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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, March 31, 2013

आधार कार्ड मिलण: साहसिक, रोमांचकारी किस्सा


गढ़वाली हास्य -व्यंग्य 
सौज सौज मा मजाक मसखरी 
हौंस,चबोड़,चखन्यौ 
                                       
                             आधार कार्ड मिलण: साहसिक, रोमांचकारी किस्सा           
                                     
                                       चबोड़्या - चखन्यौर्याभीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )
 
                   जब पैल पैल आधार कार्ड बणनो बात शुरू ह्वे तो मजाक का रूप मा शुरू ह्वे। सब्युन ब्वाल बल नेता लोगुन पैसा खाणों बान एक हैंकि  बुग्याळ की रचना कार। जैदिन राजस्थान मा मनमोहन सिंह जी अर सोनिया जीन आधार कार्ड बांटिन आधार कार्ड की बात मजाक से अफवा मा बदल गे अर  गैस सिलिंडरों दाम  बढ़ण से त अफवा बजार मा उच्छाला ऐ गे। रुस्वड़ बिटेन प्रेस्सर कुकर की सीटी मा, धुंवा माँ   आधार कार्ड का बारा मा अफवाओं की ही छ्वीं लगदी छे। तैबरि तलक हमर परिवार आधार कार्ड तै मजाक कार्ड ही मांणदों छौ।फिर जब जोर की अफवा आइ बल बुजर्गों आधार कार्ड से मोफत मा राशन, इख तलक कि बुड्यों तैं पेन्सन पट्टा बि मीलल तों बगैर आधार कार्ड को रौण असह्य ह्वे गे। मुहल्ला का रस्तों पर लोग दिखाण बिसे गेन,"  ओ फार द्याखो तै मा आधार कार्ड ऐ गे तबि तो छाती बटन खोलि , छाती चौड़ी कौरि जाणों च।" अच्काल जो बि रस्तों माँ रौब से चल्दो तो लोग समजि जांदन कि तैन आधार कार्डो फॉर्म भौरि आल। रासनक दूकान मा जु बि  बिंडी ज़ोर से हल्ला करदो  तो दुकान दार अंदाज लगै दीन्दो कि यु रासन कार्ड धारक ही ना आधार कार्ड धारक बि च।
      
                  हमर बिल्डिंग मा जब बि क्वी परिवार पसीना मा लत पथ , भूक से परेशान पण मुख पर जीत को उत्साह ,आंखों मा मालिकाना घमंड की चमक  खुटोंम कुछ प्राप्ति को रगर्याट,   गेट  भितर आवो तो सब बिल्डिंग वाळ समजि लीन्दन बल स्यु परिवार आधार कार्ड को फॉर्म भौरिक ऐ ग्याइ। वीं रात यु परिवार भैर बिटेन खाणों मंगांद तो जैमा आधार कार्ड भरणो रसीद च वो एकाधिकार खतम हूणों जलन का बशीभूत अर हौरि परिवार हीन  भावना से ओत प्रोत ह्वेका  बरजात जन बगैर छौंक्यां खाणा खांदन।

     हम मरद जो दिन माँ नौकरी करदां वूं तै बिल्डिंग मा अर मुहल्ला मा नयो सामाजिक जाति बणनै खबर रात अपण जनान्युं से चलद। मि तैं अर म्यार नौनु तै ब्वे अर घरवळि  से पता चौल बल अब हम निखालिस पहाड़ी ब्राह्मण नि रै गेवां बल्कणम अब हम निम्न वर्ग  का नागरिक ह्वे गेवां। मुंबई मा हम कथगा इ दै निम्न  श्रेणी नागरिकों श्रेणी मा अवां धौं  -जब हमम रासन कार्ड निछौ, जब हमम दूधो कार्ड नि छौ, जब हमम गैस को कार्ड नि छौ। जब हमम वोटिंग कार्ड नि छौ, जब हमम पासपोर्ट नि छौ तों बगत बगत पर हम बिल्डिंग मा निम्न श्रेणी  गणत मा आवां।    
           
  आधार कार्ड की रसीद नि होण से हम बीच मा फिर से निम्न वर्ग का  ह्वे गे छया। मुहल्ला का रस्ता मा हमर परिवार मुंड तौळ कौरिक चलदा छा किलैकि हमम आधार कार्ड फॉर्म भरणो रसीद नि छे।  अब शरम से भैर आणो एकि विकल्प छौ कि हम बि आधार कार्ड बणौवां।
    
                   आधार कार्ड बणानम  सबसे पैलि परेशानी या आयि कि आधार कार्ड का फॉर्म कख मिल्दन? जौंक कार्ड भरे गे छा ऊंमा गेवां तो कैन हम तै अळगसि, नालायक की पदवी दे। कैन डराइ बल आधार कार्ड इन सुदि नि मिल्दन। कैन बथै बल  कि वो तो  कै  नगर सेवकको  पछ्याणक से फॉर्म ल्है छ्याइ   पण  कैन बि नि बताइ कि आधार कार्डो फॉर्म कख मिल्दन। क्वी बि आधार कार्ड होल्डर नि चांदो छौ कि दुसर बि आधार कार्ड का मालिक बौणो।

 हमर मुहल्ला मा एक चणा बिचण वाळ च जो अघोसित पूछ ताछ केंद्र च। वै चणा वाळन पचास रुपया मा बथाइ बल एक म्युनिस्पल स्कूलम फॉर्म मिल्दन। उन वैमा फॉर्म छया जो वो पांच सौ रुपया फी फॉर्म दीणो तयार छौ। पण पांच सौ प्रति फॉर्म हमर बजेट से भैर छौ। हां वैन मै पर इथ्गा मेहरवानी जरूर कार बल जु बथाइ कि फॉर्म लीणों रासन कार्ड जरूर लिजाण।
                 तो मि दुसर दिन  कोलम्बस बौणि  म्युनिस्पल स्कूल खुजणो सुबर सुबर मय रासन कार्ड घर  बिटेन दही -गुड़ खैक ग्यों। मि बीसेक आदिम्युं तै पुछिक कै बि तरां से रिबड़ राबिड़िक  वीं स्कूल पौन्छु। आज पता चौल कि मुंबई मा कोचिंग क्लास , प्राइवेट टयूटरो पता लगाण सरल च पण  म्युनिस्पल स्कूल खुज्याण भौति कठण च। 
        
          स्कूल भीतर  जाण तो कठण छौ किलैकि उख भैर मील तलक तीन लैन लगीँ छे। मीन द्वी तीन आदिमों  तै पूछ बल यी केकि लैन छन तो सब्युंन ब्वाल इनक्वारी से पता लगाओ। अब मीन इनक्वारी क पता पूछ तो पता इ नि चौल कि कख बिटेन इनक्वारी करे जावो। वो तो भलो ह्वाइ जो उपुण एक दलाल घुमणु छौ वेन दस रुपया मा इथगा बथाइ बल इनक्वारी पंगत क्वा च। मि इनक्वारी  लंगत्यार मा खड़ो ह्वे ग्यों। स्याम चार बजि मि इनक्वारी काउन्टर तलक पौन्छु अर वैन बथाइ कि रासन कार्ड दिखाण से फॉर्म मीलल अर फिर फॉर्म मा जो बि लिख्युं च वै हिसाब से कागज पत्र लाओ। उखमि जाण बल  सुबर आठ बजे से नौ बजेक बीच ब्वार अर भुप्यारो (बुधबार अर  गुरु वार ) कुण केवल कुल जमा पांच  सौ फॉर्म ही बंटे जांदन।
           
