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Thursday, January 31, 2013

एक हसीन शाम उत्तराखंड सिनेमा एवं संगीत के नाम :- YUCA 2013 Coming soon..!!


डंफु कख हर्चि गेन?


गढ़वाली बाल साहित्य
                     डंफु कख हर्चि गेन?
                                  भीष्म कुकरेती
(s=-माने आधी अ )
ब्याळि नौनु बुलण मिस्यायि बल पिताजी जी अचकाल मातबरोँ नौनि - नौन्याळ हिमाचली पीली बेरीs छ्वीं लगाणा रौंदन अर बुल्दन बल या बेरी मॉल अर बड़ा फलों दुकान्युंम बिचेणि छन। वैन आखिरैं पूछ," बल जब पीलि बेरी जु अपण पेटल्स कु पुटुक रौंदि वा गढ़वाळ कुमाऊंम नि होंदि?"

मीन जबाब दे," बेरी से कन्फ्यूजन होंद। जु तू अचकाल ह्यूंदम पाये जाण वळी पीलि बेरी ज्वा पत्ता जन पेटल्स पुटुक रौण वळो फल क बात करणी छे तो वो भि गढ़वाळम होंद च। वैकुण डंफु बुल्दन "
नौनन पूछ," डंफु डाळ बड़ा बड़ा होंदन क्या?"

मीन जबाबम बोलि,"नै नै डंफु क डाळि एक घुंड तक उच्चो पौधा होंद , जों बरसातम उगद अर नवेम्बर दिसम्बर बिटेन येक फल पकण बिसे जांदन।जो फरवरी तलक बि पकणा रौंदन पण पीक मैना पन्दरा दिसम्बर बिटेन तीस जनवरी तलक इ मानी ले "

नौनौ सवाल छौ," क्या डंफूं एकि जात होंदि ?"
मीन बथै," यि पौधा द्वी तरां होंदन एक जों ढाई हजार फिट से तौळ कखिम बि खासकर रस्तोंम ह्वे जान्दन अर यूंक दाण (फल ) गोळ अर एक मिलीमीटर तक हि हूंद अर ये तै खांद नि छन या तो यो विषैला होलु या बेसवादि होंद ह्वाल। ये तै हम जंगळी डंफु बोल्दा छा "
नौनाक सवाल छौ," त क्या हैंको डंफु जंगळम नि होंद?"
म्यरो उत्तर छौ,नै नै खाण वळ डंफु बि जंगळम इ होंद पण वर्गीकरण को हिसाबन जों खाए जाण वळ डंफु होंद वै तैं बस डंफु बोले जांद अर जो खाए नि जंद वो व्हाइ जंगळी डंफु ."
"त खाण वळो डंफु बि जंगळी डंफु दगड़ होंद ?" नौनौs प्रश्न छौ
मीन बथाइ," ना! खाण वळो डंफु ढाई हजार फीट से अळगौ उच्चि जगोंम डांडोंम हि होंद। मीन अनुभव कार बल तैलि जगाम उळिण्ड ( घास) अर संतराजौ फूल होंदन उख खाण वळो डंफुक पैदावार जादा होंदी।"
नौनोन उत्सुक ह्वेक पूछ," खाण वळो डंफुक दाण कना अर कथगा बड़ा होंदन।"
मीन उत्तरमा ब्वाल," खाण वळो डंफुक दाण जब हौर हूंद त खाणम कड़ो अर कसैला होंद। पक्युं डंफुक दाण पेटल्स कु पुटुक रौंद। जब जब हौरु रंगौ पेटल्स सुफेद या थ्वडा थ्वडा पीलो हवे जावो त समजी ल्यावो डंफु पकि गे। पक्युं डंफु पीलो होंद अर सिलिंडर आकार को या गोळ होंद गोलाईम द्वी मिलीमीटर व्यास आर लंबै माँ द्वी से चार मिलीमीटर तलक ह्वे सकदो।"

"डंफुक दाण आर भितर कनो हूंद?" नौनौ सवाल छौ
" डंफुक भितर टमाटर जन रसदार गूदो अर टमाटर जन इ छ्वटा छ्वटा बीज होंदन . गोदा रंग थ्वडा बहुत पीलु ही होंद " मीन खुलासा कार
नौनौs हैंको सवाल छौ," स्वाद कन होंद ?"
' सवादम खटो अर मिठो होंद। मिठो ह्वावो तो बि सवादम खटास होंद अर खटास बि स्वादि अर मजेदार होंद ." मीन विवरण दे
नौनान पूछ," जब हिमाचल प्रदेश बिटेन डंफु बिकणs कुण मुंबई ऐ सकदन त कुमाऊं अर गढ़वाळ से किलै नि ऐ सकदन?"
मीन बोलि," चूंकि बौण्या फलों कट्ठाकरण अर वितरण (कलेक्सन/ एकत्रीकरण और मार्केटिंग) तबि ह्वे सकद जब कुमाऊं अर गढ़वाळम व्यापारिक खेती प्रचलन ह्वावो। हिमाचलम व्यापारिक खेतिक प्रचलन च त उख डंफुक कट्ठाकरण अर वितरण बि होंद।कुमाऊं अर गढ़वाळम व्यापारिक खेती प्रचलन नी च त कट्ठाकरण अर वितरण बि नी च "
नौनौ सवाल छौ," कुमाऊं अर गढ़वाळम व्यापारिक खेती प्रचलन किलै नी च?"
"कुज्याण", म्यार जबाब छौ
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Copyright@ Bhishma Kukreti 1/02/2013

