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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, April 26, 2011

Allat Nath Bhatt ‘ Suri : First Sanskrit Poet of Garhwal

Great Garhwali Personality:
Allat Nath Bhatt ‘ Suri : First Sanskrit Poet of Garhwal
Bhishma Kukreti
Garhwal and Kumaun had been the regions where many Sanskrit scriptures , and modern languages books were created by creative.
However, the past creative of India never mentioned their names in the scripture and historians find difficult to know about the whereabouts . However, the creative of these scriptures have provided the historical references and glimpses of social structure of their time.
Credit goes to eminent most historian of Uttarakhand , Dr Shiv Prasad Dabral for providing the details of first Garhwali Sanskrit poet Allat Nath Suri or Allad Nath Suri.(Refr-1)
Alladnath was the son of an intellectual and knowledgeable Sanskrit Pundit Sidh Laxaman. His date of birth is unknown but it is sure that he created his verses in thirteenth century. By the names of both pundits, we may certainly guess that Nath sect was a prominent sect of Uttarakhand in thirteenth century. He was born in the time of Ekchakra regime ruled by Chauhan dynasty or Bahban dynasty (Kane).
Ekchakra kingdom seemed to be near Chakrata Dehradun , Ekchakranagari was capital and the kingdom was extended at the bank of Yamuna. King Suryaman suggested Allad Bhat Suri for writing the history of I.e ek Chakra regime , Allatnath Bhatt Suri was profound pundit of Vedas, logics, grammar, Smritis and Garhwali geography too
Allatnath created a very remarkable book called ,’ Nirnayamrit’ in Sanskrit. It is proof that within short period of its creation, Nirnayamrit got immediate recognition and authentic book of ‘Dharmashastra or Neetishashtra (Kane). There are references of Nirnayamrit in authentic scriptures of Dharmashashtra as Nirnanaysindhu, Daytatva, Teerthnirnaya, Kalnirnaya, Nirnayadeepak, Shradhkriyakaumadi.
There are stanzas in Nirnayamrit , which help for knowing the historical details of Garhwal of twelfth and thirteenth centuries.
The hand written manuscript of Nirnayamrit is available at Bhandarkar Institute, Mumbai and it is published twice. One copy of the book is available in Berline museum (Professor Bavor)
Allat Bhatt Suri created another book in Sanskrit ‘Sakalpuran sammuchaya’
Many knowledgeable Garhwalis as Sadanand Jakhmola, Lalita Prasad naithani, Rama Prasad Ghildiyal ‘Pahadi’ , Dr shiva Nand Nautiyal anda non Garhwali scholars Kamala Ratnam, Banarasi Das Chaturvedi voiced that Kalidas was first Garhwali Sanskrit . However , there is no universal agreement about Kalidas being a Garhwali who was born in Kaviltha village of Chamoli Garhwali but there is no any disagreement about the authenticity that Allatnath Bhatt was first Garhwali Sanskrit poet .
References:
1-Dabral, Shiv Prasad, Uttarakhand ka Itihas, Bhag-4, Veer Gatha Press Dogadda, Garhwal, India, pp94-95
2-Kane, Dharmashashtron ka Itihas
3-Bavar, Collected works of Bhandarkar-2,page 143
Copyright @ Bhishma Kukreti, Mumbai, India, 2009

क्या नपुंसकों की फ़ौज गढ़वाली साहित्य रच रही है ?

भीष्म कुकरेती
जो जीव विज्ञान की थोड़ी बहुत जानकारी रखते हैं वे जानते हैं कि जीव जंतुओं में पुरुष कि भूमिका एकांस ही होती है और वास्तव में पुरुष सभी बनस्पतियों , जानवरों व मनुष्यों में नपुंसक के निकटतम होता है . एक पुरुष व सोलह हजार स्त्रियों से मानव सभ्यता आगे बढ़ सकती है किन्तु दस स्त्रियाँ व हजार पुरुष से मानव सभ्यता आगे नही बढ़ सकती है .
पुरुष वास्तव में नपुंसक ही होता है और यही कारण है कि उसने अपनी नपुंसकता छुपाने हेतु अहम का सहारा लिया और देश, धर्म(पंथ) , जातीय , रंगों , प्रान्त, जिला, भाषाई रेखाओं से मनुष्य को बाँट दिया है
यदि हम आधुनिक गढ़वाली साहित्य कि बात करें तो पायेंगे कि आधुनिक साहित्य गढ़वाली समाज को किंचित भी प्रभावित नही कर पाया है. गढ़वालियों को आधुनिक साहित्य की आवश्यकता ही नही पड़ रही है तो इसका एक मुख्य करण साहित्यकार ही है जो ऐसा साहित्य सर्जन ही नहीं कर पाया की गढ़वाल में बसने वाले और प्रवाशी गढ़वाली उस साहित्य को पढने को मजबूर हो जाय
वास्तव में यदि हम मूल में जाएँ तो पाएंगे कि गढवाली साहित्य रचनाकारों ने पौर्षीय रचनाये पाठकों को दी और पौर्षीय रचना हमेशा ही नपुंसकता के निकट ही होती है
एक उधारहण ल़े लीजिये कि जब गढ़वाल में " ए ज्योरू मीन दिल्ली जाण ," जैसा लोक गीत जन मानस में बैठ रहा था हमारे गढ़वाली भाषा के साहित्यकार पलायन कि बिभिशिका का रोना रो रहे थे.
"ए ज्योरू मीन दिल्ली जाण " का रचना कार स्त्री या शिल्पकार थे जो कि जनमानस को समझते थे किन्तु उस समय के गढवाली साहित्यकार उलटी गंगा बहा रहे थे
कन्हया लाल डंडरियाल जी को महा कवि का दर्जा दिया गया है . यदि उनके साहित्य को ठीक से पढ़ा जाय तो पाएंगे कि जिस साहित्य कि रचना उन्होंने स्त्रेन्य अंतर्मन से लिखा वह कालजयी है किन्तु जो डंडरियाल जे ने पौर्षीय अंतर्मन से लिखा वह कालजय नहीं है
तुलसी दस , सूरदास को यदि सामान्य जन पढता है या गुनता है तो उसका मुख्य कारण है कि उन्होंने स्त्रेन्य अंतर्मन से साहित्य रचा
बलदेव प्रसाद शर्मा दीन जी क़ी "रामी बौराणी' या जीत सिंह नेगी जी कि " तू होली बीरा " गीतों का आज लोक गीतों में सुमार होता है तो उसका एकमेव कारण है कि ये गीत स्त्रेन्य /स्ट्रेणय अंतर्मन से लिखे गए हैं .
नरेन्द्र सिंह नेगी जी के गीत वही प्रसिद्ध हुए जिन्हें उन्होंने स्ट्रेणय /स्त्रेन्य अंतर्मन से रचा . जो भी गीत नेगी जी ने पौर्षीय अंतर्मन से रचे /गाये वे कम प्रशिध हुए उसका मुख्य कारण है कि पौर्षीय अंतर्मन नपुन्सकीय ही होता है जहाँ अभिमान आ जाता है वह पौर्षीय नहीं नपुन्स्कीय ही होता है
जहाँ गढ़वाल में " मैकू पाड़ नि दीण पिताजी " जैसे लोक गीत स्त्रियाँ या शिल्पकार रच रहे थे वहीं हमारे साहित्यकार अहम के बशीभूत पहाड़ प्रेम आदि के गीत /कविता रच रहे थे .स्त्री अन्तर्मन से ना रची जाने वाल़ी रचनाये जन मानस को उद्वेलित कर ही नही सकती हैं
गढ़वाली में दसियों महिला साहित्यकार हुए हैं किन्तु उन्होंने भी पौर्षीय अंतर्मन से गढ़वाली में रचनाये रचीं और वे भी गढ़वाली जनमानस को उद्वेलित कर पाने सर्वथा विफल रही हैं
मेरा मानना है कि जब तक आधुनिक गढ़वाली साहित्य लोक साहित्य को जन मानस से दूर करने में सफल नही होगा तब तक यह साहित्य पढ़ा ही नही जाएगा और इसके लिए रचनाकारों में स्त्री/हरिजन/शिल्पकार अंतर्मन होना आवश्यक है ना कि पौर्सीय अंतर्मन या नपुन्स्कीय अंतर्मन .स्त्रीय/हरिजन/शिल्पकार अंतर्मन जन मानस की सही भावनाओं को पहिचानने में पूरा कामयाब होता है किन्तु पौर्षीय अंतर्मन (जो कि वास्तव में नपुंसक ही होता है ) जन मानस की भावनाओं को पहचानना तो दूर जन भावनाओं कि अवहेलना भी करता है .
जब कोई भी किसी भी प्रकार की रचना स्त्रेन्य अंतर्मन से रची जाय वह रचना पाठकों में उर्जा संप्रेषण करने में सफल होती है, वह रचना संभावनाओं को जन्म देती है अतः गढ़वाली साहित्यकारों को चाहिए की अपनी स्त्रेन्य/शिल्पकारी/हरिजनी अंतर्मन की तलाश करें और उसी स्त्रेन्य/शिल्पकारी/हरिजनी अंतर्मन से रचना रचें हमारे गढ़वाली साहित्यकारों को ध्यान देना चाहिए कि सैकड़ों सालों से पंडित श्लोको से पूजा करते आये हैं और जनमानस इस साहित्य से किंचित भी प्रभावित नहीं हुआ किन्तु शिल्कारों/हरिजनों/दासों/बादी /ड़ळयों (जो बिठ नही थे ) क़ी रचनाओं को जनमानस सहज ही अपणा लेता आया है . उसका एक ही कारण है पंडिताई साहित्य पौर्षीय साहित्य (याने नपुन्स्कीय ) है किन्तु शिल्पकारों/बादियों/ड़लयों/दासों का साहित्य स्त्रेन्य अंतर्मन से रचा जाता है