   जन जन दिन बितणा छया हमारि सामाजिक स्तर /पदवी मा निरंतर गिरावट आणि छे। स्टॉक मार्किट या सट्टा बजारम नुक्सान बर्दास्त ह्वे जांद पण सामजिक स्तर मा गिरावट सबसे जादा असह्य  होंद। ब्वार आण तलक सरा परिवारम बड़ी उक्रांत -उठापोड़ राइ। खैर ब्वार आइ अर मि दही -गुड़ खैक फॉर्म लीणो छै बजी सुबेर म्युनिस्पल स्कूल ग्यों तों पाइ कि लोग द्वी बजे रात से ही लैन लगैक खड़ा छा। खैर मी बि स्कूल से एक मील दूर तक जयीं लैनम लगी ग्यों। उन हम सब्युं तै पूरो भरवस छौ कि आज तो फॉर्म मिलण से राइ पण क्वि बि रणछोड़ दास बणनों तयार नि छौ अर सबि क्वीनम लग्युं गुड़ चाटणो जन कोशिस मा लैनम खड़ा रौंवां। सवा आठ से पंगत अगनै  सरकण लगि तो हम आस्तिक ह्वेका भगवान पर विश्वास करण मिसे गेवां।  पण ठीक  नौ बजे हल्ला से जाण बल  फॉर्म खतम ह्वे गेन , हमर भगवान पर  विश्वास खतम ह्वे ग्याइ अर हम सौब फिर से नास्तिक ह्वे गेवां।   

    भुप्यार रात मि  चटै, पाणि बोतल  अर द्वी परोठा लेक स्कूल औं तो उख पैलि लोग लैन मा चटै लेक पोड्या छया। कुछ जो अग्वाड़ि दस बजे ही ऐ गे छया वो से गे छ्या। मीन बि लैन मा चटै बिछै अर पोडि ग्यों।  कार्डन वर्ग अंतर खतम करी दे छौ। सबि वर्गों लोग लैन मा पोड्या छा। जौमां टैबलेट , आइ पैड या स्मार्ट फोन छौ वो  व्यस्त छया।

    सुबेर तलक कथगा इ दै ऊंग आयि नींद खुल कि क्वी पैथरौ में से  अगनै नि ई जावो। अदनिंद  मा बार बार आधार कार्डो सुपिन आंदो छौ अर कार्ड नि मिलणो सुपिन आंदो छौ तो मि  बर्र करिक  बिजि जांदो छौ अर हरेक इनि बार बार बर्र बर्र करिक बिजणा छा। सैत च जौंकि पियिं छे वूंकि नींद नि बिजणि छे। सुबेर सबि कोशिस मा लग्यां छा कि झाड़ा पिसाब रोके जावो। स्कूलम भैराक लोग झाड़ा पिसाब नि करी सकदा छा तो लोग अपण अग्वाड़ी -पैथर का आदिम से मिन्नत अर आज्ञा लेकि दूर  कखि झाड़ा पिसाब करी आणा छा। मीन झाड़ा त रोकि दे पण पिसाब पर मेरो बस नि चौल अर  मि  अपण ऐथर पैथर वाळु  से आज्ञा लेकि पेशाब्  कौरि औं। अफवा गरम  छे कि आज बस तीन सौ फौरम बंटल तो इन बि अफवा उड़ कि आज फौर्मुंन नि बंट्याण। कुछ लोग बस मुंह जवानी लड़णा छ्याइ। समय छौ कि अग्वाड़ी नि बढ़णो छौ अर पैथर लाइन छे कि कम नि होणि छे, बढ़दि जाणि छे।     
         
 खैर कै बि तरां सवा आठ बजे हलचल शुरू ह्वे अर फॉर्म बंट्याण शुरू ह्वेन। उचमुचि, उक्रांत, प्रतीक्षा से मन विचलित छौ अर कखि आज फॉर्म नि मिलल को नकारात्मक अंदेसा से ब्लड प्रेशर कम हूणु छौ , शरीर सुन्न होणु छौ। खैर मि मंथर चाल से खिड़कीम पौंछि ग्यों अर भगवान  अशीम अनुकम्पा से मि आधार कार्डक फॉर्म मिलि गेन। खुसी ? इंदिरा गांधी तै बंगलादेशऐ लड़ाई  जितणो उथगा  खुसी नि ह्वे होलि जथगा खुसि मैं तैं आधार कार्ड क फॉर्म मिलण पर ह्वै।    

          जनि मि फॉर्म लेक बिल्डिंग मा औं कि कुछ लोगुं तै भनक लगि गे कि मि आधार कार्डो फॉर्म लीणों जयुं छौ तो कुछ लोग मै पर रूसे क्या भड़कि गेन कि मीन ऊं तैं किलै नि भट्याइ। मीन त ना पर ब्वैन ऊं तैं याद दिलाइ कि ऊंन बि वोटर कार्ड या वरिष्ठ नागरिक कार्ड बणान्द दै  हम तैं नि भटे छौ।  
   अब बिल्डिंग मा हम सरयूळ बामण त ना पण पुड़क्या बामणु पदवी पर ऐ गे छया। ब्वैन ब्वाल बल हम अब मुहल्ला मा मुख दिखाण लैक ह्वे गेवां।
पैल हमन फौर्मुं फोटोकॉपी बणाइ।बड़ी तरकीब, धैर्य  से हमन फोटोकापी को फॉर्म भौर फिर हमन एकैक करीक असली फॉर्म भौर। जब सौब फॉर्म भरे गेन  तो मि स्कूल ग्यों अर मीन दलाल तै बीस रुपया देकि पता लगाइ कि कु दिन फौरम जमा करणों च।
 फिर मि चटै, पाणि बोतल अर परोठा लेक द्वी बजि रात स्कूलम ग्यों। रात भर उखि पड्यु रौं। सुबेर मेरि जगा लीणों म्यार बडों नौनु आइ। मि घौर औं। फिर नौ बजे हम सबि परिवार वळा  अपण जगा मा गेवां। तीन बजि हमर नम्बर आइ। उन तो सब काम लाइन से हूणु छौ पण बीच बीच मा भारतीय संस्कृति का दर्शन बि हूणु छौ याने जौन इकै हजार फॉर्म पर अतिरिक्त सेवा कर दे वो बगैर लाइन का ही भितर जाणा छया।

भितर कम्प्यूटर मा हमन हेरकान ठीक से जांच कार कि सूचना ठीक से भरीं च कि ना। फिर म्यार हथों छाप कम्प्यूटर पर  लिए गे अर आखिरैं अंगूठा का छाप लिए गे।
 आखिर हम तै एकै रसीद मील कि हमन सरकारी स्तर पर आधार कार्ड भोरि आल।
  जब हम स्कूल से  आधार कार्ड भरणो  रसीद  लेकि भैर अवां तो हम तै लग बल हमन जग जीती आल।
बिल्डिंग मा जौं जौं मा आधार  कार्डो रसीद छे ऊंन हम तै वधाई दे अर 'आधार कार्ड इन पेंडिंग क्लब' माँ शामिल कार अर मीन ऊं तैं खुसी मा दारु पार्टी द्यायि तो ब्वैन अर घरवळिन जनान्युं तै केक पार्टी दे अर बच्चों मा चौकलेट बांटे गे।            
  
Copyright @ Bhishma Kukreti   1/4/2013 

Pai ki Dhungi: Garhwali Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message


