उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Friday, June 29, 2012

आणा -पखाणा अर राजनीति

चबोड़ -चखन्यौ                         
                                         आणा -पखाणा अर राजनीति
                                
                                                   भीष्म कुकरेती
 
मि घड्याणु छौ , सुचणु छौ बल जु पढंदेर बच्चो कुण बुले जाल बल मुहावरा, आणो हिसाब से नेतो पर कुछ ल्याखो त आजकला बच्चा इन ल्याख्ल
अंगूर खट्टा छन-   जन कि हडक सिंग जी न बोली मंत्री पद मेरी जूती से.
अन्डूर (अण्डा ) स्याको क्वी अर चूजा क रसी खावो क्वी - अलग उत्तराखंड की आग लगाई कै हौरून अर कौंग्रेसी -भाजापा वळ मजा करणा छन.
अंत बुरे का बुरा- कहावत बिलकुल गलत च. राजनीति मा कुछ बि बुरु कारो बस कोर्ट मा केस ली जाओ फिर दस पीड़ी तक मजा करणा राओ . सि मुलयम सिंग जी , लालू प्रसाद यादव जी को क्या हूणु च. हाँ कबि कबि सुखराम जी सरीखा नौसिखिया पकडे जान्दन जाळ मा ...
अंत भला सो सब भला- हाँ आखिर हड़क सिंग जी तै मंत्री पद मीलि गे की ना ?
काणो क्या मंगद ? बस द्वी आँख ! - नेता क्या मंगद एक अदद मंत्रीपद अर मंत्री क्या मंगुद --प्रधानमंत्री पद !
काणो क्या जाण बुरांसौ फूलो रंग ! -- भारतीय कम्युनिष्टों तै क्या पता केन्द्रीय मंत्रीपद को क्या मजा होन्दन !
काणो गांद अर बैरा बजान्द ----- जब लालू प्रसाद जी टू जी प्रसिद्ध ए.राजा अर कॉमन वेल्थ गेम प्रसिद्ध कलमाड़ी क बड़ाई करदन
काणो पिसद अर कुकुर खै जांद-- उत्तरखंड क्रान्ति दल क कुहाल !
काणो तै काणो बाटो दिखांद ! जब बीर भद्र सिंग, यदुरप्पा , अमर सिंग , जगन रेडी , कलमाड़ी , सुखराम भारत बिटेन भ्रष्टाचार ख़तम करणै आपस मा छ्वीं लगावन
सूंगरूं दगड मांगळ -- धूमाकोट सपूत महान वैज्ञानिक राम प्रसाद जी जब नेट माध्यम मा बुल्दन बल उत्तराखंड सरकार तै ग्रामीण उत्तराखंड मा उद्योग खुलण चएंद
एक से द्वी भला- तिहाड़ जेल मा जब हैंको राजनेता भ्रष्टाचार , अनाचार क वजै से जेल आन्द त भित्रो नेता बुलद बल -एक से द्वी भला
अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता - महाराष्ट्र का तिनी भूत पूर्व मुख्य मंत्री आदर्श घोटाला बाबत सी.आई.डी क समणि गवाही मा इनी त बुलणा छन -इखुल्या इखुली मि इथगा बड़ो घोटाला नि कौरी सकुद थौ
अकल बडी कि भैंस ?- लालू जी बुल्दन बल भैंस बड़ी अर नीतेश जी बुल्दन बल अकल.. तबी त लोग भैन्सौ घास बि खै गेन
अदले क बदला /जैसे को तैसा- तामिलनाडू मा जब बि सरकार बदल्यांद वर्तमान मुख्यमंत्री भूत मुख्य मंत्री तै जेल भिजणो इंतजाम करद
अपुण अपुण इ होंद परायो परायो इ होंद - कोंग्रेस , शिव सेना, डी.एम्.के , समाजवादी पार्टी , अकाली दल या hauri दल ये सिद्धांत तै अपण धरम माणदन
गूणी अपुण पूँछ नि दिखदु अर बांदरौ बोद बल तै को पूछ लम्बी च - जब कोंग्रेस वाळ यदुरप्पा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगान्दन .
बुलद बेटी कुण छौं सुणान्दु ब्वारी तै छौं - नीतेश कुमार जी जब बुल्दन बल ' प्रधान मंत्री एक सेकुलर मनिख हूण चएंद' त सौब समजी जान्दन बींगी , सौब जान्दन बल नीतेश जी नरेंद्र मोदी की बात करणा छन.