गढवाल की वनौषधीय वनस्पति

Presented by Bhishma Kukreti
प्रस्तुतकर्ता : भीष्म कुकरेती
खैर, बबूल, वज्रदंती , मूसली, आंवला , बेहडा , हरड़, पाटी , कंटेल़ा, सतावरी , गिलोय , पिस्सू-घास, जयंत, मदार, अमलतास, तेज, करेली, इन्द्रायण , पोस्ट, भांग, ब्रह्म्बूटी , वकायन,नीम, गुलाबांस , हरसिंगार, अश्वगंधा, शंखपुष्पी, धौलू , सिंगरी, चित्रा, ममेला,मरोड़फली अतीस, मीठा, मासी , ग्गुग्ग्ल, कुटकी, अष्टवर्ग, लहसुनिया, , सालमपंजा, मेदा, , महामेदा, पाषाणभेद, , सूमया, वन काखडि , चोरु , रत्न, ज्योति, , विषकोया, , चंद्रा, कॉल, ममीरी, चीरता, फरण , निर्देशी, , कल्याणी, कल्यारी, वनस्पा,वासा, दारु, चिरायता, अदरक, जीवक, रिश्भ्क, काकोली, क्षीर, रिधि, कचनार, जायफल, खदिर, नागरमोथा, मालकंगनी, काकोली, आपामर्ग, द्रोणपुष्पि, विदारीकन्द, जटामोंसी, भल्लातक, निर्गुन्डी, रीठा, मुलैठी, ब्रिधिकबीला, गुलबंफला, शतावरी, दालचीनी, सालाम्मिश्री,
(सौजन्य : डा चंद्रमोहन बर्थवाल, विछ्ला ढाण्गु, डा रामेश्वर दत्त गौड़, गिरीश ढौंडियाल, )
Pokhariyal Ji Sorry ! instead of information I took liberty to provide other information

न्युतो , निमंत्रण , Invitation !

प्रिय दगड्यों !
पैथ्राक दस सालों से नामी गिरामी गढ़वाली भाषा क पतड़ी/ पत्रिका चिट्ठी पतरी की आजौ /आधुनिक गढ़वाली भाषौ बढ़ोतरी मा भौत बडो मिळवाक च.
यीं पतड़ी न गढ़वाली साहित्यौ सम्बन्धी कथगा इ ख़ास सोळी/विशेषांक छापिन जन कि लोक गीत सोळी (अंक) , लोक कथा सोळी , स्वांग (नाटक ) सोळी , अबोध बंधु बहुगुणा पर खास सोळी, कन्हया लाल डंडरीयाल पर खास सोळी, भजन सिंह सिंह पर खास सोळी , नामी स्वांग लिख्नेर/लिख्वार ललित मोहन थपलियाळ पर खास सोळी अर अबी एक अभिनव खास सोळी- गढ़वाली कविता पर खास सोळी (गढ़वाळी कविता विशेषांक ) जें सोळी (अंक) मा १२३ कवियुं १४३ कविता छापिन अर एक भौत बड़ी किताब बि छप्याणि च जख मा सन १७०० से लेकी २०११ तक का हरेक कवि की कविता त छ्प्याली दगड मा गढवाली कविता पुराण इतियास बि च
अग्वाड़ी (भविष्य) मा आपै अपणि चिट्ठी पतरी क मंशा गढ़वाली कथा-खास-सोळी (कथा - विशेषांक) छापणे च
इख्मा आपौ सौ-सय्कार (सहकार) मिळवाक (भागीदारी ) चयाणि च .
आपसे हथजुड़े च बल ईं ख़ास सोळी बान बनी बनी (तरह तरह ) कथा भ्याजो जी
१- श्रृंगार (प्रेम, विच्छोह . काम (erotica) , समाज विद्रोही प्रेम, प्रेम मा टूटन , तलाक, ब्यौ पैथराँ दुसरो दगड प्रेम (विव्होत्तर प्रेम) , जन विसयुं पर कथा
२- उद्योंगुं बढ़ण से समाज मा बदलू अर वांको असर
३- पलायन सम्बन्धी कथा
४- प्रवाशी गढ़वाल्यूं सुख दुःख
५- गौं गौ ळ मा राजनीतक /सामजिक अनाचार, भ्रष्टाचार
६- विकाश जन रस्ता बणण . पाणि आण , बिजली आण से कुछ नयो घटण /गौं गौळ (समाज मा ) नई पाळी (घटक, समीकरण ) को जनम होण
७- बाळ कथा
८- जात्रा कथा
९- समळऔणया (स्न्स्मरण) कथा
१- जासूसी , सल्ली पट्टी (विज्ञानं अर तकनीक ) कि कथा
१०- मिथक ,
सामजिक, आदि विश्युं पर बीर , घृणा , हंसौडि , चाबोड्या-च्खन्युरि (व्यंग्यात्मक ), धार्मिक -शांत रस वाळी कथा, रौद्र /रोष कि कथा , खौंल्य़ाण (आश्चर्य ) वली कथा आदि
११- कळकळी/ करूण रसे कथा
१२- रौन्सदार कथा
१- दुबारो जनम कि kthaa
१४- शिल्कारों सम्बन्धी कथा /ज्नान्युन विशयुं कथा,
lato- kalon ktha (murkhtapurn
बकै आप तैं जु सै लगद
Dear all,
Chitthi Patri a representative magazine of Gadhwali language is bringing a special issue on Gahdwali Stories
You are requested to post your contribution on various subjects
to Shri Madan Duklan chief editor
Chitthi Patri
16 A rakhsapuram (Ladpur )
P.O Raipur
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Or Bhishma kukreti
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Abodh Bandhu Bahuguna : The Sun Of Garhwali literature

Garhwali literature-19
Abodh Bandhu Bahuguna : The Sun Of Garhwali literature
Bhishma Kukreti
(This article is devoted to late Shrimati Sarju Devi Nautiyal Bahuguna wife of A B Bhauhguan . She had been the pillar as solid support and inspirational source for his becoming Abodh Bandhu Bahuguna --the SUN of Garhwali literature. The author was fortunate to to get her inspiring company for two days in Mumbai and one day in Delhi)
To write about Abodh Bandhu Bahuguna is not easy in short. He has written so much in Garhwali that Hemwati Nanadan Bahuguna Garhwal University published a tribute of 128 pages to describe great Garhwali language creative and the author can say that 128 pages are still lacking to detailing him .
Abodh bandhu Bahuguna writes about him in Garhwali
Unnis sau chaurasi vikram gram jahal chalansyun
Asad ki sangrand misread ji ka ghar ayun
Abodh Bandhu Bahuguna was born on 15th June 1927 in Jhala village of Chalaansyun , Pauri Garhwal, Uttarakhand . His father’s name was Khimanand and mother’s name was Bindra Devi Thapliyal Bahuguan . His wife Sarju Devi is the daughter of famous pundit Bhaj Ram Nutiyal of Sumadi . He expired in 2004 in Janakpuri, New Delhi, leaving behind his wife, his son Ardhendhu , three married daughters and grand children
He got his high school and secondary education from Pauri city- Garhwal, passed graduation and passed M.A in two subjects ( Hindi and Political Science ) from Nagpur University.
The expert of every branch of Garhwali literature
Abodh Bandhu Bahuguna has written literature in every segment of literature including jokes. The author has already expressed his views that to describe his literature we require book and not article. Therefore, , the author will provide the names of book in this article to tell readers about his contribution in Garhwali literature:

