-Dr. Nand Kishor Dhoundiyal, Garhwal Ki Divangat Vibhutiyan (Part- Review of Garhwali short Story)
5-Notes of Prem Lal Bhatt on the Stories of Durga Prasad Ghildiyal (Part- Review of Garhwali short Story and mini short Story writers)
6- Gaytri Bwe, 1985 Gadh Bharati Sanstha, Delhi, (Garhwali short Story Collection)
7- Bhishma Kukreti, 2012 Garhwali Katha Sansar, Sankalp, Delhi (Historical review of Garhwali i short Story Writers)
8- Bhishma Kukreti, 2012 Kathaon ki Katha, Worldwide  short Story writers review Series in Shailvani weekly, Kotdwara, Garhwal
9- Stories of ‘Katha Kumud’, Garhwali Prakashan, janankpuri, Delhi (for  short stories in Garhwali)
10- Mini and short stories by Chinmay Sayar in Shailvani, Kotdwara, and Hilans Mumbai
11-Short stories by Puran Pant Pathik
12-Mini and   short Stories by Bhishma Kukreti in internet medium
13-Mini and  Short stories by Dr. Narendra Gauniyal on Internet medium

Copyright@ Bhishma Kukreti, 26/8/2012

Let Us Celebrate Hundredth Year of Modern Garhwali Fiction!

Khao Peeo Program: Bantering the education system for promoting local language by Parashar Gaud -9


(Review of Garhwali Satire prose -21)
                          Bhishma Kukreti
[Notes on Bantering the education system; Bantering the education system in Garhwal; Bantering the education system in Kumaun; Bantering the education system in Uttarakhand]
   Parashar gaud banters the education system for promoting Garhwali language, Garhwali literature in higher education institution in his satire ‘Khao Peeo Program’

References-
1-Abodh Bandhu Bahuguna, Garhwali Sahity ma Hasy Vyngy, Kaunli Kiran, Jankapuri, Delhi (Pl. refer part Garhwali Literature)
2-Dr Anil Dabral, 2007, Garhwali Gady Parampara (Pl. refer part Satire in Garhwali Literature)
3- Dhad, Garh Aina, Paraj publications. (Pl read to know about Garhwali Satire)
4- Merpahad .com and e-Uttarakhand Patrika (Pl read to know about Garhwali Satire)
5- Ghati ke Garjate Swar , Dehradun (Pl read to know about Garhwali Satire)

Copyright@ Bhishma Kukreti 29/8/2012
Notes on Bantering the education system; Bantering the education system in Garhwal; bantering the education system in Kumaun; Bantering the education system in Uttarakhand to be continued…

अब क्य होलू हे दिदा

 कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल 

भारत भूमि आज मेरि,कनि किराणी हे दिदा. 
ह्वैगे मुश्किल अब त ज्यादा,अब क्य होलू हे दिदा.

जौंमा सौंप्यूं राज-पाट,ह्वैगीं निख्वर्या हे दिदा.
खांदा-पींदा कन भुखारा,ह्वैगीं यूं तै हे दिदा.

लद्वड़ी दणसट कैरिकै बि,ल्यावा-ल्यावा छन बुना.
माटु बि भसगे यालि यूँन,अब क्य होलू हे दिदा.

स्याळ मारो बाघ मारो,यूंकि पुटगी भ्वारा तुम.
रोग भस्मक लगी गे यूँतै,अब क्य होलू हे दिदा.

ननु पदान ठुलू पदान,सबि मिस्याँ छन हे दिदा.
सबसे निंगुरू बुड्या पदान,अब क्य होलू हे दिदा.  

अब इलाज यूँ सब्युं को, कन पडलो हे दिदा.
घोटि कै जमालघोटा, दीण पडलो हे दिदा.