जन बुतिल्या तां पैल्या- कुज्याण उत्तराखंड का भूत पूर्व मुख्य मंत्री खंडूड़ी जी, ऊंक दगड्या हर्याँ भूत पूर्व मंत्री ए आण पर विशवास -भरवस इ नि करदन !
भैंसों गुस्सा मकडा पर - जब कै मंत्रालय मा भंडाफोड़ हूंद त पैल प्रशासनिक अधिकारी तै सस्पेंड करे जांद
खावन प्यावन औरुक अर मार खावन गौरुक - प्रधान मंत्री खुणि सेनापति की चिट्ठी की खबर लीक कै हौरुं न कार अर वै बगत शक्क सेनापति वी.के. सिंग जी पर ह्वाई
औंदी लक्ष्मी तै क्वी नि लत्यांद - भूत पूर्व टेलीकॉम मंत्री- प्रमोद महाजन अर ए. राजा क काम से त यिनि लगद
आवश्यकता आविष्कार की जननी है - नेतौ बड्यू (ड =ढ़ )चुनावी खर्च से त इनी लगद
ईद का चाँद होंना - चुनाव जीतणो बाद नीता लोग ईद का चाँद ना औंसी जून (चांद) ह्व़े जान्दन
जु बिंडी अटकदु खनु फटकदु - भग्यान हेमवती नंदन बहुगुणा क जिन्दगी क आखिराक दिन अर ल़ेफ. ज. टी.पी.एस.रावत क फिरड़ फिरड़ से त इन लगाद बल या पखाणा /कहावत सै च
एक ठौ मजा दीन्दो - सि अपण नारायण दत्त तिवाड़ी जी तै इ देखि ल्यावदी इथगा बेज्जती बाद बि कोंग्रेस हाई कमांड मा सुणवै च
सयांद बि नी च अर रयांद बि नी च -- अच्काल कोलेसन गवर्मेंट का पोलिटिकल पार्टनर
गुड़ दीणो अर ईंट मारणो - १९७७ मा बणी जनता पार्टी मा क्या ह्व़े छौ ?
बेटा क्या देखणा बेटा क यार देखणा -- यू.पी.ए.(२००९-२०१२) क हाल त तृणमूल कोंग्रेस क घुड़कि अर डी.एम् के क ताल से पछणे जांद
थुक्यूं चटण --- शरद पंवार, संगमा जीन कोंग्रेस इलै छ्वाड बल सोनिया गांधी उन्ना देसी (विदेसी) च पन फिर वींकी दगड सरकार मा शामिल छन.
मारद बाखरो , पकांद कुकड़ो खांदी दा लिँगड़ो क थुपड़ो - अच्काला नेतौं क योई हाल छन . दिखांद (आश्वासन) कुछ हौर छन अर दींद कुछ हौर छन
तातो दूध ना पियेंद ना घुटेंद - कोंग्रेस अर ममता बनर्जी क रिश्ता
कुजगा को दुःख जिठाणो वैद - भारतीय जनता पार्टी वळु नरेंद्र मोदी तै प्रधान मंत्री बणाणै छ्वीं
जैकी करी बडी आस वैन द्याई झंग्वरो ग्रास - भौत साल पैल जब सोनिया गांधी प्रधान मंत्री बणण इ वाळ छे कि मुलायम सिंग जी न समर्थन दीणो ना बोली देई
दै का पहरा बिराळु -- उत्तर प्रदेश मा अखिलेश यादव मंत्रीमंडल मा राजा भया जब जेल मन्त्री बणये गेन त ।
भौत बिराळु न मूस नि मारे जांद -- अच्काल भाजापा मा प्रधान मंत्री बणना कथगा नेता छन पण चुनाव हरणा इ छन.
निरपाणि को माछो - मंत्री पद या पद बगैर नेता
आठ पटियाळ नौ चूला - १९७७ का जनता दल मा क्या हाल छ्या ? अच्काल भाजापा मा क्या हाल छन ?
आधा गौं चैतवाळ आधा गौं बग्वाळ - उत्तराखंड मा क्षेत्रीय राजनैतिक दलूं हाल द्याखो
बुड्या बल्द अफु बि नि लगान्द हैंक तै बि लगाण दीन्दो -- अच्काल लाल कृष्ण अडवानी जीक क ई हाल छन.
तेल तुरक्योंणा ल़ू ण बुरक्योंणा -- जादातर मुख्यमंत्री केन्द्रीय इमदाद कुण इनी बुल्दन.
अपणा जयां कि नी कका कि रयाँ कि छौ -- जब एक नेता हैंको नेता पर भगार लगान्दु पण अपण टुटब्याग नि दिखदु
कम्बळो भल्लु -- सराकर जब बुल्दी बल गढ़वाळ मा पाणी कमी पैथर कै विदेशी ताकतों हाथ च
बांज बियाई अर गुबडि ह्वाई --नेतौं आश्वासन
ना ब्वेन स्वील हूण ना भाई बांठे भत्ति खयाण --उत्तराखंड का ग्रामीण इलाको मा उद्यम
Copyright@ Bhishma Kukreti , 29/6/2012