Abodh Bandhu Augean (1927-2003)
Poetry
Bhumyal : Bhumyal is a first mahakavya (epic) of Garhwali language
Tidka: Is a collection of his satirist and humorous poems
Ran Mandan: the poems are of chivalry raptures with full of patriotism and inspiring ones
Parvati : there are 100 Garhwali rhymes in this marvelous collection of poems . Uttar Pradesh government awarded this collection of poetries
Ghol: Bahuguna is also credited to bring modernism in Garhwali poetic field. Here are his atukant (without rhyme) poems
Daisat: He was stern supporter of separate Uttarakhand and these poems are exposure of suppression of administration on the movement .
Kankhila: Abodh bandhu says that the poems of this volume are the extract of his won experiences of life
Shailodaya: The collection of conventional ad experimental Garhwali poems
Poetries for Children
Ankh-Pankh: is the poems for children and was awarded by Uttar Pradesh government
Dramas
Mai Ko Lal: This play is about the non-violence movement of Shridev Suman
Chakrachal: The are twelve prose and four Geet-natika
His famous drama is on the heroism of brave personality of our past Bhad madhosingh Bhandari and his sacrifice for Maletha Canal .
Stories
1-Katha Kumud : collection of short stories
2-Ragdwat : These are the collection of modern styles of stories with lot of experimentations
Novel
Bhugtyun Bhavishya : This novel is based on the struggle of Garhwali in migration after independent
Philology
Garhwali Vyakaran ki Roop Rekha : The introduction of Garhwali language grammar
On Folk Literature
1-Dhunyal : In Dhunyal, there are famous Garhwali folk song and a long introductory write up about folk songs of Garhwal
2-Katha ghuli Kuthghali: he published famous folk stories of Garhwal in gad myatiki Ganga
3-Lnagadi Bakari (Hindi ) : there are collection of famous Garhwali folk stories and he also wrote long commentary on Garhwali folk stories, which is a treasurer for Garhwali folk literature
History and Critic of Garhwali literature
1-Gad Myateki Ganga : In his editorial book he wrote history and progress of Garhwali prose from 8th century till 1975. He wrote about the contribution style, subject about each Garhwali prose writer and provide us the details of periodicals which became the instruments for progress of Garhwali prose
2-Shailvani: In this volume, Bahuguna takes us on the rout of history of Garhwali poems and the readers become surprised to know about the detailing by Bahuguna and can not be without saluting Bahuguna for his industrious research work
Travelogue, Memoir and Discussion
Ek Kaunli Kiran: This prose a collection of his memoirs, miscellaneous articles , travel experiences, and discussion with Bhishma kukreti. The discussion and interview with Bhishma Kukreti open many unknown aspects of Garhwali society and Garhwali literature . He called this hot and long discussion between him and Bhishma Kukreti as gem of Garhwali literature.
Introduction and Commentary on books
He has written commentary and introduction of books of many Garhwali writers as in Gathwani Gaun batin (a collection of poems of various Garhwali poets .)
Awards and facilitations
Lok Bharati Nagrik Samman in Gauchar Chamoli in 1979
Jaishri Samman by Garhwali Bhasha parishad Dehradun in 1984
Facilitation by Garhwali Bhasa Sangam of Tihri in 1988
Gadhratna award by Garhwal Bhratri Mandal Mumbai in 1991
Award by Garhwal Sarva hitaisani Sabah Delhi in 1999
Awarded by Jaimini Academy Panipat in 2ooo
Awarded by Surabhi Sanskriti Samiti Madhya Pradesh in 2001
Kavya Bhusan award by Bhartiya Sanskrit avam Sahitya Sansthan in 203
Uttar Pradesh Government awarded him thrice (1981, 1986 and 1989)
Hemvati Nandan Bahuguna Garhwal university published 18 page tribute on his contribution in the name of Parvat Putra Abodh Bandhu Bahuguna
The above details of his published work make him “ The Sun of Garhwali Literature”
Copyright @ Bhishma Kukreti, Mumbai, 2009

चतुर पत्रकारों की चारणशैली में चीफ की चमचागिरी

Satire or Fatkar
चतुर पत्रकारों की चारणशैली में चीफ की चमचागिरी
भीष्म कुकरेती
विद्वानों, लेखकों का चीफ /उच्च पदस्त की चारण शैली में चरण वन्दन करना , चमचागिरी करना, चरनबरदार करने का चलन प्रचलन सदियों पुराना है .
आजकल पत्रकार भी चुगलाते हैं. . इन चमचा पत्रकारों के लिए उच्च्पदस्त के लिए चहचहाना एक चंग है एक उत्सव है .चमचा पत्रकार उच्चपदस्त के चंकुर को चलाता है और उस बड़े आदमी को अपने कंधों पर चौथेपन में भी चंक्रमण (घुमाना ) भी करता है .चमचागिरी की बात है तो यह सब चलता है ..इसका चलन भी है ही.
अपने चंग की खातिर चमचा -चारण पत्रकार चंगला रागिनी में चंग बजाकर बड़े आदमी के चंग पर चढ़ता है . चमचा पत्रकार चंगा (निर्मल) चंगा (बच्चों का खेल) नही खेलता. किन्तु चंट पत्रकार चकली जैसे खेल खेलता है.
चतुर पत्रकार चंट होता है वह चारणशैली की चोंच या चुन्चपुट से बड़े आदमी को अपने चंगुल फंसाने की कोशिश करता है चारण शैली के शब्द चमचे पत्रकार के लिए चंगेरी होती हैं .
चतुर चमचा पत्रकार चंचरीक बन चंचपुट , चंचेरी ताल में बिन होली के भी चीफमिनिस्टर की चमचागिरी करता है .
चालाक चमचा पत्रकार स्वयम चंचल नही होता है अपितु चीफ को चंचल बनाता है. चारणशैली, चिकने चुपड़े शब्द चमचे-चुगलखोर पत्रकारों के लिए चीफ को खुश करने के लिए चंचलास्य का काम करते हैं.
चमचे पत्रकार द्वारा प्रयोगित प्रशंसा के शब्द चीफ को फँसाने के लिए जहां चंगेरी का काम करते हैं वहां विरोधी पत्रकार के लिए व चीफ के विरोधी हेतु चंचा का काम करते हैं.
चतुर , चालाक चमचा पत्रकार अपनी चोंच, चंचु, चंचुका से चीफ के विरोधी पर चंडत्व से , चंडकर शब्दों से , चंडासु बनकर , चंडालिता पूर्बक चंहुदिसा से चढ़ाई करता है जिससे चीफ के विरोधियों को चतरभंग का रोग लग जाय और चीफ खुश हो जाय .और चमचा पत्रकार चकाचक हो जाय
चीफमिनिस्टर के चमचे पत्रकार की चेष्ठा चक्षु चंडालपक्षी जैसी होती हैं जो चीफ मिनिस्टर के चदनगोह रूपी किचन कबिनेट के चिंतावेश्म में रहकर चांदी/चाट की चाह में लगा रहता है
चमचा पत्रकार अपने विरोधी पत्रकार को कभी चंडू (चुहा ) कहता है कभी चणडु (बंदर ) कहता है और अपनेआप चीफमिनिस्टर का चम्बरढार बन कर चोबदारी कर चहकता रहता है
चमचा पत्रकार चीफमिनिस्टर के काम से चीफ को चंद्रकांत नाम देता है और उसी काम के लिए विरोधी नेता को चखिया नाम देता है . जहां चीफ मिनिस्टर का चमचा पत्रकार अपने को चन्द्र जैसा पवित्र कहता है तो दुसरे पत्रकार को उसी गुण के लिए चबाई पत्रकार कहता है
अपने आप चीफ मिनिस्टर का चमसा , चमसी पत्रकार विरोधी नेता का चरित्रहनन करने में चोटी पर रहता है पर जब कोई दूसरा पत्रकार चीफ मिनिस्टर के विरुद्ध छापता है तो चापलूस पत्रकार उस पत्रकार को चरित्र हनन ना करने की सलाह देने में शर्माता भी नही है .
चाप्लोस पत्रकार जब चीफ मिनिस्टर की चापलूसी में चरण बंदना करता है तो उसे वह चर्चा नाम देता है पर कोई दूसरा ऐसा करे तो उसे वह चूहे का च्यूंचाट नाम देता है, चलकूट नाम दे डालता है
चमचा पत्रकार अपने कृत्य को चारटिका नाम देता है तो उससे कर्म के लिए दुसरे को चाली नाम दे देता है
चापलूस पत्रकार चीफ मिनिस्टर के चौक में चरता रहता है पर नही चाहता क़ि कोई और चेहता चीफ के चौक में चहलकदमी करे कोई और चीफ का चेहता बने .. चापलूस पत्रकार दुसरे चमचे पत्रकार को चर्मदंड से चोट देकर , चांटा मारकर, चांप कर चलन्तू कर देता है.
चमचा पत्रकार चालाक होता है वह भी नारायण दत्त तिवारी की तरह संजय गांधी जैसे चीफ के चरणपादुक उठाता है पर वह यह चारण वृति खुलेआम हवाई अड्डे पर नही करता चुपके से करता है चमचा पत्रकार भी चीफ की चिलम भरता है पर उसे गौरव शाली पत्रकारिता का चोला पहना दिया जाता है चापलूसी की चिलम पर पत्रकारिता की चादर चढाई जाती है चंट जो होते हैं ये चकचूंदरे पत्रकार
पर मै यह भी कह सकता हूँ क़ि यदि पत्रकार चापलूसी ना करें तो घर कैसे चलाएंगे ?
Copyright@ Bhishma Kukreti bckukreti@gmail.com