Juttu: Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith


Critical review of Garhwali satirical prose- 133
Critical Garhwali review of Satire by Great Garhwali Satirist Harish Juyal -6
Juttu (Satire collection ‘Khubsat’, 2012) Garhwali Satire Prose by Great Garhwali satirist Harish Juyal (A review)

                            Review by Bhishma Kukreti


[Critical Review on  Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Garhwali Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Uttarakhand Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Mid Himalayan Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Himalayan Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; North Indian Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Indian Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; South Asian Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Asian Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Oriental Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith]  

                 The creation and believing on black magic, blind faith, hocus-pocus or Mantra-Tantra was for autosuggestion to mind and protecting from fear when the human society was unable to know the real causes of diseases or other physical difficulties. Now, the human beings could find the difference between uses of auto suggestive mental Mantra and scientific proven aspects. The great Garhwali satirist Harish Juyal attacks on hocus-pocus, black magic, mantra-tantra and blind faith when people are well versed that the problem is not mental problem.
      Great Garhwali Satirist Harish Juyal provides many examples where mantra and tantra are not required by pesticides or fungicides are essentials. When the vegetables on plants are getting rotten the plant medicines are required and not the Mantras or Tantra. Even people hang shoes to protect plants from diseases or hang shoe on door for increasing milk production from caws or buffaloes.
     Great Garhwali satirist is king of using phrases those create satire and humor together. His way of creating humor from real rural Garhwali world is marvelous.
Copyright@ Bhishma Kukreti 25/01/2013
   Critical review of Garhwali satirical prose to be … 134
Critical Review of Satirical articles by Great Garhwali Harish Juyal to be continued…7
Critical Review on  Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Garhwali Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Uttarakhand Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Mid Himalayan Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Himalayan Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; North Indian Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Indian Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; South Asian Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Asian Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith; Oriental Satire attacking humorously, satirically on Hocus-Pocus, Black Magic, Mantra-Tantra and Blind faith to be continued…

Wednesday, January 30, 2013

देहरादुनs कायापलट

गढ़वाली हास्य व्यंग्य
हौंसि हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
                                  देहरानदूनs कायापलट
                                    चबोड्या: भीष्म कुकरेती
(s=-माने आधी अ )
जु ड्याराडूण रौणा छन सि परेशान छन बल अब ड्याराडूणम इथगा परेशानी ह्वे गेन बल यू शहर रौण लैक नी च। जु ड्याराडूण से भैर छन वो परेशान छन कि वूं तै ड्याराडूणै परेशानी किलै नसीब नि होणि च। ड्याराडूण संबंधित जथगा बि छापा -पतड़ा (अखबार-पत्रिका) अर इन्टरनेट्या माध्यम छन वो ड्याराडूणौ कुव्यवस्थाs बाराम बताणा रौंदन।

मि घड़्याणु छौ बल जु मीम क्वी रिमोट कंट्रोल हूंद त मि ड्याराडूणs कायापलट कौरि दींदु।
पैल त मि जगा जगा हरबंश कपूर अर वैक नौन्याळो जन राजकरण्यौ बैनर /होर्डिंगों पर बैन लगायि दींदो कि ये भै! जु तुम राजनैतिक इथगा इ कामगति छंवां त तुम तै पब्लिसिटी जरोरात इ क्या च ? अर जु तुमन बथाणि आयिब ल तुम अपण ब्वेक पुटुकन इ जन सेवक ह्वेक आवां त बेशरम, निर्लज , लुच्चा , लफंगा, राजनीतिज्ञों ! होर्डिंग बैनर लगाणि इ आयि त नगरपालिकाs टैक्स भरो अर तब अपण बडै/ प्रशंशाs कर्दारा होर्डिंग लगावो। सरा भारतम लोगुं तै सबसे जादा परेशानी राजनीतिज्ञों बैनरों अर होर्डिंगो से हूंदी।

जैक बि ड्याराडूणम नगर -पालिका बगैर टैक्स भर्याँ वाल पेंटिंग होर्डिंग, बैनर राला वै तै सीधा तीन मैनाखुण बगैर सुणवाइ जेल करे जालो अर उख जेलम रोज यूंक पूठा डामे जावन । यूं बिलंच नियम तोड़ू राजनीतिज्ञों तै सुधारणो बस यो हि तरीका रै गे कि बिलंचो पूठों पर डाम धरे जाव।

चकरौता से परेड ग्राउंड तलक , रिसिकेस से रेस्पिना अर क्लैमिंटाउन से राजपुर तक रैपिड ट्रांसपोर्ट की रेल होली।
हेरक रिक्शा मीटर से इ चालल। जु रिक्षा वाळ मीटर से नि चौलल वैक लाइसेंस सद्यनो कुणि जब्त ह्वे जालो। पुलिस वाळो तें डंडा ना रोजाना तीन दै फ्रेश कळिक बुट्या बांटे जाला। कळि उत्पादन गढ़वालम बांज पड्याँ पुंगड़ोम ह्वालु।
ड्याराडूणम, जनता की अदा जगा त इनक्रोचमेंट जोग हुंयीं च। इनक्रोचमेंट करीं जगा खालि करैक जनता क वास्ता सड़क चौड़ी करे जालो। जु बि इनक्रोचमेंट करण वाळs बचावम आलो वैका कपाळ घंटाघरs चौकम जनता बीच ड़ामे जालो।