Thursday, June 28, 2012

Aas: A varied themes Garhwali Poetry collection by shanty Prakash Jigyasu.

Bhishma Kukreti
       The followings subjects are in the poems of poetry collection ‘Aas’ by Shanti Prakash Jigyasu--
 Shanti Prakash shows hope to all of us and also humanity does not belong to self interest but for others in ‘Aas’poem.
 In the poem ’ Mera Gaun ku Thaud, the verse creator feels sorry that in the name of development, the bulldozer diminished the  village Thaul/Thaud/chaupal or villagers common meeting place.
The poet remembers the old days of cooperation and love among villagers before globalized economy took over from self contained village economy in the poem ‘Kakh ch v Bat’
 In ‘Daud’ poem, Shanty Prakash ‘jigyasu’ is searching the reasons for human being running for non winning race of fulfilling never ending desires.
‘Chakhula tain kya pata’ is a symbolic poem and Jigyasu does experiment with phrases having two or more philosophical or spiritual meanings for readers.
‘Dalu’ poem is pro ecology poem and speaks about tree plantation movement definitely not in the tone of preaching.
 ‘Ghanghtol’ is a truth-seeking poem for seeking reasons for our aspirations and not leaving anything for our fellows. 
‘Daktaran na boliyaal’ cautions softly that if human being would not take care in the early days the health problems are bound to come. The poet also depicts the differences between haves s and haves not with same phrases of poem.
‘Manjhyun k buru hal ch’ is a symbolic, philosophical poem. Jigyasu used his name parts ‘Prakash’ and ‘jigyasu’ as base for creating meaningful verse.
 Jigyasu illustrates the love of a mother towards her children in ‘Baulya’ poem.
 Banu reflects enjoyably the non believable logic of powerful countries or men snatching other’s rights or even right of living.
‘Basant’ poem creates images of spring but poet uses spring and never changing habit of nature depiction for satirical use to criticize the changing mentality of human beings.
‘Kweebat nee ch’ poem is dedicated to humanity.
‘Pida’  critises the exploitation of natural resources by human beings and not taking care of environment. The poem brings sadness too apart creating geographical images.
‘Gareebi’ poem shows the deceptive methods of shameless exploiters for taking benefits in the name of poverty.  In the name of ‘poverty eradication’ scheme, crooks are becoming richer and poor are becoming poorer.
‘Sanskar’ poem takes the readers in the world of dream and the reality of protection of old customs.
These days, the community is unhappy on girl birth. The poet Jigyasu shows the importance of girl to the humanity and future of humanity.
Shanty Prakash foresees the problems of mass migration from rural areas to urban regions in the poem ‘Maulkai reeti’.
The human being needs stable mentality as there are bound to be ups and downs in our lives is the theme of ‘Bakt’ and ‘Ek dhung’ poems.
The poet Shanti reveals the experiences of experiencing with easy and understandable phrases in ‘Rachna’ poem.
Today, human beings are busy to cut the same branches whereon they are living. ‘Kuryo’ poem of Jigyasu cautions us for our inhuman behaviors.
 Satirically, Shanty Prakash criticizes the partiality among human beings for not providing dues to deserving people both in the society and in the government administration in ‘Mainge’ poem.
Jigyasu is worried that the real culprits are showing crocodile tears to the public but in reality looting the public in ‘Kagja rawan’.
Shanti Prakash creates images of morning, sun rising and people of hills in the poem ‘Suber’.
 In the verse ‘Kaga Raibar’, Shanty Prakash feels pains of empty villages due to migration.
Shanty Prakash laughs at our double standard in discriminating our daughter and our daughter in laws in ‘ham’ poem.
Due to migration children are in cities and never remember parents in villages but mother always remembers her children.  Shanty Prakash depicts this theme differently in ‘Ag Bhabhraigi’ poem.