Review of Garhwali Music cassette ( Pai Ki Dhungi , 2001)-2
Review of Development of Garhwali-Kumauni (Uttarakhandi) Films, Music Albums, Documentary films -29
                                                Bhishma Kukreti
[Notes on Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Garhwali Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Uttarakhandi Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Mid Himalayan Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Himalayan Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; North Indian regional language Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Indian regional language Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Asian regional language Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Oriental  regional language Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message]
                  Audio and Video cassette industry in any form influenced every society in the world. Audio and video cassettes have been the main source of promoting, protecting and publicizing Garhwali songs/culture.  Understanding the influence and affectivity of audio cassettes, the famous social organization Shri Bhuwneshawari  Mahila Ashram Anjani Sain , Tihri Garhwal produced audio cassette ‘Pai Ki Dhungi’ in 2001 and distributed through Gulashan Kumar.  The aim of the audio caste was to make aware public about protection of Soil, earth, water, stones, and forest. One song written by Prital Apachyan tells people to avail the opportunities available in Hills. Second song talks about talking steps by our own for hills development and not to wait for others. Third song is also message oriented about responsibilities of society and individuals in hills development. Fourth song is about protection of trees those provide water and conserve soil and stop soil erosion.  
            Fifth song discusses about high speed entry of corruption. Sixth song discusses about benefits of good education and inspires parents to take care in educating new generation.  The last song talks about unity. All praise to Shri Bhuwneshawari  Mahila Ashram Anjani Sain , Tihri Garhwal for taking step in producing  inspirational music cassette. Prital Bhartwan, Meena Rana, Devendra Kaintyura, Jitendra Panwar, Upendra Kukreti and Sohan lal are singers of this marvelous audio caste. Upendra Kukreti provides music for this cassette.
 The lyricists are Prital Apachhya, Gajendra Nautiyal, Chandra Mani Uniyal, Satish Balodi, Upendra Kukreti and Chandra Mohan Thapliyal.
 All the songs are relevant today too.
Curtsey: Sanjay Sundariyal
Reference: Bhishma Kukreti, 2013, उत्तराखंडी फिल्मों का संक्षिप्त इतिहास
Copyright@   Bhishma Kukreti 31/3/2013
Review of Garhwali Music cassette) to be continued…3

Review of Garhwali and Kumauni Films, music albums, documentary films (Uttarakhandi) to be continued...30
Commentary on Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Garhwali Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Uttarakhandi Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Mid Himalayan Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Himalayan Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; North Indian regional language Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Indian regional language Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Asian regional language Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message; Oriental  regional language Audio Music cassette for Social Awakening and Positive message to b e continued…

आत्मविश्वास


 आशा रावल  की भिजिं कथा
 
                                 अनुवाद :भीष्म कुकरेती 
 
             एक फैक्ट्री मालिक की नींद भूख सब खतम हुंयि छे, ब्यापार मा बडो घाटा ह्वे तो वै पर बड़ो करज पात चढि गे अर वैक समज मा नि आणु बल इं बुरी स्थिति से भैर आणों बान क्या करे जा। वो किम कर्तव्य की स्थिति मा छौ किलैकि हर समय करजदार वैक    पैथर पड़्या छा।
इनि उदास ह्वेको वो ब्यापारी  एक बगीचा मा बैठिक सुचणों छौ कि भगावन इन कौरि दया कि वो कुड़की/नीलामी से बच जा।
इथगा  मा अचाणचक बगीचा मा एक  बुड्या आयि अर ब्यापारी तैं पुछण लगि," तेरि सूरत बथाणि च बल तू   कें बड़ी कठिनाई मा छे?"
ब्यापारिन  अपणि खैरि (दुःख ब्यथा कथा ) बुड्या मा लगै।
बुड्यान बड़ो ध्यान लगैक व्यापारि ब्यथा सूण अर फिर ब्वाल," ओहो ! मै लगद मि तेरि मदद कौर सकुद। ले ये चेक ले अर अपण काम अग्वाड़ी बढ़ा। एक साल बाद हम द्वी येयि बगीचा मा मिलला अर तब तू मेरि पगाळ वापस बौड़े दे"
चेक व्यापारिक  हथम थमै वो बुड्या तेजी से बगीचा से भैर चलि गे।    
 डुबदो मनिखौ कुण कुणजौ पात सहारा जनि बात छे। व्यापारिन देखि कि वैक हथम सबसे बडो धनी वारेन  बुफेर को साइन कर्युं  बीस  लाखौ चेक छौ।  
पैल व्यापारिन निर्णय ले कि ये चेक तैं भुनैक कुछ समस्या दूर करे जावो। पण फिर व्यापारि न स्वाच कि ये बडो धनी क चेक तैं तो  कबि बि भुनाए जै सक्याँद तो वैन भविष्य को ख़याल करदो बीस लाखो चेक अपण तिजोरि पुटुक धौर दे।
व्यापारि  की मनोदशा मा अचाणक बदलाव ऐ गे अर विको सांस (साहस) माँ बढ़ोतरी हूण लगी गे। फैक्टरी को काम माँ क्या क्या बदलाव कर्याण से वैको भविष्य कन   सुखमय ह्वे सकुद।
व्यापारि  मा एक नयो किस्मौ उलार -उत्साह भोरे गे अर वैन कर्जदारों दगड़ नया ढंग से सौदा कार, नया ढंग से नया कर्जदार अर माल विक्रेताओं दगड़  सौदा कार तो वैको व्यापार कुछ ही मैना माँ फिर से चमकण बिसे ग्याइ। वैको व्यापार मा मुनाफ़ा बढ़ण लगि गे।
एक साल तक वैको पुरण उधार -पगाळ बि खतम ह्वे गे छौ अर बैंकम बि लाखों रुपया बच्यां छा।
ठीक एक साल बाद वो व्यापारि   धनी मनिखो चेक वापस करणों बान  वाई ही बगीचा मा गे   जख एक साल पैलि धनी बुड्यान चेक दे छौ।
धनी बुड्या  दस्तखत कर्युं वो ही चेक व्यापारी हाथ मा छौ।
इथगामा कुछ हि देरम धनी बुड्या आयि। व्यापारि चेक बुड्या तै पकड़ाण इ वाळ छौ अर अपणी सफलता की कथा बथाण इ वाळ छौ  कि  बुड्या पैथर एक नर्स भागदी भाग्दि आयि अर वीन बुड्या हथ पकड़दो ब्वाल," थैंक गौड!  पागलों अस्पताल बिटेन  भाग्युं पागल बुड्या पकड़ मा ऐ गे। निथर ये पागलन हमेशा की तरां सब्युंम बुलण छौ कि वो धनी वारेन बुफेर च अर फिर ये  पागलन  बीस लाखौ चेक फाड़ी  तुम तै   दीण छौ"
नर्स बुड्या तैं पकड़ी अस्पताल जिनां  ली ग्यायि    
इना व्यापारी आश्चर्य मा छौ कि वैन  नकली बीस लाख का चेक का सहारा अपुण व्यापार दुबर खड़ो कार।
 
कथा को मन्तव्य  - यीं कहानी असली मंतव्य च कि धन ना बल्कणम  हमारी दशा मा सुधार आत्म विश्वास ही लै सकुद

Thursday, March 28, 2013

NRI उत्तराखंडी न हो अब उदास


NRI उत्तराखंडी न हो अब उदास क्योंकि YUCA 2013 का सीधा प्रसारण आयेगा आपके पास

Watch YUCA 2013 Live TV 

http://www.younguttarakhand.org/wp/yuca-2013-livestream/




Satire Government Neglecting Rural Development


Door Upyog Roke Jalo: Satire attacking on Government Neglecting Ignoring  Remote Village (Rural) Development

 Critical review of Garhwali satirical prose- 140       
Critical Review of Garhwali Satirical prose written by Pritam Apachhyan -3
Review of Satirical article ‘Door Upyog Roke Jalo’(Chitthi Patri April 2001) by Pritam Apachhyan
                                             Review by Bhishma Kukreti
[Commentary on Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development; Garhwali Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development; Uttarakhandi Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development; Mid Himalayan Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development; Himalayan Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development; north Indian local language Satire attacking on Government Neglecting Ignoring  Remote Village (Rural) Development; Indian local language Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development; Asian local language Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development]

                      Pritam Apachhyan is a famous Garhwali language poet and is well versed with playing with words. In present article ‘Door Upyog Roke Jalo’, Pritam Apachhyan effectively uses words to create wit, funniness, humor, absurdity, satire, spoof, lampoon on politicians, ruling politicians, and government officers for  ignoring  remote  village development;  distant  rural  progress.  It is always said that ‘sansaadhano ka Durupyog band ho’ (Don’t waste resources).  However, when Dur word is separated from ‘Durupyog ‘and is called ‘Dur Upyog’ that means to use far.  Pritam Apachhyan uses this tactics in creating satire and attacks on government for neglecting remote areas development in the name of ‘Don’t waste resources’.
   Cleverly and effectively, Pritam Apachhyan criticizes the political mentality for neglecting the village progress.
 Pritam Apachhyan uses descriptive style and shows that the satirist is a master of words.