व्यापार बढ़ाणो पूरो इंतजाम करे जालो पण दुकानदार अर उद्योगपतियों तै साफ़ सफ़ै जुमेवारी उठाण पोड़लि। दुकान या व्यापारिक कार्यालयों समणि कचरा दिख्याइ ना कि दुकान या कार्यालयों मालिक तै (नौकर ना ) कचरा साफ़ करण पोड़ल अर दगड़म डंड का दगड़ मालिकौ कपाळ बि ड़ामे जाला। इन माँ सफाई आन्दोलन चलाणो अभियान रुकणो बान जो भि सामाजिक कार्यकर्ता या राजनीतिग्य डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर या सरकारी अधिकार्युं तबादला बात कारल वै तै नवम्बर से अप्रैल तलक छै मैनाखुण गंगोत्री, जमनोत्री, केदारनाथ या बद्रीनाथ भिजे जालो अर वांक खर्चा बि यूं फोकटिया , समाजविरोधी, सफाई विरोधि राजनीतिज्ञों या बुलणो ( तथाकथित) सामजिक कार्यकर्ता से इ उगाये जालो। सफाई अन्दोलब विरोध्युं तै गांधी मैदानम रोज कळि से झपोड़े जालो।

जो बि कार , रिक्शा या बस का ड्राइवर द्वी दें से जादा ट्रैफिक नियम त्वाड़ल वैक लाइसेंस जिन्दगी भरोकुण निरस्त त करे इ जालो वै से पैल परेड ग्राउंडम यूं ट्रैफिक नियम तोडूं तै कळि से झपोड़े जालो।
जो बि कारों भितर या बगैर परमिटो दुकनिम शराब प्याला /पिलाला वूं तै सद्यानो कुण ड्याराडूण से भैर खदेड़े जालो अर वां से पैल कळि से जरूर झपोड़े जाला (हालांकि यां से सबसे बिंडी नुकसान म्यार इ हूण किलैकि म्यार दगड़्या मी तै ड्याराडूणम शराब या त कारम या बगैर परमिटो होटलम पिलान्दन)।

ओ . एन .जी . सी क कार्यालय चकरौता, सर्वे इंडियाक कार्यालय कोटद्वार, सी . डी . ए कार्यलय भोगपुर शिफ्ट करे जालो अर उख विश्व स्तर का स्कूल -कॉलेज, विश्व स्तर की रौणे व्यवस्था बि करे जालि। यूं जगा फर वाल मार्ट का मौल खोले जाला।

ड्याराडूण म्युनिस्पल कौरपरेसन भंग किये जालो अर क्वी बि नगर सेवक नाम का जीव जन्तु ड्याराडूणम नि राला। भै नगर सेवक नाम का जीव जन्तु ही कुछ करदा त मितै ये लेख लिखणै जर्वत क्या छे?
ड्याराडूणम कुमाउनी अर गढ़वाल्यूं तै कुमाउनी अर गढ़वळि भाषाम इ बचऴयाण पोड़ल। जो अपण भाषाम बात नि कौरल वैक कपाळ डामे जालो अर लिख्युं रालो 'मी अपण भाषा विरोधी छौं। विजय बहुगुणा सरीखा लोगुं बान अपण भाषा सिखणों बाण विशेष स्कूल खोले जाला।

ड्याराडूणम नया कूड़ बणाणो इजाजत नि मीललि अर ना ही नया बासिंदों तै देहरादून रौण दिए जालो।
उत्तराखंड की राजधानी तुरंत गैरसैण शिफ्ट करे जालि। जो गैरसैण का विरोधी ह्वाला वोँ तै उत्तर प्रदेश भिजे जालो। गैरसैणो बान हरिद्वार अर उधम सिंह नगर फिर से उत्तर प्रदेशम मिलाये जावो त क्वी परवा नी च।
अब मी तै एक रिमोट कंट्रोल की जरूरत च बस! सोनिया गांधी या राष्ट्रीय स्वयं संघक रिमोट कंट्रोल मांगिक क्वी फैदा नी च। यूं दुयूंक रिमोट कंट्रोल जि कामक हूंदा त भारतक इन बुरा हाल हूंद? अब मी तै क्वी इन इंजिनियर चयाणु च जो मेखुण एक कारगर रिमोट कंट्रोल बणै द्यावो कि देहरादूनौ हालत बदले जावो। जापानक रिमोट कंट्रोल बढ़िया होंदन पण मैंगा भौत हूँदन , चीनक रिमोट कंट्रोल सस्ता हॊन्दन पण क्वालिटी ठीक नि होंदी अर भारतम त रिसर्च एंड डेवलपमेंटो काम इ नि होंद। ठीक च जब तलक रिमोट कंट्रोल नि मिलदो तब तलक मि मुंबईक बाराम इ सोचदु , जन मि मुंबई आणो बाद अपण जन्मस्थली गां जसपुर तै भूलि ग्यों उनि अपणी शिक्षास्थलि ड्याराडूणक बाराम बिसरण इ ठीक रालो ।

Copyright@ Bhishma Kukreti 31/01/2013 

उत्तराखंड की नयी औद्योगिक नीति


-प्रस्तावक: डा .बलबीर सिंह रावत


किसी भी प्रदेश के विकास के लिए उद्द्योग और कृषि दो प्रमुख क्षेत्र हैं जिन को संतुलित महत्व देना आवश्यक है। उत्तराखंड के परिपेक्ष में औद्योगिक विकास ही वोह प्रयास है जिस से अधिक आशा है और सही औद्योगीकरण से इस उद्देश्य की पूर्ति हो सकती है।

उत्तराखंड ऐसा प्रदेश है जिसमें अधिकांस भाग पर्वतीय है . और पर्वतीय भाग में मैदानी उद्द्योग विकास नीति से सिडकुल और बड़े बड़े कल कारखाने नहीं लगाये जा सकते। मैदानी भागो के उद्द्योग केवल नौकरी देते हैं, और वोह भी कानून के जोर से की एक निश्चित प्रतिशत जगहें उत्तराखंडियों को ही दी जांय। इस से पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन बढ़ता जा रहा है। कच्चा माल अधिकतर बाहर से आता है, उत्पादन कर केन्द्रीय सरकार ले जाती है। तो उत्तराखंड के हिस्से में क्या आता है?