In ‘Nirasi Jindagi’ poem, Jigyasu is furious about nature’s discrimination. This poem is soft and with rapture of pathos but in fact, the poem is a rebellion poem against the whole system.
‘Hak ka bara’ poem attacks sharply on lazy nature of people.
When our own fellows ignore us we feel bad and the poem ‘Antar’ is about the sharp pain of our own people ignoring us.
‘Daulat’ poem attacks on greedy nature of rich countries for their exploitation of poor countries.
The rain is essential for everybody but daughter in law does not require rain that she completes her job that her mother in law does not lambast her. The poem’ Barkha’ describes our inner conflicts and contradictions.   
‘Betulo Bhag’ poem asks us about our discrimination between daughter and son in the ‘Betulo Bhag’ poem.
The poem ‘Choli’ describes phrase casting pearls before swine very effecting and at the same time, creates pathos rapture too.
  From centuries, there is a tragedy for hills that the youth and water of hills is for plains. The poem ‘Pahadai Cheej’ tells effectively the tale of this necessary evil.
‘Jagwal’ poem is about the sacrifice of a mother who could not see the good days by her son’s progress.’ Man ki Ankhi’ poem is also about sacrifice of a mother.
‘Syani’ poem is witnessing the changes taking place all over world by an old woman and the village woman is not enjoying the city life.
The poem ‘Thandi Jhaul’ is a satirical poem and shows the capability of Jigyasu’s command over the words.
The poem ‘Reeti riwaj’ attacks on the political leadership for its deceptive acts.
The poem ‘Jahar’ is a satirical figurative poem attacking the cunning people and their habits.
‘Mayam’ poem depicts the psychology of a lover.
Rain is a must but when there is heavy rain the people find different difficulties is the theme of ‘ Basgyal’ poem.
‘Alan’ poem describes the difference between life style of a rich man and poor man.
Jigyasu expresses the reality of luck, opportunity and execution in ‘Bhag’ poem.
Shanti Prakash attacks on blind faith and non descrimitive power of people to understand what is good and what is bad for them in ‘Ghadeli’ poem
Shanti Prakash Jigyasu is furious about pollution of reverend river Ganga in ‘Ganga’ poem and condemns all responsible for such inhuman acts.
‘Aina’ is a philosophical poem and at the same time a satirical poem too wherein the poet tries to search the difference between illusion and the reality of life.
Shanti Prakash is frustrated about the reality of Garhwal in ‘Apdu Gadhdesh’ poem.
Shanti Prakash Jigyasu does experiment by using proverbs and sayings in the poem ’Virani as’ and at the same time brings moral learning in the poem.
                                        Chhitga
        There seventy three poems in the form of ‘Chhitga’. ‘Chhitga’ is variety of Garhwali poem of either two lines or four lines poems. Virendra Panwar a prolific Garhwali literature critic states that ‘Chhitga’ are as rain drops, water drops, spit drops, acid drops in poetry format. Panwar further stresses that ‘Chhitga’ should create wider effect than the poem as the water drops work in awakening a sleeping person. Usually in ‘Chhitga’ of Shanti Prakash, there is satirical theme and there is comparison of two themes.
           In old generation poets, Abodh Bandhu Bahuguna and Prem Lal Bhatt did experiment by creating ‘Chhitga’. In contemporary Garhwali poetic world, Shanti Prakash Jigyasu and Narendra Kathait are two Garhwali poets famous for creating ‘Chhitga’ poems. However, Shant Prakash created more than two hundred ‘Chhitga’ poems till now.
 The above detailing of poems of ‘As’ confirms that there are varied subjects and theme in the poems of Shanti Prakash Jigyasu and those are of universal concerns.

Copyright@ Bhishma Kukreti, 29/6/2012
..wait for poetic style of shanty Prakash Jigyasu

डॉ नरेन्द्र गौनियाल की गढवाली कविता

********झपाग *****
 
कवि-  डॉ नरेन्द्र गौनियाल
 

नेता जु बि कर्द,कुछ बि कर्द,हैंका तै क्य, 
 कुच्छबि ना, सिर्फ अपणी लद्वड़ी भ्वर्द.
 
चुप रे चुप,कुछ न देख,कुछ न सुण,
कुछ न बोल,निथर तब देखि ले !   

न तिन खाय,न मिन खाय,
किलै ह्वै तेरी हाय-हाय.