Copyright@ Bhishma Kukreti 27/3/2013
Critical review of Garhwali satirical prose to be …141
Critical Review of Garhwali Satirical prose written by Pritam Apachhyan to be -4
Commentary on Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development; Garhwali Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development; Uttarakhandi Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development; Mid Himalayan Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development; Himalayan Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development; north Indian local language Satire attacking on Government Neglecting Ignoring  Remote Village (Rural) Development; Indian local language Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development; Asian local language Satire attacking on Government Neglecting Ignoring   Remote Village (Rural) Development to be continued…

गढ़वाली में अनुदित साहित्य परम्परा


भीष्म कुकरेती 
   किसी भी भाषा के साहित्य में अनुवाद का महत्वपूर्ण स्थान होता है। अनुवाद से साहित्य को नये नये विषय, नई शैली, नये विचार, नई संस्कृति , अनुभव मिलते हैं।
अनुवाद विषयी साहित्य में कई धारणाएं व सिद्धांत साहित्य में बताये गये हैं जसे अनुवादक को  दोनों भाषा का महति ज्ञान होना आवश्यक है। जिस भाषा  में अनुवाद किया जा रहा है उस भाषा का अनुवादक को पूरा ज्ञान होना चाहिए। अनुवादक को अनुवादित विषय का घन ज्ञान बांछित है। अनुवादक को दोनों भाषाओं में अंतर और सम्बन्ध का ज्ञान भी आवश्यक है। एन्ड्रयु चेस्टरमैन, फिलिप्स कोड ,इतामार इवान जौहर, रोज गाडिज, ई जेंतजलर , टी हरमान्स, जेरमी  मुंडे, नाम फुंग  चैंग, जी टौरी, इंड्रे लीफवेरे , सुसान बासनेट, आदि समीक्षकों ने कई सिद्धांत प्रतिपादित किये और अनुवाद सम्बन्धी सिद्धांतो  की समीक्षा भी की है।      
          गढवाल में प्रिंटिंग व्यवस्था ब्रिटिश काल से आई और गढवाली इस विधा में पारंगत व धनी  भी नही थे तो यह आश्चर्य नही है कि आधुनिक गढ़वाली गद्य की शुरुवात तो अनुदित साहित्य से ही हुयी। गढवाली में अनुदित  साहित्य को निम्न भागों में बंटाना सही होगा:
अ- अन्य भाषा साहित्य का गढवाली में अनुवाद 
ब- गढवाली साहित्य का अन्य भाषा में अनुवाद   

                                अ- अन्य भाषा साहित्य का गढवाली में अनुवाद 
 
   अन्य भाषाओं का गढ़वाली में अनुदित साहित्य को इस प्रकार विभाजित किया जाना ही श्रेय कर है 
१-अन्य भाषाइ कविताओं का गढ़वाली कविता में अनुवाद   
२- अन्य भाषाइ कविताओं का गढ़वाली गद्य में अनुवाद 
३-अन्य भाषाओं के गद्य व पद्य लोक साहित्य का गढवाली में अनुवाद 
४- अन्य भाषाओं के धार्मिक, आध्यात्मिक  व दार्शनिक साहित्य का   गढवाली में अनुवाद 
५- अन्य भाषाओं की कहानियों का गढवाली में अनुवाद
६- अन्य भाषाओं के नाटक का अनुवाद या नाट्य रूपांतर 
७- अन्य भाषाओं के समाचारों व समाचार पत्र हेतु गढ़वाली में विभिन्न अनुवाद 
८- अन्य भाषाओं की अन्य विधाओं का गढवाली में अनुवाद 
 ऐसा माना जाता है सन  1820 के करीब  क्रिस्चियन मिसनरीयों ने बाइबल का अनुवाद किया था। सन  1876 में 'न्यू टेस्टामेंट' का अनुवाद प्रकाशित हुआ।
 गढ़वाल के प्रथम डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर गोविन्द घिल्डियाल ने संस्कृत शास्त्रीय  पुस्तक 'हितोपदेश' का पांच खंडो में अनुवाद किया जो डिवेटिंग क्लब अल्मोड़ा से 1902 में प्रकाशित हुआ।

                          गढवाली भाषा में काव्यानुवाद 
 
सन 1920 में कुला नन्द स्वयंपाकी ने 'जर्जर मंजरी' का अनुवाद 'गढ़भाषोपदेस' नाम से छापा   
सन चालीस से पहले बलदेव प्रसाद नौटियाल ने वाल्मीकि रामयण  का 'छाया रामायण ' के नाम से गढवाली में अनुवाद किया 
 
सन सैंतालीस से पहले तुलाराम शर्मा ने गीता के 'कर्मयोग' भाग का गढवाली में अनुवाद किया  
भोला दत्त देवरानी ने गीता के  कुछ भागों का   गढवाली में अनुवाद किया 
भोला दत्त देवरानी ने कालिदास के मेघदूत का अनुवाद किया जो बाडुळी में छपा। 
सन सैंतालीस से पहले परुशराम थपलियाल ने तुलसी कृत रामयण के कुछ भागों का अनुवाद किया 
अबोध बंधु बहुगुणा  द्वारा सन 1965 में गोविन्द स्रोत्र का 'भज गोविन्द स्रोत्र नाम से किया गया 
'मेघदूत' का अनुवाद 'मेघदूत छान्दानुवाद ' के नाम से सन 1971 में धर्मा नन्द जमलोकी ने  प्रकाशित किया 
गढ़वाली काव्यानुवाद में प्रखर स्वतंत्रता सेनानी आदित्यराम दुदपुड़ी सर्वाधिक योगदान है।  उन्होंने निम्न अनुवाद साहित्य रचा 
 