पर्वतीय क्षेत्रों में नाना प्रकार के कच्चे माल हैं, विशिष्ट प्रकार की कृषि और प्राकृतिक उपजें हैं, असीमित मात्रा में काष्ट है, विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं, जलवायु है, अत्यंत प्रभावशाली और आकर्षक द्र्श्यावालियाँ हैं। स्वास्थ्य वर्धक आबोहवा है। लगनशील मानव संसाधन है , सड़कों का जाल है , बिजली बना सकने की असीमित संभावनाएं हैं। और इन्ही के बूते पर और इन्ही के गलत दोहन और पर्वतीय मानव संसाधन की अव्ह्व्लना के कारण पलायन करने की विवशता की मार न झेल पाने के कारण ही तो प्रथक राज्य का सफल आन्दोलन चला था।

राज्य बन गया, 12 साल हो गए। पर्वतीय विकास में औद्योगिकीकरण को नकारा ही गया है क्यों हुआ ऐसा, क्यों हमारे अपने ही नेता , मंत्री , सब वही देसी मॉडल के पीछे भाग रहे हैं? क्यों का उत्तर आप ढूँढिये । 

मेरे निम्न सुझाव है:-

1- हर ब्लोक स्तर पर , जहां सबसे सुगम और सुविधाजनक हो, एक औद्योगिक केंद्र बने जहा से घर घर तक कुटीर उद्द्योग के प्रशिक्षण, उत्पादन और संकलन की व्यवस्था हो हो।

2- प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षक प्रशिक्षण केंद्र और , हो सके तो एक वोकेशनल हांई स्कूल भी हो जिसमे इच्छुक जूनियर हाई स्कूल पास विद्यार्थी पढ़ सकें,हो , यही पर महिला उद्योग प्रशिक्षण की सचल व्यवस्था भी हो जो उन्हें मशीनो से आकर्षक डिजाइनों वाली बुनाई कढाई सिखा सके, स्थानीय कच्चे मालों से प्रयट्टकों के और अन्य बाजारों के लिए हाथों हाथ बिक सकने वाली वस्तुएं बना सकें। उद्देश्य होना चाहिए की प्रति परिवार सालाना आय 100,000 रुपये के स्तर से ऊपर जा सके। तभी पलायन रुकेगा और राज्य बनाने का सपना पूरा होगा।

3- प्रशिक्षण, टेक्नोलोजी के लिए अवकास प्राप्त विशेषज्ञों की सेवा ली जा सकती है और देश के नामी गरामी संस्थानों से सहभागिता की जा सकती है।

4- इसी प्रकार लघु उद्द्योग भी गाडी सड़कों के साथ साथ यथोचित स्थानों में , स्थानों की विशिष्टताओं के अनुरूप लगाए जा सकते हैं, जिनमे हर वोह उद्द्योग लग सकता है जिसका कच्चा मॉल आस पास बहुलता में उपलब्ध है या कराया जा सकता है

5- जल विद्युत् के छोटे छोटे स्टेशन हर नदी पर, 3-4 गाँव के समूह के लिए , 10-10 या 15-15 किलोमीटर की दूरी पर लगाए जा सकते हैं, जिससे कुटीर और लघु उद्द्योगों को पावर दी जा सकती है, यह 60% गाँव के लिए और 40% प्रदेश के लिए के नियम से होना चाहिए।

6- धार्मिक प्रयट्टन के साथ रास्ते के अन्य मंदिर, दर्शनीय स्थल, और सांस्कृतिक कार्यक्रम को भी जोड़ने से इस उद्द्योग को बढ़ावा मिल सकता है।

7- अन्य प्रयट्टनो को मेलों, खेलकूद प्रतियोगिताओं, फेस्तीव्लों और फल मौसम में "तोड़ो खरीदो" के तथा अन्य आकर्षणों से समर्द्ध किया जा सकता है।

8- काष्ठ उद्द्योग की अपार सम्भावनाये हैं, बशर्ते कि नयी औद्योगिक नीति में काष्ठ प्रसंस्करण से ले कर नौक्ड डाउन रूप में बिभिन्न प्रकार के फर्नीचर बनाने के कारखाने, लकड़ी बहाव वाले नदी किनारों में लगाए जा सकें . यह बिलकुल नया क्षेत्र है उत्तराखंड के लिए और इसमें देहरादून के बन अनुसंधान संस्थान में एक वुड तेक्नोलोजी का , W. Tech डिग्री स्तर की पढाई का प्रबंध किया जा सकता है। और कई कोर्स चलाये जा सकते हैं।

9- आवश्यकता है गम्भीर्ता से पर्वतीय औद्योगिकीकरण की नीति बनाने की और उसमे सम्बंधित बैज्ञानिको , विशेशाग्याओं की सलाहकार समितियां बना कर उनसे मार्गदर्शन लेने की, अकेले राजनीतिज्ञ और नौकरशाह यह काम नही कर सकते क्योंकि वे किन्ही दुसरे क्षेत्रों के विशेषग्य है .