न कैर जादा तकणा-तकण,
 अरे न कैर जादा खचरोल. 
निथर कखि जुगा ना
रैलु, कुकर सि भोल.

तू समझदी  मि ना त क्वी बि ना
इनि बि क्याच तेरी पदनचरी
त्वीत छै यख फुन्यानाथ.

जब छाय तब तिन क्य काय,
त्यारा रैण पर हमन क्य पाय,
जत्गा छाय वो बि नि राय.

तू समझदी कि खचोरि कै
कुछ त ह्वै जालु.
पण लाटा,तू नि जणदि कि
पत्तल पर छेद ह्वै जालु.     

वूंकि याद हमन,जिकुड़ी मा धरीं.
वून हमर तरफ पीठ फर्कयीं.
 

      डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित.

Shibba Bodi ar Goonga Naunyal: a Garhwali Story discussing Trees as Successors

(Review of Garhwali Story Collection ‘Ek Dhanga ki Atmkatha’ (1988) by Bhagwati Prasad Joshi ‘Himawantwasi’)

                        By Bhishma Kukreti
    Shibba Bodi once, was a very beautiful girl and very soft by physique and by heart. When she was girl her name was shivani. She was married to Bhavani a strong built man. However Bahvani died in foreign land (pardesh). Shibba planted trees in her farmland. Now, trees are her successor those provide fruits and love to all. The writer states that there can’t be better successor than dumb trees for human beings. The story is mixture of philosophy and hard reality of death and birth.
Reference-
Dr. Anil Dabral, 2007, Garhwali Gady Parampara

Copyright@ Bhishma Kukreti , 29/6/2012

Bhat: A Garhwali Stage Play Exposing Hypocrisy in Caste System of Upper Caste Brahmins

(Review of Garhwali Stage Play ‘Bhat’ (December 1996) by Playwright Om Prakash Semwal)

                                        By: Bhishma Kukreti

[Notes on worldwide Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Garhwali Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Uttarakhandi Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Mid Himalayan Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Himalayan Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; North Indian Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Indian Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Indian sub continent Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; SAARC Countries Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; South Asian Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Asian Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy]
[जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते नाटक; जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते गढ़वाली नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते उत्तराखंडी नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते मध्य हिमालयी नाटक; जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते हिमालयी नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते उत्तर भारतीय नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते भारतीय नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते सार्क देशीय नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते दक्षिण एशियाई नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते एशियाई नाटक लेख माला]
         There has been tendency of creating stage-plays or drama for lambasting hypocrisy in society in every community and every language.
               ‘Coming Home’ by playwright George Halitzka is a drama about hypocrite mother taking alcohol drink regularly but preaching children not to take alcohol; Senior Trip by same playwright about hypocrisy; ‘Tartuffe’ drama by playwright Jean-Baptiste (1664) is about hypocrite man pretending as deeply religious and moral man; Henrik Ibsen exposing hypocrisy in his stage plays or dramas; are a couple of examples of dramas or stage plays exposing hypocrisy in each community or in each language.
    The stage play or mini drama ‘Bhat’ written by playwright Om Prakash Semwal was stage in 1996 in a school district Chamoli Garhwal now Rudraprayag.   Two Brahmins Bhawani and Geeta from same village are close friends and share rice-mutton, alcoholic drink together in a town restaurant. They don’t mind taking ‘Bhat-Shikar (rice –mutton) from the same plate and taking drink from same glass.  However, when the time comes to sit together for taking meal in a common platform of village marriage party Bhavani refuses to attend for marriage party as Geeta is coking Bhat (rice). Geeta’s mother was from lower cast Brahmin.
   Bhat’ drama is an educational drama and is aimed at young student audience. The language and events of the stage play are simple to engage the teen ager students. The student audience definitely would feel awkward about watching the exposure of hypocrisy of two types of Brahmins.

Copyrights @Bhishma Kukreti 28/6/2012

Notes on worldwide Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Garhwali Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Uttarakhandi Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Mid Himalayan Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Himalayan Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; North Indian Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Indian Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Indian sub continent Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; SAARC Countries Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; South Asian Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy; Asian Stage Plays or Dramas Exposing Hypocrisy to be continued….
जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते नाटक; जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते गढ़वाली नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते उत्तराखंडी नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते मध्य हिमालयी नाटक; जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते हिमालयी नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते उत्तर भारतीय नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते भारतीय नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते सार्क देशीय नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते दक्षिण एशियाई नाटक;जातीय ढोंग-पाखंड को दिखाते एशियाई नाटक लेख माल जारी ...