1979 में आदित्यराम दुदपुड़ी ने उपनिषद का अनुवाद इशादी उपनिषद के नाम से अनुवाद छपवाया 
1990 में उपनिषदों का अनुवाद 'प्रश्नादि  छ उपनिषद 'के नाम से आदित्यराम दुदपुड़ी का अनुवाद साहित्य प्रकाश में आया 
1991में आदित्यराम दुदपुड़ी ने नीतिशतकम का अनुवाद गढ़ नीतिशतकम नाम से अनुवाद किया  
1991में ही आदित्यराम दुदपुड़ी ने चाणक्य नीति का अनुवाद गढ़ चान्यक  नीति के नाम से प्रकाशित किया 
1992 में आदित्यराम दुदपुड़ी द्वारा विदुर नीति का नौवाद किया गया 
1992 में पन्द्रह उपनिषदों -शिव-संकल्पादि का अनुवाद आदित्यराम दुदपुड़ी ने छापा   
आदित्यराम दुदपुड़ी द्वारा 1993 में छान्दोगेय  उपनिषद का अनुवाद सामने आया 
1993 में वृहदारण्यक   उनिषद का अनुवाद  गढ़ वृहदारण्यक नाम से दुदपुड़ी द्वारा प्रकाशित किया गया 
आदित्यराम दुदपुड़ी  1995 में मनुस्मृति का गढ़ मनुस्मृति का अनुवाद प्रकाशित हुआ 
1987 में डा नन्द किशोर ने श्रीमद भगवत गीता का अनुवाद किया 
डा नन्द किशोर ढौंडियाल ने कुछ उपनिषदों का अनुवाद प्रकाशित किया 
1980 के दरमियान अबोध बंधु बहुगुणा ने टैगोर रचित गीतांजली के कुछ पदों का अनुवाद किया 
1985-87 के करीब पंडित वैदराज पोखरियाल द्वारा गीता का अनुवाद अलकनंदा में श्रीख्लाव्ध प्रकाशित हुआ 
1989-90 में जयदेव  द्वारा गीता का अनुवाद गढ़ ऐना में श्रृंखला बद्ध  प्रकाशित हुआ 
2001 में चिट्ठी में मोहन लाल नौटियाल का गीता के कुछ खंडो का  अनुवाद प्रकाशित हुआ 
2012 में भीष्म कुकरेती ने दार्शनिक शकर रचित आत्मा का अनुवाद नाटक विधा में रस और रस्वादन (रस अर रस्याण )  स्पष्ट करने के लिए किया 
2012 में गीतेश नेगी द्वारा अन्तराष्ट्रीय स्तर के उर्दू , हिंदी व  विदेशी कवियों   काव्यानुवाद इन्टरनेट माध्यम में छपे। गीतेश नेगी का यह कार्य गढवाली भाषा के लिए साहित्यकारों के मध्य अत्त्याधिक सरहनीय कार्य माना गया।  
 गीतेश नेगी ने नवाज देवबंदी (सहारनपुर ), मिर्जा ग़ालिब , कातिल और  निदा फाजली की गजलों का गढवाली में पद्यानुवाद प्रकाशित किया 
सुमित्रा नन्द पन्त के दो कविताएँ मोह और पर्वत प्रदेश में पावस का गढवाली में काव्यानुवाद किया 
सीगफ्राइड सासून की  विश्व युद्ध विभीषिका आधारित  ,विश्वप्रसिध कविता 'द सर्वाइवर्स, हाउ टु  डाई' का अनुवाद कन कै मोरण' नाम से किया 
वाल्ट हिटमैन की कविता 'ओ कैप्टेन ओ कैप्टेन ' का 'ओ कप्तान  ओ कप्तान ' नाम से किया .
नोबेल पुरुष्कार विजेता विजेता जर्मन कवि गुटुर ग्रास की इजरायल समस्या सम्बन्धी कविता 'व्हट  मस्ट बि सेड' का सुन्दर काव्यानुवाद किया 
युवा कवि गीतेश नेगी का प्रसिद्ध कवि रुडयार्ड किपलिंग, अल्फ्रेड टेनिसन, की  कविताओं का अनुवाद सराहनीय है 
                                 लोक कथा अनुवाद 
 
 आदित्यराम दुदपुड़ी  ने पंचतन्त्र की कथाओं का अनुवाद 'कथा कुसुम ' नाम से प्रकाशित की 
भीष्म कुकरेती ने  पंचतन्त्र के दस कथाओं का अनुवाद गढ़ ऐना में 1989-1900 के मध्य प्रकाशित किये 
भीष्म कुकरेती ने मिश्री, चीनी और जर्मनी लोक कथाओं का अनुवाद 1989-1900  के मध्य गढ़ ऐना में प्रकाशित किये। कुछ कथाएँ इंटरनेट पर भी पोस्ट हुयी हैं  
                         अन्य भाषाओं की कथाओं का गढ़वाली में अनुवाद 
 
 भीष्म कुकरेती ने जर्मनी , यदीज (प्रवासी यहूदियों की भाषा ), चीनी कथाओं का अनुवाद इन्टरनेट में छपवाया 
भीष्म कुकरेती द्वारा विद्या सागर नौटियाल की हिंदी कथा दूध का स्वाद ' 'का अनुवाद  'दूधो स्वाद ' से किया जो  खबर सार (2012) में प्रकाशित हुई,
भीष्म कुकरेती ने प्रसिद्ध उर्दू कथाकार सदाहत मंटो की कथा 'सौरी ब्रदर' का अनुवाद 'सौरी भुला' नाम से इन्टरनेट माध्यम में प्रकाशित की।  
 
                अन्य भाषाओं के  नाटकों का गढ़वाली में अनुवाद 
 
 
प्रेम लाल भट ने अ नाईट इन इन का अनुवाद ' किया जिसका मंचन 'चट्टी की ek  रात ' से हुआ 
इसी नाटक अ नाईट इन इन का अनुवाद भीष्म कुकरेती द्वारा 'ढाबा की एक रात ' नाम से इन्टरनेट माध्यम में 2012 में प्रकाशित हुआ
राजेन्द्र धषमाना ने मराठी नाटक का अनुवाद 'पैसा ना धेला नाम गुमान सिंह थोकदार' के नाम से किया जिसका मंचन भी हुआ 
कश्मीरी नाटक 'रिहर्शल ' का भी रूपान्तर गढवाली में हुआ और दिल्ली में मंचित हुआ 
कालिदास कृत अभिज्ञान शाकुंतलम का अनुवाद डा पुष्कर नैथाणी    किया जो कोटद्वार में मंचित हुआ 
 
                 अन्य भाषाओं के समाचारों व समाचार पत्र हेतु गढ़वाली में विभिन्न अनुवाद 

  गढ़वाली भाषा में पहला दैनिक होने का श्रेय 'गढ़ ऐना ' को जाता है जो देहरादून से सन 1987-1991 तक प्रकाशित होता रहा।
 दैनिक समाचार हेतु कई सामग्री अनुवाद करना लाजमी होता है।
गढ़ ऐना की टीम इश्वरी प्रसाद उनियाल (सम्पादक ), क्षितिज डंगवाल, राजेन्द्र जुयाल , प्रकाश धश्माना रोज न्यूज एजेंसी या अन्य  स्रोत्रों से प्राप्त हिंदी , अंग्रेजी समाचारों व लेखों का अनुवाद गढवाली में करते थे और इस तरह गढवाली दैनिक प्रकाशित होता था।
इस तरह के अनुवाद में  में सबसे अधिक योगदान राजेन्द्र जुयाल का रहा है। गढ़वाली साहित्यि राजेन्द्र जुयाल के महान योगदान को सदा याद करता रहेगा 
 
                            अन्य अनुवाद 
 
   डा रानी  लिखित गढवाली रंगमंच हिंदी लेख  का भीष्म कुकरेती द्वारा अनुवाद चिट्ठी पत्री व गढवाल सभा के नाट्य महोत्सव  स्मृति पुस्तिका में प्रकाशित हुआ 
 
                             ब --गढवाली साहित्य का अन्य भाषा में अनुवाद
   
 गढवाली साहित्य का अन्य भाषा में अनुवाद का कार्य छित पुट ही हुआ है।
कन्हया लाल डंडरियाल  की काव्यकृति 'अंज्वाळ पुस्तक का ' का अनुवाद हिंदी में घना नन्द  जदली ने किया  
भीष्म कुकरेती ने कई लोक मन्त्रों और लोक गीतों का भावानुवाद अंग्रेजी में किया जो कि  गढवाली साहित्य की अंग्रेजी में समीक्षा हेतु की गयी 
गिरीश सुंदरियाल का  कविता  संग्रह मौऴयार   में  गिरीश सुंदरियाल की कुछ कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद परिशिष्ट में छपा है।
 इस तरह हम पाते हैं की अन्य भाषाओं में संस्कृत काव्य, धार्मिक -आध्यात्मिक -दार्शनिक व नीतगत विषयों का गढ़वाली भाषा में सर्वाधिक अनुवाद हुआ। विदेशी भाषा के साहित्य  का अनुवाद भी अब शुरू हो गया है। आशा की जाती है गढवाली में अनुदित  साहित्य अपनी अलग पहचान  बनाने में सफल होगा 
 
 Copyright@ Bhishma Kukreti 29/3/2013

दि बर्निंग इस्यूज ऑफ माइ विलेज


गढ़वाली हास्य -व्यंग्य 
सौज सौज मा मजाक मसखरी 
हौंस ,चबोड़ , चखन्यौ 
 
                              दि   बर्निंग इस्यूज ऑफ माइ विलेज   याने म्यार  गौंकी जळणवाळ समस्या  
  
                                चबोड़्या - चखन्यौर्याभीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )
 