10- पर्वतीय औद्योगिकीकरण एक महा अभियान है और इसमें जिससे जितना योगदन हो सकता उसका स्वागत और समावेश होने से ही उद्द्येश्य की पूर्ती होगी , केवल प्रतीतात्मक विकास का कुअसर सब जगह नजर आ रहा है। आगामी 5 सालों में नयी पर्वतीय विकास नीति का सुप्रभाव हर गाव मे नजर आएगा तो हे नीति को सफल माना जाएगा।

डा। बलबीर सिंह रावत।

Bhaun ku Kauthig ar Piply-Chaukhty: Short Story depicting images of regional historical events


Critical Review of Modern Garhwali Short Stories -161
Modern Garhwali short Story by Dinesh Dhyani -3  
    A critical Review and Analysis of Garhwali short story ‘Bhaun ku Kauthig ar Piply-Chaukhty ‘ (from ‘Nyuter’ –a Story Collection, 2012) written by Dinesh Dhyani
                            Let Us Celebrate Hundredth Year of Modern Garhwali  Stories!
                           Review by Bhishma Kukreti
 [Critical Notes on Short Story depicting images of regional historical events; Garhwali Short Story depicting images of regional historical events; Uttarakhandi Short Story depicting images of regional historical events; Short Story  from Nainidanda region depicting images of regional historical events; Short Story  from Dhumakot area depicting images of regional historical events; Short Story of Border areas of Garhwal and Kumaun depicting images of regional historical events;  Mid Himalayan Short Story depicting images of regional historical events; Himalayan  Short Story depicting images of regional historical events; Indian Short Story depicting images of regional historical events; Asian Short Story depicting images of regional historical events; Oriental Short Story depicting images of regional historical events]
          The modern Garhwali short story writer Dinesh Dhyani depicts images of his birth land Dhumakot, Nainidanda in most of his fiction. In the short story ‘Bhaun ku Kauthig ar Piply-Chaukhty’, Dinesh depicts the images of villages as Chaukhty, Maira, Padkhndai, Dhangalgan, Pokhaar, Ryo, Tolyundand, Dundera, Badagad, Simtand, Kwee, Chinwadi. Dinesh first arrests the attention of readers that he is talking about the area of famous brave woman Tilu Rauteli and he would talk about fair and festivals of Dhumakot Nainidanda. The story is about the fair of Bhaun Devi temple and the fair of Baisakh.  
             The story is about the fight between the two regions Chaukhty (Chaukhty, Maira, Padkhndai, Dhangalgan, Pokhaar, Ryo, Tolyundand villages) and Piplya (Dundera, Badagad, Simtand, Kwee, Chinwadivilaages) in old time for the supremacy.
 The story does have many twists due to infighting depiction. The story writer is successful in illustrating the images of Bhaun temple and its worshiping sequences.  Dinesh touches today’s situation of fair in Bhaun temple.  Dhyani shows the temple through photograph and also provides three folk songs related to fair and festival of Bhaun Devi temple.
  The story form is in an old man telling story to his grand children. There are no dialogues and is in descriptive form. The readers get perfect images of the area and its people of old time. The dialects are from Nainidanda block of Pauri Garhwal.   
Copyright@ Bhishma Kukreti 30/1/2013
Critical Review of Modern Garhwali Short Stories to be continued…163
Modern Garhwali short Story by Dinesh Dhyani to be continued…4 
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                     Let Us Celebrate Hundredth Year of Modern Garhwali   Stories!

Tuesday, January 29, 2013

साग- भुज्युं राजा को च ?

गढ़वळि बाल कथा -4
                  साग- भुज्युं राजा को च ?- खांडि ( भाग) -1
                                    भीष्म कुकरेती
एक दै साग -भुज्युंम जुध छिड़ी गे बल भुज्युं राजा को च ? जब वो अपण आपसम झगड़ा नि निबटै सकिन त वो एक बुडड़िम गेन।

बुडड़िन पुछि बल ," तुम कै हिसाब से राजा की पछ्याणक करण चांदा?"
भुज्युं बिटेन कथगा इ आवाज ऐन
"उमर को हिसाब से"
"न्है ! विटामिन की मात्राक हिसाब से"
"न्है , न्है मिनरल्स को हिसाब से"
" न्है! न्है प्रोटीन, फैट -वसा, फाइबर आदि क हिसाब से न्याय हूण चयेंद"

बुडड़िन बोलि बल ठीक च मि एकैक गुणक हिसाब से तुमारो झगड़ा निपटारो करे जालो।
सब्युंन बोले बल हां यो ठीक च।
बुडड़ि- अच्छा चलो उमर को हिसाब से दिखला कि हरेकाक कथगा बड़ी उमर च धौं! एक एक कौरिक अपण बाराम बथाओ!