Wednesday, June 27, 2012

Bhoot ku Chuffa Hath: A Garhwali Story depicting Social Mood with Contemporary Subject of concerns

(Review of Garhwali short Story Collection ‘ Ek Dhanga se Sakshatkar’ (1988) by Bhagwati Prasad Joshi)

                                       By: Bhishma Kukreti

[Notes on Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; Garhwali Story depicting Social Mood with Contemporary Subject; Uttarakhandi Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; Mid Himalayan Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; Himalayan Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; North Indian Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; Indian Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; South Asian Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; Asian Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject]

     No doubt, the story ‘Bhoot ku Chuffa Hath’ is a moral story. However, the story writer shows the contemporary issues of society and their main concerns. A strong built man, very active in his agriculture works Nathu was village Padhan (jameedar). He did not send his son Gabdu   to school. Gabdu got unwanted friendship.  After the death of Nathu, Gabdu did not come in line and was busy with his lazy friends. The family started losing farms and balance farms were not producing food enough for the family. One day, his wife found that there are no cereals at all to cook. She goes to steal the crop (Kauni) from the Seth’s farm. Gabdu became conscious of his wife’s activity, goes behind his wife and when Gabdu finds the reality he was shocked.
  The story depicts the laziness of male partners of village families and their unawareness about new changes taking place.
 The tale telling style is attractive.
Reference-
Dr Anil Dabral, 2007, Garhwali Gady Parampara
(Bhagwati Prasad Joshi ‘Himwantwasi’ died in 1988, when the story collection book ‘ Ek Dhanga se Sakshatkar’ was in final stage for publishing)

Copyright@ Bhishma Kukreti, 28/6/2012
Notes on Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; Garhwali Story depicting Social Mood with Contemporary Subject; Uttarakhandi Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; Mid Himalayan Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; Himalayan Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; North Indian Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; Indian Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; South Asian Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject; Asian Stories depicting Social Mood with Contemporary Subject