The Secret of Rakhwali

Garhwali Folk Literature
The Secret of Rakhwali
Bhishma Kukreti
Rakhwali is very common concept of removing Fear oriented problem of human being and domestic animals in Garhwal and Kumaun . Rakhwali is Nath sect literature and nath sect came first in Jaunsar Babar area in six th century .
Rakhwali means the mantra of Rakh (ashes) . Lord Shiva and Goddess Parvati showed the rakh and told its importance to the world. The Originator of Nath Sect , one of the greatest philosopher and Gorakhpanthi Karmkandi sage Gorakh started putting Rakh Teeka for protection of his disciples and their relatives
Rakhwali Mantra is a sound, syllable , word, group of words related to Nad of Gorakh philosophy
Rakhwali have many Mantras created by Gorakhpanthis and are the means of Auto-Suggestion Therapy .
रौष्वाळी/ रख्वाळी
ओम नमो बभूत , माता बभूत , पिता बभूत
बभूत तीन लोक तारणि
ओम नमो बभूत , माता बभूत , पिता बभूत
सब दोष की निवारणी
इश्वरंन औणी गौजलि छाणी
अनंत सिद्धों ने मस्तक चढ़ावणी
चढ़े बभूत नि पड़े हाउ
रक्छा करे आतम विश्वासी गुरु गोर्क राउ
जरे जरे धरेतरी फले, धरेतरी मात गायत्री चरे ,
सुषे सुषे अगनि मुख जले
सया बभूत नौनाथ प्रपूत चढ़े
सया बभूत हंसदा कमल को चढ़े
तिर्तिया बभूत तीन लोक कूं चढ़े
चतुर्थी बभूत चार वेदूं कूं चढ़े
चढ़े पंचमे बभूत पंचदेव कूं चढ़े
हँसान दिखे तुमारु नाऊँ
आप गुरु दाता तारो, ज्ञान खड्ग ल़े काल मारो
औंदी डैनकणी द्यालों पातळ
दूष नाचे , सुष बैठे बस कुंवार किकरे माया
इस पिंड की अमर कया
अमर पिरथवी बजूर की काया
घर घर गोरख वै कर सिद्धि काया निर्मल निधि
सोल कला स पिंड वाला घट पिंडक गोरक रखवाला
अमर दूदी पीवे घोर घटे पिंड रखले गोरखवीर
Meaning of This Rakhwali
Oum , I bow to vibhuti (reverend Ash) mother vibhuti, father vibhuti, protector of all three universe.
Oum , I bow to vibhuti (reverend Ash) mother vibhuti, father vibhuti, the eradicator of all illnesses and weaknesses
God created you, the accomplished sages put you on their forehead after seiving/puring the ash
Putting this auspicious ash, you don’t feel any kind of fear, the confidence Guru Gurakhnath protects them
By its uses, always, the green earth prosperous, caws graze the grass the remained of fire is put on th forehead of accomplished saints.
The same auspicious ash is offered on the feet of saints, the auspicious ash is offered to three worlds , auspicious ash is offered to four Vedas, The auspicious ash is offered to five deities. This auspicious ash makes human being as good as immortal. This auspicious ash makes a man strong as Bjra. This auspicious ash kills and sent the dakini to Patal
This auspicious ash is full of sixteen arts and blessing of Grouchier (Guru gorakhnath)
Rakhwali refrence: Abodh Bandhu Bahuguna , Dhunyal
Copyright @ Bhishma Kukreti , bckukreti@gmail.com

Eradication of Bhot and Pichass (Evil Sprit)

arhwali Folk Literature
Secret of Rakhwali -2
Bhishma Kukreti
Eradication of Bhot and Pichass (Evil Sprit)
When aperson is effected by Bhoot/Pichas /Evil Spirit , the tantrik reads following mantra
मसाण = (भूत पिचास )
भूत उतारने की रख्वाळी
प्रस्तुति : भीष्म कुकरेती
स्रोत्र : अबोध बंधु बहुगुणा , धुंयाळ , पृष्ठ ७५
ओम नमो रे बाबा गुरु को आदेस , जल मसाण
जल मसाण को भयो थल मसाण
थल मसाण को भयो वायु मसाण
वायु मसाण को भयो वर्ण मसाण
वर्ण मसाण को भयो बहुतरी मसाण
बहुतरी मसाण को भयो चौडिया मसाण
चौडिया मसाण को भयो मुंडिया मसाण
मुंडिया मसाण को भयो सुनबाई मसाण
सुनबाई मसाण को भयो बेसुनबाई मसाण
लेटबाई मसाण , दरद बाई मसाण , मेतुलो मसाण
तेतुलो मसाण , तोप मसाण , ममड़ादो मसाण
बबड़ान्दो मसाण धौण तोड़ी मसाण
तोड़दो मसाण , घोर मसाण, अघोर मसाण
मन्तर दानो मसाण , तन्त्र दानौ मसाण
बलुआ मसाण कलुआ मसाण , तातु मसाण आदि


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Bhishma Kukreti
The Expert of Pratiyogita Dharma
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Saabri Mantra साबरी मन्त्र (बुरी नजर /हाकडाक से बचने का मन्त्र )

Garhwali Folk Literature
Saabri Mantra साबरी मन्त्र (बुरी नजर /हाकडाक से बचने का मन्त्र )
Presented by Bhishma Kukreti
When a person is effected by wicked thought of enemy /other person, the Sabari reads the following mantra . In this mantra, Sabari takes the names of female desciples of Great Guru Gurokhnath and Guru Gorakhnath is very powerful to finish the bad Oman on the person (Pashva)
ऊनमो आदेस गुरु को आदेस बाबोड़ी को आदेस
जोगी को आदेस अच्लानात सूब को आदेस
काउर देस ते आय सक्य महा महाघोर
डैणी जोगणी को लेषवार , नाटक चेटवार को फेरवार
मण भर षतड़ी, मण भर गुदडी लुवा की टोपी बज्र की षन्ता
हरब षोलु पूरब षोलु षोलु ल़ूणी डोमणी की हंकार षोलु
राड़ी बामणी को हंकार षोलु, खसणी को जैकार षोलु
बरमा की मुंडी हंकार षोलु , भूत प्रेत का बाण षोलु
जोगी को नरसी उषेलु , भात को कलबू उषेलु
डोम को अघोरनाथ भैरों उषेलु , सन्यासी को कच्छइया उषेलु
हाक टेक लगे तो सकती पातळ जावे
हीर्र हीर्र हीर्र हीर्र हीर्र फटे सुबाहा फुर्र मन्तर इश्वरोवाच :
Abodh Bandhu Bahuguna named these poems as Adi Pady or Adigady (Original poems or prose). However, these cant be original Garhwali because the language is completely Braj language and it is know fact that the Gorakhnathi preachers used to create Mantra in Braj or Rajasthani dialects
ष = ख
स्रोत्र अबोध बंधु बहुगुणा : धुंयाळ

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Bhishma Kukreti
The Expert of Pratiyogita Dharma

घट थापना -३

Garhwali Folk Literature
Spirituality in Garhwali Folk Literature -3
Presented by Bhishma Kukreti
(Curtsey by Dr Vishnu datt Kukreti : Nathpanth : Garhwal ke Paripeksh men , Manuscript : Pundit Maniram Godal Kothiwale )
घट थापना -३
ष = ख़
१४- त्र पत्र डंडा डोंरु सेली सींगी : त्रिशूल मुद्रा : झोली मेषला : उड़ाण की छोटी : फावड़ी : सोकंती : पोक्न्ति : सुणती भणती : आकाश : घट थाप्न्ती या तो रे बाबा दुवापर की वारता बोली जै रे स्वामी : ईं अवतार कन्च मंच का : त्रिथा जुग मधे ल़े जा रे स्वामी : श्री मछिंदर आदिणाट : आचार जंगे अदंगे : फरसराम राम : महाराम करणी : भीमला देवी : षीर ब्रिष गजा कंठ : आसण त्रिथा जुग मधे ल़े जा रे स्वामी : कीतन ताल पुरषा कितने ताल अस्त्री : कितने बर्स
१५- की मणस्वात की औषया बोली जै रे स्वामी : आठ ताल पुरुषा : सादे छै ताल अस्त्री : हजार बरस की मणस्वात बोली जै रे : स्वामी : त्रिथा जुग मध्ये ल़े रे स्वामी : एक बेरी बोणों तीन बेरी लौणो : आठ पल चौंल : पांच पल गींऊ : मणस्वात को तीन मण को हार : त्रिथा जुग मधे ल़े रे स्वामी : तामा के घट : तामा के पाट : तामा
१६- के वारमती : तामा के आसण ; बासण सिंगासण : छत्र पत्र डंडा डोंरु : सेली सींगी : त्रिसुल मुद्रा : झोली मेषला : उड़ाण कछोटी : फावड़ी : सोक्न्ती : पोषंती : सुंणती : भणती आकाशम : घट थाप्न्ती : या तौ रे बाबा त्रिथा जुग की वार्ता बोली जा रे स्वामी : तीन औतार कन्च मंच का : तब कली जुग मधे ल़े रे स्वामी : श्री गुरु गोरषनाथ : आचार जंगे कलिका देवी : बीर बृषभ गजा कटार : आसण "
शब्दार्थ :
अस्त्री : स्त्री
आसण = आसन
औतार = अवतार
षारी = खारी , नमकीन
गींऊ = गेंहू
चौल = चावल
त्रिथा : त्रेता युग
जुग : युग
ताल : अंगूठा व मध्यमा अंगुली के बीच की दूरी
पाट = दरवाजे
बोण= बोना
लौण = काटना (फसल )
औषया = अवस्था
पुरुषा = पुरुष
बासण : बर्तन / भांडे
बेरी = बार, दफे (period time )
थापना : स्थापना

--


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B. C. Kukreti
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Let us Learn Garhwali - 57 , आवा गढवाली सिखला - ५७

English, French and Garhwali Words , अंग्रेजी, फ्रेंच अर गढवाली शब्द
English French Garhwali
Above Au-dessus de , अळग
Add Addtionnner , जोड़
Adults les adultes , बैक , बैख
Afraid Peur , ड़र्युं
Alike Pareil , इकजनी, एकजनी , इकजसी
All Tout , सौब , सबी
Angel l’ange , अन्छेरी , अन्छरी
Angry Fache, रोष
Ant la fourmi , किरम्वळ
Autumn l’automne , जडडू