मर्सू- म्यार बि हरा पत्ता होंदन अर पहाड़ोंम बरसातम मेरो पत्तों सागो बड़ी मांग रौंदी।
पहाड़ी मूळा- म्यरा बि हरा हरा पात होंदन अर बरसातम म्यार पत्तों बड़ी मांग होन्दि।मीमा अर पहाड़ी राइम जादा फर्क नि होंद

पिंडाळु पत्ता - बरसातम मेरो पत्यूड़/गुंडळ बणदन
खीरा पत्ता- म्यार पत्तोंन याने टुकलूंक भुज्जी बणदि अर फूलुंक पक्वड़
पहाड़ी पळिन्गु - जी मि हरो पत्तों वळ पाडि पळिन्गु याने पहाड़ी पालक छौं। मेरि खेति गढवाल अर कुमाउनी पाख पख्यड़ोंम होंद। हमार पत्तों भुजिs स्वाद मैदानी पलक से थ्वडा अलग होंद अर पहाड़ी लोक बुल्दन बल पाडि पळिङ्गौ स्वाद मैदानी पालक से जादा सवादि होंद।

पहाड़ी राइ- मी बि हरा पत्तों वळ पहाड़ी राइ छौं। मेरि खेति बि पहाड़ो पाख पख्यड़ोम इ होंद। म्यरो पत्तों स्वाद बि मैदानी राइ याने सरसों से अलग हूंद।

लया- मि बि हरा पत्तों वळ भुज्जि छौं अर मेरो स्वाद मैदानी सरसों जन ही होंद किलैकि मेखुण मैदानोंम सरसों बुल्दन।

ओगळ- मि बि हरो पत्तों वळ साग छौं। मेरो पत्तों बढिया साग बणदो। उन अब पहाड़ी लोग मेरि खेति नि करदन पण कबि बग्वाळ उपरान्त जब भुज्युं अकाळ होंदु छौ मि बड़ो कामौ साग छौ।

प्याजौ पत्ता - जब गर्म्युंम पहाड़ोम भुज्युं अकाळ ह्वे जांदो छौ त म्यार पत्तों से साग भुज्जि बणदि छे, अज्युं बि
पापड़ी- मि जंगली छौं, गदनोम पाए जांदु अर कुछ लोग म्यार पत्तों साग बणान्दन
लिंगड़-खुंतड़ - हम बि डाँडो जंगळोम हूंदा अर पुराणों जमानम गर्म्युंमा काम की भुज्जि होंदा था
सूंट, लुब्या, छीमि मूळा आदिक फोळि/ फुळड़- हम जब हरा रौंदा त हमारो साग बणदो
बुडडि - चलो तुम सौब हरा पत्ता छंवां। इन बथावा तुमर उमर क्या होंदि ?
सौब - जु हम अपण डाऴयूं दगड़ इ सुकि जांदा।

बुडडि- अर जब डाऴयूं से काटिक भुज्जि बान पत्ता रौंदा त तुमारि उमर कथगा रौन्दि ?
सौब - बस द्वी-तीन दिन। अर तीन चार दिन बाद हम ल्हतम डै जांदा।

बुडडि- मतबल उमर का हिसाब से पत्ता अर फुळड़ कम उमरि क भुज्जि छन। जावो अपण जगाम बैठि जावो। अब बारी च बरसाती लगलों वळ भुज्युं
लम्यंड, गुदड़ि, तुमड़ी, करेला, मिठ करेला आदि - हम बरसातम लगलों पर लगदां। लगलो सुकण पर हम बि सुकि जांदा अर मनिखों तुड़न पर हम द्वी चार दिनुम खराब ह्वे जांदा।

बुडडि- मतबल तुमारी उमर बि छ्वटि च।अब जरा फल वाळ भुजि अपण उमरो हिसाब त द्याओ!
बेडू-तिमल, क्याळा, घ्वाघा क कच्चा फल- हम जब कच्चा रौंदा त लोग हमर भुजि बणान्दन अर हमर कच्चा फल तीन चार दिन बाद खराब हूण बिसे जांदा
बुडडि- मतबल तुमारो बि उमर कमि च।

बसिंगु,क्याळा फूल - हम तुड़नो बाद द्वी तीन दिन से जादा ज़िंदा नि रै सकदां
बुडड़ि - मतबल तुमारो बि उमर कमि च। कंद मूल वळि भुज्युं बि सुणे जावु।
पहाड़ी मूळा- उन जब मनिख मै तै उपाड़दो त मि पांच छै दिनम कबासले जांदा। उपाड़नो बाद दुबर खड्यारण/गब्याण पर मेरि उमर तीन चार मैना तलक बढ़ी जांद
पिंडाळु, तैडू - हम पांच छै मैना तलक त ठीक रौंदा पण फिर हम गळण बिसे जांदा
अलु - जु मि पाड़ी अलु होलु त सालेक तक ठीकि रौंद पण जु मि मैदानि अलु रौलु त नौ मैना तलक ठीक रौंदु
खीरा - हमकुण मैदानोंम कद्दू /घपला बुले जांद। पकीं दशाम मि बारा तेरा मैना तलक खराब नि होंदु
प्याजक दाण - म्यार दाण खीरा से जादा दिन तलक ठीक रै जांदु

बुडड़ि - उमरो या ड्यूरेबिलिटी हिसाब से त प्याज भुज्युं महाराजा अर खीरा राजा ह्वाइ।
सबि - न्है ! न्है ! यो न्याय-निसाब ठीक नी च, कै माँ क्या क्या विटामिन , क्या मिनरल च यांको बारं बि सूत भेद लिये जाण चयेंद।
बुडड़ि - ठीक च कैं भुजिम क्या क्या विटामिन छन, क्या क्या मिनरल छन पर भोळ बात होलि।
सबि - हम सब भोळ औंला अर आपक न्याय निसाब सुणला