एक लेख जिसने कई बहसों /चर्चाओं को जन्म दिया

घपरोळ
                                                च छ थौ
                                    भीष्म कुकरेती
[यह लेख गढ़ ऐना १३ अप्रैल १९८९ व धाद, जुलाई १९९० में प्रकाशित हुआ था. इस लेख ने कई चर्चाओं को जन्म दे दिया था )
--- हाँ ! त !
थौ---हाँ -हाँ त
----हाँ ! हाँ भै हाँ !
छ- त ठीक ?
थौ- बिलकुल ठीक !
च-- भै अब रयुं बि क्या ?
छ- लगै द्यूं पवाण (शुरुवात करना ) ?
थौ--- हाँ आपी पवाण लगावा .
--- भै आप लगैल या आप लगैल क्या फरक पड़दु ?
छ- हाँ त मै सणि ब्वाळि गढवळि का खांमांखां मिलि छौ .
थौ-- छौ ना थौ ब्वालो
-- अर मै तै थौ से छौं च '
छ गौ मांस समान च .
- अर मै पर च से दमळ उपड़ी जान्दन.
थौ से मेरी द्वी कुली खाण बिसे जान्दन
थौ --अर मी च दिखुद त चक्कर आन्दन .
अर छौ सूणीक छरका लगि जान्दन
- म्यार चुसणा से .मीन त च इ बुलण
छ- चुसणा त तुम दुयूं तै चुसण पोडल. जब मी तर्क अर वितर्क से बतौल कि असली गढवळि 'छ' छ.
सिरीनग्र्या छ , अर गढवाळ को केंद्र श्रीनगर छौ.
थौ -तुम द्वी कुवा मिंढक छवां . गढ़वाळै आख़री राजधानी टिहरी थै.
- अरे रै होल्या राजधानी श्रीनगर या टीरी . हमर अडगै (इलाका) से त फार (दूर ) इ छया.हम फर कैकु बि रौब दाब नि छयो. हमकुण त नामो क राजधानी ...
छ- अबै प्रभाव की बात जाणि दे . राजधानी त राजधानी होंद.
थौ- टीरी थै राजधानी.
- कखि बि छे हम से त फार इ छे राजधानी .
छ- निर्भागी ! हमारो क्या दोष कि तुमर इलाका से दूर छै राजधानी?
थौ- दुर्जनों ! मै बि त ई इ बखणु थौ अबि तलक .
-- ये दांत तोड़ी द्योलू हाँ मि
छ- आँख फोड़ी द्योलू हाँ मि
थौ- नकद्वड़ फोड़ी द्योलू हाँ मि .
गढवळि-- ए दगड्यो ! किलै लड़णा छंवां ? किलै बौळयाणा छवां ?
- गढवळि भाषौ माणापाथिकरण मतबल मानकीकरण की मीटिंग च आज
छ- हाँ ! जब तलक माणापाथिकरण नि होलू बात अगनै कनै बढ़लि !
थौ- हाँ याँ पर मी बि सहमत छौं बगैर स्टैंडर्डा इजेसन क गढवाली लिखे इ नि जाण चयेंद. बगैर मानकीकरण से बडी परेशानी होलि
- हाँ हाँ बगैर माणापाथिकरण कु गढवळि भाषौ विकास हूँ मुश्किल च
छ- सै बात छ.
थौ- एक दम सै
गढवळि-- अच्छा च कु मतलब ?
छ- सलाणि छ जगा फर च लगांदन कबि कबि, कखि क खि
थौ- च माने छ
गढवळि-- थौ माने ?
- थौ माने छौ
छ- छ कु भूतकाल थौ ...
गढवळि-- लडै किलै?
सब्बि - अर लडै ? माणापथिकरण नि होलू त भाषा कन कैक होलि ? पैल मानकीकरण हूण चयेंद. तब गढवाली मा लिखेण चयेंद.
गढवळि-- ठीक ! त इन बतावा बल तुमन अब तलक कथगा ल्याख अर क्या ल्याख ?
- अरे ! लिखणा क मी तै जरुरत इ क्या च? लेखिक हूंद क्या च ?
छ : जु हम लिखदा इ त बहस किलै करण छौ? बहसौ कुणि टैम कख हूण छौ ?अर लेखिक क्वी मै तै तगमा थुका मीलल ?
थौ- लेखिक मीन अपण टाईमो बर्बादी करण ? अर लिखन कख ? क्वी ना त अखबार, ना क्वी माध्यम अर ना इ क्वी बंचनेरुं क्वी ढब अर ना पाठ्कुं क्वी बिज्वाड़!
गढवळि-- औ ! त जरा इन बथावदी कि तुम करदा क्या क्या छवां ?
- मि लगीँ पौद तै उपाड़िक फुंड भेळ चुलांदु
छ- मि , क्वी सीदो बाटो जाणो ह्वाऊ त मि वै तै भेळ उन्द धकल्याणो काम करदु.
थौ- लोगूँ कि पकीं फसल देखिक म्यरा अंदड़ म्वाट ह्व़े जान्दन . मि पकीं फसल पर बणांक लगान्दु .
गढवळि-- औ त गाडौ हाल इ छन. जावा पैल अपण अपण इलाका क बोल्युं मा खूब ल्याखो तब माणापथिकरण/मानकीकरण /स्टैंडर्डाइजेसन की छ्वीं लगाओ. भैंस गैबण ह्वाई नी च अर छ्वीं लगणा छन बल प्यूंस कै भद्वल पर बौणल!
-नोट-
१-इस लेख के विरुद्ध में श्री भगवती प्रसाद नौटियाल जी ने धाद , ओक्टोबर १९९० में 'पुरु दिदा ' नाम से व्यंग्य किया था बकौल डा अनिल डबराल," भगवती प्रसाद नौटियाल का व्यंग्य 'पुरु दिदा' प्रकाशित हुआ जिसमे पुरू नामक पत्र के माध्यम से भीष्म कुकरेती का उपहास किया गया-- जै कु नौ त भीसम जन बुल्यो भीसम पितामह को ओउतार हो पर काम देखा दों - कुल लड्योण्या छ्वीं ! अरे छोरा पैलि खै त ळी तब बाँध कुटरि. लेख्दी दां त बौंहड़ पडया रौंदन अर छ्वीं हो नी छन मानकीकरण की...
डा. अनिल लिखते हैं कि भगवती प्रसाद ने भीष्म कुकरेती को इस तरह नोचा लेकिन भीष्म कुकरेती ने 'घपरोळ' स्तम्भ के 'च छ थौ' शीर्षक में यह बात यूँ कही थी"
च - मि लगीँ पौद तै उपाड़िक फुंड भेळ चुलांदु
छ- मि , क्वी सीदो बाटो जाणो ह्वाऊ त मि वै तै भेळ उन्द धकल्याणो काम करदु.
थौ- लोगूँ कि पकीं फसल देखिक म्यरा अंदड़ म्वाट ह्व़े जान्दन . मि पकीं फसल पर बणांक लगान्दु .
२- धाद में फिर इस विषय पर अबोध जी, बाबुलकर, देवेन्द्र जोशी जी व लोकेश जी कि लम्बी बहसे हुईं अंत में लोकेश जी ने खा - बन्द क्रा मानकीकरण कि छ्वीं .
३- गढ़ ऐना में श्री अबोध बहुगुणा , श्री राजेन्द्र जुयाल व डा. भगवती प्रसाद जी कि बहस हुयी थी.
सन्दर्भ - डा अनिल डबराल - गढ़वाली गद्य परम्परा , २००७

