Floriculture in Uttarakhand
डा बलबीर सिंह रावत
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मन को हर्षित कर देने वाला शब्द फूल , पुष्प ,रंगौ, सुगंधियों से भरपूर . जिसको दो उसको हर्षित कर के अपने हित में मिला लो। भगवान् को चढाओ, बर माला बनाओ, जन्म दिन में, सालगृह में,स्वागत समारोहों में, मेल मुलाकातों में, भोजनालयों, होटलों की मेजों में, घर के गमलों में,श्र्धांज्लियों में,हर जगह फूल ही फूल। कहने का तात्पर्य यह है कि हर मौके के लिए तरह तरह के फूलों की मांग है, और जैसे जैसे, लोगों की आमदनी और रूचि बढ़ती रहेगी, वैसे वैसे फूलों के मांग हर मौसम में बढ़ती रहेगी . यही बढ़ती मांग है जो पुष्प उत्पादन के व्यवसाय को प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त है।
वैश्विक स्तर पर फूल उद्योग 10 प्रतिसत प्रतिवर्ष बढ़ रहा है याने कि फूल उद्योग दिनों दिन फल फूल रहा है . एक आकलन के हिसाब से सन 2015 में फूल उद्योग 9 लाख करोड़ का हो जाएगा। .जर्मनी ,अमेरिका, ब्रिटेन , फ़्रांस ,हौलैंड और स्विट्जर लैंड दुनिया के अस्सी प्रतिशत फूल आयात कर्ता देश हैं . ग्लोबल मार्केटिंग के कारण आज तेल अवीव ,दुबई और कुनमिग (cheen)फूलों के नये विक्री वितरण केंद्र बन गये हैं .
जहां तक भारत का प्रश्न है यह उद्योग हर साल तीस प्रतिशत के हिसाब से बढ़ रहा है . सन 2015 में भारत का फूल निर्यात 8000 करोड़ रूपये का हो जाएगा . गुलाब का फूल सबसे अधिक निर्यात होता है अभी भारत में कर्नाटक भारत का 75 प्रतिशत पुष्प निर्यातक प्रदेश है . इसके बाद क्रमश: महाराष्ट्र , तमिलनाडु, बिहार ,पश्चिम बंगाल ,उत्तरप्रदेश ,हरियाणा,पंजाब , जम्मू-कश्मीर ,आन्ध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश का नम्बर आता है .
पुष्प उद्योग में जहाँ तक उत्तराखंड का प्रश्न है अभी इसमें प्रगति नही हुयी है . डा निशंक ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में 2000 रूपये प्रति वर्ष का टार्गेट रखा था .
एक सर्वेक्षण के अनुसार उत्तराखंड में 300 प्रकार के निर्यातगामी फूल उगाये जा सकते है .इसके उत्तराखंड में और भारत में भी अंतर्देशीय उपभोक्ता हैं . भारत में 10000 करोड़ के फूल बिकते हैं याने की आतंरिक खपत भी फूल उद्योग वृद्धि को प्रेरित करता है
इस तरह हम पाते हैं कि उत्तराखंड में पुष्प उद्योग की अपार संभावनाएं हैं और प्रतेक उत्तराखंडी को इन संभावनाओं से लाभ लेना ही चाहिए .
पुष्प उत्पादन , कृषी के अन्य उत्पादनों से भिन्न है। भिन्न इसलिए है कि इसके उत्पादों को अन्तिम उपभोक्ता तक उसी सुन्दर रुप में पहुचाना पड़ता है, जिसमे रूचि और मौके के अनुसार आकर्षण हो, यानि, पुष्पों में रंग पूरे, ताजगी पूरी और आकर्षण पूरा सुरक्षित रहना चाहिए जो उसका प्रमुख नैसर्गिक गुण है। इन्ही विशेष कारणों से पुष्प उत्पादन व्यवसाय की एक अपने में अलग ही विशेष विशेषग्यता है।
सब से पाहिले यह जानना जरूरी है की आपके इलाके में कौनसे पुष्प सब से अच्छे उगाये जा सकते हैं। यह सलाह आपको प्रदेश के बागवानी और फ़्लोरिकल्चर विभाग से मिलेगी। कृषि विश्व विद्य्यालय से भी जानकारी तथा पर्शिक्षण मिल सकता है। किसी सफल पुष्प कृषक के फार्म में जा कर देख पूछ कर व्यवसाय की जानकारी मिलती है। इन सब प्रार्थमिक सूचनाओं के आधार पर आप अपना बिचार व्यवहार में ला सकते है।पुष्प उत्पादन में दो शाखाये हैं, फूल जैसे के तैसे बेचने का और सुगन्धित फूलों से इत्र बनाने का . दोनों साथ साथ भी चल सकते हैं।
इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए पर्याप्त पूंजी , समुचित तकनीकी ज्ञान, दक्ष श्रम शक्ति और नियमित स्थाई बाजार का होना आवश्यक है । खेत की मिट्टी की जांच करा लीजिये, जैविक खाद और उर्वरकों का प्रबंध कर लीजिये, सिचाई की नियमित व्यवस्था जरूरी है। बीज/पौध का प्रबंध,समय पर बुआई, रोपाई , नियमित सिंचाई (सब से उत्तम है ड्रिप तरीका ), गुडाई, पौध संरक्षण के लिए जो रसायन चाहियें, सुनिश्चित कर लीजिये की वे नियम कायदों के अनुरूप हों, बाजार के फुटकर विक्रेताओं की सलाह पर न चलिए, वे अपने मुनाफे को ध्यान में रखते हैं, आपके और ग्राहकों के हित को नहीं। तो सरकारी या विश्वविद्यालयों के विज्ञान केन्द्रों से ही सलाह लीजिये और केवल मान्यता प्राप्त उत्पादक संस्था के ही रसायन उपयोग में लाईये। कुछ महंगे अवश्य होंगे परन्तु आपकी विस्वशनीयता बनी रहेगी, जो इस धंदे के लिए परम आवश्यक है। खेत खुले और पोली हाउस तरह के हो सकते हैं।ये भी ध्यान रहे कि फूलों के पौधों को धूप की पूरी रोशनी मिलती रहे। खाद, उर्वरक, कीट और फफूंद नाशक द्रव्यों का समयानुसार छिडकाव, समुचित (न कम न अधिक) सिंचाई, निर्धारित समय पर निर्धारित मात्रा में होती रहे। फूल जितने कोमल होते हैं उनकी देख रेख भी उतनी ही कोमलता से करनी होती है। यह व्यवसाय अधिक निवेश और ध्यान माँगता है, और अधिक लाभ तो देता ही है , अधिक संतुष्टि भी देता है। {रबीन्द्र नाथ टेगोर ने अपनी एक कविता में कहा भी है कि (भावार्थ) जब निराशा घेर ले तो पुष्प उगाओ , खिलते पुष्पको देखने से जो आनंद मिलता है उससे निराशा भाग जाती है ।}
जब फूल खिलने लगते हैं तो उन्हें उसी समय , ऐसी लम्बाई और आकार में , काट कर पौधों से अलग करना चाहिए जिस आकार और स्तिथि में वे बाजार के फूल बिक्रेता की दूकान पर पहुंच जाय। यह
ध्यान में रखना होता है कि कटा भाग अब भी ज़िंदा है और वोह बढ़ भी रहा है, मरा नहीं है। अंतिम ग्राहक के पास पहुचने तक उसे उस रूप में होना चाहिए जिसमे उसे ग्राहक चाहता है। फूलों का यह कुछ समय तक जीवित और बढ़ते रहने का गुण अलग प्रजाति का अलग अलग होता है . इसी कारण पुष्प उत्पादन में दक्षता पूरी होनी चाहिए कि किस फूल को कब काटना है, और किस बाजार के लिए काटना है। नजदीक के,, दूर के, विदेश के। कैसे साधन से भेजना है ? यह सारी विशेषताए मायने रखती हैं, आपकी विश्वसनीयता और मुनाफे के लिए।
पौधों से अलग करने पर फूलों को इस प्रकार पैक करना होता है की उनके किसी भी भाग को कोई खरोंच तक न आय। इसलिये पाकिंग और लदान, ढुलान के लिए विशेष प्रकार के कागज़ , कपडे, बक्शे, कंटेनर, जो भी आवश्यकता होती है, उसे पूरी करना चाहिए क्योंकि इन जरूरतों के साथ छोटी से छोटी भी लापरवाही भी महंगी पड़ती है। पूरा का पूरा माल वापस तो आएगा ही, आगे का धंदा भी हाथ से जा सकता है।
कटे फूलों के अलावा फूलों के बीज, कलमें, गांठें,तने, जिस से भी ने पौधा बनता है ओह, उगे पौध, खिलते फूलों के पौधे भी आसानी से बिकते हैं। ऐसे व्यापार के लिए प्रशिक्षित श्रम शक्ति अधिक चाहिए , केवल खानदानी माली होने से ही काम नहीं चलता ,अनुभव महत्व पूर्ण है। इसलिए माली लगाने से पाहिले उसकी पृष्ठ भूमि जाचना हितकारी होता है।
आर्थिक दृष्टि से उचित आकर के क्षेत्र में ही फूलों की खेती करनी चाहिए। येआ आकर इस पर निर्भर करेगा की बाजार में आपके कौन कौन से फूलों की कितनी मांग है, और उसी खेत्र में कितने और उत्पादक हैं। इसलिए पूरा समय लीजिये, सारी छन बीब कर के संतुष्ट होनर पर ही शुरू कीजिये। प्रारम्भिक झटके होते हैं, उनसे पार पाने के रास्ते समय पर आप निकाल सकें, इसके लिए सचेत रहिये। यह व्यवसाय पर्याप्त लाभ और प्रसन्नता देने वाला है।
--डॉ। बलबीर सिंह रावत.. BK OO6/25.12. ,
dr.bsrawat28@gmail.com
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