  हेड मास्टर जी कुणि मथि बिटेन अंग्रेजी मा आदेस आयि बल स्कूल्यों से दि बर्निंग इस्यूज ऑफ माइ विलेज पर स्थानीय भाषा मा निबन्ध लिखवावो। हेड मास्टर जीन दि बर्निंग इस्यूज ऑफ माइ विलेज को अनुवाद (गां की जळणवाळ समस्या ) करिक स्कूल्यों तैं निबन्ध लिखणो ब्वाल। म्यार स्कूलम जै नौनु तैं पैलो नम्बर मील वैक निबन्ध इन छौ।
            
                                  म्यार  गौंकी जळणवाळ समस्या
            
 
                                           चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश च तो इख गां छन अर म्यार गां बि एक गां च। चूंकि म्यार गां एक पहाड़ी गां च तो इख जलण मुतालिक भौत सि समस्या , तखलीफ़, कठण परिस्थिति छन। सबसे पैल जळण वाळ समस्याओं मादे एक हैंक से जऴतमारि समस्या च। इख सबी हैंकाक प्रोग्रेस, उन्नति से हरदम जळणा रौंदन। माना कि मि अछो नम्बरों मा पास हूं तो हम जब ख़ुशी मा  पैण / मिठे बांटणो जांदा तो सबि जौळ जांदन मि कनै पास होऊं अर ऊंक नौनु किलै पास नि ह्वाइ। इलै अब हमर गां मा पैणु बंटण बंद ह्वे गे।  चचा भतिजो नौकरी लगण से जऴदो,भतिजु चचा क पेन्सन आण से जल्दो, ब्वारि सासु स्वस्थ स्वास्थ्य से जऴदि तों ख़ास पीठि भाइ दुसर भाइक बीपीओ (गरीबी रेखा से तौळ )  सर्टिफिकेट देखिक  जऴद।  एक हैंकाक उन्नति से जळणो कारण सब्युं जिकुड़िम बणाक लगीं रौंद,  सबि  मनोरोगी हुयां छन। सरकार कुछ नि  करणि च, पटवरि अर प्रधान बि सिंयां छन वूं तै टैम इ नी कि जळणै बिमारी कम करणों  गां माँ एक वैदो इंतजाम करि द्यावन। नेता लोग बि चुनावुं टैम पर आश्वासनों क्वाथ पिलान्दन कि चुनाव जितणो बाद  जऴतमारि, इर्ष्या, जलनखोरी बीमारी हेतु हरेक गां मा एक वैद भिजे  जालो पण इन सुणण माँ आंदो कि उख राजधानी मा  कोशियारी जी रमेश निशंक जी से जळणा रौंदन तो खंडूरी जी कोशियारी जी से जळदन, सतपाल महाराज जी हड़क सिंग जी से जळदन, हरीश रावत जी  विजय बहुगुणा जी  से इर्ष्या करदन  तो इनमा जलन खोरि अर इर्ष्या बीमारी दूर करणों सरा बजेट नेताओं जळन/असूया  खतम करण माँ खर्च ह्वे जांदो तो गांवो बाण इर्ष्या खत्म करणों कुछ बजेट इ नि आणु च।                              
 
             मेरि ददी बुल्दि बल ददी क ददि समौ पर आग रंगुड़ तौळ  दबाये जांदी छे अर गां वळ एक हैंकाक  ड्यारन छिलों से आग बाळि  लांदा छा या आग मांगि लांदा छा तो कथगा बि झड़ी-बरखा ह्वावो आग जळाणो समस्या कबि नि आन्दि छे। फिर हमन प्रवासी भाईओं मंगन  जाण कि रंगुड़ तौळ आग बचाण असभ्य लोगुं काम च तो हम अब सभ्य ह्वे गेवां अर अब हम रंगुड़ से परेज करदां। चूंकि प्रवासियोंन ही बथाई बल अग्य्लु कबासलो से आग जगाण आदि वास्युं या जाहिलों काम होंद त कुज्याण कथगा साल पैलि हमन अज्ञल माटो तौळ खड्यार ऐ छौ। फिर हम तैं  प्रवास्युंन सिखाइ कि दियासळाइ से ही आग जळाण  चयेंद तो हम दियासळाइ से आग जळाण मिसे गेवां। फिर हमन खेती पाती बंद करी तो भ्युंळ निबटेन, दगड़म रौउ पाणि सुखण से हमर इख क्याड़/छिलों निर्माण ही बंद ह्वे ग्याइ। मि तो जणदो बि नि छौं बल क्याड़। छिल्लों या तुर्क्यड़ो से एक हैंकाक इखन आग जळाये जान्दि छे। मि दियासळाइ युग को छौं। कुछ साल पैलि हम  सहकारी/सहयोग की भावना से  एक हैंक तै दियासळाइ दीन्दा छा। पण फिर हमर गौंका प्रवास्युंन बथाइ बल सहकारिता या कोपरेसन गरीबी की निसाणि च।  हम तैं बेइमान, भ्रष्ट, बलात्कारी ब्वालो तो भी हम तैं बुरु नि लगुद पण जरा क्वी गरीब बोलि द्यावो तो हमर जिकुड़िम अग्यौ, जळन्त, ह्वे जांदो अर मन मा बणाङ्क लगी जांद। हमन गरीबी मिठाणो कुछ नि कार पण गरीबी की सबि निसाणि मिटै देन। सहकारिता, सहयोग गरीबी की सबसे बड़ी निसाणि/पछ्याणक च तो हमन एक हैंक से सहयोग , सहकारिता इ गाँव  से भगै दे अर जथगा बि ह्वावो हम एक हैंक से असहयोग करण मा शहरी लोगुं से बि अग्वाडि ह्वे गेंवा।   कथगा बि आवश्यकता ह्वावो, कथगा बि जरूरी ह्वावो  अब हम एक हैंक तैं  दियासळाइ नि दींदा ना ही कैमांगन दियासळाइ मंगदा। यां से मेरो गां मा ज्वलंत समस्या पैदा ह्वे गे। अब जब हमम दियासळाइ तिल्ली खतम ह्वे जावन या  दियासळाइ बरसात मा या पाणि मा सिल्ली ह्वे जावो तो हम अपण ब्वाडा -काका-भाई -भतीजों से  दियासळाइ नि मांग सकदा। जु  क्वी कैमा दियासळाइ  मांगो तो वै तैं सुणण पडुद -अच्छा इथगा गरीबी ऐ गे जो दियासळाइ मंगण पड़नो च।   अर इन मा कथगा दें हम बगैर  आग जळयां खाजा-भुज्यां बुख़ण बुकैक रात कटदां। यो दूसरों दियासळाइ से आग नि जळाणै समस्या बड़ी भंयकर ज्वलंत समस्या ह्वे गे अर सरकारी अधिकारी, नेता लोग , मंत्री लोग गांवों मा यीं आग  जळाणै समस्या को क्वी  समाधान नि खुजयाणा  छन । ग्राम प्रधानन सांस्कृतिक मंत्री जी कुणि चिट्ठी भि भ्याज पण संस्कृति मंत्री जीन ब्वाल कि या समस्या सामजिक समानता मंत्री जिक च तो सामजिक समानता मंत्री न ल्याख कि चूंकि इखमा दियासळाइ शब्द च तो या समस्या वन मंत्री क च; वन मंत्री को लिखण छौ कि  दियासळाइ बंटणो काम सार्वजानिक वितरण विभागों क च तो सार्वजनिक वितरण विभागों चिट्ठी आई कि हम राशन बंटदा दियासळाइ नि बंटदा। सो अबि बि हमर गां मा आग जळाणै समस्या जन्या कि तनी च अर सरकार कुछ नि करणी च।
                 
    फिर चूंकि अब अपण डाळ बूट कटणो बि वन विभाग से स्वीकृति लीण पड़दि अर हम तैं गैस सिलेंडरों मा ही खाणों बणान पोड़दो पण गैस को बुरा हाल छन।इलै हम तै रात अपण डाळ कटण पोड़दन। फिर जब हम चुलू जगांदा तो आग की धुंवा देखिक ग्राम प्रधान ऐ जांदो कि तुम लखड कखन लयां। फिर हर रोज ग्राम प्रधानो कफनो कुणि कुछ ना कुछ भिजण पड़द। अपण डाऴ ह्वैक बि हम अपण लखड़ नि जळै  सकदा यां बड़ी ज्वलंत समस्या क्या ह्वे सकदी?
             