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घटथापना : गढवाळी लोक साहित्य में आध्यात्म का उदाहरण

Garhwali Folk Literature
गढवाळी लोक साहित्य
घटथापना : गढवाळी लोक साहित्य में आध्यात्म का उदाहरण
इंटरनेट प्रस्तुति : भीष्म कुकरेती
(श्री विष्णु दत्त कुकरेती कि पुस्तक नाथ पन्थ : गढवाल के परिपेक्ष में
मूल पाण्डुलिपि : पंडित मणि राम गोदाल कोठी वाले )
१- अतः घड थापना लेषीणते . श्री गनेसाएंम : श्री जल बन्धनी : जल बंदनी जुग पंच पयाल : स्मपति जुग रंची रे स्वामी : जुग बार, : मन्स्यादेवी अर्दंगे : रुड माला पैरंती जुग ते रं : नीवारनी , वर पैरन्ति, जुग सुल : जुग सौल : आसण बैसण प्राणमंत अंत काले कु जुग बीस : आसण बैसण जुग छतीस : ऊं उंकार ल़े ल़े रे स्वामी स्वर्ग मंच पाताल : रात्री न दीन : समुद्र ना प्रर्थ में सूं तोला : विवर्जित : अंत का उद्पना
२- भेल रे स्वामी : श्री अप्रम प्रनाथ : मधे ल़े रे स्वामी : परम्सुन परमसून मधे रे स्वामी :परमहंस : परमहंस मधे रे स्वामी : चेतना चेतना मधे रे स्वामी उद्पना : गोदर ब्रह्मा जोजनी तीन थानम : ॐ अं डं नं डं डं नं : प्रगारेत नंग सैत नंग : श्रीकृष्ण इजईती : उद्पना भैले रे स्वामी : श्री इश्वर आदिनाथ :कमनघट : नीरघट : षीरघट : रजघट : ब्रिजघट : वाईघट : ये पंच घट : थापंती जतीर सती : बाला ब्रह्मचारी : जटा
३- सौरी वळी ब्रह्मचारी : श्री गुरुगोरषजती : कानन सुणि वातन्ता : षोजंती थावरे जक्र मेवा : एक ब्रह्मा न विश्णु इंद्र नंग : चन्द्र नंग वाई न श्रिश्थी : न दीपक : कोपालंक : कस्य ध्यानम मुरती : वेद न चारि होम न यग्य : दान न :देते : जीत न काला : नाद न वेद : ये घट मेवा : ये घट औग्रा दंग : दीन दाई दीनचारी : नीना औरषवंग : करता पुर्क्म आकासंग आकासेघट : ब्रह्मा पाताले घट ; वीषनुघट मदेघट ; महेसुर सोनाघट :पारवती त्रीयोदेवा एक मुरती : ब्रह्मा विशनु महेसुर ; नाना भा :
४- बाती :मन हो रे जोगी : बसपति पातालम : सम्पति पातालं : ऊपरी सत : सत उपरी जत : जत उपरी धरम : धरम ऊपरी कुरम : कुरम उपरी बासुगी : बासुगी ऊपरी अगनि : : अगनि उपरी क्रीती मही : क्रीती मही उपरी मही क्रीती : मही क्रीती उपरी राहू : राहू उपरी सम्पति गज : सम्पति गज उपरी धज : धज उपरी सम्पति समोदर : सम्पति समोदर उपरी : कमन कमन समोदर : बोली जै रे स्वामी : एक समोदर उपरी सोल समोदर : सोर समोदर उपरी : तालुका समोदर : तालुका
५- समोद्र उपरी ; भालू का समोदर ; उपरी खारी समोद्र उपरी : रतनाग्री समोद्र रतनाग्री समोद्र उपरी : दुधा समोद्र : दुधा समोद्र ऊपरी डालु समोद्र ; डालु समोद्र उपरी मही दुधि समोद्र : मि समोद्र उपरी मही समोद्र ; मही समोद्र ये ससत समोद्र की वार्ता बोली जै रे स्वामी : कमन कमन दीप बोली जै रे स्वामी ; एक दीप : एक दीप उपरी सात दीप सास ; दीप उपरी सजवो दी :
६- प जवो दीप उपरी : जजणी दीप : जजणी दीप उपरी : बासुकणी दीप : बासुकणी दीप उपरी अहोड़ दीप : उपरी थमरी दीप उपरी नेपाली बासमती दीप ; नेपाली भस्मती प उपरी : कणीक दीप : कणीक दीप उपरी : ये सात दीप बोली जै रे स्वामी : नौ खंड वार्ता बोली जै रे स्वामी : कमन कमन षंड वेक षंड : एक षंड : एक षंड उपरी हरी षंड ; हरी षंड उपरी भरत षंड : भरत षंड उपरी आला भरत षंड : भरत षंड उपरी बुद्धि का मंडल : बुद्धि का (षंड = खंड )
७- मंडल उपरी झैल षंड ब्र्न्हंड :झैलषंड :ब्रह्मंड उपरी :ब्रह्मापुरी ब्रह्मापुरी उपरी :सीवपुरी : सीवपुरी उपरी : आनन्द पुरी : आनन्द पुरी उपरी : उपरी ते ल का तला : तेल पी डा : ब्रह्म उपरी तत : अवुर जन वु त कु मारी जा :घातुक मारी जा : मही मंडल : सूरज घट मधे उद्पना वर राशी का घट :मधे उद्पना वार मा से घट : मधे उद्पना त्र्यष्ठ षंड : ये नौ षंड :बोली जा रे स्वामी
८- ये नौ षंड उपरी : वाये मंडल वा ये मंडल उपरी छाया मंडल : छाया मंडल उपरी गगन मंडल : गगन मंडल उपरी मेघ मंडल : मेघ मंडल उपरी : सूरज मंडल : सूरज मंडल उपरी चंदर मंडल : चंदर मंडल उपरी :तारा मंडल : तारा मदनल उपरी :दूधी मंडल : छाय कोटि मेघ माला : वार मा से घट : घट मधे उद्पना : वार रासी का घट :घट मधे उद्पना : अठार वार वणसापती : घट मधे उद्पना ताल
९- बेताल : घट मधे उद्पना काल वे का ल : घट मधे उद्पना : नौ करोड़ घट : घट रहे थीर : घट थापंती : श्री अनादी नाथ बुद बीर भैरो : गौ हंडी पृथवी प्रथमे सोढ़ी कीया : जल अयिले : ऋष बाहन चढ़े : राजा हंस आई ल़े : गरुड वाहन चढ़े : राजा गणेष आयिले मुसा वा हान चढ़े : गंगा गौरिज्या आई ल़े मंगला पिंगोला वाहन चढ़े : अनं
१० - त सीधा : मिलकर कै बैठा ध्यान : घट थापन्ति : कमन कमन थान : श्री हं समती म्समती माई : श्री घटथापंती कमन कमन थानं : सती जुग मध्ये ल़े रे स्वामी : श्री यसुर आदिनाथ : आचार जगै : अरदगै गौरिजा देवी : षीर ब्रिष गजा कटार : आसण बैसण सींगासण : छत्र : पत्र : डंडा ड़वौरु : सती जुग मधे ल़े रे स्वामी : कीतने ताल पुरषा : कीतने ताल अस्त्री : कीतने ब्रस की मणस्वात की औस्या बोली जै रे स्वामी सती जुग मध्ये ल़े रे स्वामी : बतीस ताल
......... बाकी आगे है

घटथापना : गढवाळी लोक साहित्य में आध्यात्म का उदाहरण

Garhwali Folk Literature
गढवाळी लोक साहित्य
घटथापना : गढवाळी लोक साहित्य में आध्यात्म का उदाहरण
इंटरनेट प्रस्तुति : भीष्म कुकरेती