Copyright@ Bhishma Kukreti 30/1/2013
साग- भुज्युं राजा को च ?- खांडि ( भाग) -2 म जारी

विजय बहुगुणा जीक दगड़ उद्योग नीति पर इंटरव्यू

गढ़वाली हास्य व्यंग्य
हौंसि हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
                                 विजय बहुगुणा जीक दगड़ उद्योग नीति पर इंटरव्यू
                                    चबोड्या: भीष्म कुकरेती
(s=-माने आधी अ )
अचकाल फेस बुकs खबरों से कुछ पता इ नि चलदो बल खबर सही खबर च, दुस्मनो कि नेताओं तै बदनाम करणों बान झूटी खबर उड़ाईं/उछाळि च; नेताओंs जन सम्पर्क को बान उच्छाळि खबर च या क्या च ? अब सि फेस बुकम एक खबर द्याख बल उत्तराखंडs मुख्यमंत्री श्री विजय बहुगुणा जी चौड़ (शीघ्र) एक उद्योग नीति लाण वाळ छन या घोषित करण वाळ छन। ठीकि च क्वी बि मुख्यमंत्री ह्वावो वो पैल प्रशासनम चुस्ती लाणों बान अधिकार्युं थोकम बदली करदो जां से ट्रांसफर उद्योगम उच्छाला आंदो अर इन बुल्दन बल नेताओं अर अधिकार्युं ड्यार रुप्योंन दबल-कुठार भरे जांदन। अब जब उत्तराखंडs मुख्यमंत्रीम करणों बान कुछ काम नि ह्वावो त वो उद्योग नीति घोषित करदो।
मीन कल्पना कार बल जु मि उद्योग नीति पर विजय बहुगुणा से मुखाभेंट (इंटरव्यू) करलु त वा मुखाभेंट इन होलि। मुखाभेंट हिंदीम इ होलि।

मि- विजय जी बधाई हो बल आप उत्तराखंडो बान एक उद्योग नीति लाण वाळ छन।
विजय बहुगुणा- जी सोनिया जीक फजल से, राजीव का आशीर्वचन से अर बुबा जीक पुण्यो परताप से मि शीघ्र ही राज्य उद्योग नीति घोषित करलु।
मि- बुगण जी ! मि ...
विजय- यी बुगण को च ?
मि- जी गावुंमा बहुगुणाओं तै अबि बि बुगण करिक भट्यान्दन।
विजय - पण म्यार ख़ास सलाहकारोंन त इन बथाई छौ बल हम बंगाली छंवां अर कबि नि बतै बल हम बुगण बि छंवां
मि- अछा ! छ्वाड़ो। जरा इन बतावो बल पहाड़ो का वास्ता पर्यटन उद्यम नीति क्या च? खासकर पौड़ी, पिथौरागढ़ जन जिला जख पर्यटन कम च उखाकुण क्या नीति होलि?
विजय - जरा मि नीति फ़ाइल देखिक बतांदु हां! वाह -नैनीताल देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश अर सितारगंज का पपर्यटन विकासो वास्ता बजट दुगणों करे जालो।

मि- सर ! मि पहाड़ोंम पर्यटन उद्योग विकास की बात पुछणु छौं।
विजय-क्या नैनीताल देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश अर सितारगंज नि छन?
मि- सौरि सर नैनीताल देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश अर सितारगंज मैदानि हिस्सा छन।
विजय - पण म्यार ख़ास सलाहकारोंन मि तै बथै इ नी च बल नैनीताल देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश अर सितारगंज पहाड़ी इलाकाक नि छन। यांक मतलब या च मि तै हौर बि सलाहकारों जर्वत पोड़लि।
मि- अच्छा सर! पहाड़ोम रोजगार नि होण से पहाडुंम पलायन एक बड़ी समस्या च। पहाड़ी गावों से पलायन रुकणो बाण पहाड़ो बान आपक क्या उद्यम नीति च?

विजय- हाँ ! भलो हो इंडियन प्लानिंग कमिसन को। रोजगार का अवसर बढ़ाणो बान योजना आयोगन उद्धम सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून अर सितार गंज को बजट दुगणों करी दे।

मि- पण सर! उद्धम सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून अर सितार गंज त मैदानी हिस्सा छन अर मि पहाड़ोंम उद्यम लगाणों सवाल करणु छौं जां से पहाडुं बिटेन पलायन रुकि जावो।

विजय- हैं गजब ह्वे गे म्यार खास सलाहकारोंन त मि तै बतै इ नी बल उद्धम सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून अर सितार गंज मैदानी भाग छन। मि तै कुछ हौर ख़ास सलाहकार भट्याण पोड़ल जौं तै उत्तराखंड को भूगोल पता हो।
मि- सर ! पहाड़ोंम खेति पाति खतम होणि क्या चौपट ही ह्वे गे। जरा इन बताओं कि आपकी नई उद्योग नीतिम पहाड़ों बान कृषि उद्योग नीति क्या च?
विजय- हाँ ! कृषि विकासौ बान बासमती, रासमती, गेंहूं, अरहर, चना की खेती तै प्रोत्साहन दीणों बान बजट बढ़ाये जालो।