          पैल जब हम तै गरीबी से शरम  नि छे तो  हम सहकारिता का हिसाबंन जब बणाङ्क लगदि  छे तो सरा गां का लोग संजैत बौणक   बणाङ्क बुझाणो  जांदा छा पण अब संजैत काम करण हमन बंद करि देन तो बणाक हमर मकान का न्याड़ -ध्वार तलक ऐ जान्दि अर या सरकार च कि कुछ नि करदी। बणांक गांकी बड़ी ज्वलंत या फौरेस्ट फाइर इज बर्निंग इ।
  अत: मथि लिख्यां से साबित होंद कि एक हैंक से जळण, कै हैंक मांगन आग जळाणो दियासळाइ नि मांगण, आग  जळाणो बान अफुम लखड़ ह्वैक बि जळाणो बान  प्रयोग नि करे सकण अर बणांक हमारो गौन्की ज्वलंत समस्या छन।                     
 
Copyright @ Bhishma Kukreti   28 /3/2013 

Wednesday, March 27, 2013

Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking


Hyaram! Bicharu Uttarakhand:  Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it

Critical review of Garhwali satirical prose- 139        
Critical Review of Garhwali Satirical prose written by Pritam Apachhyan -2
Review of Satirical article ‘Hyaram! Bicharu Uttarakhand ‘(Chitthi Patri April 1999) by Pritam Apachhyan
                                             Review by Bhishma Kukreti
[Notes on Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Garhwali Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Uttarakhandi regional language Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Mid Himalayan regional language Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Himalayan regional language Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Indian regional language Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Asian regional language Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Oriental regional language Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it]
                   Uttarakhand movement started from 1977 or so.  Uttarakhand movement time was a great era for Garhwali literature. Uttarakhand movement brought energy and passion among Garhwali literature creative. Uttarakhand movement brought progress and various subjects and genres in Garhwali literature.
              Pritam Apachhyan is famous Garhwali poet who also publishes Hindi poetries.  Pritam Apachhyan wrote a few satirical articles in Garhwali too.
 The present satire by Pritam Apachhyan is satire on the behavior of Uttar Pradesh politicians and centre politicians and administration that they are taking Uttarakhand movement as football and everybody is taking this movement differently but nobody is in fact supporting the movement or no body is interested to take action for forming of separate state Uttarakhand.
              Pritam Apachhyan uses figure of speeches very effectively to attack on the indifferent attitude of central and Uttar Pradesh state political culture.
हमारू यो बिचारु उत्तराखंड ठिक फुटबालै चार बण्यु च। अजक्याल ये देश मा उत्तराखंड कोफूटबाल मैच खेल्येणु च। कबि सरकार वळा वै फर लत्ती मारिक चुलाणा  कबिबेसरकार वळा वै अपणा खुटों बटे  छटगण नि देणा  .
  The satire represents the unrest full mentality of Uttarakhandis who were waiting the final decision of Uttarakhand state formation.    
Copyright@ Bhishma Kukreti 27/3/2013
Critical review of Garhwali satirical prose to be …140
Critical Review of Garhwali Satirical prose written by Pritam Apachhyan to be -3
Comments  on Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Garhwali Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Uttarakhandi regional language Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Mid Himalayan regional language Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Himalayan regional language Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Indian regional language Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Asian regional language Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it; Oriental regional language Satire on Politicians and administration Taking Uttarakhand movement as Football and kicking it to be continued…

पर्यावरण पर विचार विमर्श


गौंका  मूस देहरादून जाणों तयार किलै ह्वाइ ?   
 
                                चबोड़्या - चखन्यौर्याभीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )
 