(श्री विष्णु दत्त कुकरेती कि पुस्तक नाथ पन्थ : गढवाल के परिपेक्ष में
मूल पाण्डुलिपि : पंडित मणि राम गोदाल कोठी वाले )
१- अतः घड थापना लेषीणते . श्री गनेसाएंम : श्री जल बन्धनी : जल बंदनी जुग पंच पयाल : स्मपति जुग रंची रे स्वामी : जुग बार, : मन्स्यादेवी अर्दंगे : रुड माला पैरंती जुग ते रं : नीवारनी , वर पैरन्ति, जुग सुल : जुग सौल : आसण बैसण प्राणमंत अंत काले कु जुग बीस : आसण बैसण जुग छतीस : ऊं उंकार ल़े ल़े रे स्वामी स्वर्ग मंच पाताल : रात्री न दीन : समुद्र ना प्रर्थ में सूं तोला : विवर्जित : अंत का उद्पना
२- भेल रे स्वामी : श्री अप्रम प्रनाथ : मधे ल़े रे स्वामी : परम्सुन परमसून मधे रे स्वामी :
परमहंस : परमहंस मधे रे स्वामी : चेतना चेतना मधे रे स्वामी उद्पना : गोदर ब्रह्मा जोजनी तीन थानम : ॐ अं डं नं डं डं नं : प्रगारेत नंग सैत नंग : श्रीकृष्ण इजईती : उद्पना भैले रे स्वामी : श्री इश्वर आदिनाथ :कमनघट : नीरघट : षीरघट : रजघट : ब्रिजघट : वाईघट : ये पंच घट : थापंती जतीर सती : बाला ब्रह्मचारी : जटा
३- सौरी वळी ब्रह्मचारी : श्री गुरुगोरषजती : कानन सुणि वातन्ता : षोजंती थावरे जक्र मेवा : एक ब्रह्मा न विश्णु इंद्र नंग : चन्द्र नंग वाई न श्रिश्थी : न दीपक : कोपालंक : कस्य ध्यानम मुरती : वेद न चारि होम न यग्य : दान न :देते : जीत न काला : नाद न वेद : ये घट मेवा : ये घट औग्रा दंग : दीन दाई दीनचारी : नीना औरषवंग : करता पुर्क्म आकासंग आकासेघट : ब्रह्मा पाताले घट ; वीषनुघट मदेघट ; महेसुर सोनाघट :पारवती त्रीयोदेवा एक मुरती : ब्रह्मा विशनु महेसुर ; नाना भा :
४- बाती :मन हो रे जोगी : बसपति पातालम : सम्पति पातालं : ऊपरी सत : सत उपरी जत : जत उपरी धरम : धरम ऊपरी कुरम : कुरम उपरी बासुगी : बासुगी ऊपरी अगनि : : अगनि उपरी क्रीती मही : क्रीती मही उपरी मही क्रीती : मही क्रीती उपरी राहू : राहू उपरी सम्पति गज : सम्पति गज उपरी धज : धज उपरी सम्पति समोदर : सम्पति समोदर उपरी : कमन कमन समोदर : बोली जै रे स्वामी : एक समोदर उपरी सोल समोदर : सोर समोदर उपरी : तालुका समोदर : तालुका
५- समोद्र उपरी ; भालू का समोदर ; उपरी खारी समोद्र उपरी : रतनाग्री समोद्र रतनाग्री समोद्र उपरी : दुधा समोद्र : दुधा समोद्र ऊपरी डालु समोद्र ; डालु समोद्र उपरी मही दुधि समोद्र : मि समोद्र उपरी मही समोद्र ; मही समोद्र ये ससत समोद्र की वार्ता बोली जै रे स्वामी : कमन कमन दीप बोली जै रे स्वामी ; एक दीप : एक दीप उपरी सात दीप सास ; दीप उपरी सजवो दी :
६- प जवो दीप उपरी : जजणी दीप : जजणी दीप उपरी : बासुकणी दीप : बासुकणी दीप उपरी अहोड़ दीप : उपरी थमरी दीप उपरी नेपाली बासमती दीप ; नेपाली भस्मती प उपरी : कणीक दीप : कणीक दीप उपरी : ये सात दीप बोली जै रे स्वामी : नौ खंड वार्ता बोली जै रे स्वामी : कमन कमन षंड वेक षंड : एक षंड : एक षंड उपरी हरी षंड ; हरी षंड उपरी भरत षंड : भरत षंड उपरी आला भरत षंड : भरत षंड उपरी बुद्धि का मंडल : बुद्धि का (षंड = खंड )
७- मंडल उपरी झैल षंड ब्र्न्हंड :झैलषंड :ब्रह्मंड उपरी :ब्रह्मापुरी ब्रह्मापुरी उपरी :सीवपुरी : सीवपुरी उपरी : आनन्द पुरी : आनन्द पुरी उपरी : उपरी ते ल का तला : तेल पी डा : ब्रह्म उपरी तत : अवुर जन वु त कु मारी जा :घातुक मारी जा : मही मंडल : सूरज घट मधे उद्पना वर राशी का घट :मधे उद्पना वार मा से घट : मधे उद्पना त्र्यष्ठ षंड : ये नौ षंड :बोली जा रे स्वामी
८- ये नौ षंड उपरी : वाये मंडल वा ये मंडल उपरी छाया मंडल : छाया मंडल उपरी गगन मंडल : गगन मंडल उपरी मेघ मंडल : मेघ मंडल उपरी : सूरज मंडल : सूरज मंडल उपरी चंदर मंडल : चंदर मंडल उपरी :तारा मंडल : तारा मदनल उपरी :दूधी मंडल : छाय कोटि मेघ माला : वार मा से घट : घट मधे उद्पना : वार रासी का घट :घट मधे उद्पना : अठार वार वणसापती : घट मधे उद्पना ताल
९- बेताल : घट मधे उद्पना काल वे का ल : घट मधे उद्पना : नौ करोड़ घट : घट रहे थीर : घट थापंती : श्री अनादी नाथ बुद बीर भैरो : गौ हंडी पृथवी प्रथमे सोढ़ी कीया : जल अयिले : ऋष बाहन चढ़े : राजा हंस आई ल़े : गरुड वाहन चढ़े : राजा गणेष आयिले मुसा वा हान चढ़े : गंगा गौरिज्या आई ल़े मंगला पिंगोला वाहन चढ़े : अनं
१० - त सीधा : मिलकर कै बैठा ध्यान : घट थापन्ति : कमन कमन थान : श्री हं समती म्समती माई : श्री घटथापंती कमन कमन थानं : सती जुग मध्ये ल़े रे स्वामी : श्री यसुर आदिनाथ : आचार जगै : अरदगै गौरिजा देवी : षीर ब्रिष गजा कटार : आसण बैसण सींगासण : छत्र : पत्र : डंडा ड़वौरु : सती जुग मधे ल़े रे स्वामी : कीतने ताल पुरषा : कीतने ताल अस्त्री : कीतने ब्रस की मणस्वात की औस्या बोली जै रे स्वामी सती जुग मध्ये ल़े रे स्वामी : बतीस ताल
......... बाकी आगे है

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Wednesday, April 20, 2011

"उत्तराखंड की लोक भाषा"

जै मनखि सनै निछ,
अपणि बोली भाषा कू ज्ञान,
बोली भाषा फर अभिमान,
सच मा ढुंगा का सामान,
अपणि बोली भाषा बिना,
क्या छ मनखि की पछाण?

कथगा प्यारी छन,
उत्तराखण्ड की लोक भाषा,
जुग-जुग तक फलु फूल्वन,
हर उत्तराखंडी की अभिलाषा.

प्रकृति, शैल-शिखर सी ओत प्रोत,
होन्दा छन उत्तराखंडी लोक गीत,
मन-भावन लगदा अपणि भाषा का,
जमीन सी जुड़याँ प्यारा गढ़वाळी,
कुमाऊनी, भोटिया, जौनसारी गीत.

भाषा का माध्यम सी होन्दु छ,
साहित्य अर संस्कृति कू सृंगार,
दिखेन्दि छ झलक अतीत की,
जुछ आज अनमोल उपहार.

अतीत सी कवि अर लेखक,
देवभूमि उत्तराखण्ड का,
कन्ना छन लोक भाषाओं कू,
अपणि रचनाओं मा सम्मान,
जागा! हे उत्तराखंडी भै बन्धो,
लोक भाषा छन हमारी धरोहर,
समाज अर संस्कृति की पछाण.

दर्द दिल मा भाषा का प्रति,
आज छ समय की पुकार,
प्रवासी उत्तराखंडी गौर करा,
हाथ तुमारा प्रचार अर प्रसार.

लोक भाषा फललि फूललि,
प्रसार कू संकल्प होलु साकार,
सार्थक होलु समाज कू प्रयास,
जरूर रंग ल्ह्यालु भविष्य मा,
अस्तित्व कायम रलु,
कवि "जिज्ञासु" की यछ आस.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: ८.३.२०११'
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
(श्री दीपक बेंजवाल जी ग्राम: बैंजी, चमोली का अनुरोध फर "दस्तक" पत्रिका का लोक भाषा विशेषांक का खातिर रचित) .
" दूर देश कू दर्द"

ग्यारह मार्च द्वी हजार ग्यारह,
जै दिन,
ऊगदा सूरज का देश,
जापान मा,
भूकंप अर सुनामिन,
तबाह! करि सब्बि धाणी,
मनख्यौं का मन मा,
भौत दुःख अर कष्ट पैदा ह्वै,
अपणा देश भारत मा,
खास करिक उत्तराखण्ड मा,
किलैकि, वख छन हमारा,
भौत सारा प्यारा उत्तराखंडी,
जू रोजगार करदा छन,
दूर देश जापान मा,
अर भौत प्यार करदा छन,
अपणा जन्म स्थान,
पराणु सी प्यारा उत्तराखण्ड तैं.