        डॉ नरेन्द्र गौनियाल .सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal @gmail.com

Community/journalism regional journalism in Uttarakhand in Context of ‘Hilans’


(Review of ‘Hilans’ a community Magazine for its contribution on Kumauni-Garhwali Literature Promotion)  
Let us remember Arjun Singh Gusain for his Contribution for Promoting Kumauni-Garhwali Literature
                                            Bhishma Kukreti

[Notes on community regional journalism; Garhwali community journalism; Kumauni community journalism; Jaunsari community journalism; Mid Himalayan regional community journalism; Himalayan regional community journalism; North Indian regional community journalism;  Indian regional community journalism; Indian sub continent regional community journalism; South Asian regional community journalism; Asian regional community journalism]

Community journalism is a specific journalism that focuses on a particular community. The community journalism pays less importance to national or regional news and acts. However, whenever the national news affect the community the community journalism talk about national issues in relation with community. Community journalism has many classes depending upon community.
  As far as the editor of Hilans Arjun Singh Gusain is concerned as Community magazine editor and publishers, he always walked on the line and principles of community journalism.
 As a master of community journalism, Arjun Singh Gusain provided Hilans as medium of contact information of experts, advisors, leaders, social workers, literature creative of Uttarakhand among themselves those were scattered d all over world.
Arjun Singh Gusain as community journalist saw that Uttarakhandi leaders, experts and creative provide important information to the readers and Gusain motivated experts to write for Hilans.
Hilans as vital part of Uttarakhandi community journalism used to provide information on community organizations, community services and community institutions of Uttarakhand.
Hilans used to provide necessary literature required for the community.
As dedicated Community journalist, Arjun Singh Gusain always initiated promoting Kumauni-Garhwali language, literature and culture.
  
                   Uttarakhandi Community magazine -Hilans September, 1979 Issue
Garhwali Lok geeton me Nari ki Samajik Stithi by Kusum Nautiyal- Brilliantly Kusum Nautiyal analyzed  Garhwali folk songs related to status of Garhwali women in Garhwali folk songs though in Hindi languge.
Bhalu yu Uttarakhand a imagery Garhwali poem by Bhagwan Singh rawat ‘akela’ – Bhagwan Singh Rawat ‘Akela’ is famous for his imagery poems about geographical nature of Hills of Uttarakhand and Rawat did offered his brilliancy in imagery poem.
            Uttarakhandi Community magazine- Hilans October, 1979 Issue
Ashtha a philosophical Garhwali poem by Dr. Chandra Mohan Chamoli- Dr Chamoli talked about the importance of faith and believing on others and oneself too.
                                Uttarakhandi Community Magazine- Hilans November, 1979 Issue
Gali a Garhwali short story by Netra Singh Aswal- The story is in satirical mood and inspirational too.
Kilaiki a sharp satirical Garhwali poem by Puran Pant Pathik- The poem tries to differentiate between a non obedient well grown son and a faithful dog.
 November issue of Uttarakhandi community magazine was dedicated to great Editor Vishwambar Datt Chandola and his contribution to community journalism and initiation of publishing Garhwali literature. Various authors provided the Garhwali literature creative and their poems published in Garhwali a community newspaper edited and published by Vishwambar Datt Chandola.
                         Uttarakhandi Community Magazine- Hilans December, 1979 Issue
 Ko Chhan a Garhwali satirical poem by Puran Pant Pathik – The poem criticizes double standard behavior of human beings.
Thata Lagal an inspirational Garhwali poem by Shiv Prasad Pokhariyal – The poem inspires for unity.
  By publishing Kumauni and Garhwali language literature, Arjun Singh Gusain proved that he was a real master of community journalism and he took community journalism on the height.

Copyright@ Bhishma Kukreti 29/8/2012
Notes on community journalism; Garhwali community journalism; Kumauni community journalism; Jaunsari community journalism; Mid Himalayan regional community journalism; Himalayan regional community journalism;  North Indian regional community journalism;  Indian regional community journalism; Indian sub continent regional community journalism; South Asian regional community journalism; Asian regional community journalism to be continued…

   Let us remember Arjun Singh Gusain for his Contribution for Promoting Kumauni-Garhwali Literature