मि- पण सर ! बासमती, रासमती, गेंहूं, अरहर, चना की खेती त मैदानों खेति च। मि पहाड़ों खेति बाराम पुछणु छौं।
विजय- पण मेरो बिंगणम नि आयो कि म्यार ख़ास सलाहकारोंन मि तै किलै नि बतै बल बासमती, रासमती, गेंहूं, अरहर, चना की खेती त मैदानों खेति च। कुछ हौर सलाहकार भट्याण पोड़ल।
मि- चलो मि समजि ग्यों कि आप बि भूतपूर्व मुख्य मंत्र्युं बाटो पर ही चलणा छौंवा।
विजय- नै नै .
मि- चलो जाणि द्यावो। जांद जांद एक सवाल च . भाषा नीति क्या च ?
विजय- उर्दू तै त हमन राज्य भाषा दर्जा दियाल। बस अब चौड़ (शीघ्र) ही बंगाली तै बि राज्य भाषौ दर्जा दिए जालो .
मि- सर ! हजारों साल पुराणी राजकीय भाषाओं गढ़वाली अर कुमाउनी भाषौं बाराम क्या नीति च?
विजय- हैं ! गढ़वाली अर कुमाउनी भाषा हजारों साल पुराणि राजकीय भाषा छयी ?
मि- जी सर।

विजय- पण म्यार ख़ास सलाहकारोंन मि तै बतै इ नी च बल गढ़वाली अर कुमाउनी भाषा हजारों साल पुराणि राजकीय भाषा छ्या। कुछ हौर ख़ास सलाहकार भट्याण पोड़ल।
मि- जी यि ख़ास सलाहकार कखक छन?
विजय- जी यि खास सलाहकार इलाहबाद बिटेन अयाँ छन।कुछ हौर ख़ास नया सलाहकार भट्याण पोड़ल।
मि- अर नया सलाहकार कख बिटेन भट्येल्या?
विजय- इलाहाबाद बिटेन अर कखन। मी अबि रीता तै फोन करदो कि सलाहकारों की एक हैंकि खेप भेजी द्याव

Copyright@ Bhishma Kukreti 30/01/2013
[भैरों ! मुखाभेंट कल्पना माँ इ ह्वे। )

V.P .Singhan: Satire Satirizing, ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister


Critical review of Garhwali satirical- humors prose by Asian satirist - 132

Garhwali language Satirical, sardonic, ridiculing, mocking, spoofing, lampoon, and humorous Prose by regional Oriental satirist Bhishma Kukreti -63
V.P. Singhan ‘(Garh Aina, 18/5/1990), A Garhwali humorous and satiricalmocking, spoofing, lampoon, and humorous article written by regional Oriental satirist Bhishma Kukreti
                                               Review By: Bhishma Kukreti
[Notes on Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; Garhwali Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; Uttarakhandi Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; mid Himalayan Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; Himalayan Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; North Indian regional language Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; Indian local Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; Asian regional language Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; Oriental regional language Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister]       

                                                  Decision Processes
                   According to Ron Edmondson, the leader takes two types of decisions Arbitrary and Calculated
              In case of arbitrary decision, the process is a-few people affected; the decision life is short; low cost or decision has less impact; usually decision maker is also implementer;  less thinking requirement in decision making and only single person is required for decision making.
                  In case of calculated decision, the process is- many people affected; the decision is long term implementations; the decision requires higher cost and the decision has big potential; decision requires others for implementation; the decision requires constant and more thinking and such decision requires other’s wisdoms and counsel.
                                              V.P. Singh was infamous for not taking decision               
   Due to various selfish, unlike minded allied political partners and self centered leaders as Devi Lal, Chandra Shekhar, Ajit Singh, Mufti Mohammed,  in the government or outside supporters by Communist and Bhartiya Janta Party, former Prime Minister V.P. Singh was infamous   for his not taking decision or delaying the normal decision too.  Asian regional language satirist Bhishma Kukreti criticizes (satirically) such poor decision taking ability of a premier as the character of leaders effect the working style of the country. Kukreti humorously proves that even the horse cart driver has become poor decision maker in India due to the behavior of V.P. Singh.
             इथगा मा मीन द्याख कि एजेंटो चपड़ासी चाय की ट्रे लेकि भितर द्वारतलक ल्हाव अर फिर भैर ल्ही जावू अर फिर भीतर द्वार तलक ल्हावु .
मीन पूछ," भै तुमर चपड़ासी भैर भितर किलै करणु  . क्या ये तै करास लगीं  ?
एजेंट श्रीन बवाल ," जथो राजा तथो प्रजा। म्यार चपड़ासी पर घंघतोळीअनिर्णयी ,निर्णय तै अग्वाड़ी धक्ल्याणो बीमारी लगीं च। वैक समज मा यो नि आणु की चाय भितरम्यार मेजमा धरण कि तुमर हथुंम दीण "
मीन ब्वाल," तो सीधा ब्वालो ना कि तुमर चपड़ासी पर वी पी सिंघाण की बीमारी लगीं 

  Asian regional language satirist Bhishma Kukreti uses dialogues and interview for making his point clear.
Copyright@ Bhishma Kukreti 29/1/2013
Critical review of Garhwali satirical sardonic, ridiculing, mocking, spoofing, lampoon, anhumors prose by Oriental satirist to be continued… 133
Garhwali language Satire mocking, ridiculing, spoofing, lampoon and humorous and humorous Prose by regional Asian Satirist Bhishma Kukreti to be continued…64
Commentary  on Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; Garhwali Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; Uttarakhandi Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; mid Himalayan Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; Himalayan Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; North Indian regional language Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; Indian local Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; Asian regional language Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister; Oriental regional language Satire Satirizing ridiculing Confusing Leadership of Indian Prime Minister to be continued…