लगिं थै टक्क सब्यौं की,
लंगि संग्यौं की,
कै हाल मा होला,
प्यारा प्रवासी उत्तराखंडी,
जौंका कारण,
"दूर देश का दर्द" सी,
हमारू भिछ रिश्ता,
किलैकि, मिनी जापान,
घनसाली, टिहरी का नजिक छ,
बल हमारा उत्तराखण्ड मा.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
"सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित"
दिनांक: १२.३.२०११
E-Mail: j_jayara@yahoo.com

गढ़वाली व्यंग कथा : कुक्करा कु इंसाफ

नयार का पल छाल ,बांज ,बुरांश और कुलाँ की डालियुं का छैल एक भोत ही सुन्दर और रौंत्यलू गौं छाई | गौं की धार मा देबता कु एक मंदिर भी छाई|उन् त गौं मा पंद्रह -बीस कुड़ी छाई पर चलदी बस्दी मौ द्वि- तीन ही छाई एक मौ छाई दिक्का बोडी की जू छेंद नौना ब्वारी का हुन्द भी गौं मा यखुली दिन कटणी छाई और ज्वा रोग से बिलकुल हण-कट बणी छाई , दूसरी मौ छाई पांचू ब्वाडा की ,बिचरा द्वी मनखी छाई कुल मिला की ,बोडी और ब्वाडा ,आन औलाद त भगवान् उन्का जोग मा लेख्णु ही बिसरी ग्या छाई और तीसरी मौ छाई जी बल झ्युन्तु काका की की जू रेंदु छाई काकी और अपड़ी नौनी दगड मा |

अब साब किल्लेय की गौं मा मनखी त भोत की कम छाई इल्लेय दिक्का बोडी ल एक कुक्कर पाल द्ये छाई , बोडी ल स्वाच कि एक त कुक्कर धोक्का नी द्यालू ,दुसरू येका बाना फर द्वि गफ्फा रौट्टा का मी भी खौंलूँ |
अब साहब कुक्कर थेय भी आखिर कैकू दगुडू चैणु ही छाई तब ,कुई नी मिलु त वेल मज़बूरी मा बिरलु और स्याल थेय अप्डू दगड़या बणा देय,अब कैल बोलुणु भी क्या छाई अब ,सब अप्डू अप्डू मतलब से ही सही पर कुल मिल्ला कि कटणा छाई अपड़ा अपड़ा दिन जन तन कैरी की |

अब साहब दिक्का बोडी ल भी अपड़ी सब खैरी -विपदा का आंसू भोटू कुक्कर मा लग्गा ही याली छाई ,बिचरु भोटू बोडी थेय अपड़ा नौना से भी जयादा मयालु लगदु छाई |

गौं कि धार मा देबता बांजा कि डाली मा अपड़ी खैर लगाणु छाई कि देख ले कन्नू ज़मनू आ ग्याई ये पहाड़ मा, ये गौं मा ,कभी सूबेर शाम आन्द -जांद मनखियुं कु धुदरट ह्युं रेन्दु छाई धार मा ,सूबेर शाम लोग- बाग़ मंदिर मा आन्दा जांदा छाई ,अपड़ा सुख -दुःख ,खैरी -विपदा मी मा लगान्दा छाई ,मी भी सरया दिन मस्त रेन्दु छाई | खूब आशिर्बाद-प्रेम दींदु छाई उन्थेय पर अब त मी भी अणमिलु सी व्हेय ग्यु ,सालौं व्हेय ग्यीं मिथेय भी यकुलांश मा ,मनखियुं थे देख्यां |

इन्नेह बांजा कि डाली भी अपड़ी जिकड़ी कि खैर लगाण लग्गी ग्या देबता मा और वक्ख ताल पंदेरू भी तिम्ला कि डाली क समणी टुप- टुप रुण लग्युं छाई| बिचरू अपडा ज्वनि का वू दिन सम्लाणु छाई जब वेक ध्वार नजदीक गौं की ब्वारी - बेटीयूँ की सुबेर शाम कच्छडी लग्गीं रेंदी छाई और एक आजकू दिन च की कुई बिरडी की भी नी आन्दु वे जन्हे ? क्या कन्न यु दिन भी देख्णु रह ग्या छाई वेक भी जोग मा ?

अचांणचक से द्वि दिन बाद दिक्का बोडी सदनी खुण ये गौं और भोटू थेय छोडिकी परलोक पैट्टी ग्या छाई|

अब साब बिरलु ठाट से डंडली मा ट्वटूगु व्हेय कि आराम से स्याल दगड गप ठोकणू छाई पर भोटू कुक्कर दिक्का बोडी की मौत से बहोत दुखी छाई आखिर बोडी की खैरी -विपदा भोटू से ज्यादा गौं मा और जंणदू भी कु छाई ?
अचांणचक से भोटू ल भोकुणु शुरू कैर द्या | बिरलु थेय भारी खीज उठ ,वेक्की निन्द ख़राब जू हुणी छाई,आखिर वेल कुक्कर खूण ब्वाल - क्या व्हेय रे निर्भगी ,किल्लेय भोकुणु छाई सीत्गा जोर से ?
स्याल और मी त त्यारा दगडया व्हेय ग्योव अब ,और इन् तिल क्या देखि याल पल छाल भई की खडू व्हेय की गालू चिरफड़णू छेई तू ?

कुक्कर ल ब्वाल- यार तू भंड्या चकडैती ना कैर मी दगड मिल एक मनखी सी द्याखू छाई पल छाल अब्भी
बिरलु और स्याल चड़म से उठी की कुक्कर क समणी आ ग्यीं और पल छाल देखण लग्गी ग्यीं
बिरोला ल थोड़ी देर मा कुक्कर का कपाल फर खैड़ा की एक चोट मार और ब्वाल - अरे छुचा क्या व्हेय गया त्वे थेय ?
मी और स्याल त जाति का ही चंट छोव पर निर्भगी तू त कुक्कर छै कुक्कर ,कुछ त शर्म लिहाज़ कैरी दी ,और कुछ ना त बोडी का रौट्टा की ही सही कुछ त एहसान मानी दी | जैखुंण तू भुक्णु क्या छै वू बोडी कु ही नौनु च रे , सैद बोडी की खबर सुणीक घार बोडिकी आणु च बिचरु

इत्गा सुणीक स्याल भी रम्श्यांण लग्गी ग्या ,सैद कुक्कर ल स्याल मा कुछ दिन पैली बोडी की खैरी ठुंगा याली छैय, स्याल ल ब्वाल अगर जू मी दानु नी हुन्दु त सेय थेय आज गौं मा आणि नी दिंदु ,पर क्या कन्न ?

बस जी फिर क्या छाई इत्गा सुणीक कुक्कर ल जोर जोर से भुक्णु शुरू कैरी द्याई

स्याल ल स्यू-स्यू ब्वाल और कुक्कर धुदरट कैरी की बोडी का नौना का जन्हे अटग ग्या ?

रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड [/size]

Source: म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " व " पहाड़ी फोरम " मा पूर्व-प्रकशित

ब्वे की खैर :पलायन फर आधारित एक गढ़वाली व्यंग कथा

एक खाडू और एक खडूणी दगडी छन्नी का स्कूल मा पडदा छाई, धीरे-धीरे दुयुं मा प्यार व्हेय ग्याई ,सौं करार व्हेय ग्यीं की अब चाहे कुछ भी व्हेय जाव पर जोड़ी दगडी नी तोड़णी,
साहब धूम धाम से व्हेय ग्या बल ब्यो खाडू और खडूणी कु , और कुछ साल मा व्हेय ग्यीं उन्का जोंल्यां नौना लुथी और बुथी |

अब साहब लुथी और बुथी रोज सुबेर डांड जाण बैठी ग्यीं खाडू और खडूणी दगडी चरणा खूण ,हूँण लगीं ग्यीं ज्वाँनं दुया ,

लुथी और बुथी छोटम भटेय देख्दा आणा छाई , दिक्का दद्दी थेय ,बिचरी सदनी खैरी का बीठगा ही उठाणी राई ,लुथी और बुथी सदनी वीन्का आंखों मा अस्धरा ही देख्दा अयं पर बिचरा कब्भी वींकी खैर नी समझ साका आखिर उंल अब्भी सरया दुनिया देखि भी ता नी छैयी ,उंनकी दुनिया त बस गुठियार भटटी रौल और डांड तक ही बसीं छाई |
एक दिन लुथी ल बडू जिकुडू कैरी की खडूणी मा पूछ ही देय की माँ या बुडढी दद्दी क्वा च और सदनी रुन्णी ही किल्लेय रेंद यखुली यखुली ?

खडूणी ब्वाल म्यार थौला व दिक्का बोडी चा ,हमरा सो-सम्भल्धरा ,दिक्का बोडी कु एक नौनु चा ,जेथेय बोडी ल भोत ही लाड प्यार से भोत खैर खैकी की सैंत पालिकी अफ्फु भूखु रैकि अप्डू गफ्फ़ा खिल्लेकी बडू कार,फिर अपड़ी कुड़ी पुंगड़ी धैरी की, कर्ज -पात कैरी की पढ़ना खूण दूर प्रदेश भ्याज़ ,नौनु पड़ी लेखी की प्रदेश मा साहब बणी ग्या और प्रदेश मा ही ब्वारी कैरी की वक्खी बसी ग्या ,पर माँ या मा रुणा की क्या बात चा या ता दिक्का दद्दी खूण खुश हुण की बात चा ? बुथी ल खडूणी म ब्वाल ,

ऩा म्यार थौला तिल पूरी बात नी सुणि मेरी अब्भि ,नौनु ब्वे थेय मिलण खूण आई छाई एक बार और बोलण बैठी ग्या बोडी खूण " ब्वे त्यारू नौनु आज बडू साहब व्हेय ग्या प्रदेश मा और तू छेई की आज भी यक्ख घास कटणी ,मुंडम पाणि कु कस्यरा ल्याणी छेई और मोल लिप्णी छेई,कुई द्याखलू ता मेरी बड़ी बेज्ज़ती हूण या ,तू चल मी दगडी प्रदेश म़ा छोडिकी ये कंडण्या पहाड़ थेय,अब येल तिथेय कुछ नी दिणु ,ठाट से रैह प्रदेश म़ा अपडा नाती -नतिणु दगडी "