Copyright@ Bhishma Kukreti 28/6/2012

Dwipalya: A Garhwali Morality Play (seeing is better than believing on words)

(Review of a Garhwali drama ‘Dwipalya’ (1989) written by Kukreti)

                                Bhishma Kukreti

[Notes on Moral based dramas; Moral based Garhwali dramas; Moral based Uttarakhandi dramas; Moral based Mid Himalayan regional language dramas; Moral based Himalayan regional language dramas; Moral based  regional language dramas; Moral based  north Indian regional language dramas; Moral based  Indian regional language dramas; Moral based Indian sub continent  regional language dramas; Moral based  SAARC Countries regional language dramas; Moral based  South Asian regional language dramas; Moral based  Asian regional language dramas]
[क्षेत्रीय भाषाई नाटक;गढ़वाली नाटक; क्षेत्रीय भाषाई उत्तराखंडी नाटक; क्षेत्रीय भाषाई मध्य हिमालयी नाटक;क्षेत्रीय भाषाई हिमालयी नाटक;क्षेत्रीय भाषाई उत्तर भारतीय नाटक;क्षेत्रीय भाषाई भारतीय नाटक;क्षेत्रीय भाषाई भारतीय उप महाद्वीपीय नाटक;क्षेत्रीय भाषाई सार्क देशीय नाटक;क्षेत्रीय भाषाई दक्षिण एशियाई नाटक;क्षेत्रीय भाषाई एशियाई नाटक लेखमाला ]

       Dwipalya’ a Garhwali drama written by Kukreti  is published in Garh Aina (Year-2, issue -310, 18th June 1989, page -3)
           Jeetu is shocked when he comes to know that his own younger brother Nathi pushed the Wad (a small demarcation or petitioning stone between two farms) to increase his portion of fertile and plain farmland.
  There is quarrel between two brothers and they are ready to beat physically each other. When Sudama opens the real secrete both are shocked.
   The setting is very simple and setting is as happens in rural Garhwal of old age. The dialogues are from day to day life. The quarrel for ‘Wad Sarkan ‘(shifting of demarking stone in own favor) scene is also common (there was opportunity for playwright for more sharp quarrel as happens in daily life). The shocking news is also happens many time.
  The drama is a mini drama and director may add many more scenes connected to the theme.  At the end, there is moral story without preaching speeches. The drama is interesting.

Copyright@ Bhishma Kukreti, 27/6/2012
Notes on Moral based dramas; Moral based Garhwali dramas; Moral based Uttarakhandi dramas; Moral based Mid Himalayan regional language dramas; Moral based Himalayan regional language dramas; Moral based  regional language dramas; Moral based  north Indian regional language dramas; Moral based  Indian regional language dramas; Moral based Indian sub continent  regional language dramas; Moral based  SAARC Countries regional language dramas; Moral based  South Asian regional language dramas; Moral based  Asian regional language dramas to be continued..
क्षेत्रीय भाषाई नाटक;गढ़वाली नाटक; क्षेत्रीय भाषाई उत्तराखंडी नाटक; क्षेत्रीय भाषाई मध्य हिमालयी नाटक;क्षेत्रीय भाषाई हिमालयी नाटक;क्षेत्रीय भाषाई उत्तर भारतीय नाटक;क्षेत्रीय भाषाई भारतीय नाटक;क्षेत्रीय भाषाई भारतीय उप महाद्वीपीय नाटक;क्षेत्रीय भाषाई सार्क देशीय नाटक;क्षेत्रीय भाषाई दक्षिण एशियाई नाटक;क्षेत्रीय भाषाई एशियाई नाटक लेखमाला जारी ...