 बडडि मूसि -ये बत्वार आलि तुमारि! जरा द्याखो त सै सि धिवड़ -द्यूं (दीमक ) ये खन्द्वार छोड़ि दौड़ दौड़ि   भागणा छन रे । याने कि यू पैलि बिटेन गढ़वाळी गौं  को यु  उजड्यूं कूड़ पुरो धराशायी होण वाळ च।  
छ्वटो मूसु -या  झड़ ननि अब ना अठिये (आठ साल की उम्र की बीमारी ) गे ज्वा धिवड़ो  भागण से  घबराणि च।
मध्य उमरो  मूसि -ये मूस ह्वैक बि मनिखों तरां अपण झड़ननि  बेजती करणी छे तू। हम मूस छंवां अनुभव अर चेतना पर हम विश्वास करदां।  धिवड़ -द्यूं जब अपण  जगा छोड़दन तो बींगि ल्याओ , समजि ल्यावो बल वा जगा धराशायी हूण वळि  च।  
हैंको जवान मूसु -पण ननि अबि त मजदूर धिवड़ -द्यूं अर कुछ मरद धिवड़ -द्यूं  हि गर गर भाजणा छन। जब राणि धिवड़ि बि भैर जाण शुरू होलि तो समजि ल्यावो यू खंद्वार ध्वस्त हूण वाळ च। मेरि चेतना बुलणि च आठ दस दिनोंम यु कूड़ सद्यानो खतम ह्वे जालो।
 बडडि मूसि - अरे स्यू द्याखो एक गुरा इना इ आणो च। तैक आँख या कुछ  तेज हुंदन रै। तैन समजि अल होलु कि हमारो सौ साल पुराणो मूसुं परिवार इखि च। कुछ कारो।
 मध्य उमरो  मूसि- ननि घबरा ना  हमर डुंडी (बिल ) द्वीएक  हथ अळग च अर यु गुरा तै दिवाल चढ़न माँ दिकत होलि।
 बडडि मूसि - ओ मै पर बिस्मिरिति ह्वे गे। चलो मि ये गुरौ पुछ्दो कि इना कना? ये गिवड़ो (गेंहू के खेत वाले ) गुरौ आज इना कखन अर किलै?
गुरौ - हाँ आज तो मूस बि गुराओं पर हंसणा छन, क्या करवां हम ? जोग ही इन छन।
  बडडि मूसि - ह्यां ह्वाइ क्या च जो पुंगड़ो सांप  अर गांव माँ ?
 गुरौ - ये यु बि अब गां कख रै गे। मि सरा गां घूमिक आणु छौं। ये गां मा सौएक मकान सब ध्वस्त पड्यां छन। जख तलक म्यार पुंगड़ो से इना गांवो तरफ आणों सवाल च तो पुटकै भूक मै इना लायि।
 बडडि मूसि -कनो उना हमारी मौस्या भाई बंद याने लुखुन्दर वगैरों क्या ह्वाइ।
गुरौ- तुम गांका मूस बि मनिखों तरां स्वार्थी ह्वे गेवां। अपण मौस्यरा भाइओं ख़याल इ नी तुम तैं। अरे जब गांव वाळ नि छन तो पुंगड़ बांज पोड़ी गेन अर अब उख ग्युं, जौ, झंग्वर, क्वादों, दाळ हुन्दो नी च तो बगैर भोजन का लुखुन्दर कनै बच्यां राला?
  बडडि मूसि - पण घास का दाण तो होला उना?
गुरौ - अरे काण्ड लगि गेन सरा गढ़वाल की सार्युं पर लैंटीना ही लैंटीना जम्युं च। घास को नाम नी च तो हमर शिकार लुखुन्दर नी छन तो हम सांप  कनकै ज़िंदा रौला। बस गुजर बसर होणि च। उन हमर जाति ज्वा लुखुन्दरों पर पऴदि छे वा खतम ही समझो।  
 बडडि मूसि - तो अब कना जाणु छे?
  गुरौ - जाण कख च अब? भाभर मा अर ड्याराडूण म खेती हॊन्दि छे वा बि उत्तराखंड राज्य बणणो बाद बंद ह्वे गे। सब जगा मकान ही मकान छन उख बि पुंगड खतम ह्वे गेन अब कनि कौरिक बि मि तैं बिजनौर पौंछण पोड़ल।
  बडडि मूसि - जा जा  अंक्वैक जै चील -चिल्न्गो से बचणी रै।                  
 मध्य उमरो  मूसि- अब बथाओ हम समझणा छया कि गां उजड़ण से हम घर्या मूसों साखि (Generation ) खतम होणि च। उना बि कुछ हौर इ हाल छन।
  बुडड़ि   मूसि- हैं इ क्या कथगा सालों बाद स्या  भ्यूंळ - खड़िक पर पळण वाळ चखुलि दिखेणि च? ये घिंड्वा (नर  पक्षी )! आज इथगा सालों बाद इना?
घिंड्वा- अरे द्वी साल बिटेन मि गढ़वाळ का एकेक गां घूमिक ऐ ग्यों पर मि तैं मेरि जोड़ी बणाणो खुणि  भ्यूंळ - खड़िक पर पळण वाळ चखुलि नि मिलणि च।
मध्य उमरै मूसि - कनो तेरि जाति  चखुलों हरचंत ऐ ग्याइ क्या?
 घिंड्वा- हर्चंत ही ना हमारी जाति ही निबटी गे , खतम ह्वे   गे।
एक मूस - क्या बुनु छे?
 घिंड्वा- अरे जब गढ़वाळम भ्यूंळ- खड़िक ही उगटि-निबटि गेन तो हम चखुल जो भ्यूंळ- खड़िकों दाणो पर निर्भर छया भि खतम ह्वे गेवां।
  बुडड़ि   मूसि- पण मीन तो सूणि छौ बल जब तलक   भ्यूंळ- खड़िकों  दाण तुमर पुटुक नि जांदा  भ्यूंळ- खड़िकों नि जामि सकदन।
  घिंड्वा- हां हम ख़ास किसमौ चखुल  भ्यूंळ- खड़िकों  पर निर्भर छया अर भ्यूंळ- खड़िक नई साखि  जमाणो बान हम पर निर्भर छया। पण हम द्वी गाऊं मनिखों पर बि निर्भर छया।
जवान मूस- म्यार बिंगण मा नि आयि कि गाऊं मनिखों इक्हम क्या सम्बन्ध?
  घिंड्वा-हम चाखुलों अदा से जादा खाणो गांका मनिखों अनाज हूंदो छौ अर फिर मनिख जब गढ़वाली खेतों मा खेती करदा छा तो खर पतवार साफ़ करदा छा, चक्र माँ फसल उगांदा  छा ।
मूस - तो  तो खर पतवार साफ़ हूण  से  अर  चक्र मा फसल हूण से  भ्यूंळ- खड़िक पर लगण वाळ कीड़ा अर बिमारि नि लगदी छे। हमर खाणक बंद होण से हम हरान (कमजोर ) हुवां अर उना मनिखों लैक फसल नि बुयाण से भ्यूंळ- खड़िकों पर बनि बनि कीड़ा अर बिमारि लगण से नया नया भ्यूंळ- खड़िकों डाळ बढ़ण बंद ह्वे गेन अर हम और भी भूक रौण लगि गेवां अर इन मा हमारि निबटात-खज्यात आइ। हम निबटा तो  भ्यूंळ- खड़िक खतम। अर अब मि द्वी साल बिटेन जोड़ी खुज्याणु छौं।
  बुडड़ि   मूसि- जख तलक म्यार ज्ञान बतान्दो तो भाभर तलक त्वै तैं गढ़वाळम मनिखों गां त मिलण से राइ याने कि भ्यूंळ- खड़िकों से हीन उजड्या गां।
 घिंड्वा-पण भाभर की जलवायु हमखुण अर   भ्यूंळ- खड़िकों लैक ठीक नी च। ना ही उच्चा डांड। दिखुद छौं कि कखि मेरी जोड़ी मिल जावु।
  बुडड़ि   मूसि-जा हां अंक्वैक जा। अरे यु क्या यू मुसक्या स्याळु ये बांज  गां मा क्या करणु च? हे  हमर जाति दुश्मन स्याळ आज इनै कनै?
स्याळ - अरे भुकान म्यार पराण जाणि वाळ छन। ये मूसो तुम अपण डुंड्यो से भैर आवा ना कुजाण कथगा हफ्तों से मि भूको छौं।
 बुडड़ि   मूसि- पण मेरि सौ साखि पैलाकि ननिक बोल छा कि स्याळ गढ़वळि   गावों मा नि आंदो।तो तू अर इना?
स्याळ -मजाक नि कौर अब कख छन गढ़वाळम गां?  सब उजाड़ ह्वे गे। मेरि भूक!
 बुडड़ि   मूसि- ह्यां पण ह्वाइ क्या च?
स्याळ - हूँण क्या छौ। जब तलक गढ़वाळम गांउं मा मनिख छा तो हमारि जाति  कुण मनिखों चैण -चम्वळ (पालतू -पशु) से काम चलि जांदो छौ।          
  बुडड़ि   मूसि-   ह्यां पण अब त सरा गढवाल ही जंगळ ह्वे गे अब तो तुमखुण मजा ही मजा!
स्याळ -खनो जंगळ! लैंटीना अर कुंळै जंगळउन हमार शिकार का खाणो निबटाइ दे अर जब हमारो शिकार का वास्ता ऊं  लैक घास -पेड़ नि होला तो हम स्याळउन बि निबटण ही च। अच्छा जान्दो छौं। 
 बुडड़ि   मूसि-  अरे ढुड्यार   भीतर जावो स्यु आस्मां बिटेन गरुड़ आणो च। मि तै तैं चिरड़ान्दु हाँ। हे गरुड़ कना जाणि छे रै।
गरुड़ -कख जाण। मरणों भाभर जिना  जाणु छौं।
 बुडड़ि   मूसि-ह्यां ! क्या  ह्वै?
गरुड़ -खन्नु ह्वै! मनिखों पलायन से सरा गढवाल को भौगोलिक वातावरण ही बदले गे  अर हम गरुडू लैक इख खाणों ही हर्ची गे। बस अब कुछ ही साल मा हमारि साखि निबटी-उगटि जाल।
 बुडड़ि   मूसि-जा जा मोर जख मोरणा इ उखि मोर।
जवान मूस - अरे सि क्या कवों डार (झुण्ड ) कख जाणि च अर दगड़म घर्या घिंडुड्यु  डार बि कखि जाणि च।
 बुडड़ि   मूसि-हे कवावो कना जाणा छंवां?
  कवों नेता - अब हम कवों अर घर्या घिंडुड्यु  कुण कुछ नि च ये गढ़वाळम। हम तो मनिखों दगड़ ही रै सकदां सो हम सौब शहरों मा रौणो बान  हमेशा वास्ता जाणा छंवां।                           
 बुडड़ि   मूसि-ये निर्भागियो मीन बोलि छौ कि ना यि धिवड़ -द्यूं (दीमक ) ये खन्द्वार छोड़ि दौड़ दौड़ि   भागणा छन। तो यि धिवड़ -द्यूं (दीमक ) ये खन्द्वार छोड़िक इलै नि जाणा छन कि इ खन्द्वार ध्वस्त होणु च बल्कणम गढ़वाल को पूरो वातावरण ही बदल्याणु च अर जो भी जानवर मनिखों  पर आश्रित छ्या ऊं तैं  या तो अपण जीवन शैली बदलण पोड़ल निथर मैदानों  तरफां जाण पोड़ल। चलो देहरादून जाणो तयारी कारो।    
 
Copyright @ Bhishma Kukreti   27/3/2013