बोडी गुस्सा मा पागल सी व्हेय ग्या और एक झाँपट नौना पर लगाकि बोलंण बैठ "अरे निर्भगी जै धरती ल त्वे सैंति-पाली की ,लिखेय पड़ेय की यु दिन दिखाई आज त्वे वीन्ही धरती खूण ब्वे बुलंण मा भी शर्म चा आणि ,ता भोल तिल मेरी क्या कदर करण ? थू तेरी और थू च तेरी अफसर-गिरी खूण और थू च तेरी वीन्ही पडेय खूण जैंल त्वे थी थेय यु नी सिखाई की ब्वे सिर्फ और सिर्फ ब्वे हुन्द "

बस व्हेय का बाद भट्टेय बोडी गौं मा छेंदी -कुटुंब दरी मा यखुली रैन्द ,नौनु छोड़ी दियाई पर घार नी छ्वाडू,अप्डू पहाड़ नी छ्वाडू , धन्य हो बोडी और बोडी कु पहाड़ प्रेम

लुथी और बुथी चम् -चम् जवान हुणा छाई फिर बहुत दिनों बाद एक दिन खडूणी ल खाडू खूण ब्वाल " जी बुनेय आज यूँ थेय पल्या छाल कु बडू डांड दिखाई द्यावा , वक्ख खाण -पीणा की भी खैर नी चा ,और यूँ थेय सिखणु खूण भी सब्भी धाणी की सुबिधा रैली "

बस इतगा बात सुणिकी लुथी और रूण लग्गी ग्यीं और बुथी ल ब्वाल " माँ हम नी चाह्न्दा की प्रभात हम दुया भी दिक्का दद्दी का नौना जन व्हेय जौं र तू दिक्का दद्दी जन धरु धरु म़ा रुन्णी रै,माँ हम खूण ता हमर यु छोटू और रौन्तेलु डांड ही स्वर्ग बराबर चा और हमर गुठियार ही सब कुछ चा ,जख हमल जलंम धार ,दुसरा का डांड जैकी अपड़ी माँ थेय बिसराणं से ज्यादा हम अपडा ही डांड म़ा भूखी मोरुण पसंद करला "

बस इतगा सुणि की खडूणी और खाडू खुश व्हेय ग्यीं और लुथी- बुथी और खडूणी और खाडू सब दगडी मा प्यार प्रेम से फिर से रैंणं लगी ग्यीं |

]रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड [/size]

Source: म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " व " पहाड़ी फोरम " मा पूर्व-प्रकशित

गढ़वाली लेख (व्यंग ) : हल्या नी मिलदु

झंकरी बोडी कु नौनु प्रदेश भट्टेय बाल-बचौं दगडी १० साल बाद गढ़वाल घूमणा कु अन्यु छाई , कुछ दिन खुण इन्न लग्णु छाई की जन्न बोडी फर फिर से जान आये ग्ये व्होली ,नाती नतिणयु दगडी बोडी खुश दिखेणी छाई और नौना -बाला भी पहली बार स्यारा-पुन्गडा खल्याण , नयार,बल्द-बखरा और सुन्दर हैरा-भैरा डांडा देखि की भोत ही खुश हुन्या छाई,
बुना छाई - दादी त्या अब हम यक्खी लहेंगे ?
हाँ नौना की ब्वारी जरूर अन्गरौं की सी खईं सी लगणी छाई ?
नौनल बवाल ब्वे अब ती खुण गढ़वाल मा क्यां की खैर च ? सड़क -पाणि,बिज़ली ,राशन -पाणि की दूकान ,डिश -टीवी ,फ्रिज ,गाडी सब्भी ता व्हेय गिन गौं मा अब | आराम ही आराम चा त्वे खुण ब्वे अब त़ा

बस ब्बा बाकी त़ा सब ठीक चा पर अज्काल गढ़वाल मा "हल्या नी मिलदु " अब
बोतल देय की भी ना


रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड [/size]

Source: म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " व " पहाड़ी फोरम " मा पूर्व-प्रकशित

यकुलांस

दिल्ली मा
अज्काला कि सब्बि सुबिधाओं व्ला
एक सांस बुझण्या फ्लैट मा
एतवारा का दिन
जक्ख ब्वे सुबेर भट्टेय मोबाइल फ़र चिपकीं छाई
बुबा टीवी मा वर्ल्ड कप खेल्ण मा लग्युं छाई
और ६ बरसा कु एक छोट्टू नौनु वेडियो गेम मा मस्त हुयुं छाई
वक्ख ६२ बरसा की एक बुडडि
छत्ता का एक कुण मा यखुली बैठीं
टक्क लगाकि असमान देख़न्णी
मनं ही मनं मा
झन्णी क्या सोच्णी छाई ?
और झन्णी क्या खोज्णी छाई ?

रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड

Source: म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " व " पहाड़ी फोरम " मा पूर्व-प्रकशित

म्यर उत्तराखंड

प्रवासी उत्तराखंडी,
युवा एवं युवतियों का,
एक सामाजिक, सांस्कृतिक,
शैक्षिक और साहित्यिक मंच,
जिसने वार्षिकोत्सव-२०१० पर,
किया सम्मान,
लोक गायक गुमानी दा,
और चन्द्र सिंह राही जी का,
वो क्षण! मार्मिक था,
जब ९८ वर्ष के गुमानी दा,
मंच पर मौजूद थे.

राही जी का सन्देश था,
अपने बच्चों को,
गढ़वाली और कुमाऊनी भाषा,
ज्ञान जरूर कराएं,
जुड़े रहें पहाड़ की संस्कृति से,
आधुनिकता भी आपनाएँ,
लेकिन! घुन्ता-घुना-घुन,
जैसे विकृत पहाड़ी गीत,
गायककार बिल्कुल न गाएँ.

स्मारिका "बुरांश" का विमोचन,
"म्यर उत्तराखंड " का,
एक अनोखा प्रयास,
जीवित रहेगी संस्कृति,
हम कवि, लेखकों की,
जिसमें होती है आस.

मंच के अध्यक्ष,
प्रिय मोहन दा "ठेट पहाड़ी",
और सभी युवा एवं युवतियों का,
पहाड़ की संस्कृति के लिए,
भागीरथ प्रयास,
बढ़ते रहो अपने पथ पर,
सफल हो लक्ष्य प्राप्ति में,
कवि "जिज्ञासु" को आप में,
दिखती है अनोखी आस.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
("म्यर उत्तराखंड " वार्षिकोत्सव-२०१०, १-जनवरी-२०११, श्री सत्यसाईं इंटरनेशनल सेंटर (ऑडिटोरियम) लोधी रोड, नई दिल्ली )

गलादार

खाणा भी छीं,
पीणा भी छीं ,
कुरचणा भी छीं,
अटयरणा भी छीं,
हल्याणा भी छीं,
फुकणा भी छीं,
लठीयाणा भी छीं,
चटेलणा भी छीं ,
कटाणा भी छीं ,
लुटाणा भी छीं ,
जू ब्याली तक लगान्दा छाई ग्वाई,पंचेती का चुनोव मा ,
पहाड़ मा आज राजनीति की पतंग,बथौं मा व्ही उड़ाणा भी छीं,
जौंल लगाणु छाई मलहम पिसूडों फर,
व्ही उन्थेय आज डमाणा भी छीं,
ख्वाला आँखा जरा देखा धौं, कु छीं अपडा इन्ना
जू नीलाम कैकी पहाड़ थेय बिकाणा भी छीं
जू नीलाम कैकी पहाड़ थेय बिकाणा भी छीं
जू नीलाम कैकी पहाड़ थेय बिकाणा भी छीं

रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड

Source: म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " व " पहाड़ी फोरम " मा पूर्व-प्रकशित

गढ़वाली कविता (व्यंग ) : २०१० का आंसू

छेन्द स्वयंबर का निर्भगी राखी
बिचरी येखुली रह ग्याई
तमशु देखणा की "लाइव " चुप-चाप
हम्थेय भी अब सैद आदत सी व्हेय ग्याई
भाग तडतूडू छाई कन्नू बल कसाब कु ,
वू भी अब अतिथि देव व्हेय ग्याई
लोकतंत्र की हुन्णी चा रोज यख हत्या ,
इन्साफ अध रस्ता म़ा बल अध्-मोरू व्हेय ग्याई
कॉमन- वेल्थ का छीं आदर्श भ्रष्ट ,
सरकार बल राजा की गुलाम व्हेय ग्याई
मन छाई घंगतोल म़ा की क्या जी करूँ " गीत ",
तबरी अचाणचक से बल शीला ज्वाँन व्हेय ग्याई
घोटालूँ कु २०१० सुरुक सुरुक मुख छुपे की ,
अंतिम सांस लींण ही वलु छाई,
की तबरी विक्की बाबू की हवा लीक व्हेय ग्याई ,
" गीत "आँखों म़ा देखि की अस्धरा लोगों का ,
अब कुछ और ना सोची भुल्ला ?
२०१० कु निर्भगी प्याज जांद जांद युन्थेय भी आखिर रूवे ग्याई
२०१० कु निर्भगी प्याज जांद जांद युन्थेय भी आखिर रूवे ग्याई


रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
स्रोत : म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " मा पूर्व-प्रकशित